(समाज वीकली)
भगत सिंह(जन्म बंगा पाकिस्तान- 28 सितंबर 1907— शहादत लाहौर सेंट्रल जेल पाकिस्तान-23 मार्च 1931) के चिंतन के संबंध में समय-समय पर अनेक विद्वानों , इतिहासकारों,साहित्यकारों,फिल्म निर्माताओं, समाचार पत्रों के संपादकों, राजनेताओं एवं राजनीतिक संस्थाओं ने तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने का सफल अथवा असफल प्रयास किया है. संघ परिवार तथा दक्षिण पंथी विचारधार के समर्थकों ने भगत सिंह को राष्ट्रवादी माना है .साम्यवादी व समाजवादी विचार धारा के समर्थकों ने क्रांति , वैज्ञानिक समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता , राष्ट्रवाद तथा अंतरराष्ट्रीयवाद का प्रतीक माना है. कुछ लेखकों ने भगत सिंह को राष्ट्रवादी क्रांतिकारी अथवा रोमांटिक आदर्शवादी क्रांतिकारी माना है. भारतीय जनता –शिक्षित अथवा अशिक्षित दोनों ही भगत सिंह को मध्यवर्गीय ‘अदम्य दुस्साहसवादी’, ‘व्यैक्तिक शौर्यवादी’व राष्ट्र के लिये कुर्बानी करने वाला ‘श्रेष्ठकोटि का राष्ट्रवादी नौजवान’ मानती है. भगत सिंह भारतीय युवा वर्ग में बहुत अधिक लोकप्रिय हैं तथा युवा वर्ग उन्हें अपना’ हृदय का सम्राट’ व.
‘ आइकॉन’ मानता है . प्रत्येक हड़ताल ,आंदोलन, धरनों और प्रदर्शनों में भगत सिंह का सर्वश्रेष्ठ नारा ‘इंकलाब जिंदाबाद’ समस्त भारत में बड़े गौर्व से लगाया जाता है.
भगत सिंह की विचारधारा के मौलिक स्त्रोत
भगत सिंह के चिंतन का समुचित मूल्यांकन करने के लिए उनके चिंतन व विचारधारा के मौलिक स्त्रोतों का अध्ययन करना अनिवार्य है .वे एक गंभीर अध्येता ,बेहतरीन लेखक, निष्पक्ष पत्रकार एवं समाजवादी वैज्ञानिक थे.
भगत सिंह की सर्वाधिक रुचि मार्क्सवाद ,लेनिनवाद तथा समाजवादी साहित्य में थी. भगत सिंह ने मार्क्स, एंजेल और लेनिन क्रमशः ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’, ‘द कैपिटल’ ‘,परिवार, निजी संपत्ति और राज्य की उत्पत्ति ‘,’साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की चरम अवस्था’ इत्यादि पुस्तकों का बहुत अधिक गहन अध्ययन किया. यही कारण है कि सन् 1924 में जब भगत सिंह की आयु केवल 17 वर्ष की थी उस समय लाला लाजपत राय उनको “रूस का ऐजेंट” कह कर पुकारते थे. लाला लाजपत राय यह शिकायत थी कि भगत सिंह मुझे “लेनिन बनाना चाहता है”.
भगत सिंह की साम्यवादी चिंतन में रुचि इस बात से भी प्रकट होती है कि उनके वकील प्राणनाथ मेहता ने उन्हें ‘लेनिन का जीवन चरित्र’ नामक पुस्तक भेंट की थी. 23 मार्च 1931 को जब फांसी के तख्ते तक ले जाने के लिए पुलिस कर्मी आए तो भगत सिंह महान क्रांतिकारी लेनिन के जीवन संबंधित इस पुस्तक का अध्ययन कर रहे थे. पुलिस कर्मियों के पुकारने पर भगत सिंह ने कहा “एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है” .अतः स्पष्ट है कि भारतवर्ष के आंदोलनकारियों एवं क्रांतिकारी युवाओं के लिए विशेषतया भगत सिंह के लिए “लेनिन एक नई प्रेरणा और आदर्श व्यक्तित्व थे”.
भगत सिंह के जेल के साथी जे.एन. सान्याल के अनुसार भगत सिंह एक अच्छे अध्येता तथा उनके चिंतन का विशेष क्षेत्र समाजवाद था.भगत सिंह अपने जीवन काल में लगभग 735 पुस्तकों का अध्ययन किया तथा वे समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में एक पत्रकार के रूप में छद्म नामों से लेख लिखते रहें. इन समाचार पत्रों तथा पत्रिकाओं में प्रताप (कानपुर), प्रभा (कानपुर ),महारथी (दिल्ली), चांद( इलाहाबाद), वीर अर्जुन( दिल्ली ), वंदे मातरम( लाहौर,) कीर्ति (अमृतसर– पंजाब),मतवाला(कोलकाता), द पीपुल(लाहौर)इत्यादि मुख्य हैं. इन समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित लेखों से भगत सिंह की वैज्ञानिक चेतना, राजनीतिक जागरूकता तथा समाजवादी क्रांति के संबंध में वचनबद्धता प्रकट होती है. लेनिन की वर्षगांठ पर कम्युनिस्ट इंटरनेशनल को तार द्वारा शुभकामनाएं भेजना भगत सिंह के चिंतन का स्रोत है.’कौम के नाम संदेश’ में समझौता क्या है?, कांग्रेस का उद्देश्य क्या है? , नौजवान का कर्तव्य क्या है?, क्रांति क्या है ? इंकलाब नारा क्यों लगाते हैं ?,नये सुधारों की गति क्या है?इत्यादि प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं.
