भगत सिंह : क्रांतिकारी, निर्भीक एवं स्वतंत्र पत्रकार के रूप में

भगत सिंह : क्रांतिकारी, निर्भीक एवं स्वतंत्र पत्रकार के रूप में
डॉ रामजीलाल सामाजिक वैज्ञानिक,सेवानिवृत्त प्राचार्य,दयाल सिंह कॉलेज, करनाल(हरियाणा)

ममता कुमारी, शोधार्थी पीएचडी, राजनीति विज्ञान विभाग, बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, अस्थल बोहर, रोहतक, (हरियाणा)

#समाज वीकली यू.के.

भारतीय पत्रकारिता का इतिहास संघर्ष एवं बलिदानों से भरा हुआ है . स्वतंत्रता से पूर्व भारत में अनेक समाचार पत्र, पत्रिकाएं प्रकाशित हुए । परंतु सरकार के खिलाफ लिखने के कारण या तो प्रतिबंधित कर दिए गए या फिर धन के अभाव में बंद हो गए । भारतीय पत्रकारिता के जनक जेम्स ऑगस्टस हिक्की माने जाते हैं जिन्होंने 29 जनवरी, 1780 को साप्ताहिक समाचार “बंगाल गज़ट” (कोलकाता) अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया । हिक्की की गिरफ्तारी के बाद यह समाचार पत्र बंद हो गया. बंगाल से ही राजा राममोहन राय ने सन् 1816 में संवाद कौमुदी (बांग्ला), मिरात-उल-अखबार” (फारसी) में समाचार पत्र प्रकाशित किए. राजा राममोहन राय प्रेस व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक थे । भारतीय पत्रकारिता की शुरुआत, जो राजा राममोहन राय ने की थी, उसे दयाल सिंह मजीठिया ने “दट्रिब्यून” (सन् 1881), लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने मराठा (अंग्रेजी भाषा, सन् 1881), “केसरी” (मराठी भाषा), सुरेंद्रनाथ बनर्जी (सन् 1883, बांग्ला), दीनबंधु सर छोटू राम ने जाट गज़ट (सन् 1915),मोती लाल नेहरू ने “द इंडिपेंडेंट” (5-फरवरी-1919), महात्मा गांधी ने यंग इंडिया (सन् 1919), ”हरिजन” (सन् 1933), डॉ. बी. आर. अंबेडकर नेमूकनायक (सन् 1920),बहिष्कृत भारत (सन् 1927), समता (सन् 1928), जनता (सन् 1930), प्रबुद्ध भारत (सन् 1956),जवाहरलाल नेहरू ने नेशनल हेराल्ड (सन् 1938), आदि ने उसे आगे बढ़ाया . भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों व क्रांतिकारियों द्वारा समाचार पत्र व पत्रिकाओं का सहारा लिया गया स्वतंत्रता संग्राम के लिए जनता को जागरूक व संगठित किया जा सके . कांग्रेस पार्टी के नेता, क्रांतिकारियों के सहयोगी व संप्रदायवाद के घोर विरोधी गणेश शंकर विद्यार्थी, (पत्रकारिता के क्षेत्र में शहीद होने वाले पहले
पत्रकार) जिन्होंने 9 नवंबर, 1913 को कानपुर से “प्रताप” का साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया . जब भगत सिंह के घर में उनके विवाह की चर्चा (सन् 1923) शुरू हुई तो वे घर छोड़कर कानपुर चले गए .

ममता कुमारी,

भगत सिंह की प्रतिभा को देखकर गणेश शंकर विद्यार्थी ने इनको संपादक मंडल का सदस्य
बनाया और इस प्रकार उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के सानिध्य में पत्रकारिता की शुरुआत की । भगत सिंह के बहुआयामी व्यक्तित्व (स्वतंत्रता सेनानी, देशभक्त, क्रांतिकारियों लेखक,
नेता, अभिनेता, विद्रोही, समाज सुधारक, युगदृष्टा, दार्शनिक, दूरदर्शी, विचारक) का एक पहलू पत्रकार भी है . शोध-पत्र में हमने भगत सिंह के पत्रकार के रूप में अध्ययन करने का प्रयास किया है .

