ओ बी सी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन द्वारा बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की 103वीं जन्म जयन्ती मनायी गई

कपूरथला (समाज वीकली) (कौड़ा)-ओ बी सी रेलवे एम्प्लाइज एसोसिएशन, रेल डिब्बा कारखाना, कपूरथला द्वारा समानता और सामाजिक न्याय के प्रबल समर्थक तथा पिछड़ों की प्रतिनिधित्व की लड़ाई के प्रयोद्धा स्वर्गीय श्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल उर्फ़ बी. पी. मंडल की 103वीं जन्म जयन्ती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनायी गई । कार्यक्रम की शुरुआत महामानव को पुष्पांजलि और भारतीय संविधान की प्रस्तावना से की गयी । श्री अरविन्द प्रसाद, कार्यकारी अध्यक्ष ने आये हुए लोगो का स्वागत करते हुए बी. पी. मंडल साहब की जन्म दिवस की बधाईयाँ दी और उनके जीवन परिचय को बताया । उन्होंने बताया कि लगभग 6 वर्षों तक मजिस्ट्रेट क तौर पर कार्य करने के बाद राजनतिक जीवन की शुरुआत करते हुए वे दो बार भारतीय सांसद निर्वाचित हुए और वे बिहार के 7वें मुख्यमंत्री बने ।

इसके बाद श्री अशोक कुमार, महासचिव ने मंडल कमीशन रिपोर्ट पर विशेष परिचर्चा की । उन्होंने बताया कि प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग यानि काका कालेलकर आयोग 1955 में अपनी रिपोर्ट दी थी परन्तु, उस समय की सरकार ने उसपर कोई कार्यवाही नहीं की । उसके बाद 1978 में उस समय के श्री मोरार जी देसाई के प्रधानमंत्री के समय की सरकार ने स्वर्गीय श्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल साहब की अध्यक्षता में दूसरे पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया । आयोग ने 1980 में श्रीमती इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री के समय की सरकार को रिपोर्ट सौपीं । परन्तु, पुनः उस समय की सरकार ने उसपर कोई कार्यवाही नहीं की । बाद में 1990 में श्री वी. पी. सिंह के प्रधानमंत्री के समय की सरकार ने इस रिपोर्ट पर अमल करते हुए केवल उनकी एक सिफारिश सीधी भर्ती में ओ.बी.सी. आरक्षण लागू किया जबकि अन्य सिफारिशें लागू नहीं की गई । इस दोनों आयोग की सबसे महत्वपूर्ण सलाह जातिगत जनगणना थी जो आज तक नहीं करायी गई है ।

काका कालेलकर आयोग ने 1961 की जनगणना में जातिगत जनगणना की सलाह दी थी ताकि सभी वर्गों की वास्तविक जनसंख्या, उनकी सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति, सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी, अन्य जीवकोपार्जन के संसाधनों पर उनके भागीदारी इत्यादि का आंकड़ा उपलब्ध हो सके और इसके हिसाब से पिछडो के उत्थान के लिए योजनाये बनाये जा सके । मंडल आयोग ने 1931 के जनगणना के आधार पर पिछड़े वर्गों की जनसँख्या लगभग 52% के लिए उन्होंने इस रिपोर्ट में लिखा है कि इस वर्ग को 52% आरक्षण दी जानी चाहिए । परन्तु, उच्चतम न्यायालय के द्वारा आरक्षण की अधिकतम सीमा 50% निर्धारित करने और 22.5% एस. सी. & एस. टी. हेतु आरक्षण दिए गए होने के कारण उससमय पिछड़े वर्गों के लिए केवल 27% की अनुशंसा की गयी थी । मंडल आयोग की अन्य सिफारिशे प्रोन्नति में आरक्षण, शैक्षणिक संस्थानों में दाखिला में आरक्षण, वितीय सहायता के लिए अलग से वित आयोग इत्यादि है ।

संगठन के अध्यक्ष श्री उमा शंकर सिंह ने पिछड़ों की प्रतिनिधित्व की लड़ाई में आगू रहे सभी महामानवों को याद करते हुए उनके योगदान की चर्चा की । उन्होंने कहा कि दोनों आयोग की सलाह के वावजूद सरकारों ने जातीय जनगणना नहीं कराई । क्या किसी जाति विशेष की संख्या, उसकी सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक स्थिति जानना आवश्यक नहीं है ? उदाहरण के लिए, कुछ समय पहले सरकार ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को 10% आरक्षण दिया था। अब बिना किसी जनगणना, सर्वेक्षण या रिपोर्ट के सरकार को कैसे पता चला कि देश के कुल गरीबों में से 10% सवर्ण हैं? वास्तविक संख्या 10% से अधिक या 10% से भी कम हो सकती है । इस आकलन के लिए जाति जनगणना जरूरी है। समय-समय पर आरक्षण की समीक्षा के बारे में बात होती रहती है।

इसलिए आरक्षण की समीक्षा के लिए भी जाति जनगणना आवश्यक है। आखिर जनगणना से ही पता चलेगा कि किस जाति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में क्या प्रगति हुई है। एक तर्क है कि जाति जनगणना सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ देगी। जब अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की गणना से सामाजिक समरसता भंग नहीं हो रही है तो अन्य जातियों की गणना सामाजिक समरसता को कैसे बिगाड़ेगी? साथ ही उन्होंने आये हुए लोगो का धन्यवाद किया | इस कार्यक्रम में विशेष रूप से श्री आर. के. पाल (पूर्व महासचिव), श्री धनी प्रसाद (पूर्व अध्यक्ष), श्री सुशील कुमार, श्री रामपाल (वित् सचिव), श्री प्रमोद कुमार (वरिष्ठ उप्पाध्यक्ष), श्री भूपेंद्र, श्री अतुल कुमार, श्री अजित कुमार, श्री संजीव कुमार, श्री होशियार सिंह और कार्यकारिणी के समस्त सदस्य भाग लिए ।

 

 

 

 

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