मलावाबर मुशहर बस्ती की माई राम रति देवी का अंतिम संस्कार सम्मानपूर्वक संपन्न
– समाज वीकली प्रतिनिधि द्वारा
उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के मलवाबर गाँव में मुशहर अस्मिता का प्रतीक श्रीमती राम रती देवी जिन्हें गाँव के सभी लोग माई के नाम से पुकारते थे का अंतिम संस्कार ७ दिसंबर २०२० को खनुआ नदी के तट पर मुशहर समाज की परम्पराओं के अनुसार कर दिया गया. उनके बेटे श्री राम चन्द्र ने माई की चिता को अग्नि दी और गाव वासियों और प्रेरणा केंद्र में उनके सहयोगियों ने माई अमर रहे के नारों के बीच उन्हें अंतिम विदाई दी.
माई की उम्र लगभग ८० वर्ष की रही होगी और वह गाँव के सबसे बुजुर्ग महिला थी और करीब १५ वर्षो से सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन द्वारा संचालित प्रेरणा केंद्र के साथ जुडी रही. गाँव में मुशाहार बच्चो को स्कूली शिक्षा की और आकर्षित करने के लिए वह गाँव में हर एक परिवार से कहती और अनुरोध करती के बच्चो को पढाओ. संगठन में आने के बाद से ही माई में बहुत बदलाव आये. वह हमारी बातो को गंभीरता से सुनती और उन पर मनन करती. सबसे महत्वपूर्ण बात मैंने यह देखी के माई अपनी बेटियों को बहुत मदद करती थी. समय समय पर उनके गाँव जाना, उन्हें अपने खेत से और अपने उगाये बांस को काट काट वह हर वर्ष अपनी बेटी को भेजती .
मुशहर समाज में स्वाभिमान और बदलाव लाने के लिए प्रेरणा केंद्र की बड़ी भूमिका रही है. केंद्र की स्थापना के बाद से ही मुशाहार समाज में शिक्षा, भूमि, महिला अधिकारों के लिए लगातार जागरुकता फैलाई गयी और जिले के प्रमुख अधिकारियों से संपर्क कर उन्हें केंद्र में बुलवाकर जन सुनवाइया आदि भी करवाई गयी. जिसका नतीजा यह निकला के विगत ७-८ वर्षो में मुशहरो के सोच में बदलाव आया है और मल्वाबर गाँव एक मॉडल के तौर पर तैयार हुआ है. जिस गाँव में आज से १५ वर्ष पूर्व कोई पक्का घर नहीं था आज वहा सभी लोगो के अपने मकान है. अब मुशाहर बच्चे विद्यालयों में जाते है और बहुत लोगो को वजीफा भी मिलता है. आज वे खेती और पशुपालन भी कर रहे है लेकिन आज भी मुशहर समाज को सम्मान नहीं मिल पाता और उनका शोषण होता रहता है. प्रेरणा केंद्र ने समाज में हमेशा से सकारात्मक बदलाव को आगे बढ़ाया है और महिलाओं विशेषकर जो दलित उत्पीडित समाज से आती है, उन्हें नेतृत्व में अवसर प्रदान किया है. प्रेरणा केंद्र की स्थानीय संयोजक सुश्री संगीता कुशवाहा बताती है : माई प्रेरणा केंद्र के साथ शुरुआती दौर से ही जुडी और अंत तक केंद्र के साथ जुड़े रहे होने से उन्हें बहुत गर्व की अनुभूति होती थी. प्रेरणा केंद्र के संस्थापक विद्या भूषण रावत उन्हें अपनी माँ की तरह मानते थे और माई भी उन्हें बहुत सम्मान देती थी. यही कारण है के २ दिसंबर को ट्रेन छूटने के बाद श्री रावत गाँव वापस लौट गए और माई को जिला अस्पताल में दाखिल करवाने के लिए कहा. हम रोज सुबह शाम माई के स्वास्थ्य की जानकारी लेते रहे.
संगीता कुशवाहा बताती है के : ७ दिसंबर को हमारे सर विद्या भूषण रावत को गोरखपुर से दिल्ली के ट्रेन पकडनी थी. पहले ट्रेन २ दिसंबर को मिस हो गयी थी. करीब चार घंटे लगते है. माई की मौत लगभग १० बजे के करीब हुई. हम लोग गोरखपुर जाने की तैय्यारी कर रहे थे, जैसे ही माई की खबर आई हम तुरंत गाँव पहुंचे और व्यवस्था करवाने लगे. हम सब जानते है के माई के बेटे की आर्थिक हालात अच्छे नहीं थे और इसलिए संघठन ने और रावत जी ने व्यक्तिगत रूप से जो भी मदद संभव थी की. माई के घर से लौटते हुए रावत सर ने कहा के हमें उनका अंतिम संस्कार अच्छे से और पूर्ण सम्मान के साथ करना है. ये बात भी हकीकत के है गाँव के लोगो ने इस कार्य के लिए रावत जी की बहुत सराहना की के उन्होंने माई को सही सम्मान के साथ विदाई दी.