भगत सिंह के पिता का नाम स. किशन सिंह व माता का नाम शादी से पूर्व इंदू था परंतु
उनके परिवार का शिक्षा के प्रति प्रेम होने के कारण उनका नाम शादी के पश्चात विद्यावती
रख दिया गया । भगत सिंह के चाचा स. अजीत सिंह को भी सन् 1909 में देश छोड़कर जाना पड़ा .भगत सिंह के दूसरे चाचा स. स्वर्ण सिंह मात्र 23 वर्ष की आयु में जेल में यातनाएं सहकर शहीद हो गए । भगत सिंह के विचारों पर तत्कालिक परिवारिक परिस्थितियां का प्रभाव पड़ा व घर में ही उपलब्ध साहित्य व समाचार-पत्रों का गहरा प्रभाव पड़ा . नेशनल कॉलेज लाहौरमें दाखिल (सन् 1923) होने के बाद व क्रांतिकारी साथियों और अध्यापकों का साथ के साथ विचार विमर्श करके भगत सिंह के विचारों को सही दिशा मिली . कार्ल मार्क्स,एंजेल्स व लेनिन की पुस्तकों का गहन अध्ययन करने के पश्चात, भगत सिंह मार्क्सवादी व समाजवादी क्रांति विचारधारा के समर्थक बन गए . इसके परिणाम स्वरूप वे फांसी के फंदे को चूमने तक विचलित नहीं हुए . कॉलेज के दिनों में भगत सिंह का अधिकतर समय द्वारकादास लाइब्रेरी (लाहौर) में अध्ययन करने में व्यतीत होता था . उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 700 से अधिक पुस्तकों का अध्ययन किया . फांसी लगने से पूर्व में लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे. यही कारण था कि उनके साथी उन्हें “पुस्तक कीट” कहते थे . भगत सिंह को पढ़ने व लिखने का शौक था और यही शौक उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से पूरा किया.

भगत सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन में जनता को जागरूक व संगठित करने के लिए पत्रकारिता का सहारा लिया . अंग्रेजो के खिलाफ लिखना किसी खतरे से कम नहीं था . परंतु भगत सिंह किसी खतरे से डरने वालों में नहीं थे . उन्होंने अपने विचार निष्पक्ष व निडर रूप से सबके सामने रखे . भले ही इसके लिए उन्होंने छद्म नामों का सहारा लिया . भगत सिंह का मानना था, काम महत्व रखता है नाम नहीं . उनके विचार जनता तक पहुंचने चाहिए और जनता में जागरूकता आनी चाहिए भले ही जनता उनके नाम से परिचित हो या ना हो . भगत सिंह ने विभिन्न समाचार पत्रों में अपने लेखों को प्रकाशित करवाया . भगत सिंह ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय विषयों पर अपने विचार खुलकर व्यक्त किए हैं.

भगत सिंह ने लगभग 17 वर्ष की आयु में अपना लेखन कार्य शुरू किया . उनके लेखन का
बेहतरीन उदाहरण “पंजाबी भाषा की लिपि और समस्या” उनके जीवन का प्रथम लेख था . इतनी छोटी आयु में इतने परिपक्वता से उनके विचार, जिसने भी पढ़ें वही भगत सिंह के लेखन का कायल हो गया । भगत सिंह ने अपने लेखन में साफ शब्दों में व्यक्त किया कि पूरे देश की भाषा एक होनी चाहिए । भाषा को धर्म के आधार पर नहीं बांटना चाहिए . यदि देश को मजबूत करना है तो उसकी शुरुआत एक राष्ट्रीय भाषा के रूप में होनी चाहिए . भगत सिंह भले ही पूरे राष्ट्र के लिए हिंदी भाषा को प्राथमिकता देते हैं परंतु वह भाषा थोपने के समर्थन में नहीं थे . भगतसिंह को अपने इस लेख के लिए ₹50/- का इनाम मिला . भगत सिंह के शहीद होने के पश्चात यह लेख पंजाबी साहित्य सम्मेलन के द्वारा 28 फरवरी, 1933 को हिंदी संदेश में प्रकाशित करवाया गया . यहीं से भगत सिंह की लेखन कला का पता चलता है.

इस लेख में दिए गए भगत सिंह के विचार आज भी प्रासंगिक हैं । उसके बाद भगत सिंह ने कभी ना रुकने वाला अपना लेखन कार्य शुरू किया, जिसमें “अछूत का प्रश्न”, “युवक”, “विश्वप्रेम”, “सांप्रदायिक दंगे और इनका इलाज”, “धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम”, “विद्यार्थी एवं राजनीति”, “मैं नास्तिक क्यों हूं?”, “मेरे क्रांतिकारी साथी”, इत्यादि मुख्य लेख हैं । शायद ही कोई ऐसा विषय है जिस पर भगत सिंह ने अपने विचार प्रस्तुत न किए हो . भगत सिंह भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय समस्याओं की व्याख्या ही नहीं की अपितु उनको दूर करने के लिए निष्पक्ष व महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए ।
(डॉ रामजीलाल,, शहीद-ए-आजम भगत सिंह:व्यक्तित्व, चिंतन, विरासत और वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता : पुनर्मूल्यांकन, ई-समाज वीकली. यू.के, 29-April-2023)

