पुण्यतिथि पर विशेष लेख
डॉ. रामजीलाल
(समाज वीकली) कोचेरिल रमन नारायणन (के.आर. नारायणन –27 अक्टूबर 1920 -9 नवंबर 2005) भारतीय लोकतंत्रात्मक गणराज्य के दलित वर्ग (परवरजाति) से संबंधित प्रथम राष्ट्रपति थे. वह एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी, लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के छात्र नेता, वाइस चांसलर के रूप में शिक्षाविद्, भारत के सर्वश्रेष्ठ राजनयिक ,प्रशासक, पत्रकार, राजनीतिज्ञ ,सांसद (सन् 1984 सन् 1989 और सन् 1991), उपराष्ट्रपति(सन् 1992- सन् 1997) और राष्ट्रपति (25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002) थे .वह विवेकशील, वैज्ञानिक चिंतक, धर्मनिरपेक्ष तथा मानववादी विचारधारा के समर्थक थे.
जन्म व शिक्षा
केआर नारायणन का जन्म 27 अक्टूबर 1920 को त्रावणकोर (वर्तमान कोट्टायम जिला , केरल ) की रियासत के उझावूर गांव के पेरुमथानम में एक दलित परिवार में एक गुंबदनुमा झोपड़ी में हुआ था. वह अपने पिताजी कोचेरिल रमन वैद्य (चिकित्सक) और माताजी पुन्नाथथुरावेटिल पप्पियाम्मा के सात बच्चों में से चौथे थे. बड़ा परिवार होने के कारण गुजर बड़ा मुश्किल था और गरीबी उनके शिक्षा के मार्ग में बाधाएं पैदा करती रही. परंतु नारायणन ने प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूलों से की. मैट्रिक पास करने के पश्चात त्रावणकोर कोचीन के शाही परिवार के द्वारा छात्रवृत्ति प्राप्त करने के आधार पर इंटरमीडिएट पास करने के बाद नारायणन ने त्रावणकोर विश्वविद्यालय (सन् 1940 सन् -1943) (वर्तमान केरल विश्वविद्यालय ) से अंग्रेजी साहित्य में बीए (ऑनर्स) और एमए की डिग्री प्राप्त की. विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया.. प्रथम श्रेणी में डिग्री प्राप्त करने वाले केरल के प्रथम दलित छात्र थे .आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भी हिम्मत नहीं हारी और दिल्ली में आकर पत्रकारिता करने लगे. उन्होंने सन् 1944 तथा सन् 1945 में ‘द हिंदू’ तथा ‘द टाइम ऑफ इंडिया’ के पत्रकार के रूप में कार्य किया और 10 अप्रैल 1945 में मुंबई में महात्मा गांधी का इंटरव्यू लेने में सफल हुए. यह वास्तव में उनके पत्रकारता जीवन की एक प्रकाष्ठा थी.
सन् 1944 में नारायणन उनकी प्रतिभा को देखते हुए तत्कालीन प्रसिद्ध उद्योगपति जेआरडी टाटा ने उनको 16000 रुपए की छात्रवृत्ति दी जिसके आधार पर वह विश्व प्रसिद्ध लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स में प्रवेश प्राप्त करने में सफल रहे. केआर नारायणन सन् 1945 से सन् 1948 तक इंग्लैंड में शिक्षा प्राप्त करते रहे और यहां रहते हुए उनकी प्रतिभा के कारण उनको लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के छात्र संघ का प्रेसिडेंट चुना गया .छात्र संघ के प्रेसिडेंट रूप में वे दूसरे दलित व भारतीय विद्यार्थी थे. इससे पूर्व भारत के संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर सन् 1912 में प्रथम गैर यूरोपीय भारतीय दलित छात्र संघ अध्यक्ष बने थे . उस समय लंदन स्कूल आफ इकोनॉमिक्स के अध्यक्ष विश्व प्रसिद्ध विद्वान हेराल्ड लास्की थे और वह के आर नारायणन को बहुत अधिक पसंद करते थे
नारायणन की भारत वापसी : जवाहरलाल नेहरू के नाम लास्की का पत्र
सन् 1948 में जब नारायणन हिंदुस्तान वापस आने लगे तो उनको लास्की ने भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नाम एक पत्र लिखा तथा उस पत्र को भेंट करने के लिए भारत के प्रधानमंत्री के कार्यालय से नारायणन ने समय मांगा. नारायणन को जवाहरलाल नेहरू से मिलने के लिए संसद भवन का समय दिया गया. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से नारायणन की बातचीत उनके जीवन का एक टर्निंग पॉइंट था. निर्धारित समय खत्म होने के पश्चात जब नारायणन उठकर चलने लगे तो उन्होंने जवाहरलाल नेहरू को लास्की के द्वारा लिखित पत्र भेंट किया.
