दिल्ली की नई सीमा पुरी F ब्लॉक बस्ती मे किये गए राहत कार्य का विवरण एवं बस्ती मे कूड़ा बिनने वाले परिवारों की स्थिति का ब्यौरा

(समाज वीकली)- दिनांक 13 मई 2021 को राहत कार्य मे लगी दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम), दिल्ली समर्थक समूह (DSG) जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), मगध फाउंडेशन के साथियों के आर्थिक सहयोग से दिल्ली के नई सीमा पुरी बस्ती मे परिवारों मे जो कि covid- 19 की दूसरी लहर की माहमारि से अत्यंत बुरी तरह से प्रभावित हैं ऐसे पीड़ित परिवारों के लिए वितीय मदद की गई।

जैसा की आपको विदित है की वर्तमान दौर covid – 19 माहमारी की दूसरी लहर से गंभीर रूप से ग्रसित है। ऐसे माहमारी के दौर मे असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मज़दूर, प्रवासी मज़दूर एवं कूड़ा बीनने वाले परिवारों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी है। ये परिवार बहुत ही दयनीय स्थिति में रह रहे है। इस लॉकडॉन ने इनकी स्थिति बद हाल कर दी है। Lockdown के कारण इन परिवारों को काम नहीं मिल पा रहा है, रोज़ कमा कर खाने वाले इन लोगों को अपने परिवार के लिए रोज़ी- रोटी का इंतज़ाम करना विकट समस्या बन गई है। दशम टीम द्वारा मुहया की जाने वाली छोटी सी मदद् से ये परिवार अपने बच्चों के लिए दूध, दवा तथा महिलाओं के जरूरी सामान ख़रीद पाते हैं। इन बद हाल परिवारों का चयन संगठनो से जुड़े कार्य कर्ताओं तथा सामुदायिक कार्य कर्ताओं ने अपने सम्मिलित प्रयासों से किया।

  •  आप भली भाँति जानते हैं की लगभग एक माह से दिल्ली में सम्पूर्ण लॉक डाउन शुरू हो चुका है जो संभवत 27 मई तक लागू रहेगा।
  •  13 मई 2021 को टीम ने दिल्ली की नई सीमा पुरी बस्ती मे कूड़ा बीनने वाले 20 परिवारों मे राहत कार्य किया। इन परिवारों को वित्तीय सहायता देकर राहत कार्य किया गया।
  •  बस्ती मे कूड़ा बीनने वाले ऐसे गरीब परिवारों की संख्या तो अधिक है परन्तु टीम ने अपने सीमित संसाधनों के चलते 20 ऐसे परिवारों तक पहुँच कर इन परिवारों की मदद की।

दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) पिछले कुछ अरसे से कूड़ा बीनने वाले परिवारों के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा के लिए प्रयासरत है। बस्ती मे ही रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद युनुस के साथ मिलकर इन गरीब परिवारों के लिए राहत कार्य किया गया। ऐसे ही कुछ गरीब कूड़ा बीनने वाले परिवारों की महिलाओं और पुरुषों के साथ हुई बातचीत के अंश:

1. 30 वर्षीय रुखसाना – ने बताया की वह और उनके पति दोनों कूड़ा बीनने का काम करते हैं। लॉक डाउन के चलते उनका काम पूरी तरह से बंद हो गया है। इनके 5 बच्चे हैं। बच्चों की पढाई भी बंद हो गई है। खाने- पीने के साथ- साथ बच्चों की और खुद की दवाई लेने की भी दिक़्क़त हो रही है।

2. 40 वर्षीय आलिया – कहती हैं की वह और उनकी बेटी कूड़ा बीनने का काम करती हैं। इनका बेटा कोलकाता में रहता है। मै और मेरी बेटी ही यह काम कई वर्षों से कर रहे हैं। लेकिन लॉक डाउन के चलते इनका काम पूरी तरह से बंद हो गया है। बाहर नहीं जा सकते हैं, जाते हैं तो पुलिस डंडे मारती है। ऐसे मे हम क्या करें। काम नही होगा तो कैसे जियेंगे।