एक सफल पत्रकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण भाषाओं का ज्ञान, भाषा पर पकड़ मजबूत होनी चाहिए व परिस्थितियों की जानकारी होनी चाहिए . एक अच्छा पत्रकार जितना अधिक पढेगा व शोध करेगा उतनी ही उसकी पत्रकारिता प्रभावशाली होगी . भगत सिंह पढ़ने व लिखने के शौकीन थे . भगत सिंह अपनी जेब में डिक्शनरी रखते थे जब भी किसी शब्द का अर्थ समझ नहीं आता था वह तुरंत ब्दकोश में उसका अर्थ देख लेते थे . किसी भी घटना का वर्णन करते समय शब्दों का चयन और उन सब से बढ़कर निष्पक्ष और निडर रूप से अपनी बात रखने का साहस, उनकी मुख्य विशेषताएं थी . भगत सिंह को हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी भाषाओं का अच्छा ज्ञान था . भगत सिंह ने अपने अधिकतर लेख इन्हीं भाषाओं में प्रकाशित करवाएं . बंगाली क्रांतिकारी साथियों विशेष रुप से बी.के. दत्त के संपर्क में आने के बाद भगत सिंह ने बांग्ला भाषा भी सीखी . बांग्ला भाषा में भले ही उनकी पकड़ इतनी मजबूत ना हो परंतु फिर भी उन्होंने बांग्ला भाषा में लेख लिखे और प्रकाशित करवाएं . भगत सिंह का पारिवारिक माहौल आर्य समाजी रीति-रिवाजों से संपन्न था । पारिवारिक वातावरण के प्रभाव के कारण भगत सिंह को संस्कृत का सामान्य ज्ञान था परंतु उनका एक भी लेख संस्कृत भाषा में प्रकाशित नहीं हुआ.

भगत सिंह के लेख विभिन्न समाचार-पत्रों, साप्ताहिकी व पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । इनमें से प्रमुख समाचार-पत्र प्रताप (कानपुर), वीर अर्जुन (दिल्ली), मतवाला (कोलकाता), द पीपल्स लाहौर), महारथी (दिल्ली), कीरती (अमृतसर) इत्यादि हैं . भगत सिंह की उर्दू, पंजाबी अंग्रेजी व में हिंदी भाषा पर अच्छी पकड़ होने के कारण उनकी सभी धर्मों के अनुयायियों में लोकप्रियता थी. (डॉ रामजीलाल,, शहीदे-ए-आजम भगत सिंह : युगदृष्टा, युगपरुष, वैज्ञानिक समाजवादी क्रांतिकारी, निर्भीक एवं स्वतंत्र पत्रकार, ई-समाज वीकली. यू.के. 27-Sep-2022)

मई, 1927 को कीरती पंजाबी पत्रिका में भगत सिंह ने अपनी पहली लेख माला काकोरी के वीरों को सलाम शुरू की और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया । परंतु जेल से रिहा होने के पश्चात भी भगत सिंह ने अपना लेखन कार्य नहीं छोड़ा और छद्म नामों से लेखन कार्य जारी रखा ।

भगत सिंह का पहला लेख सन् 1924 में “पंजाबी भाषा की लिपि और समस्या” था . 15 मार्च, 1926 को उनका एक लेख ‘भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का परिचय,’ वीर अर्जुन में प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था “होली के दिन रक्त के छिंटे” ,उर्दू पत्रिका वंदे मातरम में प्रकाशित हुआ . “अछूत का प्रश्न”, जून, 1928 में “विद्रोही” नाम से प्रकाशित हुआ. इसके अतिरिक्त भगत सिंह ने विद्रोही, रणजीत, पंजाबी युवक, बलवंत, अज्ञात, बीएस संधू, नाम बदलना उनकी मजबूरी थी क्योंकि वह अपना लेखन कार्य बंद नहीं करना चाहते थे न ही उन्हें किसी प्रकार की कोई प्रसिद्धि चाहिए थी . उनका एकमात्र उद्देश्य जनता को जागरूक और संगठित करना व स्वतंत्रत संग्राम के लिए प्रेरित करना था .

