उसके दर्द का एहसास क्यूं नही हुआ किसी को,
उसकी चीखें क्यूं नही सुनाई दी किसी को,
बस हर कोई मस्त है अपनी अपनी जिंदगी में,
और लूट जाता है, सब कुछ हमारी बच्चियों का।
बस तङपती रहती है वो, रोती रहती है वो,
फिर भी उस पर रहम आता नही किसी को,
उसको तो नाम भी अपना ठीक से मालूम न था,
फिर भी उसकी आत्मा को नोच डाला सभी ने।
सहम जाती है वो, अपने दर्द को छिपाकर ,
सिसकती रहती है वो, अपने दर्द को छिपाकर,
बस एक टक आसमाँ को देखती रहती है वो,
और खुदा से सिर्फ अपने होने की वजह पूछती है ।
विभूति मणि त्रिपाठी ( विभूति गोण्डवी )