इनके अतिरिक्त पंजाब के गवर्नर के नाम पत्र( 20 मार्च 1931), अपने पिताजी के नाम पत्र (4 अक्टूबर1930), बीके दत्त के नाम पत्र (यह पत्र भगत सिंह ने नवंबर 1930 में फांसी की सजा सुनाए जाने के पश्चात अपने साथी के बीके दत्त को लिखा जो उस समय सैलम (मद्रास) की जेल में थे),गदर पार्टी के क्रांतिकारी लाला रामशरण दास की पुस्तक’ “ड्रीमलैंड” में भगत सिंह द्वारा फांसी घर से 15 जनवरी 1931 को लिखी भूमिका,एच एस आर ए का घोषणा पत्र ,भारत के युवा राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नाम पत्र,(2फरवरी 1931) , भगत सिंह का बहुत अधिक महत्वपूर्ण लेख ‘मैं नास्तिक क्यों ?’
(भगत सिंह का बहुत अधिक महत्वपूर्ण लेख –उसकी शहादत के पश्चात लाहौर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र ‘द पीपुल ‘( 27 दिसंबर 1931 ) में प्रकाशित हुआ) इत्यादि मुख्य हैं. ‘मैं नास्तिक क्यों ?’ यह लेख दक्षिण भारत के समाज सुधारक पेरियार के द्वारा तमिल भाषा में प्रकाशित होने वाले समाचार पत्र कुडईआरसू में 22 तथा 29 मार्च 1931 के अंकों में प्रकाशित किया. वास्तव में यह लेख यथार्थवादी चिंतन एवं बौद्धिकता का अद्भुत एवं मौलिक मिश्रण है. इस लेख के कारण भी भगत सिंह अन्य क्रांतिकारियों से बिल्कुल अलग औरअग्रणीय माने जाते हैं.
फांसी लगने से एक दिन पूर्व 22 मार्च 1931को दुर्गा भाभी- (क्रांतिकारी भगवती चरण वर्मा की क्रांतिकारी धर्मपत्नी श्रीमती दुर्गा देवी का क्रांतिकारी आंदोलन में विशेष स्थान है) को लिखा पत्र अंतिम सारगर्भित दस्तावेज है. इन सभी लेखों तथा पत्रों के आधार पर हम भगत सिंह को लेनिनवादी- मार्क्सवादी क्रांतिकारियों की कतार में ‘विलक्षण क्रांतिकारी ‘मानते हैं. ये सभी दस्तावेज भगत सिंह की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य स्रोत हैं. भगत सिंह के चिंतन का प्रतिबिंब शहीद-ए- आज़म भगत सिंह की जेल डायरी (2011) में साफ दिखाई देता है.. इससे पूर्व भूपेंद्र हूजा (संपादित) ए मार्टियरस नोटबुक (जयपुर 1994) – भगत सिंह की जेल नोटबुक का संपादन किया गया .
इस का हिंदी रूपांतरण विश्वनाथ मिश्र (अनुवाद व संपादन) ‘शहीदे आजम की जेल नोटबुक’ ,लखनऊ से प्रकाशित हुई . भगत सिंह की जेल नोटबुक के संबंध में एल.वी मित्रोंखिन लिखा कि “एक महान विचारधारा का दुर्लभ साक्ष्य है.” भगत सिंह ने जेल में रहते हुए जेल डायरी के अतिरिक्त चार पुस्तकें भी लिखी—1. आत्मकथा,2. समाजवाद का आदर्श ,3.भारत में क्रांतिकारी आंदोलन और क्रांतिकारियों का संक्षिप्त जीवन परिचय तथा 4.मृत्यु के द्वार पर. परंतु यह पुस्तकें के कहां है? इस संबंध में अभी तक कोई जानकारी नहीं है.
भगत सिंह के चिंतन एवं विचारधारा का क्रांतिकारी दस्तावेज भगत सिंह तथा बीके दत्त का सत्र न्यायाधीश की अदालत में लिखित ब्यान (8जून 1927) महत्वपूर्ण है. संक्षेप में भगत सिंह ने मार्क्सवादी- क्रांतिकारी समाजवादी सिद्धांतों को अपनाया ताकि पूंजीवाद, साम्राज्यवाद और भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवादी शोषण का अंत हो .वे एक ऐसे समाज की कल्पना करते थे जिसमें उत्पादन और वितरण के साधनों पर किसानों व मजदूरों- सर्वहारा वर्ग का नियंत्रण हो .एक ऐसी व्यवस्था स्थापित हो जहां मानव के द्वारा मानव का शोषण न हो.
भगत सिंह एवं आतंकवाद
सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हम विद्यार्थियों तथा युवा पीढ़ी को पाठ्यक्रम की पुस्तकों के माध्यम से भ्रमित कर रहे हैं. वर्तमान शताब्दी के प्रथम दशक में राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय ,शिक्षा संस्थान की बारहवीं कक्षा के इतिहास की पुस्तक में शहीदे आजम भगत सिंह को आतंकवादी दर्शाकर अपमानित करने कुचेष्टा की है(. डॉ.रामजीलाल, शहीद भगत सिंह आतंकवादी नहीं :युग दृष्टा क्रांतिकारी थे’,दैनिक भास्कर. पानीपत, 25 जुलाई 2008, पृ.6).
शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के अध्यक्ष जून 2022 के उप -चुनाव में संगरूर लोकसभा सीट से निर्वाचित संसद सदस्य सिमरनजीत सिंह मान ने 18 जुलाई 2022 को भगत सिंह को आतंकवादी कहकर एक नया विवाद पैदा कर दिया. सिमरनजीत सिंह मान के इस कथन की आलोचना समस्त भारत में ही नहीं अपितु विश्व स्तर पर भी हुई . यहां यह बताना जरूरी है कि 13 अप्रैल 1919 वैशाखी के दिन जनरल डायर के द्वारा ‘नियोजित नरसंहार’ किया गया .इसमें अमृतसर के तत्कालीन सिविल सर्जन के अनुसार लगभग1800 निर्दोष स्त्री, पुरुष व बच्चों की निर्मम हत्या की गई थी. सिमरनजीत सिंह मान के नाना स.अरूढ़सिंह उस समय स्वर्ण मंदिर अमृतसर के अध्यक्ष थे .उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड के पिशाच जनरल डायर को स्वर्ण मंदिर में सम्मानित किया था. राजनेताओं को राष्ट्र के शहीदों को इस तरीके से अपमानित करने का अधिकार नहीं है तथा उन्हें इस प्रकार की बयानबाजी से परहेज करना चाहिए.
