(समाज वीकली)
डॉ.रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल, हरियाणा (भारत)
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जेम्स ऑगस्टस हिक्की भारतीय पत्रकारिता के जनक माने जाते हैं.उन्होंने 29 जनवरी 1780 को दो पृष्ठों का निर्भीक एवं स्वतंत्र साप्ताहिक समाचार पत्र बंगाल गजट( कोलकाता) अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित किया. इस समाचार पत्र का मुख्य आदर्श था ‘सभी के लिए खुला फिर भी किसी से प्रभावित नहीं.’’परंतु समाचार पत्र के संपादक एवं प्रकाशक को दो अभियोगों में 5500 रुपए जुर्माना और 16 महीने की कैद हुई. परिणाम स्वरूप यह समाचार पत्र केवल 2 वर्ष तक ही चल सका और सन् 1780 बंद हो गया.
इसके पश्चात बांग्ला, उर्दू, गुजराती, फारसी, हिंदी और अंग्रेजी में समाचार पत्र प्रकाशित होने लगे. ‘उंदत मार्तंड’ हिंदी में प्रथम समाचार पत्र साप्ताहिक के रूप में 30 मई 1826 को कोलकाता से प्रकाशित हुआ और दिसंबर 1827 में बंद हो गया.सन्1853 में भारत में 35 समाचार पत्र प्रकाशित होते थे.सन्1854 में प्रथम दैनिक समाचार पत्र ‘समाचार सुधावर्षण ‘का प्रकाशन भी कोलकाता से किया गया. पयामे आजादी सन् 1857 में प्रकाशित होने वाला एकमात्र समाचार पत्र था.. ‘गुजराती भाषा का सर्वप्रथम समाचार पत्र ‘मुंबई समाचार’ सन् 1822 में प्रकाशित हुआ. यह समाचार पत्र एशिया का सबसे पुराना समाचार पत्र है तथा इसका प्रकाशन आज भी जारी है.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारिता की भूमिका
परिवर्तन प्रकृति का नियम है. यह नियम सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं के ऊपर भी लागू होता है. समय ,परिस्थिति एवं काल चक्र के अनुसार पत्रकारिता के स्वरूप में भी निरंतर परिवर्तन होता चला गया. जैसे- जैसे समाज और राष्ट्र की प्राथमिकताओं, मान्यताओं, आवश्यकताओं और परिस्थितियों में परिवर्तन होता है उसी प्रकार पत्रकारिता और जनसंचार के माध्यमों की प्रकृति और चरित्र परिवर्तन होता है.19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तथा बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारतीय राजनेताओं तथा जनता का मुख्य उद्देश्य उपनिवेशवाद, उपनिवेशिक शासकों, 563 भारतीय नरेशों और नवाबों तथा शोषण से स्वतंत्रता प्राप्त करना था .परिणाम स्वरूप पत्रकारिता तथा जन संचार के माध्यमों का उद्देश्य बिल्कुल मिशनरी था. गांधीवादी, उदारवादी, क्रांतिकारी, साम्यवादी, समाजवादी तथा अन्य नेताओं ने अपने विचारों के प्रसार -प्रचार करने, जनता को लामबंद करने, जनता का समर्थन प्राप्त करने तथा ब्रिटिश सरकार और भारतीय नरेशों और नवाबों पर दबाव डालने के लिए पत्रकारिता तथा जनसंसार के संसाधनों को खुले रुप में अथवा भूमिगत रूप में अथवा छद्म रूप में संचार के माध्यमों- समाचार पत्र, मैगजीनों, हैंड़बिलों, पुस्तकों,पत्रों इत्यादि का प्रयोग किया . भारत छोड़ो आंदोलन सन्(1942 -सन्1944) अनेक स्थानों पर’’गैर कानूनी ऑल इंडिया रेडियो’ का संचालन किया गया . स्वतंत्रता आंदोलन के समय क्रांतिकारियों को समाचार पत्र व पत्रिकाएं प्रकाशित करने व उनका वितरण करने के लिए जान पर खेलना पड़ता था. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राष्ट्र निर्माण को मुख्य प्राथमिकता दी गई तथा इस का प्रभाव पत्रकारिता के विकास पर निश्चित रूप में पड़ा.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में जनता को जागरूक करने के लिए तथा लामबंद करने के लिए राष्ट्रीय तथा स्थानीय नेताओं के द्वारा पत्रकारिता का बहुत प्रयोग किया गया.19वीं शताब्दी में सुरेंद्रनाथ बनर्जी तथा दयाल सिंह मजीठिया तथा बीसवीं शताब्दी में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ,रहबरे -आजम दीनबंधु सर छोटू राम, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू ,डॉ. भीमराव अंबेडकर,गणेश शंकर विद्यार्थी तथा असंख्य नेताओं ने जनता को जागरूक करने के लिए तथा अपने विचारों को जनता तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्रों की स्थापना की. भारत के विभिन्न भागों में क्रांतिकारियों तथा क्रांतिकारी संगठनों के द्वारा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रांतिकारी विचारधारा को जनता तक पहुंचाने के लिए समाचार पत्रों का संचालन किया. क्रांतिकारियों के समाचार पत्र साप्ताहिक होते थे .क्रांतिकारियों में एक संवाददाता तथा लेखक के रूप में शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है.
