9 सितंबर 2024 को विशेष लेख
दयाल सिंह मजीठिया उच्च कोटि के एक पत्रकार, स्तंभकार एवं संपादक : एक विश्लेषण
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत)
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#समाज वीकली
सरदार दयाल सिंह मजीठिया (सन्1848- सन्1898) का जन्म पंजाब के मजीठा गांव (जिला अमृतसर) के एक उच्च कुलीन तथा अमीर परिवार में बनारस में हुआ था. मजीठा गांव 19वीं सदी में पंजाब के सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध गांवों में से एक था क्योंकि महाराजा रणजीत सिंह ने सन् 1800- सन् 1849 तक अपनी सेना में इस गांव के तीन परिवारों के 16 सेनापतियों को शामिल किया था.
पंजाब के इसी गांव का महान सपूत दयाल सिंह एक महान दानवीर, राष्ट्रनायक तथा समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, उदारवाद और मानवता के प्रेमी, संपादक, पत्रकार, शिक्षाविद्, अर्थशास्त्री, दानवीर, प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता, लेखक, ब्रह्मो समाजी, तर्कशील्,ओजस्वी वक्ता, उदारवादी राष्ट्रवादी नेता व एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे. वास्तव में वे एक युग पुरुष, प्रतिभावान, युगदूत एवं युगदृता, महान दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी थे. चुंबकीय व्यक्तित्व और महान गुणों के कारण उनका नाम तत्कालीन समय में और आज भी लाहौर (अब पाकिस्तान) से लेकर कलकत्ता (अब कोलकाता–पश्चिम बंगाल) तक बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. दयाल सिंह अपने पीछे ऐसी विरासत छोड़ गए हैं जिस के बारे में हर व्यक्ति को गर्व होता है. वह ‘राजा कर्ण’ तथा ‘भामाशाह’ की भांति आधुनिक युग के दानवीर थे. अंततः बी. के. नेहरू के मतानुसार दयाल सिंह ने उत्तर भारत को अज्ञानता के अंधेरे से आधुनिकता के प्रकाश की ओर ले जाने की दिशा में वही कार्य किया जो ब्रह्मो समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय ने बंगाल में 19वीं शताब्दी के प्रथम वर्षों में किया था.राजा राममोहन राय को ‘भारतीय पुनर्जागरण एवं राष्ट्रवाद का अग्रदूत’ माना.
उत्तर -पश्चिमी भारत में जनता को जागरूक व लामबंद करने के लिए दयाल सिंह ने लाहौर से 2 फरवरी 1881 को ‘द ट्रिब्यून’ संपादन प्रारंभ किया ‘द ट्रिब्यून’ के प्रकाशित होने से पूर्व दो महत्वपूर्ण समाचार पत्र – सिविल एंड मिलिट्री गजट (The Civil and Military Gazette – लाहौर) और द पायनियर (The Pioneer –इलाहाबाद) उत्तर भारत में प्रकाशित होते थे. परंतु यह दोनों ब्रिटिश स्वामित्व और प्रबंधन के अधीन होने के कारण ब्रिटिश साम्राज्यवाद, शोषण, दमन और प्रशासन की अंधेरी ताकतों का समर्थन करते थे. अत: राष्ट्रीय स्तर पर जनता को शिक्षित व लामबंद करने के लिए राष्ट्रीय समाचार पत्र की सख्त जरूरत थी. दयाल सिंह मजीठिया स्वतंत्रता के प्रेमी एवं अग्रदूत थे. 