इससे पूर्व भी 8 अप्रैल 1929को पब्लिक सेफ्टी बिल पर केंद्रीय विधानसभा में बहस होनी थी भगत सिंह और बीके दत्त ने बम तथा लाल पर्चे फेंके थे. इस केस में इस बात को 6 जून 1929 को भगत सिंह और बीके दत्त ने स्वयं स्वीकार किया था. परंतु उनके पास पिस्टल नहीं थी. भगत सिंह ने इस अभियोग में अपनी पैरवी स्वयं की थी तथा बीके दत्त की पैरवी प्रसिद्ध वकील आसफ अली ने की थी( एआईआर ,1930, लाहौर, 226). इस अभियोग में खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह ( मानद मजिस्ट्रेट व सरकारी ठेकेदार )सुपुत्र सुजान सिंह ने भगत सिंह तथा बीके दत्त की न्यायालय में शिनाख्ती गवाह के रूप में गवाही दी थी. शोभा सिंह के पुत्र खुशवंत सिंह ने ‘हिस्ट्री आफ सिक्ख्स ’ में लिखा ‘भगत सिंह भारतीय क्रांतिकारी इतिहास के आतंकवादियों में सबसे अधिक प्रसिद्ध हुए’. (खुशवंत सिंह, हिस्ट्री आफ सिक्ख्स, पृ. 226 ,नोट 21).
खुशवंत सिंह के पिता शोभा सिंह ने स्वयं कहा ‘असेंबली बम केस में भगत सिंह को उम्रकैद और बाद में लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी की सजा हुई और मुझे (शोभा सिंह ) अपनी वफादारी का ईनाम तरह-तरह की उपाधियों के रुप में प्राप्त हुआ. पहले मुझे ‘सरदार बहादुर’की उपाधि मिली, … फिर ‘नाइटहुड’की पदवी दी गई और उसके बाद मुझे विधान परिषद् के लिए मनोनीत कर लिया गया.’
भगत सिंह और उसके साथियों के संबंध में अंग्रेजी साम्राज्यवाद सरकार के द्वारा यह प्रचार किया गया था कि वह आतंकवादी थे. इस बात के समर्थन में अनेक विद्वानों , आतंकवादियों व आतंकवादी संगठनों ने भी किया है . भगत सिंह और उसके साथियों के आतंकवादी होने के संबंध में दो प्रमाण दिए जाते हैं:
प्रथम, भगत सिंह एवं उनके साथियों ने पुलिस अधिकारी सांडर्स की गोली मारकर हत्या की थी, तथा
द्वितीय, भगत सिंह एवं बीके दत्त ने केंद्रीय विधान सभा, दिल्ली के सभागार में बम फेंका था.
यह दोनों प्रमाण ठीक है .
आतंकवाद का खंडन :’खून के बदले खून के सिद्धांत’ में कोई आस्था नहीं : भगत सिंह और उनके साथियों ने इस बात का खंडन किया है कि वह आतंकवादी थे .सांडर्स को गोली मारने का उद्देश्य व्यैक्तिक शत्रुता का बदला लेना नहीं था. ‘खून के बदले खून के सिद्धांत ‘में भगत सिंह की कोई आस्था नहीं थी. इस संबंध में भगत सिंह तथा बीके दत्त का दिल्ली के सत्र न्यायाधीश की अदालत में 8 जून 1929 को असेंबली अभियोग में लिखित बयान एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी दस्तावेज है. इस दस्तावेज में भगत सिंह तथा बीके दत्त ने इस बात को स्पष्ट किया कि केंद्रीय विधानसभा में फेंके बमों का उद्देश्य किसी को मारना नहीं था अपितु ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार को चेतावनी देना था. वे मनुष्य जीवन को पवित्र मानते थे तथा उनका मानव जाति प्रति अगाध प्रेम था.
आतंकवादी होने से आरोपों का खंडन करते हुए भगत सिंह तथा बीके दत्त ने कहा: ‘मनुष्य जीवन को पवित्र मानते हैं तथा मानव जाति से उन्हें अगाध प्रेम है. बर्बरता पूर्व करने वाले देश के खिलाफ नहीं हैं और ना ही पागल हैं…. हम पाखंड से घृणा करते हैं. असेंबली में खून बहाना हमारा उद्देश्य नहीं, अपितु बहरों को अपनी आवाज सुनाना और समय रहते उन्हें चेतावनी देना था’.
भगत सिंह ने समाजवादी समाज की स्थापना के लिए क्रांति को अनिवार्य माना.मार्क्स, एंजेल और लेनिन की भांति वह मेहनतकश जनता, मजदूरों व किसानों के क्रांतिकारी संगठनों पर बल देते थे . जिस प्रकार लेनिन का विश्वास था कि क्रांति के लिए पेशेवर क्रांतिकारियों के समर्थन का होना अनिवार्य है. उसी प्रकार भगत सिंह पेशेवर क्रांतिकारियों के साथ -साथ जन आंदोलन तथा जनशक्ति के बिना क्रांति को असंभव मानते थे. उन्होंने लाहौर केंद्रीय जेल के अधीक्षक को एक पत्र में लिखा:
‘मेरा दृढ़ विश्वास है कि हमको बंमों और पिस्तौलों से विशेष लाभ नहीं होगा. बम चलाना निरर्थक नहीं अपितु हानिकारक भी होता है. हालांकि कुछ परिस्थितियों में उसकी आज्ञा दी जा सकती है. हमारा मुख्य उद्देश्य मजदूरों और किसानों को संगठित करना ही होना चाहिए.’