ब्रिटिश के विरुद्ध प्रचार करना कोई आसान कार्य नहीं था. प्रेस और दफ्तरों पर पुलिस द्वारा प्रतिबंध लगाकर जब्त कर लिया जाता था. राष्ट्रीय नेताओं को समाचार पत्रों में लेख लिखने के कारण ‘देशद्रोह’ के मुकदमों में फंसा दिया जाता था अर्थात ‘राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्र’ में भारतीय दंड संहिता 124A के अंतर्गत मुकदमे दायर किए जाते थे.
समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की संख्या निरंतर वृद्धि
सन् 1947 में भारत में लगभग 200 दैनिक समाचार पत्र प्रकाशित होते थे. सन् 2022 में स्टेटिसटा में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार भारत में सन् 2001 से सन् 2022 तक दैनिक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है .सन् 2001 में 5,1960 , सन् 2010 में 77,384,सन् 2015 में 105,443,सन् 2019 में119,995,सन् 2020 में 143,423 ,सन् 2021में 144,520 दैनिक समाचार पत्र और पत्रिकाएं प्रकाशित होते थे. हिंदी में सर्वाधिक प्रकाशन दैनिक जागरण,अंग्रेजी में टाइम्स आफ इंडिया तथा क्षेत्रीय भाषाओं में मलयालम में मनोरमा ,तमिल में दैनिक थांथी ,तेलुगु में ईनाडू,मराठी में लोकमत, बांग्ला में आनंद बाजार पत्रिका, पंजाबी में अजीत और उर्दू में इंकलाब इत्यादि मुख्य दैनिक समाचार पत्र हैं. पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ रही है.
परिणाम स्वरूप पाठकों की संख्या में भी उसी अनुपात से वृद्धि हो रही है. भारत में हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार पत्रों को पढ़ने वालों की संख्या 27 अप्रैल 2019 में प्रकाशित एक लेख (बिजनेस स्टैंडर्ड ,27 अप्रैल 2019 )के अनुसार 3.9% से 7.5 %वृद्धि है.इनके मुकाबले में अंग्रेजी में प्रकाशित दैनिक समाचार पत्रों की रीडरशिप में 10 .7%की वृद्धि हुई. सन् 2019 की प्रथम तिमाही में पाठकों की संख्या425 मिलियन थी जबकि यह सन् 2017 में 407 मिलीयन थी .हिंदी समाचार पत्रों के पाठकों की संख्या 186 मिलीयन ,क्षेत्रीय भाषाओं के पाठकों की संख्या 211 मिलियन तथा अंग्रेजी के पाठकों की संख्या सन् 2017 से सन्2019 के मध्य 28मिलियन से बढ़कर 31 मिलियन हो गयी. प्रिंट मीडिया के अतिरिक्त ऑनलाइन समाचार पत्रों की संख्या में भी निरंतर वृद्धि होती जा रही है. ऑनलाइन समाचार पत्रों की रीडरशिप सन् 2017 में 4% थी जबकि यह संख्या 1% की वृद्धि के साथ सन् 2019 में 5% हो गई.
भारत में दैनिक समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं की संख्या निरंतर बढ़ने के मूल कारण
समाचार पत्रों के कागज पूर्ननवीनीकृत अखबारी कागज का प्रयोग, भारत सरकार द्वारा समाचार पत्रों को सब्सिडी की सहायता ,पंचायत से लेकर केंद्रीय सरकार तक अकूत धन सरकारी तथा गैर सरकारी विज्ञापनों से प्राप्त होना, यूरोपियन देशों की अपेक्षा भारतीय अखबारों का सस्ता होना, भारतीय शिक्षित शहरी समाज के लोगों को सुबह चाय की चुसकियों के साथ अखबार पढ़ने की संस्कृति का 100 वर्ष से अधिक होना, समाचार पत्रों के विक्रेताओं के द्वारा घर -घर अखबार पहुंचानें की संस्कृति विकसित होना , भारत में साक्षरता दर में अभूतपूर्व वृद्धि होना इत्यादि समाचार पत्रों के निरंतर विकास में सहायक कारक हैं.
पत्रकारिता और पत्रकारों के संबंध में उचित मानक
समाचार पत्र का उद्देश्य समाज को जागृत करना तथा विभिन्न वर्गों को वर्गों के मध्य सहयोग और संवेदनशील संबंध साबित करना है .समय-समय पर समाचार पत्रों के संबंध में मानक निश्चित किए गए हैं. शहीद अमर शहीद भगत सिंह के अनुसार पत्रकारिता एक बड़ा पवित्र व्यवसाय है. भगत सिंह ने पत्रकारिता के उद्देश्यों का वर्णन करते हुए कहा की समाचार पत्रों का मुख्य उद्देश्य जनता को शिक्षित करना, उनके दिमाग को स्वच्छ करना, संकुचित तथा विभाजन की भावनाओं से सुरक्षा करना, संप्रदायवाद का उन्मूलन करना तथा राष्ट्रवाद की प्रोन्नति करना इत्यादि है.