भगत सिंह के लेखन के कुछ अंश जिससे पता लगता है कि भगत सिंह का लेखन किस प्रकार का था . “पंजाबी भाषा की लिपि और समस्या” में भगतसिंह लिखते हैं कि पूरे देश की एक भाषा हिंदी होने का मतलब इन्हें समझ नहीं आता . भाषा को धर्म के आधार पर नहीं बांटना चाहिए . “अछूत का प्रश्न” में भगतसिंह लिखते हैं, ‘कुत्ता तुम्हारी गोद में बैठ सकता है, तुम्हारी रसोई में नि:संग फिरता है, लेकिन एक इंसान का स्पर्श हो जाए तो बस धर्म भ्रष्ट हो जाता है . हम पशुओं की पूजा करते हैं . लेकिन इंसान को पास नहीं बैठा सकते हैं.’ भगत सिंह लिखते हैं कि किस प्रकार ऊंच-नीच की भावना पैदा होती है जिससे लोगों के मन में घृणा और नफरत पैदा होती हैं . भारतीय समाज में यह समस्या वर्ण व्यवस्था के कारण सदियों से जारी है भारतीय संविधान के प्रावधानों, न्यायिक निर्णयों, कानूनों व सरकारी नीतियों के बावजूद भी दलित वर्ग के विरुद्ध 21वी शताब्दी में भी सभी अत्याचार जारी हैं.

भगत सिंह अपने लेख “युवक” में लिखते है कि युवावस्था में मनुष्य के दो ही मार्ग बताए हैं-
वह चढ़ सकता है उन्नति के शिखर पर,
वह गिर सकता है अध: पात के अंधेरे में,
चाहे तो त्यागी हो सकता है युवक,
चाहे तो विनाशी बन सकता है युवक ।

आज का युवक कल के देश के भाग्य का निर्माता है, वही सफलता के बीज है।
असमानता पर भगत सिंह के अनुसार कोई भी व्यक्ति इतना अधिक अमीर नहीं होना चाहिए कि वह दूसरों को खरीद सके न ही कोई इतना अधिक गरीब होना चाहिए कि वह अपने आप को बेचने के लिए मजबूर हो जाए । भारी असमानताएं निरंकुशता के लिए रास्ता तैयार करती है । भगत सिंह ने अराजकतावाद नामक लेख में धर्म को एक नशा कहते है । यह नशा मानव के विकास में बाधक है . कार्ल मार्क्स धर्म की आलोचना करते हुए धर्म को अफीम कहते हैं जबकि भगत सिंह अराजकतावाद अपने लेख में धर्म की आलोचना करते हुए धर्म को नशा कहते हैं भगत सिंह के अनुसार ,’धर्म पाखंड व अंधविश्वास के रूप में स्वीकार्य नहीं है . सभी धर्मों का एकमात्र उद्देश्य मानव कल्याण है और इस रुप में मुझे सभी धर्म स्वीकार है जो धर्म दूसरे धर्म को नीचा दिखाने का प्रयास करें या दूसरे धर्म के
प्रति नफरत फैलाए वह धर्म मुझे कभी भी स्वीकार्य नहीं है’.

भगत सिंह कौम के नाम संदेश में कांग्रेस पार्टी की आलोचना करते हुए लिखा है कि देश के स्वतंत्रता के आंदोलनों में किसान, मजदूर (आम आदमी) का योगदान है परंतु कांग्रेस आजादी के प्राप्त होने के पश्चात पूंजीपतियों व शक्तिशाली लोगों को सौंपना चाहती है. भगत सिंह समाजवादी क्रांतिकारी व्यवस्था की स्थापना के पक्षधर थे यदि शोषण पर आधारित व्यवस्था समाप्त नही होती है तो राजनीतिक परिवर्तन कोई वास्तविक स्वतंत्रता नहीं है क्योंकि “भारत का प्रमुख लॉर्ड इरविन या रीडिंग हो, या फिर पुरुषोत्तमदास टंडन या तेज बहादुर सप्रू हो कोई फर्क नहीं पड़ता. यदि किसानों मजदूरों व आम आदमियों की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता यह सिर्फ राजनीतिक सत्ता परिवर्तन होगा वास्तविक स्वतंत्रता नहीं” . संक्षेप में भगत सिंह शोषण रहित ऐसी व्यवस्था की स्थापना करना चाहते थे जहां सत्ता की कुंजी, पूंजीपतियों की अपेक्षा किसानों व मजदूरों के हाथों में हो.