इस घटना का वर्णन करते हुए नारायणन ने स्वयं लिखा :‘’जब मैंने पढ़ाई पूरी कर ली, तो लास्की ने मुझे पंडित जी (जवाहरलाल नेहरू) के लिए एक परिचय पत्र दिया. दिल्ली पहुंचने पर मैंने प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांगा. मुझे लगता है, क्योंकि मैं लंदन से घर लौट रहा एक भारतीय छात्र था, इसलिए मुझे एक समय दिया गया था. यहीं संसद भवन [पुराना संसद भवन] में उन्होंने मुझसे मुलाकात की. हमने लंदन और उस जैसी चीजों के बारे में कुछ मिनट तक बात की और मुझे जल्द ही पता चल गया कि अब मेरे जाने का समय हो गया है. इसलिए, मैंने अलविदा कहा और कमरे से बाहर निकलते समय, मैंने लास्की का पत्र उन्हें सौंप दिया और बाहर बड़े गोलाकार गलियारे में चला गया। जब मैं आधे रास्ते पर था, तो मैंने उस दिशा से किसी के ताली बजाने की आवाज़ सुनी, जिस दिशा से मैं अभी आया था। मैंने मुड़कर देखा कि पंडित जी [जवाहरलाल नेहरू] मुझे वापस आने का इशारा कर रहे थे. जब मैं उनके कमरे से बाहर निकला, तो उन्होंने पत्र खोला और उसे पढ़ा. [जवाहरलाल नेहरू ने पूछा:] “आपने इसे मुझे पहले क्यों नहीं दिया?” [नारायणन ने उत्तर दिया:] “ठीक है, सर, मुझे खेद है. मुझे लगा कि अगर मैं इसे जाते समय ही सौंप दूं तो यह पर्याप्त होगा… कुछ और प्रश्नों के बाद उन्होंने मुझे पुनः मिलने के लिए कहा और बहुत जल्द ही मैंने स्वयं को भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश करते पाया.‘’
राजनयिक रूप में
जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर नारायणन ने भारतीय विदेश सेवा की परीक्षा पास की .भारतीय विदेश सेवा की परीक्षा पास करना उनके जीवन का एक और महत्वपूर्ण कदम था .जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधानमंत्री के साथ-साथ उस समय भारत के विदेश मंत्री भी थे. नारायणन जवाहरलाल नेहरू के अनुरोध पर भारतीय विदेश सेवा में सम्मिलित हुए और 10 अप्रैल 1949 को जवाहरलाल नेहरू के द्वारा उन्हें विदेश मंत्रालय के साथ अटैची नियुक्त कर दिया गया. जवाहरलाल नेहरू नारायणन की प्रतिभा से इतने अधिक प्रभावित थे कि उनको विदेश मंत्रालय के अतिरिक्त अनेक दूतावासों में भी नियुक्त किया गया. एक राजनयिक के रूप में जापान इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी वियतनाम, थाईलैंड, चीन, तुर्की तथा अमेरिका में अनेक सफलतापूर्वक कार्य किए ओर भारतीय हितों की सुरक्षा की. जवाहरलाल नेहरू ने उनके कार्यों और सफलताओं को देखते हुए सन 1955 में देश के ‘सर्वश्रेष्ठ राजनयिक’ के रूप में इनको संबोधित किया. एक राजनयिक’ के रूप में उनके जीवन में दो महत्वपूर्ण घटनाएं उनकी सफलता को दर्शाती है.
प्रथम, सन् 1976 में 15 वर्ष के पश्चात किसी भी भारतीय राजदूत को चीन भेजा गया. वह सन् 1976– सन् 1978 अंतराल में चीन में भारत के राजदूत थे. यहां यह बताना बड़ा जरूरी है कि भारत- चीन युद्ध सन् 1962 में हुआ था और उसके पश्चात 15 वर्ष तक भारत और चीन के राजनयिक संबंध नहीं थे. नारायणन को चीनी भाषा, संस्कृति और इतिहास का गहन ज्ञान था. वह चीनी नेताओं के साथ चीनी भाषा में बात करते थे. उनकी राजनयिक प्रतिभा और योग्यता के कारण चीन और भारत के संबंधों में सुधार हुआ.