19वीं शताब्दी में भारतीय जनता की आवाज को सरकार तक पहुंचाने के लिए तथा जनता को जागरूक करने के लिए दयाल सिंह ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी, राय बहादूर मूलराज तथा जेसी बोस के विचारों से प्रभावित होकर ‘द ट्रिब्यून’ (साप्ताहिक समाचार पत्र) की स्थापना की. ‘द ट्रिब्यून’ का प्रथम संस्करण बुधवार के दिन 2 फरवरी 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से प्रकाशित किया गया. इसके 12 पृष्ठ थे तथा इसकी कीमत चार आना (25 पैसे) प्रति समाचार पत्र रखी गई. सीतलकांत चटर्जी को उप-संपादक व सीतलचंद्र मुखर्जी- को संपादक नियुक्त किया गया. सीतलचंद्र मुखर्जी इलाहाबाद से अपना अख़बार, “द इंडियन पीपल’’, संपादित कर रहे थे. उन्होंने इलाहाबाद से “द ट्रिब्यून’’ (लाहौर) को संपादित करने, संपादकीय और लेख लाहौर भेजने का वादा किया का वादा किया. द ट्रिब्यून की स्थापना के संबंध में सुरेंद्रनाथ बनर्जी ने लिखा ‘मैंने उन्हें लाहौर में एक अखबार शुरू करने के लिए राजी किया. वे तुरंत पंजाब के लिए एक ऐसा अखबार देने के लिए सहमत हो गए जो भारतीय जनमत का सही प्रवक्ता हो इसके लिए उन्होंने ट्रिब्यून की स्थापना पर काफी ध्यान लगाया. मैंने उनकी ओर से ट्रिब्यून के लिए पहला प्रेस कोलकाता से खरीदा और उन्होंने मुझे पत्र का प्रथम संपादक चुनने की जिम्मेदारी भी सौंपी. इस पद के लिए मैंने ढाका (अब बांग्लादेश) के शीतलकांत चटर्जी के नाम की सिफारिश की. कालांतर में प्रथम संपादक के तौर पर उनका कामयाब करियर मेरे चयन मेरे चयन संस्तुति करता था. उनका निडर साहस और चीजों के भीतर झांकने की पैनी दृष्टि और उससे ऊपर उनकी ध्येयनिष्ठा जो कि एक भारतीय पत्रकार की पहली और अंतिम योग्यता होनी चाहिए, ने उन्हें ऐसे लोगों की अग्रिम पंक्ति में ला कर खड़ा किया दिया जो अपनी कलम के इस्तेमाल देश के हितों के लिए करते थे.’
2 फरवरी 1881 के प्रथम संपादकीय में ‘द ट्रिब्यून’ के मुख्य उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए दयाल सिंह ने लिखा कि ट्रिब्यून के ‘योजनाकार तथा संचालक तो मात्र जनहित के लिए कार्य करते हैं और इस ओर सजग हैं कि कटु प्रहार या कट्टर लफ्फाजी की बजाय उदारता और संयम के द्वारा कल्याण को अधिक प्रोत्साहन किया जा सकता है’’. हमारा अभिमत है कि ऐसे समय में जब पंजाब में उर्दू व फारसी भाषाओं में शिक्षित लोग अधिक थे और अंग्रेजी भाषा में केवल 1944 शिक्षित पंजाबी थे तब अंग्रेजी भाषा में ’द ट्रिब्यून’ समाचार पत्र प्रकाशित करना वास्तव में एक साहस का काम था. दयाल सिंह ने द ट्रिब्यून’ के प्रथम संपादकीय में लिखा कि इस का उद्देश्य “देशी जनमत का प्रतिनिधित्व’’ करना है ताकि ‘जनता के मुखपत्र ‘ (Mouthpiece of the People) के रूप में कार्य कर सके. दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया. विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ तथा अन्य शहरों से अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी में संपादित हो रहा है.
15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई. द ट्रिब्यून’ के तीनों संस्करण (अंग्रेजी, हिंदी व पंजाबी संस्करण) ट्रिब्यून ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किए जाते हैं. इस समय ट्रिब्यून ट्रस्ट के अध्यक्ष एन. एन. वोहरा (पूर्व राज्यपाल- जम्मू-कश्मीर) हैं . जस्टिस एस. एस. सोढ़ी, ले. जनरल एस. एस. मेहता, गुरबचन जगत (पूर्व राज्यपाल -मणीपुर)व स. परमजीत सिंह अन्य ट्रस्टी हैं.
ट्रिब्यून के संपादकों एवं प्रधान संपादकों के रूप में महान राष्ट्रवादी एवं गर्म दल के नेता बिपिन चंद्र पाल (लाला लाजपत राय तथा बाल गंगाधर तिलक के सहयोगी एवं मित्र), काली नाथ रे, प्रेम भाटिया, हरि जय सिंह, एच. के. दुआ, राज चेंगप्पा और हरीश खरे, राजेश रामचंद्रन जैसे लोग शामिल रहे हैं. इस समय श्रीमती ज्योति मल्होत्रा ट्रिब्यून की प्रधान संपादक है.