17 दिसंबर 1928 को सांडर्स को गोली से मार कर लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लिया था .परंतु इस बदले की भावना में भी क्रांतिकारी आवाज को बुलंद करना एवं राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए त्याग एवं बलिदान की भावना चरम सीमा पर थी . 18 दिसंबर 1928 को बांटे एवं चिपकाए गए पोस्टरों में लिखा था ‘अत्याचारी सरकार सावधान’. भगत सिंह के साथी अजय घोष नें अपनी पुस्तक(’ भगत सिंह और उसके साथी’, (दिल्ली, 1979 ) में लिखा कि ‘भगत सिंह में परंपरागत आतंकवादी नेता का एक भी लक्षण नहीं दिखाई देता था… और पहले के आतंकवादियों के धार्मिक विश्वासों का उन पर तनिक भी प्रभाव नहीं था’.
8 अप्रैल 1929 को पब्लिक सेफ्टी बिल पर केंद्रीय विधानसभा में बहस होनी थी .भगत सिंह तथा बीके दत्त ने केंद्रीय विधान सभा (वर्तमान संसद) केंद्रीय हाल में जो बम पर्चे और लाल पर्चे भी फेंके. असेंबली में बम फेंकने का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था . असेंबली में फेंके गए बम मानव जीवन को हानि पहुंचाने वाले नहीं थे. इस केस में इस बात को भगत सिंह और बीके दत्त ने स्वयं स्वीकार किया था.
इसके अतिरिक्त ‘क्रांति अमर रहे’, ‘इंकलाब जिंदाबाद’, ‘ब्रिटिश साम्राज्यवाद मुर्दाबाद’ तथा ‘दुनिया के मजदूर एक हो’के नारे भी लगाए. भगत सिंह व बीके दत्त वहां उपस्थित सदस्यों को गोलियों से भून सकते थे तथा वहां से भाग भी सकते थे .परंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया . उन्होंने भागने की बजाय आत्मसमर्पण किया. बंगाल के क्रांतिकारियों ने उन्हें परामर्श दिया था कि वे बंम व पर्चे फैंक कर भाग जाएं ताकि फांसी से बचा जा सके. परंतु भगत सिंह व बीके दत्त अज्ञात मरना नहीं चाहते थे .वह अपनी कुर्बानी से जन क्रांति की ज्वाला को दावानल बना कर ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जलाकर राख बनाना चाहते थे. वे कुर्बानी के द्वारा जन क्रांति की ज्वाला भड़काना चाहते थे.
केवल यही नहीं अपितु उन्होंने जेल में भूख हड़ताल का प्रयोग भी जन आंदोलन को प्रेरित करने के लिए किया .भगत सिंह ने जेल में अलग-अलग समय पर दिन126 भूख हड़ताल की. भगत सिंह ने जेल में सबसे लंबी हड़ताल 63 दिन की थी . इस हड़ताल के पास पश्चात भगत सिंह ने कहा था “मैं जिंदा ना रहूं ,मेरी विचारधारा जिंदा रहेगी”. वास्तव में जन आंदोलन को प्रेरित व लाम बंद करने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों के द्वारा केंद्रीय विधानसभा में बम व लाल पर्चे फैंक कर, नारे लगाकर, जेल में भूख हड़ताल करके, जेल से पत्र लिखकर ,न्यायालय में लिखित ब्यान देकर , समाचार पत्रों में लेख लिख कर राष्ट्रीय आंदोलन व एच एस आर ए के साथ जनता को जोड़ना चाहते थे तथा ब्रिटिश साम्राज्यवादी शोषण एवं शासन का विरोध करके शोषण रहित समतावादी समाज की स्थापना करना था.
यद्धपि प्रारंभ में भगत सिंह एक’रोमांटिक आदर्शवादी क्रांतिकारी’ थे .परंतु गहन अध्ययन के पश्चात उनके पुराने विचारों का स्थान’ तर्कसंगत. विचारों ने ले लिया. इन नए विचारों में ‘रहस्यवाद व अंधविश्वास’ का कोई स्थान नहीं था. भगत सिंह के शब्दों में’यथार्थवाद हमारा आधार बना. हिंसा तभी न्यायोचित है जब किसी विकट आवश्यकता में उसका सहारा लिया जाए. अहिंसा सभी जन आंदोलनों का अनिवार्य सिद्धांत होना चाहिए.’ भगत सिंह उसके साथियों ने केवल दो बार हिंसात्मक साधनों का प्रयोग किया है – जेपी सांडर्स की हत्या करना तथा केंद्रीय विधानसभा में बम फैंकना.
अन्य शब्दों में भगत सिंह और उसके साथियों के द्वारा अपनाए गए अहिंसा एवं अहिंसात्मक तरीकों में सत्याग्रह, भूख हड़ताल, नारेबाजी ,न्यायपालिका में ब्यान , पोस्टर बाजी, समाचार पत्रों में लेखों का प्रकाशन,पत्र लिखना ,जनता में प्रचार ,महत्वपूर्ण दिवस –मई दिवस, लेनिन दिवस मनाना इत्यादि, अन्य देशों क्रांतिकारियों के साथ संपर्क स्थापित करना, उदेश्य प्राप्ति के लिए वार्ता एवं समझौता तथा जनता को लामबंद करने के साथ-साथ आत्मिक और भौतिक बल का प्रयोग मुख्य स्थान रखते हैं .क्रांति के लिए दोनों का प्रयोग किया जा सकता है.
यदि इस आधार पर देखा जाए तो भगत सिंह और उसके साथी अहिंसात्मक तरीकों के प्रयोग के आधार पर उन्हीं तरीकों का प्रयोग कर रहे थे जो महात्मा गांधी के द्वारा किये गए .परंतु इसके विपरीत भारत छोड़ो आंदोलन(1942) का प्रारंभ होने से पूर्व महात्मा गांधी के द्वारा हिंसा के संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं किया गया . ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया गया जो किसी भी रूप में गांधीवादी नजर नहीं आती. महात्मा गांधी के द्वारा प्रयोग की शब्दावली में विद्रोह (Revolt), बगावत (Rebellion), खुली बगावत (Open Rebellion), कनफ्लैग्रेशन, ‘जितना संभव हो उतना छोटा और तेज़ “(As Short and as Swift as Possible–ऐज शॉर्ट एंड स्विफ्ट ऐज पॉसिबल), सबसे बड़ा आंदोलन ( Biggest Movement), करो या मरो( Do or Die) मुख्य हैं.