द्वितीय, वह सन् 1980— सन् 1983 के अंतराल में अमेरिका में भारत के राजदूत रहे. श्रीमती इंदिरा गांधी ने सन् 1982 में अमेरिका की राजनीतिक यात्रा की. उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन थे. अनेक कारणों की वजह से भारत -अमेरिका संबंधों में तनाव विद्यमान था. श्रीमती इंदिरा गांधी की यात्रा का समस्त प्रबंध नारायणन को सौंपा गया और उन्होंने अपनी कूटनीतिक प्रतिभा एवं शांत स्वभाव परंतु सुदृढ़ कार्यशैली के कारण भारत और अमेरिका के संबंधों में भी सुधार लाने का प्रयास किया.
राजनयिक से राजनेता रूप में
तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उनको राजनीति में प्रवेश करने का अनुरोध किया. श्रीमती इंदिरा गांधी के अनुरोध पर उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में केरल के पलक्कड़ में ओट्टापलम निर्वाचन क्षेत्र से प्रतिनिधि के रूप में सन् 1984, सन् 1989 और सन् 1991 में लोकसभा के लिए लगातार तीन आम चुनाव जीते .यह उनकी एक निरंतर राजनीतिक प्रतिभा का प्रदर्शन करता है और इस बात का प्रदर्शन भी करता है कि वह राजनयिक के साथ-साथ जिस तरीके से राजनेता के रूप में सफल हुए उसे प्रतीत होता है कि उनका जनता के प्रति बहुत अधिक लगाव था. प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें अनेक विभागों के साथ-साथ विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री का कार्य भी सौंपा और सभी कार्य उन्होंने मेहनत, ईमानदारी और निष्ठा से संपन्न किये.
भारत के उपराष्ट्रपति व राष्ट्रपति
के.आर. नारायणन को 21 अगस्त 1992 को भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया. पांच साल के बाद राष्ट्रपति के चुनाव मंडल में 14 जुलाई 1997 को अपने प्रतिद्वंदी टी.एन शेषन के विरुद्ध 95% मत प्राप्त किये. सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जे. एस. शर्मा ने 25 जुलाई 1997 को भारत के दसवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिलवाई. के. आर. नारायणन के भारत के राष्ट्रपति बनने से महात्मा गांधी का स्वप्न पूरा हुआ क्योंकि वह मानते थे कि भारत को असली आजादी तब मिलेगी जब कोई दलित इस देश का राष्ट्रपति होगा.
प्रधानमंत्री की नियुक्ति और संसद का विघटन
राष्ट्रपति के रूप में के.आर नारायणन का कार्यकाल बड़ा महत्वपूर्ण और चुनौतियां पूर्व रहा है. क्योंकि यह अल्पमत सरकारों का दौर था . राष्ट्रपति के सामने दो बार लोकसभा भंग करने की स्थिति उत्पन्न हुई राष्ट्रपति ने अपनी विवेकशील शक्तियों का प्रयोग करते हुए आई. के. गुजराल (4 दिसंबर1997) और अटल बिहारी वाजपेई (26 अप्रैल 1999) के परामर्श पर लोकसभा को भंग कर दिया और उनके कार्यकाल में लोकसभा का दूसरा चुनाव था .लोकसभा में चुनाव के पश्चात राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन को बहुमत प्राप्त हुआ और 11 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेई को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया. उन्होंने अपने कार्यकाल में प्रधानमंत्री की नियुक्ति के संबंध में नई प्रथा प्रारंभ की. उन्होंने स्पष्ट कहा कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति त्रिशंकु पार्लियामेंट के समय तब की जाएगी जब प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार राष्ट्रपति को यह विश्वास दिला सके कि उसके पास बहुमत है. इस संबंध में उस नेता को साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे. राष्ट्रपति के द्वारा यह प्रथा पूर्व राष्ट्रपतियों– –नीलम संजीवा रेड्डी, आर. वेंकटरमन और शंकर दयाल शर्मा के द्वारा चलाई गई प्रथा के बिल्कुल विपरीत थी. इन सभी राष्ट्रपतियों ने बिना साक्ष्य की जांच के लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के नेता अथवा चुनाव से पूर्व स्थापित गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था.