डॉ. अंबेडकर ने पत्रकारिता और पत्रकारों के संबंध में उचित मानकों का वर्णन करते हुए कहा था कि पत्रकारिता और पत्रकार को प्रचलित पूर्व ग्रहों से स्वतंत्र होना चाहिए. वास्तव में पत्रकारिता एक मिशन है. डॉ. अंबेडकर के अनुसार पत्रकारिता का व्यावसायीकरण नहीं होना चाहिए. पत्रकार निर्भीक, निष्पक्ष व संवेदनशील होना चाहिए तथा उनको समाज के हितों की वकालत करनी चाहिए. समाज को भड़काने का प्रयास नहीं करना चाहिए. पत्रकारिता में नायक पूजा का नहीं होनी चाहिए. अखबार किसी व्यक्ति की पसंद अथवा नापसंद के आधार की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ होने चाहिए. पत्रकार एक शैलीकार, निर्भीक. निष्पक्ष व निष्कलंक होना चाहिए. पत्रकारिता मूक दर्शक – समाज के हाशिए पर रहने वाले आवाज रहित लोगों की निष्पक्ष ,स्वतंत्र और निरंतर चलने वाली आवाज है. पत्रकारिता के माध्यम से व्यक्ति, समाज ,राष्ट्र तथा राजनीति को ‘दिशा व दर्शन’ दोनों प्राप्त होने चाहिए.
बाजारीकरण एवं पत्रकारिता: कारपोरेट का नियंत्रण
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात राष्ट्रीय प्राथमिकताएं राष्ट्र निर्माण, राष्ट्र विकास ,राष्ट्रीयकरण, राष्ट्रीय एकता व अखंडता ,राष्ट्रीय सुरक्षा ,राष्ट्रीय आधुनिकीकरण इत्यादि हो गई. समाचारपत्रों की प्राथमिकताओं में भी परिवर्तन हुआ और वे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्रभावित करने लगे.
पहले पत्रकारिता एक मिशन व पवित्र व्यवसाय था. आजकल पत्रकारिता मिशन की बजाए व्यापार एवं अकूत लाभ कमाने का साधन बन गया है. राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय प्रेस के साथ-साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर धनी वर्ग एवं कारपोरेट का नियंत्रण समस्त विश्व में समस्त विश्व में नियंत्रण बढ़ रहा है. परिणाम स्वरूप समाचार पत्रों की सूचना, विश्लेषण, विशेषण, लेखों संपादकीय पृष्ठों में धीरे-धीरे संवेदनशीलता की कमी आती चली गई क्योंकि कारपोरेट के नियंत्रण के कारण मीडिया बाजारीकरण एवं व्यावसायीकरण की गिरफ्त में आ गया है .परिणाम स्वरूप अधिक टीआरपी के चक्कर में समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल के द्वारा भड़काऊ तथा असंवेदनशीलता को प्राथमिकता दी जाती है .केवल यही नहीं अपितु निरंतर झूठ का प्रचार और प्रसार भी किया जाता है. मीडिया भड़काऊ ,बिकाऊ एवं सरकारों का माउथ पीस अथवा माउथ ऑर्गन बनता जा रहा है .यह स्थिति न्यूयॉर्क, लंदन, मास्को व बीजिंग से लेकर दिल्ली तक विश्व के सभी देशों में निरंतर बढ़ रही है. सैद्धांतिक तौर पर यह प्रचार किया जाता है कि मीडिया स्वतंत्र है परंतु अभिजात्य वर्ग ,कारपोरेट, धनी वर्ग और सरकार के नियंत्रण के कारण व्यावहारिक रूप में समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनलों का प्रयोग अपने हितों की वृद्धि के लिए किया जाता है और जनता का उसी तरीके से दिमाग परिवर्तित करने का प्रचार किया जाता है.
विज्ञापनों द्वारा सरकार का नियंत्रण
समाचार पत्रों, टीवी चैनलों, गूगल, वेब पोर्टल(वेबसाइटों) इत्यादि पर सरकार के द्वारा विज्ञापनों के जरिए अकूत धन दिया जाता है ताकि सरकार का प्रोपेगेंडा जारी रहे और सरकार विरोधी प्रचार जनता तक न पहुंचे. सरकार का पूर्ण नियंत्रण कानूनी और आर्थिक दोनों तरीके से हैं. सरकार विज्ञापन के द्वारा मीडिया की आर्थिक सहायता करके उसको नियंत्रण में करना सबसे बड़ा शस्त्र है. भारत में अटल बिहारी वाजपेई से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकारों ने विज्ञापनों पर जनता के धन को बड़ी बेरहमी से खर्च किया है.
सन् 2002 -सन् 2003 से सन 2017 -सन्2018 तक 16 वर्षों के अंतराल में-( 9 मार्च 2018 तक) भारत सरकार के सूचना एवं ब्रॉडकास्टिंग मंत्रालय (एआइबी) के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार विज्ञापनों पर 10,000 करोड रुपए खर्च किए गए. डॉ मनमोहन सिंह नीत यूपीए-1 सरकार के द्वारा सन् 2004- सन् 2005 से सन् 2008–सन्2009 के अंतराल में औस्तन 312 करोड रुपए तथा यूपीए-2 की सरकार ने सन् 2009 -सन् 2010 से सन् 2013- सन् 2014 (इसमें मई 2014 से 31 दिसंबर 2014 तक मोदी काल भी है) पांच वर्ष के अंतराल में औस्तन 696 करोड रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए.
