- विभूति मनी त्रिपाठी
देश में लोकतंत्र का त्योहार अपने चरम पर पहुंच चुका है, लेकिन हर तरफ एक खामोशी सी छाई हुई है, पहले जैसा शोरगुल अब हमारे यहां चुनावों में नही सुनाई देता और ना ही पहले जैसा उत्सव का माहौल दिखाई देता है, आज अगर हमारे देश में चुनाव की पूरी प्रक्रिया इतनी शांति के साथ संपन्न हो रही है तो इसका पूरा श्रेय हमारे भूतपूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त श्री टी एन शेषन जी को जाता है ।
शेषन जी ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई फैसले किये जिसकी वजह से हमारे यहां के चुनाव प्रक्रिया में आमूल चूल परिवर्तन देखने को मिला और श्री शेषन जी द्वारा लिया गया हर एक फैसला, भारत देश में होने वाले चुनाव के इतिहास में मील का पत्थर साबित हुआ, आज के वक्त की बात की जाये तो इसमें कोई संदेह नही कि, आज कल होने वाले हर एक चुनाव में , चुनाव आयोग बहुत ही शख्ती से नियम और कानून का पालन कर रहा है और देश में घटने वाली हर एक घटनाओं पर चुनाव आयोग की नजर बारीकी से बनी हुई है ।
आज के चुनावी माहौल में एक बात जो बार बार सामने आ रही है वह है बङी मात्रा में बेनामी रुपयों का मिलना, आये दिन छापे में अनगिनत पैसे पुलिस द्वारा बरामद किये जा रहा हैं, ऐसे में सबसे बङा सवाल यह है कि बरामद हो रहे पैसे कहां से आ रहे हैं और किस काम के लिये इतनी बङी मात्रा में पैसे ले जाये जाते हैं, खास तौर से चुनाव के मौसम में, क्यूंकि यह तो सत्य है कि अगर गहराई से जांच की जाये तो बहुत ही चैकाने वाले तथ्य निकल कर सामने आयेगें, लेकिन अफसोस कुछ मायनों में हम आज भी वहीं है जहां आज से कई साल पहले थे ।
इस बात में कोई दो राय नही कि, चुनाव प्रक्रिया की सुचिता बनाये रखने के लिये चुनाव आयोग ने हर संभव वो प्रयास किये हैं जो उसके नियम और कानून के दायरे में आते हैं, खास तौर से जिस तरह से मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास पहले राजनेताओं द्वारा किया जाता था उस पर चुनाव आयोग बहुत हद तक रोक लगाने में कामयाब हो पाया है लेकिन इतनी सख्ती के बावजूद जब भारी मात्रा में रुपये बरामद किये जाते हैं तो यह सवाल उठना लाजिमी हो जाता है कि इतने पैसे किस उद्देश्य से ले जाये जा रहे थे ??? ऐसे में यह स्पष्ट हो जाता है कि, कहीं ना कहीं आज भी मतदाताओं को प्रभावित करने का प्रयास हमारे राजनेताओं द्वारा किया जाता है, जो कि अपने में बहुत ही चिंतनीय विषय है और जो भी पैसा बरामद किया जाता है उसके स्रोत का भी पता नही चल पाता, जो कहीं ना कहीं यह दर्शाता है कि हमारे समाज में और हमारे जीवन में हम सभी कहां पहुंच गये हैं ,क्यूंकि हमारा समाज ही है जहां आये दिन भूख से रोते बिलखते हुये बच्चे, बुजुर्ग और ना जाने कितने लोग मिल जाते हैं, आज भी हमारे देश में ना जाने कितने लोग ऐसे हैं, जिनको दोनो समय का भोजन नशीब नही होता , उसी भारत देश में हर दिन अनगिनत मात्रा में बेनामी रुपये बरामद हो रहे हैं और यह हम सभी के मुंह पर एक तगङा तमाचा है और कुछ नही ।
हमारे यहां हर चुनाव में हमारे राजनेता यही वादा करते हैं कि हर एक शख्स को भर पेट भोजन मिलेगा, लेकिन चुनाव के बाद सारे वादे धरे के धरे रह जाते हैं और बेनामी संपत्ति और रुपये खुले आम बरामद होने लगते हैं , अगर इन्ही रुपयों का इस्तेमाल सही दिशा में हो जाये तो हमारा देश ना जाने कहां से कहां पहुंच जाये । अगर गंभीरता से विचार किया जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि चुनावी मौसम में बरामद हो रहे पैसों का इस्तेमाल निश्चित रुप से चुनाव में ही किया जाता है ।
आज कल होने वाली चुनावी रैलियों में जिस तरह से भीङ उमङ कर आती है, ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि यह भीङ क्या वाकई अपने प्रिय नेताओं के विचार को सुनने जाती है या उनको लाया जाता है….और यह कहने में कोई बुराई नही कि आज के चुनावी समय में जब भी कोई चुनावी रैली किसी भी क्षेत्र में होती है, उस वक्त उस क्षेत्र से संबंधित हर एक नेताओं को अपने अपने क्षेत्र से ज्यादा से ज्यादा मात्रा में भीङ को जुटाने की जिम्मेदारी दी जाती है और यह हम सभी बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि बिना किसी प्रलोभन के भीङ कभी भी, कहीं भी इकठठा नही होती और बेनामी रुपयों के मिलने का संबंध कहीं ना कहीं विभिन्न रैलीयों में जुटने वाली भारी भीड़ से अवश्य होता है। चुनाव की सुचिता की बात की जाये तो यह गलत है, क्यूंकि चुनाव की पूरी प्रक्रिया में कोई भी राजनीतिक दल या कोई भी राजनेता, किसी भी तरह के प्रलोभन या किसी भी तरह के दबाव का इस्तेमाल नही कर सकता ।
आजकल सोशल मीडिया, चुनावी प्रचार का सबसे बङा माध्यम बन गया है , आज कल सोशल मीडिया पर विभिन्न राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार से संबंधित विभागों द्वारा चुनावी प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी गई है और आज कल सोशल मीडिया पर हो रहे चुनावी प्रचार के संदर्भ में बात करें तो आये दिन बेहद आपत्तिजनक बातें सामने आ रही हैं , कई बार तो एक पार्टी के चुनाव प्रचार में विरोधी पक्ष के लोग दूसरे पार्टी के नेताओं के चरित्र हनन तक का प्रयास करते दिख जाते हैं और इस तरह से सामाजिक प्लेटफार्म पर खुले आम की जा रही बातोें का बहुत बुरा प्रभाव हमारी जीवन शैली पर और समाज के हर एक वर्ग के लोगों पर पङता है ।
सोशल मीडिया पर प्रचार के बहाने जिस तरह से कई सारी बातों को तोङ मरोङ कर पेश किया जा रहा है क्या वह सही है??? क्यूंकि जो भी बातें सोसल मीडिया पर वाइरल होती हैं, उनमें सच्चाई बहुत कम होती है, लेकिन हमारे मतदाताओं, खास कर हमारे युवा जो पहली बार अपने वोट का प्रयोग करेगें उनके मन में इस तरह के प्रचार का बहुत ही विपरीत प्रभाव पङता है, क्यूंकि हमारे युवा ही ज्यादातर सोशल मीडिया से जुङे होते हैं, इसी का फायदा राजनीतिक दलों के लोग और उनके प्रचाार विभाग से जुङे लोग उठाते हैं, इस बात में कोई संदेह नही कि चुनाव आयोग को इस विषय पर गंभीरता से अपना घ्यान आकृष्ट करना पङेगा और राजनीति की आङ में समाज में दुर्भावना फैलाने वाले पोस्ट को सोशल मीडिया से हटाने की पहल भी करनी पङेगी, क्यूंकि आपस में फूट डालकर अपने आप को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने के लिये इस तरह की हरकत कुछ गैर सामाजिक तत्वों द्वारा की जा रही है, झूठ बोल कर और सामाजिक व्यवस्था को मजाक बना कर वोट लेना भी एक तरह का अपराघ ही है ।
इसी तरह से आज कल टेलीविजन पर भी प्रायोजित विज्ञापनों की बाढ सी आ गई है, हालांकि इस तरह के प्रचार में होने वाले खर्चांे पर चुनाव आयोग की नजर होती है, लेकिन इस तरह के विज्ञापनों में दिखाये जाने वाले प्रचार सामग्री मे सच्चाई कितनी होती है, यह चर्चा का विषय है, क्यूंकि इस तरह के विज्ञापन से हमारे युवा और नये मतदाता प्रभावित होते हैं और इस तरह से वोट को प्रभावित करना बहुत ही गलत परंपरा है और रही सही कसर प्रायोजित विज्ञापनों में विभिन्न राजनेताओं द्वारा किये गये वादे पूरी कर देते हैं, क्यूंकि लोक लुभावन वादों को देखकर हमारे मतदाता प्रभावित होते हैं और चुनाव बाद जब सच्चाई सामने बाती है तब वह खुद को ठगा महसूस करते हैं ।
चुनाव के दौरान होने वाली विभिन्न प्रक्रियाओं में जो बात सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वह है, हर एक चुनाव में बड़ी मा़त्रा में चुनाव आयोग द्वारा विभिन्न राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर चुनावी अधिसूचना के उल्लंघन का मामला दर्ज कराया जाता है, लेकिन उनमें से ऐसे कितने मामले में किसी भी आरोपी को सजा हुई है यह विचारणीय विषय है, क्यूंकि कानून कितना भी सख्त क्यू ंना हो अगर आरोपी को सजा नही होती है, तो ऐसी परिस्थिति में आरोपी का मनोबल और बढता है ।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि, विभिन्न माध्यमों से मतदाताओं को प्रभावित करने के उद्देश्य से आज कल हमारी विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा जो भी हथकंडे अपनाये जाये रहे हैं, चुनाव आयोग को ऐसी हर एक हथकंडे पर बहुत ही बारीकी से अपनी नजर बनाये रखनी होगी और कड़ी कार्यवाई करनी पड़ेगी ताकि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव का त्योहार बिना किसी भेदभाव के सम्पन्न हो सके ।