एक समय महात्मा गांधी ने कहा था कि “अगर मैं ब्रिटिश सरकार या मित्र शक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं कर पाता हूं तो मैं चरम सीमा तक जाने में संकोच नहीं करूंगा”. (Dr.Ramji Lal, Political India 1935-42 :Anatomy of Indian Politics , Ajanta Publications New Delhi, 1986, p.201). अन्य शब्दों में भगत सिंह अहिंसात्मक (गांधीवादी)तरीकों की ओर अग्रसर हो रहे थे और महात्मा गांधी स्पष्ट रूप में गांधीवादी तरीकों का परित्याग करते जा रहे थे.संक्षेप में शहीद भगत सिंह आतंकवादी नहीं अपितु वैज्ञानिक समाजवादी क्रांतिकारी थे. भगत सिंह को आतंकवादी कहना उसके साथ घोर अन्याय और अपमानजनक है.
भगत सिंह एवं समाजवादी क्रांति : एक विश्लेषण
क्रांति का अर्थ: बम और पिस्तौल की पूजा नहीं और न ही खूनी संघर्ष : जनता द्वारा जनता के लिए क्रांति
भगत सिंह एक समाजवादी क्रांतिकारी थे. केंद्रीय विधानसभा में फेंके गए बमों के आधार पर जो अभियोग सरकार के द्वारा चलाया गया इसका पूर्ण प्रयोग क्रांतिकारी भगत सिंह और उनके साथियों ने जनता में क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करने व भारतीय जन मानस को आंदोलन में प्रेरित करने के लिए किया. भगत सिंह व बीके दत्त ने 8 जून 1929 को दिल्ली के सत्र न्यायाधीश को क्रांति का अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने लिखित वक्तव्य ने कहा:
‘क्रांति का अर्थ खूनी संघर्ष नहीं है और न ही इसमें व्यक्तिगत झगड़े का कोई स्थान है .यह बम और पिस्तौल की पूजा की प्रथा नहीं है .क्रांति से हमारा स्पष्ट तात्पर्य है कि अन्याय पर आधारित व्यवस्था बदले …क्रांति से हमारा तात्पर्य है कि एक ऐसे समाज की अन्तत: रचना करना जिसमें सर्वहरावर्ग की सार्वभौमिकता को स्वीकार किया जाए और उसके फलस्वरुप राष्ट्र संघ मानवता को पूंजीवाद की दास्तां और दुख और युद्ध के खतरे से मुक्ति दिलाए…. क्रांति मानव जाति का एक ऐसा अधिकार है जिसे उससे कभी भी छीना नहीं जा सकता’.
क्रांति के लक्ष्य का स्पष्टीकरण करते हुए इसी लिखित वक्तव्य में आगे कहा कि क्रांति आदमी द्वारा आदमी और साम्राज्यवाद का हल है. एक राष्ट्र के द्वारा दूसरे राष्ट्र का शोषण करने का अंत करना तथा सर्वहारा वर्ग के अधिनायकवाद की स्थापना करना है क्योंकि’ जनता की सार्वभौमिकता ही श्रमिकों का अंतिम लक्ष्य है’. क्रांति के द्वारा पूंजीवाद ,वर्गवाद,साम्राज्यवाद एवं कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार देने वाली प्रणाली का अंत होगा .”क्रांति मजदूरों और किसानों का राज्य स्थापित करेगी तथा सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक शक्ति पर श्रमिकों एवं किसानों का अधिपत्य स्थापित करेगी एवं सामाजिक अवांछित उन तत्वों को समाप्त करें कर देगी जो देश की राजनीतिक शक्ति को हथियाए बैठे हैं’.
भगत सिंह की राजनीतिक परिपक्वता, विद्वत्ता ,विवेकशीलता एवं अभिव्यक्ति अति उत्कृष्ट और वैज्ञानिक थी. वस्तुतः भगत सिंह ने व्यक्तिगत आतंकवाद के स्थान पर मेहनतकश जनता को संगठित एवं लामबंद करने पर बल दिया. क्रांतिकारी होने का अर्थ यह भी है कि उसके पास बम और पिस्तौल हो .भगत सिंह की धारणा थी कि प्रत्येक परिस्थिति में बम और पिस्तौल की अनुमति नहीं दी जा सकती और इनका चलाना हानिकारक हो सकता है .
19 अक्टूबर, 1929 को पंजाब स्टूडेंट की कांग्रेस के नाम एक संदेश में भगत सिंह ने स्पष्ट कहा ‘आज हम नौजवानों को बम और पिस्तौल अपनाने के लिए नहीं कह सकते,… इन्हें औद्योगिक क्षेत्रों की गंदी बस्तियों में और गांवों में टूटे- फूटे झोपड़ों में रहने वाले करोड़ों लोगों को जगाना है.’ 2 फरवरी 1931 को भगत सिंह ने ‘युवा राजनीतिक क्रांतिकारियों के नाम’ एक अपील में जनसाधारण के बीच काम करने के महत्व को बार-बार बल देते हुए कहा ‘गांवों और कारखानों में किसान और मजदूर ही असली क्रांतिकारी सैनिक हैं.’ इसी अपील में भगत सिंह ने स्पष्ट रूप में क्रांतिकारी आतंकवादी होने से इनकार किया है . भगत सिंह ने लिखा :
’मैंने एक आतंकवादी की तरह काम किया है. लेकिन मैं आतंकवादी नहीं हूं. मैं तो ऐसा क्रांतिकारी हूं जिसके पास एक लंबा कार्यक्रम और उसके बारे में सुनिश्चित विचार होते हैं. मैं पूरी ताकत के साथ बताना चाहता हूं कि मैं आतंकवादी नहीं हूं और कभी था भी नहीं, कदाचित उन कुछ दिनों को छोड़कर जब मैं अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत कर रहा था. मुझे विश्वास है कि हम ऐसे तरीकों से कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते.’