13 दिसंबर 2022को लोकसभा में सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि वित्त वर्ष 2014 से 7 दिसंबर 2022, के बीच 6491 करोड़( प्रिंट मीडिया पर 3230 करोड़ रुपए टेलीविजन पर 3260.79 रुपए) विज्ञापन पर खर्च किए. सन् 2020-21 में 6,085 अखबारों के लिए 118.59 करोड़ रुपए खर्च किए गए. सन् 2019-20 में 5,365 अखबारों को दिए विज्ञापन पर 200 करोड़ रुपए खर्च हुए। सन् 2018-19 में 6,119 अखबारों में दिए गए विज्ञापन पर सर्वाधिक 507.9 करोड़ रुपए सरकार ने दिए. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कुल 193.52 करोड़ रुपए पिछले तीन सालों में खर्च किए गए
राजनीतिक दलों के द्वारा विज्ञापनों पर खर्च
न्यूज़ लांड्रिंग रिपोर्ट के अनुसार राजनीतिक दल विज्ञापनों पर अकूत धन खर्च करते हैं.गूगल( Google)की भारत के लिए विज्ञापन पुस्तकालय रिपोर्ट के अनुसार फरवरी 2019- जनवरी 2022 के 2 वर्ष के अंतराल में राजनीतिक दलों, राजनीतिक नेताओं, लोकसभा अथवा राज्य विधानपालिकाओं के सदस्यों के द्वारा सन् 2019 के बाद 22,369 विज्ञापनों पर 73,78, 06,250 रुपए खर्च किए गए. विज्ञापनदाताओं की सूची वह डिजिटल एंजंसिया भी शामिल हैं जो गूगल के लिए काम करती हैं.
परिणाम स्वरूप प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की स्वतंत्रता प्रभावित होती है. यही कारण है कि टीवी चैनलों पर निष्पक्ष और स्वतंत्र विचारों का संचार कम होता है . टीवी चैनल के न्यूज़ रूम “वार रूम” का रूप धारण करते जा रहे हैं. टीवी चैनलों के एंकर की आवाज उनकी अपनी आवाज नहीं होती अपितु वह ‘हिज़ मास्टर्ज वॉयस’ होती है .वह उसी प्रकार चिल्लाता है जैसा मालिक चाहते हैं. उनका मुख्य काम सर्वसाधारण का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हटाकर उनके शोषण को बढ़ावा देते हैं .पूंजीपति वर्ग का उद्देश्य अकूत संपत्ति को बढ़ावा बढ़ाना है. यदि विपक्ष इन चैनलों के मालिकों को प्रभावित करने में कामयाब हो जाते हैं तो जनता में महिमा मंडल के द्वारा सत्ता पलटने का कार्य किया जाता है जैसा कि सन् 2014 में हुआ.
कनफ्लिक्ट्स जोन व खोजी पत्रकारिता: खोजी पत्रकारों के जीवन को हमेशा खतरा
समाचार पत्रों के संपादकों तथा पत्रकारों की कलम पर अकूत धन नियंत्रण और आत्म नियंत्रण लगाता है. यह समस्त विश्व में जारी है . सर्वाधिक नियंत्रण और आत्म नियंत्रण ‘कनफ्लिक्ट्स जोन’ में ज्यादा लागू होता है.कनफ्लिक्ट्स जोन कोई ‘युद्ध क्षेत्र’ नहीं है अपितु यह आतंकवादी क्षेत्र, संघर्ष क्षेत्र ,सांप्रदायिक व जातीय हिंसात्मक क्षेत्र इत्यादि होता है. इसमें पत्रकारों को नियंत्रण और आत्म नियंत्रण करना पड़ता है . समाचार पत्रों और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों तथा पत्रकारों को सरकारों के हिंसात्मक एवं दंडात्मक आक्रमणों का सामना करना पड़ता है.इसके अतिरिक्त उनके जीवन को माफिया गिरोहों से भी हमेशा खतरा रहता है. जहां तक सरकार का रवैया है चाहे वह ब्रिटिश इंडिया में था और अब स्वतंत्र भारत में है .पत्रकारों को सरकार का आक्रमण भी झेलना पड़ता है तथा उन पर साधारण मुकदमे ही नहीं अपितु ‘देशद्रोह’ के मुकदमों में फंसा दिया जाता है अर्थात ‘राष्ट्र के विरुद्ध षड्यंत्र’ में भारतीय दंड संहिता 124A के अंतर्गत मुकदमे दायर किए जाते हैं.
