अम्बेद्कर जयंती पर सभी को जय भीम. आज के दिन भी चुनाव आचार संहिता के नाम पर कार्यक्रमों को रोकने की कोशिश हो रही है. फुले जयंती पर भी ऐसा ही हुआ. ये जानबूझकर किया जा रहा है. बस एक ही बात के आंबेडकरवादियों के समक्ष ज्यादा बड़ी चुनौतिया है. भारत के समाज का जबी तक लोकतंत्रीकरण नहीं होगा, राजनैतिक लोकतंत्र हमेशा खतरे में रहेगा और लोकतंत्र के नाम पर पुरोहितवादी पूंजीवादी ताकते ही हावी रहेंगी.
अब समय आ गया है के बहुजन समाज के आन्दोलन की धुर्री अम्बेडकरवादी विचार बने क्योंकि वही आज की राजनीती को सही दिशा दे सकता है. लेकिन यदि आंबेडकरवादी बौधिक लोग जनता के बीच नहीं गए और आज की चुनोतियो को बाबा साहेब के विचारो के अनुसार लोगो को नहीं बता पाए तो वो समाज से धोखा होगा. अम्बेडकरवादी बुद्धिजीवियों को आज राजनैतिक दलों को आइना दिखाने की जरुरत है क्योंकि जब भी हमारे नेता गलती करे या गलती पर हों तो बुद्धिजीवी तबका ही होता है जो बेलाग बात रखेगा. राजनीती में तो जुगाड़ बहुत होते है. आज तो राजनीती जाति बिरादरी का चेस-बोर्ड हो गया है जिसमे जीत धन और बाहुबल की होती है. सभी जातियों के धनपति और बाहुबली चुनावो को मनिपुलेट करते है.
दिल्ली का मीडिया नए स्टार बनाता है. उसे वो लोग कभी नहीं दिखाई देते जो अपना जीवन समाज के लिए खपा देते है. अब मीडिया नेता भी पैदा करना चाहता है क्योंकि वो चाहता है अम्बेडकरवादी भी कोई आये तो उनकी ‘पसंद’ का हो. ये ब्रांडिंग का जमाना है. जो पुराने मूर्ति पूजा का ही नया स्वरूप है जिसे बाबा साहेब ने बहुत पहले कहा था के वो आध्यात्म में कुछ हद तक ठीक हो भी सकता है लेकिन राजनीती में तो केवल विध्वंशकारी ही होगा.
बाबा साहेब के मिशन को भारत की आज़ादी का आन्दोलन बनाना पड़ेगा. वो आज़ादी न केवल गरीबी, भुखमरी और अन्धविश्वास से होगी अपितु धर्मग्रंथो को चुनौती देने वाली भी होगी, वो आज़ादी, घृणा फ़ैलाने वालो से भी होगी. वो आज़ादी हमारे सभी महत्वपूर्ण संस्थानों में भारत की विविधता और सभी तबको की भागीदारी से संभव होगी. वो आज़ादी हमारे शिक्षण संस्थानों को संघी मानसिकता से दिलाने की भी होगी. वो आज़ादी हमारे संविधान की सर्वोच्चता को बरकरार करने की भी होगी.
बहुजन आन्दोलन का केंद्र बिंदु बाबा साहेब आंबेडकर के विचार ही होने चाहिए. बदलाव उन्ही से आना है. फुले, आंबेडकर पेरियार के धुर्री हमारे आन्दोलन को मज़बूत कर सकती है. उसके साथ ही जो भी चिन्तक समाज बदलाव की बात करते है उनको भी पढना होगा.
अम्बेडकरी बौद्धिकता को राजनीती को दिशा निर्देशित करना होगा. अभी तक राजनीती ने बौद्धिकता से दूरी बनाई है और वो केवल इस कारण से के बुद्धिजीवी व्यक्ति वोट नहीं ला सकते . हाँ अगर बुद्धिजीवी इमानदार है तो उनको उनके घर वाले भी वोट नहीं करेंगे क्योंकि उनको सच कहने की हिम्मत होती है. क्योंकि वे हमेशा मीठी मीठी बाते नहीं करेंगे और गलत को गलत करने की हिम्मत रखते है.
बाबा साहेब आंबेडकर के पास वो ताकत थी जब उन्होंने देश के ब्राह्मणवादी तंत्र से सीधे आँख में आँख डालकर बात की और उन्हें आईना दिखाया. ऐसी हिम्मत के यहाँ के मनुवादियों को भी अहसास हो गया के उनकी विद्वता के आगे बड़े बड़े भी बौने दिखने लगे. ये ताकत केवल उनकी विद्वता से ही नहीं आयी अपितु जनता के साथ लगातार जुड़ने से आई. कोई भी व्यक्ति उन्हें कभी भी मिल सकता है. बाबा साहेब का ज्ञान बहुजन हिताय के लिए था इसलिए उसमे सबकी आज़ादी छिपी है.
आज देश बेहद खतरनाक दौर से गुजर रहा है. देश में धर्म का तांडव करवाया जा रहा है. देश के नागरिको में धर्म के आधार पर विभाजित क्या जा रहे है. उसको समझने की आवश्यकता है. मनुवादियों ने देश के सभी लोकतान्त्रिक संस्थानों को पूंजी और धर्म के गठजोड़ के साथ भ्रष्ट बना दिया है. धर्म का प्रयोग जातीय अस्मिताओ को ख़त्म करने के लिए किया जा अहा है. बाबाओं की फौज, वर्णवादी त्योहारों का ‘राष्ट्रीयकरण’ कर बनिया मीडिया ब्राह्मणवादी विचार फैला रहा है जो केवल और केवल हमारी जनता को दुसरे समाज से घृणा करना सिखा रहा है. प्रयास ये है के लोग अपने जातीय उत्पीडन की कहानिया भूल जाए और मनुवादियों से सवाल न करें. उनके रह में सबसे बड़ा रोड़ा अम्बेडकरवादी विचार है इसलिए वो बाबा साहेब को अपने में समाहित करना चाहते है और उन्हें हिंदुत्व का समाज सुधारक बताना चाहते है. इन प्रदूषित विचारों से बचे. बाबा साहेब को ईमानदारी से पढने में यही मिलेगा के उन्हें वर्णवादी व्यवस्था की चूले हिला दी.
बाबा साहेब आंबेडकर भारत में सामाजिक क्रांति के सबसे बड़े नायक है.
आज की लड़ाई मनुवादी व्यवस्था जिसमे कुछ लोग जन्म के आधार पर ऊंचे और नीचे है, और बाबा साहेब आंबेडकर के मानववादी विचारों की है, जिसमे सबके अधिकार सामान होगे.
आपको तय करना है के आप किस तरफ है.
विद्या भूषण रावत