3. 38 वर्षीय कोहिनूर बीबी ने बताया की वह और उनके बच्चे फैक्टरी से कूड़ा उठा कर लाते थे और आस -पास के क्षेत्र से कूड़ा इकठ्ठा कर के लाते थे फिर उस कुड़े मे से जरूरत का माल निकालकर बेचते थे परन्तु कोरोना बीमारी ने हमारा काम धंधा चौपट कर दिया है उपर से त्यौहार का वक़्त है ऐसे में खाने – पीने की परेशानी तो है ही हम अपना त्यौहार भी अच्छी तरह से नही मना सकते।

4. 45 वर्षीय जहां आरा – ने बताया की वह और उनके बच्चे शाहदरा और सूर्य नगर (ग़ाज़ियाबाद) से कूड़ा बीन कर लाते हैं लेकिन कोरोना बीमारी ने सब कुछ बंद कर दिया है। जहां आरा ने कहा की जब पहला रोज़ा शुरू हुआ तो उन्हें कोरोना की शिकायत हुई थी और उनको किसी भी नर्सिंग होम या अस्पताल ने भर्ती नहीं किया फिर उनके बच्चों ने घर पर ही doctor से इलाज़ करवाया। इलाज़ के दौरान काफी दिक्कत्तों का सामना किया। पास मे पैसे नहीं थे, काम धंधा भी छूट गया था। कबाड़े का काम नहीं करेंगे तो खायेंगे कहाँ से। अब वो भी नहीं चल रहा है। कैसे जिंदा रहेंगे पता नहीं।

5. 25 वर्षीय (xxx ) का कहना है की वह 15 वर्षों से कबाड़ बीनने का काम कर रहा है। 200 – 250 रुपए कमा लेते थे लेकिन लॉक डाउन के चलते सब कुछ बंद है। काम करने के लिए जाते हैं तो पुलिस चालान काटती है।

इस गंभीर संकट के समय मे बस्ती में रह रहे गरीब परिवारों के लिए सरकार की तरफ से कोई भी सहायता नही पहुंची है। ये परिवार समाज सेवी संगठनों द्वारा दी जा रही राहत सामग्री से इस मुश्किल दौर मे किसी तरह गुजारा कर रहे हैं।

जहांगीर पुरी MCD कॉलोनी नई दिल्ली में राहत कार्य का विवरण एवं
सीवर सफाई कर्मचारियों के परिवारों की बदतर स्थिति का ब्यौरा:

दिनांक 14 मई 2021 को राहत कार्य में लगी संयुक्त टीम – दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम), जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM), दिल्ली समर्थक समूह (DSG), मगध फाउंडेशन ने दिल्ली के जहांगीर पुरी स्थित MCD कॉलोनी में सीवर सफाई कर्मचारियों एवम घरेलु सफाई कामगार महिलाओं के कुछ परिवारों को वित्तीय सहायता किया|

§ जैसा की आप सभी जानते हैं की दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (दशम) इन संगठनो के आर्थिक सहयोग से भारतीय समाज मे हाशिये पर रह रहे कमज़ोर तबके दलित समुदाय के सीवर सफाई कर्मचारी, ठेकेदारी के अंतर्गत काम करने वाले सफाई मज़दूर, कचरा बीनने वाले, घुमंतू जाति,तथा दिहाडी मजदूरों के परिवारों मे राहत सामग्री पहुँचाने मे प्रयासरत है।
§ कोरोना माहमारी की दूसरी लहर के चलते दिल्ली और आस- पास के क्षेत्रोँ मे लगे सम्पूर्ण लॉक डाउन की वजह से इन लोगों के परिवारों की स्थिति को बुरी तरह से झकझोर करके रख दिया है। ऐसे मे इन परिवारों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गयी है।इस लॉक डाउन के कारण इन परिवारों के लिए रोज़ी- रोटी कमाना मुश्किल हो गया है। लॉक डाउन के कारण लोगो को काम नहीं मिल पा रहा है। रोज़ कमा कर खाने वाले ये लोग दाने – दाने को मोहताज हो गए हैं। दशम द्वारा मुहैया कराई जाने वाली छोटी – सी मदद् के द्वारा ये परिवार अपने स्वम के लिए और अपने बच्चों के लिए दूध, दवाई तथा महिलाओं के लिए जरूरी सामान ख़रीद पाते हैं। इन बद हाल परिवारों का चयन संगठन से जुड़े कार्य कर्ताओं तथा सामुदायिक कार्य कर्ताओं ने अपने सम्मिलित प्रयासों से किया है।
§ जैसा कि आप सभी जानते हैं की कोरोना माहमारी की दूसरी लहर के चलते दिल्ली मे सम्पूर्ण लॉक डाउन लागू किया गया है और यह लॉक डाउन संभवत 27 मई तक लागू रहेगा।
§ 13 मई को दशम द्वारा राहत कार्यों की कड़ी में दिल्ली के जहांगीर पुरी स्थित MCD कॉलोनी मे वर्तमान लॉक डाउन की वजह से ग़ंभीर परिस्थिति से गुजर रहे ऐसे ही कुछ जरूरतमंद परिवारों मे राहत सहायता की गई।
§ इस बस्ती मे पुरुष मुख्यत साफ – सफाई के पेशे से जुड़े हैं और महिलाएं आस – पास के पॉश इलाक़ों में बने घरों मे साफ – सफाई, बर्तन- कपड़े धोने का काम करती हैं।