खोजी पत्रकारों का कार्य जासूसी करना भी है.खोजी पत्रकारों का कार्य विभिन्न तथ्यों, आंकड़ों , साक्ष्यों और कड़ियों को जोड़ना ,व्याख्या करना, विश्लेषण करना व रिपोर्टिंग करना है. खोजी पत्रकारों के द्वारा अधिकांश राजनीतिक मामलों, षडयत्रों, अपराधों, घोटालों, भ्रष्टाचार ,खनन,तस्करी,आर्थिक अपराधों इत्यादि की रिपोर्टिंग की जाती है. भारतीय राजनीति में अनेक प्रवृत्तियां– भ्रष्ट राजनीतिक संस्कृति ,अपराधिक राजनीतिक संस्कृति व नव- उदारवाद के वर्तमान दौर में कारपोरेटरीकरण के कारण नव -आर्थिक संस्कृति 21 वीं शताब्दी में भयानक रूप धारण करती जा रही हैं. एन एन वोहरा समिति रिपोर्ट (1993)की रिपोर्ट के अनुसार राजनेताओं ,आर्थिक अपराधियों, माफिया गिरोहों, तस्करों और पुलिस -प्रशासनिक अधिकारियों के गठबंधन की गिरफ्त में भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पूर्ण रूप से आ चुकी है.इसका प्रभाव खोजी पत्रकारिता पर पड़ता है तथा पत्रकारों के जीवन एक जोखिम भरा कार्य है. उनके जीवन को हमेशा अपराधिक गठबंधन से खतरा बना रहता है. भारतवर्ष में सन् 1948 से सन् 2022 तक केंद्रीय व राज्य स्तरों पर हजारों घोटालों का पर्दाफाश पत्रकारों के द्वारा किया गया.
ईमानदार व खोजी पत्रकारों के जीवन को हमेशा खतरा बना रहता है .यदि एक ओर खतरा समाज विरोधी तत्वों से है तो दूसरी ओर सरकार के द्वारा भी अत्याचार किया जाता है .वह पत्रकार जो सरकार के गलत कार्यों की निरंतर आलोचना करते हैं ऐसे पत्रकारों को समस्त विश्व में सरकारें शत्रु मानती हैं. उन पर राष्ट्र विरोधी होने का टैग लगा कर जेल में डाल दिया जाता है.
“साइलेंसिगं जनर्लिस्ट इन इंडिया” नामक पुस्तक के अनुसार भारत में सन् 2000 से सन्2018 तक 65 पत्रकारों की हत्याएं उनके लेखन के कारण हुई हैं. इनमें एक ओर “पत्रिके” (बैंगलोर) की संपादक गौरी लंकेश तथा दूसरी ओर कश्मीर में “राइजिंग कश्मीर” के संपादक की आंतकवादियों के द्वारा हत्या की गई भारत में 65 जनर्लिस्ट में 17 राज्यों में 62 पुरुष और 3 महिला पत्रकार मारे गए. सबसे ज्यादा हत्याएं उत्तर प्रदेश में हुई हैं. यहां 12 पत्रकार मारे गए. 12 राज्यों में 31 पत्रकारों को लेखन की वजह से मुकदमों में फंसाया गया (जन चौंक, 4अक्टूबर 2019, पृ.1).
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2020 में भारत में 6 पत्रकार मारे गए. पत्रकारिता एक जोखिम भरा कार्य भी है. पत्रकारों पर हमले के विरोध समिति की रिपोर्ट (CAAJ) के अनुसार सन् 2017 से जनवरी 2022 तक उत्तर प्रदेश में 12 पत्रकारों की हत्या हुई तथा 50 पत्रकारों पर शारीरिक हमले हुए हैं. यह हमले एक ओर माफिया गिरोहों तथा समाज विरोधी तत्वों के द्वारा किए गए दूसरी ओर प्रशासन के द्वारा भी पत्रकारों को प्रताड़ित करने का प्रयास किया गया है. जब पत्रकार माफिया गिरोहों का भंडाफोड़ते हैं और सरकार के भ्रष्टाचार अथवा कमियों को उजागर करते हैं तो वे अपना जीवन मुसीबत में डालते हैं. सरकारों के द्वारा पत्रकारों पर हमले, कानूनी नोटिस, एफ आई आर, गिरफ्तारी, हिरासत, जासूसी, धमकी व हिंसा के मामले उजागर हुए हैं .
जम्मू कश्मीर में पत्रकारिता एक सर्वाधिक जोखिम भरा कार्य है. सन् 2019 में 35 पत्रकारों को रिपोर्टिंग के आधार पर पुलिस के द्वारा पूछतात ,छापेमारी, धमकी, हमले अथवा अपराधिक मामलों का सामना करना पड़ा .पत्रकारों पर आतंकवाद के “महिमा मंडल” करने पर के झूठे मुकदमें भी दायर गए . पत्रकारों के घरों पर अवैध छापेमारी की गई और परिवार के सदस्यों को भी परेशान किया गया. पत्रकारों व परिवार के सदस्यों के सेल फोन , लैपटॉप, कम्प्यूटर तथा दस्तावेज़ जब्त किये गए. इस प्रकार पत्रकारिता एक जोखिम भरा कार्य भी है.
समाचार पत्रों व टीवी चैनल के मालिकों और संपादकों को यह भय रहता है यदि सरकार के द्वारा उनके विज्ञापन बंद कर दिया जाए तो उनको अधिक आर्थिक नुकसान होने की संभावना है. परिणाम स्वरूप समाचार पत्रों एवं टीवी चैनलों जनता को वही सूचनाएं पहुंचाते हैं जो सत्ता धारियों के लिए हितकर होती हैं.
