श्रम कानूनों को खत्म करना मज़दूरों के हक़ों पर बड़ा डाका- शरणजीत सिंह
हुसैनपुर (समाज वीकली) (कौड़ा)- सरकार द्वारा श्रम कानूनों में सुधारों के नाम पर उन्हें खत्म कर चार लेबर कोड में बदलने को आरसीएफ एम्प्लाईज यूनियन ने मजदूरों के हक अधिकारों पर बड़ा डाका करार दिया है। इसके खिलाफ आज आरसीएफ एम्प्लाईज यूनियन की तरफ से महासचिव सर्वजीत सिंह की अगुवाई में वर्कशॉप गेट पर पेम्फलेट बांटा गया। प्रैस को बयान जारी करते हुए फर्निशिंग डिवीज़न के अध्यक्ष, स. शरणजीत सिंह ने कहा कि आज हम इतिहास के बेहद चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं।
एक तरफ देश में निजीकरण, उदारीकरण, वैश्वीकरण की नीतियों के 30 वर्ष के दौर में सरकारों के देश के विकास, रोजगार बढ़ाने, अमीरी-गरीबी का फासला कम करने, महंगाई कम करने आदि के दावे और वादे औंधे मुंह गिर चुके हैं और देश के मेहनतकश लोगों की जिंदगी बद से बदत्तर हो चुकी है, बेरोजगारी ने 45 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, गरीबी-अमीरी के बीच खाई ऐतिहासिक चरम पर पहुंच चुकी है, देश से विकासशील देश का दर्जा छिन चुका है, देश मनुष्य विकास सूचकांक भरोसेयोग्यता, पारदर्शिता, क्रेडिट रेशो आदि के पैमाने से पड़ोसी देशों नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि से भी बहुत पिछड़ चुका है।
दूसरी तरफ देश की सरकारें इससे कोई सबक सीखने की बजाय वही पुराना विकास का घिसा पिटा राग अलाप कर, अंधाधुंध साम्राज्यवादी नीतियों पर चलकर देश के तमाम सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण करने पर उतारू हैं।
जिसके खिलाफ एक विशाल संघर्ष की जरूरत है। आज देश में कृषि ‘सुधारों’ व के नाम पर व बैंको के निजीकरण के लिए थोपे कानूनों के खिलाफ देश ही नहीं बल्कि विश्व स्तर का एक ऐतिहासिक, बड़ा व लंबा संघर्ष लड़ा जा रहा है।
शरणजीत ने कहा कि हमारा मानना है कि कृषि विरोधी कानूनों के दुष्प्रभाव तो हमें शायद वर्षों बाद पता चलेंगे परंतु श्रम कानूनों के 44 कानूनों को चार कोड में बदलने से हमारे छीने जाने वाले हक-अधिकारों का खामियाजा हमें पहले ही दिन से भुगतना पड़ेगा। इसलिए इसके खिलाफ चेतना पैदा कर संघर्ष का परचम बुलंद करना होगा।
उपाध्यक्ष बचित्तर सिंह ने कहा कि श्रम कानूनों में पूंजीपतियों के लिए किए जा रहे बदलावों से 1 मई (शिकागो) के शहीदों द्वारा प्राप्त की गई 8 घंटे की ड्यूटी को 12 से 16 घंटे करके मजदूरों का खून निचोड़ा जाएगा, न्यूनतम वेतन के पुराने फार्मूले (जिसमें पौष्टिक खुराक, रिहाइश, कपड़ा रोशनी, इंधन, आवाजाही, बच्चों की पढ़ाई, दवाई मनोरंजन, शादी ब्याह आदि खर्च) को बदल दिया गया है और निचले स्तर पर 178 रुपए प्रतिदिन व 4628 रुपए प्रति महीना वेतन तय किया गया है।
जो कि 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने के दावे के बीच मजदूरों के साथ भद्दा मजाक है, कारोबार को आसान करने के नाम पर 300 मजदूरों वाले कारखाने से जब चाहे मजदूरों की छांटनी का अधिकार और बिना अनुमति कारखाने को बंद करने का अधिकार पूंजीपतियों को दे दिया गया है, 3 पक्षीय समझौता (मजदूर संगठनों, फैक्ट्री मालिकों, प्रशासन) को समाप्त कर मजदूरों को पूंजीपतियों के रहमों करम पर छोड़ दिया गया है, लेबर विभाग/लेबर इंस्पेक्टर को किसी भी कारखाने में पूर्व अनुमति के बिना छापा मारने के अधिकार से वंचित कर दिया गया है,
ट्रेड यूनियन रजिस्टर्ड करने की प्रक्रिया को असंभव हद तक मुश्किल बना दिया गया है, मजदूरों को हड़ताल करने के लिए नोटिस देने की शर्त को 14 दिनों से दिनों से बढ़ाकर 60 दिन कर दिया गया है और इसके साथ मजदूरों को 1 दिन की छुट्टी देनी होगी अगर छुट्टी देने वाले कर्मचारियों की संख्या 51 फ़ीसदी से कम होगी तो हड़ताल गैरकानूनी मानी जाएगी, ठेकेदार के मजदूरों के मामले में प्रिंसिपल एम्पलायर को जिम्मेदारी से पूरी तरह मुक्त कर दिया गया है।
ठेकेदार मजदूरों को पूरा वेतन, सही समय पर दे रहा है या नहीं अब उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी, दस मजदूरों वाले बिजली वाले कारखाने और 20 मजदूरों वाले गैर बिजली कारखानों को फैक्ट्री ऐक्ट से बाहर कर लाखों मजदूरों को पीएफ, ईएसआई जैसी सामाजिक सुरक्षा से वंचित कर मजदूरों व उनके परिवारों को फैक्ट्री मालिकों के रहमों करम पर छोड़ दिया गया है, छोटी उम्र के बच्चों व महिलाओं को खतरनाक कामों पर एवं नाइट शिफ्ट में काम करने के लिए मजबूर कर दिया जायेगा।
इन हालातों में आर.सी.एफ एम्पलाईज यूनियन द्वारा विरोध प्रदर्शनों के प्रोग्राम तय किए गए हैं जिसके चलते आज वर्कशॉप गेट पर पेम्फलेट बांटा गया है व कल दोपहर 1 बजे वर्कर क्लब में जनरल कौंसिल मीटिंग रखी गयी है।
आज के कार्यक्रम में मंजीत सिंह बाजवा, नरिंदर कुमार, अरविंद साह, तलविंदर सिंह, जगदीप सिंह, नवजोत सिंह, भरत राज, राम दास, जसपाल सेखों, निर्मल सिंह, परमजीत सिंह, धर्म पाल, चन्दर भान, गुरजिंदर सिंह, अजायब सिंह आदि विशेष रूप से शामिल हुए।