भगत सिंह की पत्रकारिता के दो उद्देश्य थे प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के लिए नव युवकों को प्रेरित करना, जागरूक करना और संगठित करना तथा दूसरा उद्देश्य सामाजिक बुराइयों, धर्म के नाम पर फैलाई जाने वाले पाखंड व अंधविश्वास का अंत करना था । स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत का भविष्य कैसा होना चाहिए? अर्थात स्वतंत्र भारत के निर्माण के लिए जनता को तैयार करना उनका मुख्य उद्देश्य था.

पत्रकारिता के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए भगतसिंह ने कहा है कि पत्रकारिता एक बहुत ही पवित्र, इमानदारी व निष्ठा का व्यवसाय है . इसका वास्तविक उद्देश्य जनता को जागरूक करना तथा माजिक सद्भावना को बढ़ाना है. समाज में सांप्रदायिकता की भावना को बढ़ाने वाली खबरों को प्राथमिकता देने के विरुध थे क्योंकि सभी समाचार पत्रों ने सांप्रदायिक दंगों को प्रमुखता से प्रकाशित करके धार्मिक सौहार्द को खराब किया है . उनका मानना था कि जो अंग्रेज चाहते थे वही समाचार-पत्रों ने किया . क्योंकि समाचार पत्र अंग्रेजों, पूंजीपतियों, उद्योगपतियों के इशारों पर काम करते हैं . उन्होंने तत्कालीन पत्रकारिता की आलोचना करते हुए लिखा “जो व्यवसाय कभी बहुत पवित्र माना जाता था आज वह बदनाम हो गया है . निष्पक्ष और ईमानदारी की पत्रकारिता का दिवाला ही निकल गया हो.“भगत सिंह यह विचार लगभग 100 वर्ष के पश्चात वर्तमान शताब्दी में बिल्कुल सटीक दृष्टिगोचर होते हैं और मुख्यधारा के समाचार-पत्रों, प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया (टीवी, फेसबुक, व्हाट्सएप, स्टाग्राम, ईमेल इत्यादि) पर पूंजीपतियों व सरकार का नियंत्रण होने से अपने साख खो रहा है . (डॉ मजीलाल,,राष्ट्रीय मेन्स्ट्रीम मीडिया में घटता विश्वास और सोशल मीडिया का बढ़ता हुआ प्रभाव : एक पुनर्विलोकन”, ई-समाज यू.के.)

.भगत सिंह लिखते हैं “एक शाश्वत सत्य ने समाज वैसा ही रचा है, जैसा वह आज है, तथा “श्रेष्ठतर” और “सत्ता” के प्रति समर्पण दैविय इच्छा से ही निम्नतर वर्गों पर लागू किया जाता .उपदेशक ण,उपदेशक मंच और प्रेस की ओर से दिए जाने वाले इस संदेश ने मनुष्य के दिमाग को सम्मोहित कर रखा है यह शोषण के सबसे मजबूत स्तंभों में से एक है.“ दिमाग को सम्मोहित करने से भगत सिंह का अभिप्राय दिमागी गुलामी से था . जिसे वर्तमान के संदर्भ में हम अंधभक्ति कह सकते हैं और इस अंधभक्ति का प्रचार प्रसार करने में मुख्यधारा का प्रिंट मीडिया व इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया सबसे आगे है । ऐसी स्थिति में ईमानदार व निष्पक्ष पत्रकार ढूंढते रह जाएंगे.

अंततः कह सकते हैं कि भगत सिंह एक महान समाजवादी क्रांतिकारी, स्वतंत्र सेनानी व एक कर्मठ, निर्भीक, निष्पक्ष व निडर पत्रकार थे. भगत सिंह पत्रकारिता के उद्देश्य से भली भांति परिचित थे उन्होंने पत्रकारिता के उद्देश्यों व दायित्व का पालन पूरी ईमानदारी से किया भगत सिंह भ्रष्ट होती पत्रकारिता के विषय पर भी चिंतित थे . तत्कालीन समय में भगत सिंह ने पत्रकारिता के विषय में जो अपनी चिंता व्यक्त की थी वह वर्तमान में पूर्णता सत्य साबित हुई है .आज भारतीय पत्रकारिता पूंजीपतियों के नियंत्रण में अपने उद्देश्य व दायित्व से अनभिज्ञ है और सत्ता की चाटुकारिता में लिप्त है . यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है. वर्तमान पत्रकारों कोभगत सिंह के जीवन से सबक ग्रहण करना चाहिएताकि वह अपने कर्तव्य का निष्ठा पूर्वक वाहन कर सके. वास्तव में भगत सिंह टिमटिमाते सितारों में चंद्रमा की भांति चमकते थे.आज भी उनके विचार वर्तमान पीढ़ी के लिए पद प्रदर्शक काम करते हैं.

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