इसके अतिरिक्त समाचार पत्रों के अधिकांश पत्रकार अनुबंध पर होते हैं वह औरों की आवाज उठाते हैं परंतु उनको बहुत कम वेतन मिलता है और उनको नाना प्रकार के जोखिम उठाने पड़ते हैं. वह पत्रकार जो निष्पक्ष होने का प्रयास करते हैं उनको प्रबंधकों के द्वारा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है .परिणाम स्वरूप वास्तविक मुद्दे रसातल में चले जाते हैं और केवल आडंबर परोसा जाता है.समाचार पत्र तथा टीवी चैनल अपनी विश्वसनीयता खोते जा रहे हैं.
निर्णायक पदों पर नगण्य प्रतिनिधित्व
समाचार पत्रों तथा मेंन स्ट्रीम मीडिया चैनलों में अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, महिलाओं, मुसलमानों का निर्णायक पदों पर प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है. संयुक्त राष्ट्र महिला और हयात के साथ सहभागिता के आधार पर डिजिटल न्यूजलॉन्ड्री की रिपोर्ट( 2019)में संख्यात्मक विश्लेषण चौंकाने वाला है.भारतीय मीडिया में लैंगिक असमानता होने के कारण पुरुषों का वर्चस्व विद्यमान है .सन् 2018 -सन् 2019 में न्यूज़ रूम में शीर्ष पदों पर केवल 5% महिलाएं थी जबकि 95% पुरुष थे.
तथ्यात्मक परीक्षण के बिना झूठे प्रचार
पत्रकार बिना किसी तथ्यात्मक परीक्षण के तथाकथित घोटालों का प्रचार कर देते हैं. उदाहरण के तौर पर मनमोहन सिंह की सरकार पर 2जी घोटाले के आरोप पूर्व ऑडिटर जनरल आफ इंडिया (कैग) विनोद राय के द्वारा लगाए गए थे और 2जी के आवंटन में 10,000.00 करोड़ रूपए के घोटाले की बात कही गई थी. परिणाम स्वरूप इस झूठे प्रचार के कारण भारतवर्ष में आम आदमी यह मानने लग गया था ऐसा घोटाला वास्तव में हुआ है और बार-बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर दोषारोपण किया गया. विनोद राय ने सेवा निर्वित होने के बाद एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक है ‘नॉट जस्ट एन अकाउंट : द ङायरी ऑफ नेशन कॉन्शियस कीपर’ इस पुस्तक में विनोद राय ने इस घोटाले का वर्णन करते हुए कहा कि 2G घोटाला एक झूठ का पुलंदा था . विनोद राय की थ्यूरी के आधार पर 2जी घोटाले का कोर्ट में केस किया गया. परंतु एक भी गवाह कोर्ट में नहीं पहुंचा .झूठे प्रचार के कारण भारतीय जनता पार्टी को चुनाव में अभूतपूर्व लाभ हुआ और कांग्रेस पार्टी का बंटाधार होता चला गया .
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक और भारत
यद्यपि प्रेस को प्रजातंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और इसका मुख्य काम सरकार को दिशा देकर समाज की दशा को सुधारना होता है .विश्व में प्रेस की स्वतंत्रता को जांचने के लिए प्रतिवर्ष एक रिपोर्ट तैयार की जाती है. यदि हम वर्तमान शताब्दी के प्रारंभ पर से अवलोकन करें तो भारत में प्रेस की स्वतंत्रता रैंक प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है. विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2002 में भारत का विश्व में 80वां रैंक था. सन् 2010 में 122वां, सन् 2012 में 131 वां,सन् 2016 में 133 वां,2019 में 140वां, सन् 2020 में 142 वां तथा सन् 2021 में 180 देशों की सूची में150 वां स्थान है.
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक रिपोर्ट अनुसार भारत में प्रेस की स्वतंत्रता का गिरता हुआ ग्राफ इस बात को सिद्ध करता है कि भारत में पत्रकारों की स्थिति दुनिया के खराब देशों में से एक है( इंडियन एक्सप्रेस ,नई दिल्ली, 20 अप्रैल 2021.) प्रेस की स्वतंत्रता नीचे गिरने का मूल कारण यह है कि एक और प्रेस के द्वारा अल्पसंख्यक वर्गों के विरुद्ध निरंतर राज्य विरोधी अथवा समाज विरोधी प्रचार करके घृणा और नफरत को फैलाया जा रहा है तथा दूसरी ओर सरकार तथा पूंजीपति वर्ग का नियंत्रण भी समाचार पत्रों और प्रेस की आजादी के ग्राफ को कम करता है .इसके अतिरिक्त सत्ताधारी राजनीतिक दलों व सरकारोंके द्वारा पत्रकारों और समाचार पत्रों पर नकेल डालने की चेष्टा की जाती है .समाचार पत्रों को विज्ञापन के रूप में अकूत धन दिया जाता है ताकि संपादक समाचार पत्रों में सरकार विरोधी खबरें, संपादकीय, कॉलम ,स्तंभ अथवा टिप्पणियां न लिखें. समाचार पत्रों की शाख व विश्वसनीयता में गिरावट का यह भी एक कारण है कि समाचार पत्रों में अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों ,महिलाओं और अल्पसंख्यक वर्ग तथा ग्रामीण जनता का प्रतिनिधित्व लगभग नगण्य है. यही कारण है कि या तो इनके विरूद्ध निरंतर प्रचार किया जाएगा अथवा महत्वपूर्ण खबरों को जिनका संबंध इनसे होता है उनको प्रकाशित नहीं किया जाता है.
