गांधीनगर। गुजरात केंद्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर में बिरसा आम्बेडकर
फुले छात्र संगठन (BAPSA-CUG) के द्वारा विश्वविद्यालय में
“सामाजिक न्याय सप्ताह” का आयोजन किया जा रहा है. जिसमें आज
मंगलवार 9 अप्रैल को कार्यक्रम में बहुजन नायक मान्यवर कांशीराम
साहेब पर बनी फिल्म “द ग्रेट लीडर कांशीराम” का प्रदर्शन किया गया.
ज्ञात हो यह फिल्म अर्जुन सिंह द्वारा निर्देशित हैं जिसमें मान्यवर
कांशीराम साहेब के जीवन और बहुजन समाज के प्रति उनके संघर्ष को
काफी प्रभावशाली तरीके से दिखाया है. कार्यक्रम में बतौर वक्ता के रूप में
आकाश नवाब ने भारतीय फ़िल्म में बहुजन समाज की दशा और दिशा पर
बात की. उन्होंने भारतीय फ़िल्म में बहुजन समाज के मुद्दें और उनके चित्र
रूपण के बारे में भी चर्चा की कि कैसे भारतीय फ़िल्म उद्योग में दलित,
आदिवासी और पिछड़ों को नजरअंदाज कर दिया जाता है. आगे उन्होंने
कहा कि सिनेमा के समाजशास्त्र को समझें बिना उसमें बहुजन प्रतिनिधित्व
की बात नहीं हो सकती है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री में कुलीन वर्ग एंव
जातियों का वर्चस्व है और सिनेमा के सारे नैरेटिव उनके द्वारा ही गढ़े जाते
हैं। इस कारण से हिंदी सिनेमा में बहुजन प्रतिनिधित्व नगण्य है। अगर
इक्का-दुक्का बहुजन मुद्दें फिल्म में आते भी हैं तो उसे उच्च जातियों के
निर्माता-निर्देशक ही उठाते हैं। बहुजन आंदोलन को सिनेमा के महत्व एंव
शक्ति को समझते हुए इस क्षेत्र में भी बहुजन विमर्श खड़ा करने की जरूरत
है। आज के पूंजीवादी दौर में सिनेमा की पहुंच एंव अपील को नजरंदाज
नहीं किया जा सकता पर इस क्षेत्र में बहुजन चिंतकों की उदासीनता एक
बड़ा प्रश्न है। कार्यक्रम में काफी संख्या में लोग उपस्थित थे जिसमें छात्रों
और श्रोताओं ने मान्यवर कांशीराम साहब के जीवन संघर्ष और भारतीय
फ़िल्म जगत में उपेक्षित वर्गों के प्रति दोहरी नीति और मापदंडों पर
सवाल-जवाब, चर्चा-परिचर्चा भी की गई.