दशम टीम की इस बस्ती मे रहने वाले जरूरतमंद परिवारों के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश:

1. 63 वर्षीय श्री राम किशन वाल्मीकि समाज से हैं और दिल्ली जल बोर्ड मे सीवर कर्मचारी के पद से 2018 मे सेवा निवृत हुए थे। आज इनका परिवार किराये के मकान में रहता है जिसका मासिक किराया 5000/- रूपया है। इनको मात्र 12000/- रुपए मासिक पेंशन मिलती है जोकि प्रयाप्त नही है। सारी पेंशन की राशि तो बीमारी, घर का किराये मे चली जाती है तो ऐसे मे राशन कहाँ से ख़रीदे। खाने का सामान कैसे उपलब्ध कराएं, बड़ा मुश्किल हो रहा है।

2. 60 वर्षीय रोशनी देवी कहती हैं की मै कोठियों मे साफ सफाई का काम करती थी। 8 साल पहले मुझे चिकुन् गुनिया हो गया था जिसके कारण मेरा आधा शरीर बेजान हो गया और मेरा काम छुट गया। मेरी दो बेटियां अब साफ- सफाई का काम करने कोठियों मे जाती हैं लेकिन लॉक डाउन के कारण अब काम पर नही जा सकते। दोनो बेटियाँ घर में ही है। हमारी आर्थिक स्थिति बहुत ही नाज़ुक है। भूखों मरने की नौबत् आ गई है।

3. 24 वर्षीय संजना ने हमे बताया की वह MCD कॉलोनी, जहांगीर पुरी से आनंद पर्वत साफ – सफाई का काम करने जाती है। लेकिन लॉक डाउन के कारण काम पर जाना बंद हो गया है। हमारे पास ई – पास भी नही है और मकान मालिक भी कोरोना के डर से काम पर नही बुला रहे हैं। ऐसे मे हालात बहुत खराब हो गए हैं। भूखो मरने की स्थिति आ गई है। पता नही कब लॉक डाउन खुलेगा और कब हालात सुधरेंगे।

4. 22 वर्षीय अंजलि का कहना है की वह कोठियों मे झाड़ू -पौछा लगाने का काम करती है। लेकिन लॉक डाउन ने सब कुछ काम छीन लिए हैं। ऐसे मे बहुत परेशानी हो रही है।

लॉक डाउन के कारण इन परिवारों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई है। लॉक डाउन से पहले अपने काम – धंधों से ये परिवार अपनी सामान्य जरूरतें आसानी से पूरी कर पाते थे लेकिन अब इनके सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है। बीमार – बुज़ुर्ग दवा के अभाव मे क्रिटिकल हो रहे हैं। सरकार द्वारा कोई भी राहत सामग्री इन परिवारों तक नहीं पहुँच पा रही हैं। सरकार को भी इन परिवारों की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

– Sanjeev Kumar
Secretary
Dalit Adivasi Shakti Adhikar Manch (DASAM)

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