भगत सिंह ने नौजवान तथा नौजवान कार्यकर्ताओं को यह सलाह दी कि वे जनता के बीच जाएं व विद्यार्थियों, किसानों, श्रमिकों और मध्यवर्गीय नौजवानों को मार्क्स व लेनिन के विचारों से अवगत कराते हुए उनको क्रांति के लिए तैयार करें .भगत सिंह के जानते थे कि यह कार्य आसान नहीं है इसलिए उन्होंने लिखा जिस प्रकार लेनिन ने क्रांति के लिए ‘पेशेवर क्रांतिकारियों ‘पर बल देते थे उसी प्रकार ‘पूर्णकालिक पेशेवर क्रांतिकारियों’ की आवश्यकता है जिन का मुख्य कार्य क्रांति करना है और इसके अतिरिक्त उनकी न तो कोई ‘आकांक्षा’ है और नहीं जीवन में कोई दूसरा ‘लक्ष्य’ है. उनका पूर्ण विश्वास था कि जब ऐसे लोगों की संख्या अधिक हो जाएगी तो लाजिमी तौर पर सफलता की संभावनाएं बढ़ जाएंगी.
2 फरवरी 1931 की अपील में नौजवानों को प्रेरित करते हुए भगत सिंह ने लिखा:
‘व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ने के लिए आपको जिसकी सबसे अधिक आवश्यकता है वह एक पार्टी जिसके पास …ऐसे कार्य करता हों जिनके दिमाग साफ हो और समस्याओं की तीखी पकड़ हो और पहल करने और तुरंत फैसला लेने की क्षमता हो. इस पार्टी का अनुशासन बहुत कठोर होगा और यह जरूरी नहीं वह भूमिगत पार्टी हो, बल्कि भूमिगत नहीं होनी चाहिए …पार्टी को अपने काम की शुरुआत आवाम के बीच प्रचार करके करनी चाहिए. किसानों और मजदूरों को संगठित करने और उनकी सक्रिय सहानुभूति प्राप्त करने के लिए यह बहुत जरूरी है. इस पार्टी को कम्युनिस्ट पार्टी का नाम दिया जा सकता है’.
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संक्षेप में भगत सिंह अपने चिंतन में क्रांति के लिए श्रमिकों और किसानों को लामबंद करने और संगठित करने पर
बल दिया. भगत सिंह ने क्रांति को परिभाषित करते हुए”जनता द्वारा जनता के लिए क्रांति “के सिद्धांत पर बल दिया. भगत सिंह ने अपने चिंतन में क्रांति के लिए श्रमिकों और किसानों– सर्वहारा वर्ग को लामबंद और संगठित करने पर अत्यधिक बल दिया. भगत सिंह और उसके साथियों का यह अगाध विश्वास था कि क्रांतिकारियों के बिखरे हुए और असंख्य ग्रुप राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका अदा नहीं कर सकते .यही कारण है उन्होंने कार्य पद्धति में परिवर्तन किया. भगत सिंह और उसके साथियों ने मिलकर सन 1926 में ‘भारत नौजवान सभा’ की स्थापना की .इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं, श्रमिकों और किसानों को लामबंद करना था. सितंबर 1928 में क्रांतिकारियों ने दिल्ली में भारतवर्ष में समाजवादी समाज की स्थापना का प्रस्ताव पारित किया तथा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा. इसका मुख्य उद्देश्य भारत में समतावादी, समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना करना था.
भगत सिंह के चिंतन की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता:@ भारतीय स्वतंत्रता के 75वर्ष :एक पुनर्विलोकन
भारत को सन् 1947 में ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा 560 से अधिक भारतीय देशी रियास्तों से राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त हुई. परंतु 75 वर्ष पूर्ण होने के पश्चात भारत में आर्थिक शोषण, दमन ,अत्याचार, आर्थिक व सामाजिक असमानता ,कार्पोर्टस द्वारा आर्थिक लूट व निजीकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपकर्मों का निजीकरण ,सामाजिक भेदभाव ,महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार ,संकुचित अवधारणाओं – सांप्रदायवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, कबीलावाद,भाषावाद इत्यादि में वृद्धि,भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, अज्ञानता, भूखमरी,कुपोषण, स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव,मॉब लीचिंग,भीड़ तंत्र व भीड़ का न्याय, नव साम्राज्यवाद,आर्थिक संस्कृति, राजनीतिक अपराधिकरण व भ्रष्टाचार की संस्कृति में अप्रत्याशित वृद्धि , राजनेताओं,पुलिस व प्रशानिक अधिकारियों का गठबंधन जनता के सेवक व रक्षक की जगह स्वामी होना इत्यादि समस्याओं से आम जनता ग्रस्त है तथा भारतीय लोकतंत्र के वैश्विक शक्ति बनने व जनसाधारण की समस्याओं का समाधान करने के मार्ग में मुख्य बाधाएं हैं.
इनमें से कुछ समस्याएं भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद और भारतीय देशी रियासतों से विरासत में प्राप्त हुई हैं. परंतु सन् 1947 के पश्चात भारत में केंद्रीय और प्रांतीय स्तरों पर विभिन्न राजनीतिक दलों की सरकारें शासन करती आ रही हैं. इन समस्याओं का समाधान होने की अपेक्षा वृद्धि होने के लिए केवल कांग्रेस पार्टी अथवा भारतीय जनता पार्टी की सरकारों पर ही दोषारोपण नहीं किया जा सकता .इसके लिए विभिन्न राज्यों में शासन करने वाले राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल भी उत्तरदाई हैं. भारतवर्ष में ऐसा कोई महत्वपूर्ण दल नहीं है जो केंद्र अथवा राज्यों में सत्ता में ना रहा हो अथवा वह यूपीए( 1 तथा 2) अथवा एनडीए( 1 तथा 2) का भाग न रहा हो.
