(समाज वीकली)- कोरोना काल में जब दवाई कंपनी, अस्पताल और दलाल कमाई कर रहे हैं, तो धार्मिक ठेकेदार भला कैसे पीछे रह सकते हैं?
तिजारत और धार्मिक मठों का रिश्ता पुराना रहा है। आवाम को मूर्ख बनाने का काम मजहबी इदारे हजारों सालों से कर रहे हैं? जिनको लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूं वह भगवान बुद्ध और हजरत ईसा की जिंदगी के कुछ पन्नों को पलट सकते हैं। धार्मिक ठेकेदारी की मुखालफत की वजह से धार्मिक ठेकेदारों ने उनपर बड़ा से बड़ा अत्याचार किया। भक्तों को मूर्ख बनाने और उनसे माल उगाहने का विरोध करने की वजह से, पैगंबर ईसा को ताकतवर लोगों ने अपना दुश्मन बना लिया।
आज कोरोना महामारी के दौरान, धार्मिक ठेकेदार जनता को खूब मूर्ख बना रहे हैं। हर रोज कोई वीडियो सोशल मीडिया पर गश्त करता है, जिसमें एक बाबा या एक गुरु यह दावा करते हैं कि एक खास जड़ी बूटी खा लेने से या एक खास मंत्र या श्लोक पढ़ लेने से कोरोना गायब हो जाएगा।
मैं पूछता हूं अगर बाबा को शिफा अता करने की ताकत वाकई रखते हैं, तो वे स्वस्थ विभाग या डब्लूएचओ के अधिकारियों से क्यों नहीं मिलते? उन्हें कोरोना को खत्म करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। वे कैसे लोगों के मरते देख सकते हैं?
कुछ साल पहले एक व्यापारी बाबा ने कोरोना से लड़ने वाली दवा का भी बड़ी ‘पब्लिसिटी’ के साथ ‘लॉन्च’ किया था। उनके इस जलसे में मरकजी वजीर भी शामिल थे।
कोई पूछ सकता है कि ऐसी दवा ने कितने मरीजों की जान अभी तक बचाई है?
क्या कोई रिकॉर्ड या शोध है जिसकी बुनियाद पर कहा जा सके कि यह दवाई लोगों की इम्यूनिटी बढ़ाने और कोरोना से लड़ने में मदद की है?
मेडिसिन और मुनाफा का पुराना रिश्ता रहा है। मगर जब मेडिसिन, मुनाफा के साथ धर्म जुड़ जाये, तो यह खतरनाक कॉम्बिनेशन बन जाता है। भारत में यह ‘डेडली कॉम्बिनेशन’ बढ़ता ही जा रहा है।
हाल के दिनों में भगवाधारी बाबा एम्स के डॉक्टर की जगह ले लिए हैं। एमबीबीएस डॉक्टर से ज्यादा, ये अनपढ़ बाबा रोग और उसके उपचार के बारे में बातें कर रहे हैं।
मुझे लगता है कि यह सब यूं ही नहीं हो रहा है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक शक्तियां भी खड़ी हैं। देश में हेल्थ सेक्टर का कबाड़ा वर्षों से किया जा रहा है। पिछले कुछ सालों में इसकी हालत और भी ज्यादा खराब हो गई है।
प्राइवेट हॉस्पिटल, दवा कंपनी, इंश्योरेंस कंपनी और सरकार की मिली-भगत ने सरकारी अस्पतालों को बर्बाद कर दिया है। मुझे समझ में नहीं आता कि भारत जैसे गरीब देश में जहाँ करोड़ों लोगों को खाने के लिए दो वक्त रोटी नसीब नहीं है, वे हेल्थ इंश्योरेंस का पैसा कहां से भरेंगे?
हेल्थ इंश्योरेंस की एक धोका है। सरकार को हेल्थ सेक्टर को अपने हाथों में लेना चाहिए और काम करना चाहिए। अगर ऐसा हुआ होता, तो आज इतने लोग नहीं मरते। मगर सरकार प्राइवेट कंपनी को मुनाफा देने के लिए यह सब करना नहीं चाहती है।
एक मिसाल मैं जेएनयू का देना चाहता हूं। जेएनयू का हेल्थ सेंटर काफी बड़ा है। जब डॉक्टर वहां दवाई लिखते थे, तो जेएनयू की मेडिसिन काउंटर पर कुछ ही दवा मिल पाती थी। बाकी दवा लेने के लिए हमें पास के केमिस्ट शॉप पर भेज दिया जाता। मैं आज भी सोच के हैरान हूं कि बड़ी जगह और स्टाफ होने के बावजूद जेएनयू का हेल्थ सेंटर खुद सारी दवाई क्यों नहीं रखता? कुछ दोस्त बताते हैं कि इन सब में कमीशन का खेल है।
ढहती हुई हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ने जो खाला पैदा किया है उसे भरने के लिए धार्मिक ठेकेदार और बिजनेसमेन बाबाओं को आगे कर दिया गया है। देशी दवा, अध्यात्म और योग के नाम पर अरबों का साम्राज्य इन बाबाओं ने खड़ा कर दिया है।
कुछ बाबा इनते ताकतवर हो गए हैं कि उनसे सरकार भी डरती है। ऐसे बाबा ने अंधभक्तों की एक बड़ी फौज तैयार कर ली है। चुनाव के दौरान, बाबा का रोल बड़ा अहम हो जाता है। भारत में धार्मिक उन्माद की राजनीति के लिए, यही बाबा जमीन तैयार करते हैं।
कोरोना से मर रही जनता की सेवा करने और राहत देने के बजाए ज्यादातर बाबा आजकल सीन से गायब हैं। वर्षो से जो माल उन्होंने जनता से उगाहा था, उसका एक टुकड़ा भी आज वे इंसानियत को बचाने के लिए नहीं खर्च रहे हैं। ज़्यादातर धार्मिक स्थल के दरवाजे कोरोना से मर रहे मरीजों के लिए आज भी बंद पड़ा है। मगर जब यही मरीज कल ठीक हो जाएगा, तो बाबा इसका फिर से खैरख्वाह हो जायेंगे।
इंसानियत की सेवा करने के बजाय धार्मिक स्थलों पर जो हो रहा है उसे बयान करना बड़ा मुश्किल है। कोरोना से मरे लोगों के दाह संस्कार के लिए मोटी रकम मांगी जा रही है।
मगर जो लोग जिंदा हैं उन्हें मदद देने के बजाय यह कहा जा रहा है कि वह गाय का गोबर अपने शरीर पर लगाएं। मीडिया के सामने आकर कुछ भक्तों ने गोबर का पेस्ट अपने पुरे पूरे बदन पर लगाया और यह दावा किया कि इससे कोरोना नहीं आएगा!
यह सब देखकर बड़ा दुख होता है। धर्म के नाम पर इस देश में सब कुछ जायज है। लोग मर जाएँ तो कोई बात नहीं लेकिन एक खास जानवर को कुछ हो गया तो दंगा करा दिया जाता।
खुद देश के हुक्मरान लाखों लोगों की भीड़ जमा होने की इजाजत दे देते हैं। एक धार्मिक स्नान को सफल बनाने के लिए करोड़ों लोगों की जान से खेला जाता है। जब कोरोना का कैस तेजी से बढ़ रहा था, तब यह धार्मिक स्नान का आयोजन किया गया और यह भी दावा किया गया कि उनका कोरोना कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा।
यह सब देखक़र, मुझे इस देश का भविष्य काफी तारीक दिखता है। आप क्या सोचते हैं?
– अभय कुमार
जेएनयू