उत्तराखंड सरकार बोक्सा जनजाति के प्रश्नों पर ध्यान दे

Vidya Bhushan Rawat

– विद्या भूषण रावत 

(समाज वीकली)- उत्तराखंड में आदिवासियों की आबादी लगभग ८% है. १९६७ में उत्तर प्रदेश में भूटिया, जौनसारी, थारु, बोक्सा और राजी को अनुसूचित जनजाति में शामिल किया गया था. हालाँकि आदिवासियों के प्रश्न पर उत्तराखंड में बहुत बहस नहीं दिखाई देती क्योंकि थारु, बोक्सा और राजी की स्थिति तो बेहद गंभीर है और राजनीति से लेकर सरकारी नौकरियों में उनका प्रतिशत बेहद कम है. पूरे जौनसार क्षेत्र को आदिवासी इलाका घोषित करने के कारण वहा की ताकतवर ब्राह्मण राजपूत  जातियों ने आदिवासियों के लिए निर्धारित आरक्षण को हड़प लिया.  जौनसारी कोई जाति नहीं है, ये एक क्षेत्र है और बेहद शर्मनाक बात यह के इस क्षेत्र में आरक्षण का लाभ लेने वाली ताकतवर जातिया ही सबसे ज्यादा जातिवाद और छुआछूत करती है. पूरे क्षेत्र में दलितों पर अत्याचार के बावजूद भी अनुसूचित जाति जनजाति अधिनियम के क़ानून नहीं लागू होते है. इस क्षेत्र में बहुत समय तक बंधुआ मजदूरी होती थी और उसके खात्मे की बाते भी कागजी ही लगती है क्योंकि ताकतवर जातियों ने कभी भी दलितों आदिवासियों में नेतृत्व नहीं पैदा होने दिया.
बोक्सा जनजाति तराई भावर के इलाके में अधिक रहते है और यहाँ पर वे अब अपनी ही जमीन से बेदखल और बंधुआ हो गए है. तारे भाबर में वे देहरादून के डोईवाला क्षेत्र से लेकर पौड़ी जनपद के दुगड्डा ब्लाक में  इनकी काफी संख्या थी. कोटद्वार के तराई भाबर के इलाको जैसे लाल ढंग में भी इनकी संख्या बहुत है.  कोटवार-उधम सिंह नगर के मध्य राम नगर में भी इनकी आबादी निवास करती है.  उधम सिंह नगर के कई ग्रामीण इलाको बाजपुर, गदरपुर और काशीपुर  में बोक्सा जनजाति के लोग है लेकिन इस क्षेत्र में बड़े किसानो के चलते इनके साथ कोई खडा नहीं हुआ है. बोक्साओ की उपजाऊ जमीन को बेहद चालाकी से लोगो ने अपने नाम पर किया है. बोक्सा और थारू जनजाति के लोग तराई क्षेत्र में चकबंदी की मांग करते आये है ताके उनकी जमीनों पर हुए कब्जे उन्हें वापस मिल सके.
श्री दर्शन लाल उत्तराखंड में बोक्सा जनजाति के एक प्रमुख व्यक्ति है. उन्होंने बोक्साओ के सवालों को सरकार तक पहुंचाया है. मैंने बोक्साओ के सन्दर्भ में उनसे विशेष तौर पर बातचीत की. यह बातचीत भी विस्तृत है और मुझे उम्मीद है के आप उनकी बातो को ध्यान से सुनेगे. बहुत सी बाते लोगो को अटपटी लगे लेकिन हर एक जनजाति की अपनी स्थानीयता होती है. दर्शन लाल जी कहते है बोक्सा लोग राजपूत होंते हैं और उनके यहाँ देवी की पूजा का मात्य्मय है. उत्तराखंड की दूसरा आदिवासी समुदाय थारुओ में भी उनके क्षत्रिय होने की बात प्रचलित है. ये बात भी हकीकत है के आदिवासी छुआछूत या जातिभेद का शिकार नहीं है लेकिन उनके भोलेपन और विशिष्ट जीवन शैली के चलते उन्हें बाहरी लोगो ने उनकी भूमि पर अतिक्रमण किया है और आज वे भूमिहीनता का शिकार है. श्री दर्शन लाल से बातचीत बोक्सा समुदाय के बृहत्तर प्रश्नों को हमारे सामने लाती है और हमें उम्मीद है के इस प्रकार के बहसों से आदिवासी समुदाय के प्रश्न निति निर्धारको, राजनेताओं और आम जनता तक पहुंचेंगे और वे ईमानदारी से उनका समाधान करने या ढूँढने का प्रयास करेंगे. आशा है आप समय निकालकर इस बातचीत को अवश्य सुनेंगे.
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