भारतवर्ष में सोशल मीडिया
भारतवर्ष में सोशल मीडिया का एक बहुत बड़ा व्यापक जाल है. सोशल मीडिया में इंटरनेट, ईमेल, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम, स्मार्टफोन, गूगल, फेसबुक इत्यादि आते हैं. भारत में इंटरनेट के प्रयोग में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. डिजिटल मीडिया की वृद्धि सन् 2020 के मुकाबले सन् 2021 में 49% हुई है .फरवरी 2022 में भारत में डिजिटल जनसंख्या (डिजिटल पॉपुलेशन) 658 मिलियन थी. जिस तरीके से इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ रहा है सन् 2023 तक 800 मिलियन लोग इंटरनेट से जुड़ जाएंगे.इंटरनेट का प्रयोग करने वालों की संख्या में वृद्धि के कारण भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है.
प्रिंट मीडिया – न्यूज़पेपर्ज तथा डिजिटल मीडिया में बहुत बड़ा अंतर है. न्यूज़ पेपर रीडर के पास 24 घंटे में पहुंचता है जबकि डिजिटल मीडिया के द्वारा कोई भी खबर कुछ सैकिंड़ो में पहुंच जाती है. समाचार जनता तक पहुंचना बहुत अच्छी बात है और डेमोक्रेसी का महान संकेतक है .शातिर लोगों के द्वारा मुनाफा कमाने के लिए घृणा की संस्कृति( हेट कल्चर) को बहुत अधिक बढ़ावा दिया गया है. भारत में इस समय 37 करोड़ उपभोक्ता फेसबुक से जुड़े हुए हैं तथा मुख्य 22 भाषाओं में से 16 भाषाओं में संदेश देने की सुविधा है .इन संदेशों के जरिए इस्लाम का डर (इस्लामोफोबिया)फैलाया जा रहा है .यह बात सूचना के अधिकार के अंतर्गत नजर आई .पिछले वर्षों में इस्लामोफोबिया में 300% की वृद्धि हुई है (राष्ट्रीय सहारा 14 नवंबर 2021, पृ. 10 ).सोशल मीडिया पर मुस्लिम विरोधी प्रोगेंडा सत्ताधारी राजनीतिक दल के अनुकूल है. यह समाचार पत्रों से भी खतरनाक है .सोशल मीडिया- यूट्यूब चैनलों ,वीडियोज, फेसबुक अकाउंट ,स्मार्टफोन, व्हाट्सएप ,ईमेल, इंस्टाग्राम , ,टि्वटर इत्यादि के द्वारा फेक न्यूज़ ,सांप्रदायिक वैमनस्य, घृणा ,नफरत, फैलाने वाले 102 यूट्यूब चैनलों व फेसबुक खातों पर 10 अगस्त 2022 को भारत सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगाया गया. घृणा और नफरत का प्रसार करके भारत में गृह युद्ध उत्पन्न होती जा रही थी. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने केंद्र सरकार की विभिन्न योजनाओं के बारे में झूठे और सनसनीखेज दावे करने और फर्जी खबरें फैलाने वाले 3 यूट्यूब चैनल्स– ‘न्यूज हेडलाइंस’, ‘सरकारी अपडेट’ और ‘आज तक लाइव’ पर 20 दिसंबर 2022 कार्रवाई करनी पड़ी.
सोशल मीडिया का प्रभाव और निरंतर बढ़ रहा है .यदि एक ओर सोशल मीडिया लाभकारी है तो दूसरी ओर समाज में सांप्रदायिक तनाव तथा हिंसा भड़काने के लिए के लिए भी समाज विरोधी तत्व इस का प्रयोग करते हैं. सांप्रदायिक सद्भावना अथवा सामाजिक सद्भावना को हानि पहुंचाने वाले शातिर लोगों पर प्रशासन की कड़ी नजर होना नितांत जरूरी है ताकि भारत में विभिनता में एकता,राष्ट्रीय अखंडता, राष्ट्रीय एकीकरण, राष्ट्र निर्माण और राष्ट्रीय विकास में निरंतर वृद्धि हो सके.
राष्ट्रीय मेंस्ट्रीम मीडिया को स्वतंत्र व भय मुक्त बनाने के लिए सुझाव
राष्ट्रीय मेनस्ट्रीम मीडिया को स्वतंत्र व भय मुक्त बनाने के लिए समय-समय पर दिए गए महत्वपूर्ण सुझावों का वर्णन अग्रलिखित है :
प्रथम, ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ (आर एस ए) के अनुसार खोजी पत्रकारों के जीवन को सुरक्षित करने के लिए उनको सुरक्षा मुहैया कराई जानी चाहिए .
द्वितीय़, पत्रकारों को मिलने वाली धमकियों, जानलेवा हमलों और हत्या के मामले में शीघ्र एवं तीव्र प्रक्रिया के द्वारा छानबीन करके सख्त सजा होनी चाहिए .
