कैसे लिखूं,
मां पर,
निःशब्द हो जाता हूं मैं,
ज्ञान शून्य हो जाता हूं मैं ।
कैसे लिखूं,
मां पर,
कोई शब्द ही नही,
जो मां को परिभाषित कर सके ।
कैसे लिखूं,
मां पर,
मां के त्याग को,
कैसे कोई परिभाषित कर सकता है ।
कैसे लिखूं,
मां पर,
मां के दर्द को,
कैसे कोई परिभाषित कर सकता है ।
मां वो कल्पवृक्ष है,
जिसकी छांव में ही ये जीवन गुलजार है,
नही तो ये जीवन,
बेजान है ।
विभूति मणि त्रिपाठी(विभूति गोण्डवी)