विवेकशील शक्तियों का प्रयोग : संविधान की धारा 356
भारत के राष्ट्रपति के पास संविधान के द्वारा विवेकशील शक्तियां प्रदान की गई है. राष्ट्रपति नारायणन ने विवेकशील शक्तियों का प्रयोग करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल के परामर्श पर उत्तर प्रदेश की सरकार को बर्खास्त करने की मांग तथा अटल बिहारी वाजपेई की सरकार के अनुरोध पर बिहार की राबड़ी देवी की सरकार को संविधान की धारा 356 के अंतर्गत बर्खास्त करने के लिए इंकार कर दिया था .इस संबंध में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सन् 1994 में एस आर मुंबई बनाम भारतीय संघ विवाद के फैसले का हवाला देकर उन्होंने अपने विवेक के अधिकार का प्रयोग किया .परंतु सन् 1999 में प्रधानमंत्री वाजपेई की सरकार के बिहार सरकार को भंग करने के प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाई थी. यह उदाहरण पहले दो उदाहरणों के बिल्कुल विपरीत है.
भारत के राष्ट्रपति के रूप में नारायणन ने अपने भाषणों के माध्यम से सरकार को दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यक वर्गों, गरीबों, महिलाओं तथा बच्चों पर होने वाले अत्याचारों, जाति के भेदभाव, सार्वजनिक सेवाओ में भ्रष्टाचार, पर्यावरण, उपभोक्तावाद, मानव अधिकार, शिक्षा सामाजिक आधुनिकीकरण इत्यादि विषयों पर समय-समय पर अपने विचार रखें. उन्होंने वैश्वीकरण, अंतर्राष्ट्रीय निगमीकरण और सैन्यकरण का विरोध किया. वह सामाजिक और आर्थिक न्याय के पक्षधर थे.
वैज्ञानिक स्वभाव और धर्मनिरपेक्षता
उनकी सोच वैज्ञानिक स्वभाव और धर्मनिरपेक्षता आधारित थी. संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षता एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है. उनका मानना था कि भारत एक बहुलवादी राज्य है. यहां विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग रहते हैं. इसलिए ऐसे राष्ट्र में धार्मिक सद्भाव, एकता तथा लोकतंत्र में विश्वास की भावना राष्ट्र निर्माण में सहायक होती है राष्ट्रपति के रूप में वे अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कभी धार्मिक पूजा स्थलों, धार्मिक गुरुओं तथा ईश्वरवादियों के घर नहीं गए. केवल यही नहीं अपितु होली जैसे समारोहों से भी दूर रहते थे
नारायणन की धर्मनिरपेक्ष भावना इस बात से भी स्पष्ट दिखाई देती है कि उन्होंने एक सांसद के रूप में बाबरी मस्जिद को गिराने की घटना की भी घोर निंदा की थी तथा महात्मा गांधी की हत्या के पश्चात इस घटना को राष्ट्र की सबसे खतरनाक घटना माना था .एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रपति के रूप में नारायणन ने गुजरात के दंगों (फरवरी2002) के संबंध में प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई तथा तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (अब भारत के प्रधानमंत्री) की आलोचना भी की. राष्ट्रपति के आदेश पर केंद्रीय सरकार के द्वारा गुजरात में सेना को तो भेज दी गई. परंतु दंगाइयों को नियंत्रित करने के लिए सेना को गोली मारने के निर्देश नहीं दिए. यही कारण है कि उन्होंने सन् 2005 में गुजरात के दंगों के संबंध में केंद्रीय तथा प्रांतीय सरकारों की साजिश बताया. गुजरात के दंगों को उन्होंने भारतीय समाज और राष्ट्र के लिए अधिक खतरनाक मानते हुए इसे ‘गुजरात की त्रासदी’ के नाम से संबोधित किया. नारायण एक संवेदनशील वैज्ञानिक चिंतन के धनी होने के कारण एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति थे. उनकी धर्मनिरपेक्षता की विचारधारा वर्तमान समय में बहुत ही अधिक प्रासंगिक है. 9 नवंबर 2005 को 85 वर्ष की आयु में निमोनिया और गुर्दे की बीमारी के कारण उनकी मृत्यु हो गई. ऐसे महान व्यक्तित्व को कृतज्ञ राष्ट्र नमन करता है.
डॉ. रामजीलाल, समाज वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा–भारत)
ईमेल—drramjilal [email protected]