2 फरवरी, 1881 से 9 सितंबर 2024 तक ट्रिब्यून ने अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना किया. उदाहरण के तौर पर सन् 1919 में पंजाब में सिविल डिस्टरबेंस तथा राजनीतिक गतिविधियों के कारण ट्रिब्यून के संपादक काली नाथ रे को ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया. परंतु महात्मा गांधी के हस्तक्षेप के कारण उन्हें बाइज्जत छोड़ा गया. ट्रिब्यून केवल पंजाब का ही नहीं अपितु उत्तरी भारत का प्रमुख समाचार पत्र है. ट्रिब्यून के संपादकीय आमुख लेख व आलेख उदारता एवं संयम द्वारा जनकल्याण की समस्याओं पर बहुत अधिक निर्भीक एवं होकर विचार रखते हैं. कुछ एक अवसरों एवं संपादकों को छोड़कर ट्रिब्यून के अधिकांश संपादकों का मुख्य उद्देश्य भविष्योन्मुखी, रचनात्मक, सार्थक, स्थिर एवं मजबूत संचार एवं सहयोग, शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, तर्क संगत और तार्किक ढंग से एक अच्छे भारतीय समाज का निर्माण करना और आगे बढ़ाना है. ब्रिटिश काल में ट्रिब्यून राष्ट्रीय आंदोलन के कारण जनता की वास्तविक आवाज -रियल वॉइस ऑफ द पीपल (Real Voice of the People) था और आज भी जारी है. भारतीय और राज्य सरकारों की नीतियोंऔर प्रशासनिक कारवाहियों पर ट्रिब्यून समाचार पत्र के संपादकियों व खबरों का निरंतर प्रभाव ब्रिटिश शासन काल में भी पड़ता था और आज भी पड़ता है. ट्रिब्यनू के प्रारंभिक दिनों में ही ब्रिटिश शासन पर इसका दिखाई देने लगा. पी एन कृपाल के अनुसार दयाल सिंह मजीठिया की बुद्धिमता पूर्ण डायरेक्शन और मैनेजमेंट के कारण ट्रिब्यनू का पंजाब में बहुत अधिक प्रभाव था. लेफ्टिनेंट गवर्नर डेनिस फीट्जपैट्रिक के अधीन, पंजाब के एक सिविलियन ने ‘द पायनियर’ (इलाहाबाद) को लिखा कि ’’ पंजाब पर प्रशासन गवर्नर और ट्रिब्यनू का है तथा सचिव और जिलाधिकारी कहीं दिखाई नहीं देते’’ . पी. एन. कृपाल ने लिखा कि सरदार को वर्तमान राजनीति की बहुत अच्छी जानकारी थी और कभी-कभी वह समाचार-पत्र के लिए सक्षम संपादकीय टिप्पणियाँ भी लिखते थे.
अनेक बाधाओं के बावजूद भी ट्रिब्यून ने अभूतपूर्व विकास किया है क्योंकि इसको द ट्रिब्यून ट्रस्ट के द्वारा जनहित में चलाया जा रहा है. इसके ट्रस्टियों का मुख्य उद्देश्य अन्य समाचार पत्रों की भांति व्यावसायिक लाभ कमाना नहीं है. इस समय इसके प्रधान संपादक श्रीमती ज्योति मल्होत्रा, दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल तथा पंजाबी ट्रिब्यून के कार्यवाहक संपादक श्रीमती अरविंदर पाल कौर हैं.
संपादक दयाल सिंह के सिद्धांतों पर चलने का प्रयास कर रहे हैं. इस के अतिरिक्त द ट्रिब्यून समाचार पत्र अपने संस्थापक के उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु निरंतर कार्यरत है. राष्ट्रीय आंदोलन में जनता की आवाज बुलंद की, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता का प्रचार किया. महिलाओं के अधिकारों तथा स्त्री पुरुष में समानता का समर्थन किया है. महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों का विरोध ब्रहमों समाज के सिद्धांत के अनुसार किया है. अपनी स्थापना से आज तक संपादकीय तथा आमुख लेखो में वंचित वर्गों के अधिकारों, स्त्री -अधिकार, स्त्री- पुरुष समानता, स्त्री – पुनर्विवाह इत्यादि का समर्थन किया है और स्त्री संबंधित परंपरागत अनुदारवादी एवं सामंतवादी सोच का विरोध किया है. वास्तव में ट्रिब्यून के तीनों संस्करण दयालसिंह मजीठिया की बहुमूल्य विरासत है.