बिजली का निजीकरण-किसानों के लिए अभिशाप, पहुँच से बाहर होगी बिजली- आई.आर.ई.एफ

कैपशन-आर.सी.एफ. इम्पलाईज यूनियन के महासचिव का. सर्वजीत सिंह एंव आई.आर.ई.एफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष, का. मनोज कुमार पाण्डेय 
बिजली के निजीकरण बिल के विरोध में आज मनाये जाने वाले काला दिवस का आई.आर.ई.एफ पुरजोर करेगी
हुसैनपुर , 31 मई (समाज वीकली – कौड़ा)-1971 के बाद ग्रामीण विद्युतीकरण ने भारत के किसानों की तकदीर बदल दी। पहले भारत को खाद्यान्न के मामले में अमेरिका के आगे हाँथ पसारने को मजबूर होना पड़ता था। ग्रामीण विद्युतीकरण के जरिये बिजली बोर्डों ने गांव-गांव में घर-घर तक बिजली पहुंचाई जिसके परिणामस्वरूप अब किसानों को सिंचाई के लिए आसमान की ओर नहीं निहारना पड़ता। गांव-गांव तक बिजली पहुँचने से हम खाद्यान के मामले में न केवल आत्मनिर्भर हो गए अपितु खाद्यान निर्यात भी कर रहे हैं। आज जब सारी दुनिया कोविड-19 महामारी के संक्रमण से कराह रही है तब भारत के गोदामों में 50 मिलियन टन चावल और 27 मिलियन टन गेहूं भरा हुआ है। हमारे गोदाम लबालब भरे हैं और पूरे देश को खाना खिलाने में सक्षम हैं तो इसमें बिजली की बड़ी भूमिका है। केंद्र की सरकार इस संकट के दौर में भी जहाँ एक ओर बड़े कारपोरेट घरानों को मोटे कर्ज दे रही है वहीँ किसानों को उनके उत्पाद की लागत भी नहीं मिल पा रही है। बड़े कारपोरेट घरानों को दिए गए कर्ज एनपीए के नाम पर माफ किये जा रहे हैं जबकि किसानों से पूरी वसूली की जाती है। बात बिजली की हो रही है तो बताते चले कि कारपोरेट के निजी क्षेत्र के बिजली घरों को बैंको द्वारा दिया गया छह लाख करोड़ रु डूब गया है जिसकी भरपाई के लिए आम उपभोक्ता की बिजली दरें बढाई जाती रही और लगातार बढ़ रही हैं। केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट ) बिल 2020 का मसौदा इस महामारी के बीच 17 अप्रैल को जारी किया है और केंद्र सरकार इसे संसद के मानसून सत्र में पारित कराने पर तुली हुई है। यह बिल पारित हो जाने के बाद बिजली का नया क़ानून आ जायेगा जिसमे किसी भी उपभोक्ता यहां तक कि किसानों को भी बिजली न मुफ्त मिलेगी और न ही सस्ती मिलेगी। नए क़ानून के अनुसार बिजली दरों में मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी और किसानों सहित सभी घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी।
इस मामले में प्रैस ब्यान जारी करते हुए इंडियन रेलवे इम्पलाईज फैडरेशन व आर.सी.एफ. इम्पलाईज यूनियन के महासचिव का. सर्वजीत सिंह एंव आई.आर.ई. एफ. के राष्ट्रीय अध्यक्ष, का. मनोज कुमार पाण्डेय ने कहा कि इस बिजली अमेंडमेंट को ऐसे समझिये कि अभी किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है अथवा प्रति हार्स पावर के हिसाब से बहुत कम दरों पर बिजली मिलती है। देश में बिजली की औसत लागत रु 06.73 प्रति यूनिट है। बिजली के निजीकरण के बाद निजी कंपनी को एक्ट के अनुसार कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा लेने का अधिकार होगा, कंपनी चाहे तो और अधिक मुनाफा भी ले सकती है। बिजली की औसत लागत रु 06.73 प्रति यूनिट पर कम से कम 16 प्रतिशत मुनाफा जोड़ दें तो सब्सिडी समाप्त होने के बाद किसानों को 08 रु प्रति यूनिट से कम कीमत पर बिजली नहीं मिलेगी। एक किसान यदि साल भर में 8500 से 9000 यूनिट बिजली खर्च करता है तो उसे 72000 रु साल भर का बिजली बिल देना पडेगा जो 6000 रु प्रति माह आता है।  बिजली की दरों में सब्सिडी समाप्त होने के बाद किसानों को बिजली का पूरा बिल देना होगा।
नेताओं ने कहा कि ठीक इसी तरह कोरोना की आड़ में मोदी सरकार देश की सार्वजनिक क्षेत्र जैसे रेल, ऑर्डिनेंस कारखाने, इंडियन एयर लाइन, तेल क्षेत्र सहित सभी का निगमीकरण/निजीकरण कर कारपोरेट बागड़बिल्लो के हवाले करने पर आमादा है। नेताओं ने बिजली क्षेत्र पर बात करते हुए कहा कि देश में सबसे पहले मुम्बई में बिजली का निजीकरण हुआ था। मुम्बई में आज भी बिजली आपूर्ति निजी कंपनी अदानी और टाटा के पास है। मुम्बई में आम उपभोक्ता के लिए घरेलू बिजली की दरें 10 से 12 रु प्रति यूनिट है। निजीकरण के बाद इन्ही या इन जैसी निजी कम्पनियाँ को और शहरों और गांवों की बिजली आपूर्ति मिल जाएगी। सरकारी कम्पनियाँ जहाँ जनकल्याण के लिए काम कर रही हैं वहीं निजी कम्पनियाँ मुनाफे के लिए काम करती हैं। अत: यह प्रचार भ्रामक है कि निजीकरण से बिजली सस्ती होगी। मुम्बई इसका ज्वलंत उदाहरण है। बिजली का निजीकरण देश के लिए तो घातक है ही इससे सबसे बड़ी चोट किसानों पर पडऩे वाली है। निजीकरण से बिजली की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि होगी और बिजली किसान की पहुँच से दूर होती जाएगी। इसलिए आमजन के अधिकारों के लिए लडऩे वाले संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि मोदी सरकार की इन देश व जन विरोधी नीतियों का एकजुटता के साथ टाकरा करते हुए अपने आधार और स्वाभिमान की इस लड़ाई में सहभागी बनते हुए देश के 15 लाख बिजली कर्मचारियों के राष्ट्रव्यापी संघर्ष 1 जून के देश विआपी काले दिवस का डटकर समर्थन करें। 01 जून काला दिवस को देश के 15 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर निजीकरण के बिल के विरोध में पूरे दिन काली पट्टी बांधेंगे और विरोध सभा करेंगे। इंडियन रेलवे इम्पलाईज फैडरेशन किसान भाइयों और आम उपभोक्ताओं से इस विरोध में सम्मिलित होकर सहभागिता करने की विनम्र अपील करती है। ओर अगर भविष्य में बिजली कर्मचारियों के साथ मिलकर संघर्ष करना पड़ा तो उसके लिए भी पीछे नहीं हटेंगे।
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