Samaj Weekly
आदिवासी बहुलता के नाम पर अलग राज्य बना छत्तीसगढ़ आदिवासियों के उत्पीड़न का गढ़ बनता जा रहा है। 15 सालों तक रमन सिंह सरकार ने आदिवासी दमन के सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। उसमें केंद्र की कांग्रेस सरकार और बाद में नरेंद्र मोदी की निकम्मी सरकार का शह भी कम नहीं था। आदिवासी क्षेत्रों में ज़मीन, जंगल, पहाड़ और खदानों की पूंजीवादी लूट के मामले में कांग्रेस और भाजपा में ज्यादा अंतर नहीं।
फ़र्ज़ी मुठभेड़ दिखाकर निर्दोष आदिवासियों का नरसंहार और लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाएँ दोनों पार्टियों के माथे पर कलंक की तरह हैं। आदिवासी-उत्पीड़क पुलिस अधिकारियों को राष्ट्रपति पुरस्कार दिलवाने का काम भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मिलकर किया। गृह मंत्री के रूप में पी.चिदंबरम का कार्यकाल आदिवासी मामलों में ख़ासा बदनाम अकारण नहीं रहा है। भाजपा के पंद्रह साल के दमनकारी शासन से छुटकारा पाने के लिए आदिवासी जनता ने कांग्रेस को चुना। लेकिन भाजपा से भी ज्यादा मोटी चमड़ी रखने वाली कांग्रेस दमन और पूंजीवादी लूट के पूर्ववर्ती अभियान को आगे बढ़ाने में लग गई।
भूपेश बघेल अपनी पार्टी के “नरम हिंदुत्व” के एजेंडे को माथे पर बिठाकर “राम वन गमन परिपथ” बनाने में करोड़ों रुपए फूंकने लगे। बैलाडिला पहाड़ी की घटना भी हम सबके सामने है। बोधघाट बांध के बहाने भी आदिवासियों को उजाड़ने की तैयारी इस सरकार ने कर ली थी। अभी यह सिलसिला रुका नहीं है। सारा मामला सदियों से आदिवासियों द्वारा संरक्षित प्राकृतिक संसाधनों पर सरकारी कब्ज़ा जमाने का है, ताकि वहां खुलेआम पूंजीवादी लूट कायम की जा सके। इसके लिए नक्सली आड़ लेना एक सुगम रास्ता बनता जा रहा है।
जहां मन हो, वहां पुलिस कैम्प लगाकर आदिवासियों के साथ अत्याचार शुरू कर दो, ताकि वे खुद वह जगह छोड़कर भाग जाएं, फिर अडानी-अम्बानी-वेदांता जैसे भेड़िये वहाँ पहुंच जाएं… क्या सिलगेर की घटना अंतिम है ? बिल्कुल नहीं.. जब तक आदिवासी समाज राजनीतिक रूप से ताकतवर नहीं होता, अपना राजनीतिक नेतृत्व खुद अपने हाथ में नहीं लेता और इन दोनों पूंजीवादी-ब्राह्मणवादी पार्टियों को धूल नहीं चटाता, तब तक यह समुदाय अपनी ही ज़मीन पर अपने लोगों का यह त्रासद हाल देखने के लिए अभिशप्त रहेगा…
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