डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 10 अक्टूबर 1951 में संसद में दिये अपने भाषण में कश्मीर मुद्दे पर अपने विचार रखे थे जो इस प्रकार थे –

संघी लोग झूठ फैला रहे हैं कि डॉ अम्बेडकर ने धारा 370 के खिलाफ बोलते हुए शेख अब्दुल्लाह से कहा कि ‘भारत तुम्हारे बॉर्डर और रास्ते बनाए और तुम्हें स्वायत्तता मिले, ये सम्भव नहीं है’. ऐसा डाॅ अंबेडकर ने कहीं नहीं लिखा या कहा. कश्मीर के सवाल पर डाॅ अम्बेडकर का भाषण क्या है पढ़े ।
          डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 10 अक्टूबर 1951 में संसद में दिये अपने भाषण में कश्मीर मुद्दे पर अपने विचार रखे थे जो इस प्रकार थे –
          “पाकिस्तान के साथ हमारा झगड़ा हमारी विदेश नीति का हिस्सा है ,जिसको लेकर मैं गहरा असंतोष महसूस करता हूं। पाकिस्तान के साथ हमारे रिश्तों में खटास दो कारणों से है — एक है -कश्मीर और दूसरा है- पूर्वी बंगाल में हमारे लोगों के हालात।
        मुझे लगता है कि हमें कश्मीर के बजाय पूर्वी बंगाल पर ज़्यादा ध्यान देना चाहिए ,जहां जैसा कि हमें अखबारों से पता चल रहा है, हमारे लोग असहनीय स्थिति में जी रहे हैं। उस पर ध्यान देने के बजाय हम अपना पूरा ज़ोर कश्मीर मुद्दे पर लगा रहे हैं।
             उसमें भी मुझे लगता है कि हम एक अवास्तविक पहलू पर लड़ रहे हैं। हम अपना अधिकतम समय इस बात की चर्चा पर लगा रहे हैं कि कौन सही है और कौन ग़लत? मेरे विचार से असली मुद्दा यह नहीं है कि सही कौन है बल्कि यह कि सही क्या है?
         और इसे यदि मूल सवाल के तौर पर लें तो मेरा विचार हमेशा से यही रहा है कि कश्मीर का विभाजन ही सही समाधान है। हिंदू और बौद्ध हिस्से भारत को दे दिए जाएं और मुस्लिम हिस्सा पाकिस्तान को ,जैसा कि हमने भारत के मामले में किया।
             कश्मीर के मुस्लिम भाग से हमारा कोई लेनादेना नहीं है। यह कश्मीर के मुसलमानों और पाकिस्तान का मामला है। वे जैसा चाहें, वैसा तय करें। या यदि आप चाहें तो इसे तीन भागों में बांट दें; युद्धविराम क्षेत्र, घाटी और जम्मू-लद्दाख का इलाका और जनमतसंग्रह केवल घाटी में कराएं।
            अभी जिस जनमत संग्रह का प्रस्ताव है, उसको लेकर मेरी यही आशंका है कि यह चूंकि पूरे इलाके में होने की बात है, तो इससे कश्मीर के हिंदू और बौद्ध अपनी इच्छा के विरुद्ध पाकिस्तान में रहने को बाध्य हो जाएंगे और हमें वैसी ही समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ,जैसा कि हम आज पूर्वी बंगाल में देख पा रहे हैं।’
( डॉ आंबेडकर : राइटिंग्स एंड स्पीचेज , खंड- 14 ,भाग -2  पेज- 1322)
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