माई के बेटे राम चन्द्र ने कहा के संगीता दीदी और रावत जी ने माई को जो सम्मान दिया उसके लिए वह उनके जन्म जन्म आभारी रहेंगे. उन्होंने कहा मुशाहार बस्ती में दूसरे समाज का कोई भी व्यक्ति हमारे सुख दुःख में शामिल नहीं होता और जो थोड़ा आते भी हैं तो दूर से नमस्कार करके अपनी राजनीति करके चले जाते है. रावत जी और संगीता दीदी ने माई को कंधा देकर हम सब के दुःख में शामिल हो कर हमारा मान बढ़ाया.
गाँव के की सुकट मुशहर और मुनीरका जी ने भी ससम्मान माई की विदाई के लिए प्रेरणा केंद्र और उसके साथियो का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा इसने सिद्ध किया के ये केंद्र हमारे सुख दुःख में हमेशा साथ है और मुशहर समाज का सही मायनों में सम्मान करता है. वे कहते है के रावत जी अपने व्यस्तातातो के बावजूद पूरे समय हमारे साथ रहे और वह माई को अंतिम यात्रा में कंधा दे पाए और अंतिम संस्कार में शामिल हो सके, ये हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है. हम ये बात इसलिए कह रहे है क्योंकि इतने वर्षो से इस गाँव में रहते हुए इतनी मौते हुई है लेकिन हमारे पड़ोस के दूसरी बिरादरी के कोई भी लोग हमारे दुःख में हमारे साथ खड़े नहीं हुए.
प्रेरणा केंद्र के संस्थापक विद्या भूषण रावत ने बातचीत में बताया के माई के अंतिम संस्कार से हम ये सन्देश देना चाहते थे के मुशाहार समाज के बुजुर्गो का हम पूरा सम्मान करते है और जिन लोगो ने भी संघठन से जुड़कर काम किया उनहे हम पूरे सम्मान के साथ विदाई देंगे. हमें अच्छा लगा के माई को अंतिम समय में देख पाए और उन्हें कंधा दे पाए. मुझे ये भी ख़ुशी है के हमारे संगठन की जुझारू और कर्मशील साथी संगीता कुशवाहा और उनकी बेटियों रिया ने भी माई को कंधा दिया और सिमरन ने अंतिम कार्य में सहयोग किया. एस डी ऍफ़ की एक संस्येथापक श्रीमती नमिता रावत ने भी माई को श्रधांजलि दी.
जब लोगो ने दो महिलाओं को माई को कंधा देते देखा तो ये उनके लिए सुखद आश्चर्य था लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार किया क्योंकि माई का इनके साथ दिन रात का रिश्ता था. इसलिए आवश्यक है क्योंकि महिलाए भी ये कर सकती है और उन्हें इन सभी कार्यो में शामिल किया जाना चाहिए . एक और युवा साथी हरीकेश कुशवाहा ने भी शुरुआत से ही संगीता जी के साथ मिलकर माई के अंतिम दिनों में परिवार की बहुत मदद की विशेषकर उन्हें अस्पताल पहुचाने और उनके लिए दवाईयों की व्यवस्था करवाने. इसलिए अंतिम यात्रा में जब ये सभी लोग जुड़े तो जाति और लिंग भेद भी ख़त्म हो गए और ये सन्देश पूरे समाज में चला गया के मुशहर लोगो के सुख दुःख में हम सभी शामिल है. अमूमन गाँव में मुशहर या अन्य दलित पिछड़ी बिरादरियो में किसी की मौत पर दूसरी बिअरादारी के लोगो दूर दूर तक नहीं दिखाई देते इसलिए अब जरुरी है के इस दीवार को तोड़ा जाए.
माई के अंतिम यात्रा को उनके घर से शुरू कर उनके खेत से होते हुए प्रेरणा केंद्र में कुछ देर के लिए रोका गया ताके सभी साथी उनको अंतिम नमन कर सके. सभी लोगो ने उन्हें माल्यापर्ण और पुष्पांजलि के साथ में श्रन्धांजलि दी.
अंतिम संस्कार बेहद सादगी पूर्ण तरीके से हुआ. उस्म्मे कोई ब्राह्मण नहीं था और न ही कोई परम्परावादी ताम झाम. न तेल, न घी, ना केरोसिन और न ही कोई पिंड दान . माई पे बेटे राम चन्द्र ने चिता को अग्नि दी और हम सब लोगो ने माई अमर रहे के नारे लगाए और उनकी चिता के चारो और चक्कर लगाया. करीब एक घंटे में सब कुछ संपन्न हो गया.
कई बार ऐसे कार्य शहरी या संभ्रांत दिखने वाले लोगो को अंध विश्वास सा लग सकता है लेकिन हमारा उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा को स्थापित करना है मुशहर समाज ने बहुत तिरिस्कार झेला है और कम से कम वो लोगो जो उस समाज के बीच बैठते है या उनके हितैषी होने का दावा करते है वे तो उन्हें सम्मान दे और उनके सुख दुःख में साथ खड़े हो . बाबा साहेब कहते थे गाँव जाति, अंधविश्वास की कूपमंदूकता में फंसे हुए है और मनुवाद की संकीर्ण गलियों से बाहर नहीं निकल पा रहे है इसलिए वहा बदलाव आना बेहद जरुरी है ताके वर्णव्यवस्था से उत्पीडित समाज को न्याय और सम्मान दिलाया जा सके. हासिये के समाजो के भी हासिये में है मुशहर समाज और इसलिए माई के सम्मान के लिए प्रेरणा केंद्र की इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए.