रोहित को कैसे भूल पाए
” वह” तो एक सिलसिला है, जैसे
” ये पतियों की है सरसराहट
कि तुम ने चुपके से कुछ कहा है
ये सोचता हू , मैं कब से गुमसुम
कि जब के, मुझ को भी खबर है
कि तुम नहीं हो, कहीं नहीं हो
मगर ये दिल है के कह रहा है
तुम यहीं हो, यहीं कहीं हो ” ।
जैसे;
तुम फूल नहीं धरती हो
तुम टीले नहीं पर्वत हो
तुम बांध नहीं नदीया हो
तुम पवन नहीं आंधी हो
तुम सितारा नहीं कण हो
तुम चाँद नहीं दातरी हो
तुम रात नहीं दिन हो
तुम गोला नहीं सुर्य हो
वह ” सुर्य जो उदय होता है अस्त ” नहीं ।
रोहित तुम तो एक प्रतीक हो
संघर्ष के;
संघर्ष : जो पहिले भी था
संघर्ष : जो आज भी है
संघर्ष : जो कल भी होगा – – – ।
___ भीम प्रकाश जस्सल