तृतीय, पुलिस तथा अन्य सुरक्षा एजेंसियों को पत्रकारों की सुरक्षा की उचित ट्रेनिंग व निर्देश दिए जाने चाहिए ताकि कानून व्यवस्था संबंधित नियमों का उल्लंघन करने पर उल्लंघन कर्ता को सजा मिले.
चतुर्थ, पत्रकारों की नियुक्ति नियमानुसार स्थाई रूप से होनी चाहिए ताकि प्रबंधक ‘हायर एंड फायर’ के आधार पर उनको नौकरी से न निकाल सके.
पंचम, पत्रकारों की नियुक्तियाँ तदर्थ अथवा अनुबंध पर आधारित नहीं होनी चाहिए. जब पत्रकार का अपना भविष्य खतरे में रहता है तो वह जनता की आवाज को सही ढंग से नहीं उठा सकता है और न ही समाज की ‘दिशा और दशा’ सुधारने में कोई योगदान दे सकता .उसके ऊपर प्रबंधकों की तलवार निरंतर लटकी रहती है .वह भय मुक्त और स्वतंत्र रूप में कार्य नहीं कर सकता.
छटा, जब तक महिलाओं, पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अल्पसंख्यक वर्गों तथा ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व निर्णायक पदों पर नहीं होगा तब तक राष्ट्रीय मेंस्ट्रीम मीडिया की विश्वसनीयता पर संदेह होता रहेगा.
सातवां, भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 39 (डी )के अनुसार ‘समान काम के लिए समान वेतन’, सभी पत्रकारों को दिया जाना चाहिए .यदि समाचार पत्रों तथा चैनलों के मालिक ऐसा नहीं करते तो उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
आठवां, मेंस्ट्रीम मीडिया में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा को प्राथमिकता देना प्रबंधकों का मुख्य कार्य है.सरकार और प्रबंधकों के द्वारा महिला पत्रकारों के मान और सम्मान की सुरक्षा का प्रबंध करना नितांत होना अनिवार्य होना चाहिए. समाचार पत्रों के कार्यालयों में महिला पत्रकारों की सहायता व सुरक्षा के लिए ‘शिशु कक्ष’ तथा ‘महिला कक्ष’ स्थापित करना अनिवार्य होना चाहिए. महिलाओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विशाखा अभियोग (1977 ) में दी गई गाइडलाइन्ज(दिशा-निर्देशों )को लागू करना आवश्यक है.
नौवां, पत्रकारों की सेवाकाल में मृत्यु होने पर उनके परिवार को विशेष धन राशि दी जाए तथा सेवा निवृत्त होने की आयु तक पूरा वेतन व अन्य भत्ते परिवार को मिलने चाहिए.इसके अतिरिक्त पत्रकारों को सेवा निवृत्त होने के पश्चात पेंशन मिलनी चाहिए .उदाहरणार्थ हरियाणा पत्रकार संघ के अध्यक्ष के .बी.पंडित के प्रयासों से हरियाणा के पत्रकारों को सेवा निवृत्त होने के पश्चात सरकार की ओर से पेंशन जाती है. इसके लिए सरकार व समाचार पत्रों के स्वामियों के द्वारा पत्रकार संघ के साथ बातचीत करके ‘ पत्रकार राहत कोष’ की स्थापना करनी चाहिए.
दसवां, नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए नागरिक मीडिया की अत्यधिक आवश्यकता है .नागरिक मीडिया के द्वारा सहभागी लोकतंत्र का विकास होता है .मीडिया को अधिक प्रभावपूर्ण और सार्थक बनाने के लिए शिक्षा के पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण भाग होना चाहिए. मीडिया की शिक्षा उसी प्रकार होनी चाहिए जैसे कि एमबीबीएस, कानून, इंजीनियरिंग इत्यादि विषयों की होती है. पत्रकारिता और जनसंचार राष्ट्र निर्माण तथा सामाजिक परिवर्तनों में अहम भूमिका निभाता है .वर्तमान समय में पंचायती राज संस्थाओं से लेकर प्रधानमंत्री के कार्यालय तक संचार गवर्नेस का आंतरिक हिस्सा है. कम्युनिकेशन एजुकेशन और इंफॉर्मेशन तकनीकी के बिना सरकारें स्वास्थ्य ,शिक्षा, पानी, रोजगार, सरकारी योजनाओं तथा विकास की अन्य समस्याओं का समाधान नहीं कर सकती. वर्तमान समय डिजिटल तकनीकी का युग है . मॉस कम्युनिकेशन को सीनियर सैकेंड्री लेवल पर शिक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए ताकि जागरूक नागरिक का निर्माण कर सकें.
संक्षेप में हमारा अभिमत है कि पत्रकार संघों के द्वारा जनमत को तैयार किया जाए ताकि उपरोक्त सुझावों को लागू किया जा सके. यदि पत्रकारों के द्वारा जनता की आवाज को नहीं उठाया जाता तो सहभागी लोकतंत्र के विकास में रुकावट पैदा हो सकती है और स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र दोनों के रैकं में गिरावट आ सकती है. ऐसी स्थिति में ‘निर्वाचित अधिनायकवाद’ का खतरा पैदा हो सकता है. अंततः निष्पक्ष तथा भय मुक्त पत्रकारिता ही भारत में वास्तविक लोकतंत्र के विकास में सहायक सिद्ध होगी.