देश में होने जा रहे लोकसभा चुनाव में हमारा वोट डालना ही पर्याप्त नहीं हैं बल्कि हमें थोड़ी राजनीति भी करनी चाहिये। अपने प्रतिनिधियों , पार्टियों पर आँख मूंदकर भरोसा करना अपने वजूद को खो देने के समान है।इसी का नतीजा है कि लम्बे अरसे से हमारी लोक सभा में उन प्रश्नों पर को चर्चा नहीं होती, जिनका वायदा पार्टियाँ चुनावों में करती हैं, ये वे सवाल है जो हमारी जिन्दगी से जुड़े हुये है। चुनावों में तमाम पार्टियों के जो भी मुद्दे हो, उनसे हमारी जो भी सहमति-असहमति हो, हमारे सामने मुख्य यह बात है- अपने राजनीतिक वजूूद को विस्तारित करने का और संविधन की उस बात को स्थापित करने का, जिसमें कहा गया है कि वास्तविक सत्ता ”आम जनता“ में निहित है।इस लिये हमें इस समय जारी किये जा रहे तरह-तरह के घोषणापत्रों, मौखिक वायदों में इस बात को सबसे पहले देखना चाहिये कि उसमे हमारे नागरिक अधिकारों के बारे में क्या कहा गया है? हमारे नागरिक अधिकार ही हमारे अन्य अधिकारों की गारंटी करते है। मौजूदा सरकार का विरोध सिर्फ इसलिये ही नही है कि उसने नोटबंदी करके देश की जनता को धोखा दिया, कि उसने कारपोरेटी लूट के लिये नियम-कानूनों को बदला, मंदिर के नाम पर लोगों को गुमराह किया, लोगों को बेरोजगार बनाया आदि, बल्कि उसने लोगों के नागरिक अधिकार यहां तक की अभिव्यक्ति की आजादी पर बेरहमी से चोट किया,और लोकतंत्र की आड़ में तानाशाही को बढ़ावा दिया।दूसरी तरफ हमारे सामने कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र है। यह 1990 से देश में लागू नयी आर्थिक नीतियों के फायदों की तो बात करते हुये उसे और आगे ले जाने एवं मुक्त बाजार का पुराना राग दुहराता है। लेकिन कुछ अन्य जरूरी बातें भी उसमें है।
इसमें कहा गया है कि अपनी बात कहने की आजादी का गला घोंटने वाले कानूनों- जैसे आपराधिक अवमानना कानून, राजद्रोह कानून को खत्म किया जायेगा। सशस्त्र बल विषेशाधिकार अधिनियम को मानव अधिकार के संदर्भ में समीक्षा की जायेगी, विचाराधीन कैदियों को 3 से 6 महीने में जमानत दी जायेगी, जेल नहीं बेल को महत्व दिया जायेगा। कर्ज में फंसे किसान को जेल भेजने का कानून रद्द किया जायेगा। नगर प्रशासन को निर्वाचित नगर निकायों के प्रति जवाब देह बनाया जायेगा। जी0एस0टी0 का एक हिस्सा नगर निकायों, पंचायतों को जायेगा। शिक्षा में जी0डी0पी0 का 6 प्रतिशत,चिकित्सा में 3 प्रतिशत और शोध में 2 प्रतिशत खर्च किया जायेगा। अलग से किसान बजट बनाया जायेगा। वैधानिक संस्थानो,विश्वविद्यालयों को स्वत्तता दी जायेगी। इलेक्शन बांड खत्म करने और मीडिया को कारपोरेट नियंत्रण से मुक्त करने की बात है।
इस पार्टी के नागरिक अधिकारों के प्रति ट्रैक रिकार्ड से हम अच्छी तरह वाकिफ है, और फिर बाजार की आजादी और नागरिकों की आजादी के बीच संतुलन कैसे होगा? खैर, इसी के साथ घोषणा पत्र में बेरोजगारी के सवाल पर एक व्यवाहरिक योजना रखते हुये हर परिवार के लिये न्यूनतम आय 12000/- रूपये प्रतिमाह की गारंटी करने की बात और 20 प्रतिषत सबसे गरीब परिवारों को साल में रूपया 72,000/- देने का वायदा है। लेकिन इस सवाल से तो यह भी बात होगी कि न्यूनतम मजदूरी, किसानों को न्यूनतम आय, न्यूनतम पेंशन आदि भी रूपया 12,000/- रूपये से कम नही होगी। इस घोषणा पत्र में महिलाओं को सरकारी नौकरी में 33 प्रतिशत का आरक्षण, समाज के सभी समूहों के अर्थिक-सामाजिक अधिकार, पर्यावरण, जीव जन्तु आदि सभी प्रश्नों को लिया गया है।
शायद यह पहला मौका है, कि किसी पूंजीवादी पार्टी द्वारा नागरिक अधिकारों के प्रश्न को इतने स्पष्ट रूप से रखा गया है। जाहिर है कि ये मुद्दे देश के नागरिकों के जरूरी सवाल है, जो समय-समय पर उनके संगठनों द्वारा उठाये जाते रहे हैं, और वामपंथी संगठनों के घोषणापत्रों में तो हमेशा रहे हैं। अब सवाल यह नहीं है, कि ऐसा कांग्रेस पार्टी ने किसी मजबूरी में किया या पूरी ईमानदारी से किया। हमारे लिये तो यह महत्वपूर्ण है, कि नागरिकों के राजनीतिक अधिकारों को सवाल चुनाव के मैदान में चर्चा में आना, और उनको लागू करवाने के लिये नागरिकों की राजनीतिक गोलबंदी करना। क्योंकि यदि यह सिलसिला आगे बढ़ेगा, तो हमारे लिये चुनाव के मैदान से फर्जी मुद्दों की खर-पतवार साफ करना आसान होगा।
ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी देश में पिछले 5 वर्षो से चल रहे तमाम प्रकार के जनआंदोलनों, श्रमिक आंदोलनों, किसान आंदोलनों, मानवाधिकार आंदोलनों आदि के मुद्दों को लेकर चुनाव समर जीतने की रणनीति पर चल रही है। यहां पर यह बात गौर करने लायक है, कि इस घोषणा पत्र को बीजेपी खुले तौर पर राष्ट्र विरोधी, देश विरोधी और नक्सली प्रभाव बता रही है और इस फंदे में फंसकर अपनी देशभक्ति का असली जन विरोधी चेहरा उजागर कर रही है। निश्चित तौर पर ये मुद्दे कारपोरेट लूट के लिये खरतनाक है। तो यह लड़ाई कारपोरेटी लोकतंत्र और मेहनत कष जनता के लोकतंत्र के बीच का बनता जा रहा है, और यह लड़ाई दूर तक कांग्रेस पार्टी के बल पर नहीं लड़ी जा सकती। ये सुधार पूरी संरचना में बदलाव की मांग करते है, और यह एक स्वतंत्र राजनीतिक जन आंदोलन के बिना संभव नहीं है।
जब परिस्थितियों ने देश के आम नागरिकों, श्रमिकों, किसानों को अपनी राजनीतिक लड़ाई को आगे बढ़ाने का एक मौका दिया है, तो हमे बहुत सोच समझ कर अपनी कार्य नीति तय करनी है। अब इस लड़ाई को चुनावी धर्म निरपेक्षता, जातीय न्याय या खैराती योजनाओं आदि को मुख्य सवाल बना देने वाले राजनीतिक धाराओं से गड्ड-मड्ड करके इस अवसर की धार को कुंद न किया जाय। राजनीति के मैदान से वास्तविक सवालों को पीछे ले जाने में इन धाराओं ने हमेशा देश की बड़ी पूंजीवादी पार्टियों की मदद की है, और उनके लूट में हिस्सा बंटाया है।
असल में इस राजरीतिक मुद्दे का आगे ले जाने की क्षमता और जिम्मेदारी वामपंथ की है। यदि वामंपथ अपने वैचारिक ठहराव से मुक्त होकर देश भर में साझा प्रत्याशी खड़ा कर सके, तो उससे एक बड़ें जन आंदोलन का आधार निर्मित होगा, और बात आगे बढ़ेगी। हमें आज से ही इस दिशा में प्रयास शुरू करना है, ताकि आगे की चुनौतियो का मुकाबला करने के लिये गलत सोच का दामन न थामना पड़े। हमारा निवेदन है, कि इस चुनाव में हम मतदान के लिये निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखे-
▪ | इन राजनीतिक मुद्दों को लेकर संघर्ष जारी रखने वाले साझा प्रत्याशी को हर तरह का सहयोग दें। |
▪ | अवसरवादी और आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों के खिलाफ मत दें। |
▪ | कारपोरेटी वर्चस्व की उन्मादी प्रवक्ता पार्टी बीजेपी की विदाई के लिये पूरा प्रयास करे। |
▪ | ऊपर की चर्चा में आये आम नागरिकों के राजनीतिक मुद्दों का ईमानदारी से समर्थन करने वाले प्रत्याशी को पूरा सहयोग दें। |
▪ | इन मुद्दों के आधार पर हर क्षेत्र में नागरिक समितियाँ बनायें। ताकि लड़ाई जारी रहे। |
साभिवादन:
सी0बी0 सिंह, भगवती सिंह, के0के0 शुक्ला, मो0-9453682439 (जन जागरूकता अभियान), राम कृष्ण, मो0-9335223922, एम0के0सिंह (नागरिक परिशद), शिवा जी राय (किसान मजदूर संघर्श मोर्चा), ओ0पी0 सिन्हा, मो0-9415568777 (आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल), वीरेन्द्र त्रिपाठी, मो0-9454073470 (एडवोकेट यूनिटी फोरम), होमेन्द्र मिश्रा (उ0प्र0 परिवहन संविदा कर्मचारी संघ), डा0 एस0कें0 पंजम (सर्व हारा लेखक संघ), मु0 शमी (कानपुर ट्रेड यूनियन कौंसिल), मो0 शोएब, राजीव यादव (रिहाई मंच), राम किशोर (डा0 राही मासूम रज़ा साहित्य एकेडमी) डा0 राम प्रताप यादव, डा0 नरेश कुमार, राधेश्याम यादव, लता राय, ज्योंति राय, श्री कांत मिश्र, जनार्दन शाही, सत्येन्द्र कुमार, संतोश सिंह, मु0 मसूद, लक्ष्मी नरायण एडवोकेट, उदय वीर, विजय कुमार, के0पी0 यादव, अजीजुल हसन, कल्पना पांडे, अरूणा सिंह।