नागरिकता के नाम पर सरकार कर रही है विभाजनकारी राजनीति- रिहाई मंच

लखनऊ (समाज वीकली)- रिहाई मंच ने केंद्र सरकार द्वारा विदेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता देने के लिए आवेदन करने की शर्त के बतौर पड़ोसी देश के अल्पसंख्यक को पात्र बता कर मुस्लिम समुदाय को अलग करने की पैंतराबाज़ी की है. मंच ने कहा कि सरकार साम्प्रदायिक मानसिकता की तृप्ति के लिए ऐसा कर रही है नहीं तो बिना शर्त के सभी को नागरिककता दे सकती है. सरकार की यह संदेश देने की कोशिश है कि जो हमने कहा वो किया.

रिहाई मंच अध्यक्ष मुहम्मद शुऐब ने कहा कि केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून 2009 के अंतर्गत विदेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता देने के लिए आवेदन करने हेतु पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक होने की शर्त लगाई है, हालांकि इस कानून में ऐसी कोई शर्त मौजूद नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार द्वारा 2019 में पारित करवाए गए नागरिकता कानून (सीएए) में सिर्फ विदेशी पड़ोसी देश के प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने की शर्त लगाई थी जिसका व्यापक विरोध हुआ था. सरकार अब विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने के पहले से मौजूद कानून के तहत नागरिकता देने के लिए आवेदन मांगा है, लेकिन शर्त सीएए वाली लगाई है. यह सरकार की हठधर्मिता और अहंकार को दर्शाता है.

नागरिकता कानून 2009 के तहत पहले भी विदेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जाती रही है और स्वयं भाजपा सरकार भी इस कानून के अंतर्गत नागरिकता प्रदान कर चुकी है. इससे साबित होता है कि नागरिकता देने के लिए सीएए जैसे साम्प्रदायिक और विभाजनकारी कानून की कोई ज़रूरत नहीं थी बल्कि पहले से मौजूद कानून को और सरल बनाया जा सकता था.

रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बेकाबू होती मंहगाई, बेरोज़गारी के मुद्दे पर सरकार बुरी तरह नाकाम है. शिक्षा और स्वास्थ्य का क्षेत्र जर्जर स्थिति में है. कोराना महामारी की दूसरी लहर ने जो तबाही मचाई उसने सरकार द्वारा किए जा रहे निजीकरण के सुनहरे सपनों को तार-तार कर दिया. सरकारी सम्पत्तियों को कौड़ियों के दाम अपने पूंजीपति मित्रों को बेचने और कीमती सरकारी जमीने आवंटित किए जाने से जनता में रोष है. कृषि विधेयकों के माध्यम से पूंजीपति डकैतों को रोटी पर नियंत्रण देने के खिलाफ चल रहे किसान आंदोलन ने सरकार की नींद हराम कर रखी है.

सरकार को साम्प्रदायिकता की शरण में जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं सूझ रहा. इससे पहले भी इसी कानून के अंतर्गत विदेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता दी जा चुकी है और उसमें उन देशों के अल्पसंख्यकों के अलावा अन्य की संख्या नगण्य ही रही है. पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यक की शर्त पर नागरिकता देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा अचानक आवेदन मांगने के पीछे देश में खासकर उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक माहौल बनाने का प्रयास प्रतीत होता है.

द्वारा-
राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच
9452800752

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