भारतीय वर्तमान स्थिति का अध्ययन करने के लिए इनमें से कुछ महत्वपूर्ण समस्याओं –आर्थिक असमानता ,गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, लैंगिक असमानता इत्यादि के आधार पर भगत सिंह के चिंतन का पुनर्मूल्यांकन करना अनिवार्य है ताकि य़ह अग्नि परीक्षा की जा सके कि भगत सिंहं के वैज्ञानिक समाजवादी चिंतन की कितनी प्रासंगिकता है?.
सोवियत संघ के बिखरने के पश्चात विश्व में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की हवा इतनी तेज हो गई उसका भारत पर भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा .प्रधानमंत्री नरसिंह राव व वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने निजीकरण और उदारीकरण की नीतियों पर बल दिया .धीरे-धीरे इन नीतियों के कारण भारत में आर्थिक असमानता निरंतर बढ़ती चली गई . कॉर्पोरेटस तथा पूंजीपति वर्ग भारतीय अर्थव्यवस्था तथा राजनीतिक व्यवस्था पर हावी होता चला गया .
साम्यवादी विचारधारा के जनक कार्ल मार्क्स ने ‘अतिरेक मूल्य के सिद्धांत’ पर ‘धन के केंद्रीयकरण’ की व्याख्या करते हुए कहा था कि जैसे-जैसे धन का केंद्रीयकरण होता चला जाएगा वैसे वैसे मुट्ठी भर लोग अत्याधिक अमीर होते चले जाएंगे और गरीबों तथा श्रमिकों की संख्या बढ़ती चली जाएगी. दूसरे शब्दों में आर्थिक असमानता , बेरोजगारी और अन्य समस्याएं उत्पन्न होंगी. धन के केंद्रीयकरण के कारण भारत की अधिकांश संपत्ति पर पूंजीपतिवर्ग व कारपोरेट का नियंत्रण इतना बढ़ गया कि भारत में आर्थिक असमानता और बेरोजगारी का भविष्य में कोई समाधान दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है . भारतीय जनता पार्टी तथा कांग्रेस पार्टी के राजनेता और सरकारें कारपोरेट्रीकरण का विरोध नहीं करती .आम आदमी पार्टी के द्वारा भी कारपोरेट के विरोध में लगभग कोई आवाज नहीं उठाई जाती.वामदलों, साम्यवादी व समाजवादी चिंतको को छोडकर अन्य सभी राजनीतिक दल व उनकी सरकारें राष्ट्रीय साधनों के राष्ट्रीयकरण के पक्ष में नहीं हैं तथा विनिवेशकरण के विरुद्ध भी नहीं हैं.
आर्थिक असमानता, गरीबी और बेरोजगारी का विश्लेषण करना आंकड़ों के आधार पर औचित्य पूर्ण रहेगा. विश्व असमानता रिपोर्ट (2022) के अनुसार भारत की शीर्ष 1% आबादी की आय नीचे के 50% लोगों की आय का 22 गुना है.12 लाख रुपये की वार्षिक आय वाले लोग देश के शीर्ष 10% लोगों में शामिल हैं। ‘देश की औसत आय सिर्फ 2 लाख रुपये है. हालाँकि, शीर्ष 1% की औसत वार्षिक आय 44 लाख रुपये से अधिक है. 23 करोड़ लोगों की प्रतिदिन की आय 375 रुपये से कम है . विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2020 में कोरोना महामारी के केवल एक वर्ष में कुल 5.6 करोड़ भारतीय गरीब हो गए.
वैश्विक भूखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स )2022 के अनुसार 121 देशों में भारत का भूखमरी में 107 वां स्थान है. सन् 2020 में भारत 94 वे स्थान पर था. सन् 2021 में 116 देशों में भारत की रैंकिंग 101 वें स्थान पर है . रिपोर्ट के अनुसार भारत पड़ौसी देशों पाकिस्तान(99), बांग्लादेश(84), नेपाल(81) तथा श्रीलंका(64)) से भी रैंकिंग में पीछे है. रैंकिंग का अनुमान जी एच आई स्कोर के आधार पर किया जाता है .सन् 2000 में यह 38 .8 था. सन् 2012 और सन्2021 के बीच यह स्कोर 28 . 8 तथा 27 . 5 के बीच में रहा है. वैश्विक भूखमरी सूचकांक 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत का जी एच आई स्कोर 29.1 है. यह स्थिति ‘गंभीर श्रेणी’ में आती है . रैंकिंग की गणना चार संकेतकों – अल्प पोषण, कुपोषण ,बच्चों की वृद्धि दर और बाल मृत्यु दर के आधार पर की जाती है.
वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार भारत में चाइल्ड वेस्टिंग रेट –कद के हिसाब से कम वजन -विश्व में सर्वाधिक 19 . 3 प्रतिशत है. इसका मूल कारण यह है कि भारत में अल्प पोषण की समस्या बढ़ती जा रही है .सन् 2018- सन् 2020 अंतराल में 14 . 6% बाल अल्प पोषण की समस्या थी. यह बढ़कर सन 2019 – 2021के अंतराल में बढ़ कर 16 .3% हो गई .यदि हम विश्व स्तर पर दृष्टिपात करें तो विश्व में 82. 8 करोड़ आबादी अल्प पोषित है . भारत में 22 . 43 करोड़ जनता आज भी अल्प पोषण की समस्या से ग्रस्त है. जिस देश की 22.43 करोड़ आबादी भूखमरी व अल्प पोषण की समस्याओं का सामना कर रही है वह आत्मनिर्भर भारत तथा विश्व की महाशक्ति बनने के मार्ग में बाधा है.
