(25 जुलाई 2001) फूलन देवी की शहादत पर- फूल फूलन को अर्पित, नमन व श्रद्धांजली……

22 ठाकुरों को एक साथ मारी गोली 

मिर्जापुर सीट से जीतकर बनी सांसद 

‘बैंडिट क्वीन’: फूलन के ऊपर बनी फिल्म  

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सांसद फूलन देवी को दिल्ली के सांसद आवास से पार्लियामेंट जाते हुए 25 जुलाई 2001 को मार डाला गया था।
नमन है उस शहीद नारी को जिसने मर्दों की मर्दानगी को बुझी राख में तब्दील कर दिया था।बेहमई इलाके में जब फूलन जन्मी होंगी तो माँ-बाप ने अपनी लाड़ली को फूल जैसा पाकर नाम फूलन रखा होगा।

समाज कितना दरिंदा है कि यह वंचित समाज की बेटी जब कली से फूल बनने की तरफ अग्रसर थी तो इलाके के सामन्तों की नजर उसकी खुशबू की तरफ पड़ गयी और उन्होंने उस फूलन की फूल सी जिंदगी को मसल डाला। सरेआम नंगा कर बलात्कार कर डाला। बलात्कार के बाद आम नारी की तरह इस फूलन ने इस क्रूर समाज के समक्ष घुट-घुट कर जीना स्वीकार नही किया अपितु यह फूलन उन आतताइयों/सामन्तों के लिए हूलन बन गयी और सूर्पनखा की तरह किसी रावण द्वारा प्रतिशोध लेने की प्रतीक्षा न कर खुद ही हिसाब- किताब चुकता कर ली। यह अलग बात है कि शील भंग करने वाले अपराधियो को हमने बड़ी जाति का समझ इतने के बाद भी सम्मानजनक नजर से देखा और वंचित समाज की फूलन निषाद को बलात्कार जैसी त्रासदी झेलने के वावजूद क्रूर और डकैत कह डाला वही दुर्गा द्वारा छल पूर्वक मूलनिवासी महिसासुर की हत्या करने के वावजूद दुर्गा को हमने माँ, देवी, भगवती, चण्डी और न जाने क्या-क्या माना है। ये जाति भी बड़ा बीभत्स है। एक ही तरह के काम करिये फिर भी दण्ड और पुरस्कार जाति देखकर निर्धारित होते हैं जो फूलन के साथ भी हुआ।

फूलन ने खुद की इज्जत लूटे जाने के बाद नाम के विपरीत “फूल बने अंगारे” की उक्ति को चरितार्थ किया और अन्यायियों/बलात्कारियो को ऐसा सबक सिखाया कि वह इतिहास की अमिट कहानी बन गया।

बीहड़ और जंगलो से निकलकर तथाकथित सभ्य समाज के पंचायत घर में पंहुची फूलन ने जब हथियार डाल दिया, जनसेवा में उतर गयी और सामान्य इंसान की तरह जीवन जीने लगी तो एक बार फिर इसी सभ्य समाज की जातिवादी बीमारी ने उग्र रूप ले लिया और दुबारा फूलन मार दी गयी। पहली बार बलात्कार कर फूलन मन से मारी गयी थी और दुबारा 25 जुलाई 2001 को तन से मार दी गयी। पहली बार शरीर लहूलुहान हुआ था तो दूसरी बार सीना छलनी हुआ। पहली बार बेहमई के सुदूर ग्रामीण अंचल में खून निकला था तो दूसरी बार दिल्ली के पाश इलाके में खून के कतरे बिखर गए। पहली बार कोई सिक्योरिटी नही थी तो दूसरी बार हाई सिक्योरिटी जोन में थी फूलन। पहली बार भी उन्ही जातिवादी जालिमो ने तार-तार किया था इज्जत और दूसरी बार भी उन्ही जातिवादी जालिमो ने छलनी कर डाला था शरीर।पहली बार गुमनाम फूलन गुमनाम बेहमई में शिकार हुयी थी जबकि दूसरी बार विश्वविख्यात फूलन विश्वविख्यात दिल्ली में शिकार बनी।

घिन आती है इस जातिवादी समाज पर और उन जातिवादी लोगो पर जो हमे और हमारे समाज के साथ जाति के नाते क्या-क्या नही करते, वही फख्र है फूलन जैसी अपनी नायक/नायिकाओ पर जिन्होंने अपमान सहकर भी तथा खुद को मिटाकर भी इतिहास बना डाला है।
नमन है क्रांतिबाला फूलन जी को…….

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