भारत सरकार ने वैश्विक भूखमरी सूचकांक (हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट सन् 2022 को एक सिरे से नकारते कहा है कि इस रिपोर्ट के द्वारा भारत की छवि को खराब किया जा रहा है. भारत सरकार में इस रिपोर्ट को भारत के विरुद्ध साजिश बताया है. महिला और बाल विकास मंत्रालय ने कहा, “एक ऐसे राष्ट्र के रूप में भारत की छवि को खराब करने के लिए एक निरंतर प्रयास अभी भी दिखाई दे रहा है जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है.गलत सूचना सालाना जारी किए गए सूचकांक की पहचान लगती है।”; यह पहला अवसर नहीं है जब सरकार में ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट को झूठा, तथ्य हीन तथा गलत बताया है. 20 मार्च 2021 को राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में तत्कालीन कृषि राज्य मंत्री ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स को बकवास और गलत बताया था. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत में भूखमरी का प्रश्न ही नहीं है.
इसी प्रकार 4 अगस्त 2021 को लोकसभा में उपभोक्ता मामलों की राज्यमंत्री महोदया निरंजन ज्योति ने ग्लोबल हंगर इंडेक्स के संबंध में जो बयान दिया वह बहुत अधिक बचकाना व गलत था. राज्य मंत्री महोदया ने कहा भारत हंगर इंडेक्स में सन् 2015 में 80वें , सन्2016 में 97 वें ,सन् 2017 में 100 वें , सन् 2019 में 102वें और सन्2020 में 94 वेंस्थान पर था . राज्य मंत्री महोदया ने ज्ञान की सारी हदें पार कर गई जब उन्होंने कहा कि इस इंडेक्स में देश की स्थिति निरंतर बेहतर होती जा रही है. इससे सिद्ध होता है कि भारत सरकार के राज्य मंत्री महोदया को भूख सूचकांक स्कोर नापने की वैज्ञानिक पद्धति का ज्ञान शून्य से भी नीचे है.
यदि वैश्विक भूखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स )2022 तथ्य हीन तथा गलत है और भारत में भूखमरी और गरीबी का प्रश्न ही नहीं है तो भारत सरकार के द्वारा लगभग 84 करोड़ लोगों को फ्री राशन क्यों उपलब्ध कराया जा रहा है? लगभग 84 करोड़ लोगों को फ्री राशन उपलब्ध कराया जाना ही इस बात को सिद्ध करता है कि भारत में गरीबी और भूखमरी कम होने की अपेक्षा बढ़ी हैं. भारत में असमानता का गुणांक प्रतिवर्ष बढ़ती असमानता को प्रदर्शित करता है . भारत में असमानता का गुणांक सन् 2014 में 34.4 प्रतिशत था .सन् 2018 में बढ़कर 47 . 9% पहुंच गया. गुणांक जितने ज्यादा होंगे असमानता के अनुपात उतनी ही वृद्धि होगी .यदि 100 में से गुणांक शून्य(जीरो) है तो असमानता समाप्त हो जाती है.
भारत बढ़ती हुई बेरोजगारी के कारण ज्वालामुखी के पहाड़ के ऊपर खड़ा है. आर्थिक विषमता और असमानता के कारण स्थिति भयंकर हो जाती है क्योंकि” रोजगार रहित विकास” हो रहा है. फरवरी 2018 में 14.30 करोड युवा रोजगार की तलाश में थे.श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार” हमारे पास 7.6% की बेरोजगारी दर है’. भारतवर्ष में इस समय 4 करोड से अधिक लोग बेरोजगार हैं .बेरोजगारी 45 साल के उच्च स्तर 6.1% पर पहुंच गई जब कि सन् 2014 से सन् 2022 तक- 8 साल के अंतराल में 22 करोड़ बेरोजगार युवाओं ने नौकरी के लिए प्रार्थना पत्र दिये. केवल 7 लाख 22हजार युवाओं को ही नौकरी मिली.
सन् 2014के लोक सभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी के द्वारा भारतीय जनता पार्टी स्टार प्रचारक के रूप में प्रतिवर्ष नौजवानों को 2 करोड नौकरियां देने का वादा किया था. परंतु नौजवानों को रोजगार नहीं मिला. सर्वजनिक क्षेत्र में केंद्र तथा राज्य स्तर पर विभिन्न मंत्रालयों में करोड़ों पद रिक्त हैं .बेरोजगारी के लिए भारत की एनडीए सरकार तथा सभी राज्य सरकारों की नीतियों व नीयत में खोट है.विशेष तौर से निजीकरण, नोटबंदी और जीएसटी के कारण भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है. इनके अतिरिक्त बेरोजगारी मूल कारण कोरोना महामारी भी है ,जिसमें भारत की जीडीपी केवल 3.7 रह गई थीऔर लाखों मजदूर शहरों से अपने गांव की ओर पलायन करने पर मजबूर हुए.
भारतवर्ष में जहां महिलाओं को पूजने की संस्कृति है वहां लैंगिक असमानता की स्थिति बहुत ही भयावह है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट (इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट )2022 के अनुसार भारत में लिंग तथा आर्थिक आधारित असमानता की तस्वीर ठीक नहीं है. लिंग तथा आर्थिक आधार पर महिलाओं ,एससी व एसटी के साथ कार्य तथा वेतन में भेदभाव किया जाता है . रिपोर्ट के अनुसार भारत में सन्2020- सन्2021में कार्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी रेट 25% है जो कि दक्षिण अफ्रीका से ( भागीदारी रेट 46% )से भी कम है.
अंतत: हमारा अभिमत है कि जब तक भारत में आर्थिक विषमता और असमानता, बेरोजगारी , भूखमरी कुपोषण, बच्चों में विकार तथा लैंगिक असमानता विद्यमान हैं तब तक संघर्ष जारी रहेगा और भगत सिंहं के वैज्ञानिक समाजवादी चिंतन भी प्रासंगिक रहेगा. इन सभी समस्याओं का भगत सिंह के अनुसार केवल एक ही समाधान है और वह यह है कि भारतीय जनता- श्रमिकों और किसानों का राष्ट्रीय संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए और पूंजीपति वर्ग तथा कारपोरेट का एकाधिकार समाप्त होना चाहिए.
डॉ. रामजीलाल
पूर्व प्राचार्य ,दयाल सिंह कॉलेज, करनाल( हरियाणा)
मोब.816881760 —email [email protected]
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