– विभूति मनी त्रिपाठी
नई दिल्ली में हुये निर्भया कांड को हुये कई साल गुजर गये लेकिन आज भी उस दर्दनाक काली रात की छटा हम सभी के मानस पटल पर छाई हुई है। उस दर्द को बयां करने के लिये शायद मेरे पास कोई शब्द ही नही है, फिर भी आज बहुत मजबूरी में उस विषय पर कुछ लिखने की हिम्मत जुटा पाया हूं ।
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते विश्व पटल पर हमारे देश की अपनी एक अलग छवि बनी हुई है, लेकिन अब तो आये दिन हमारे देश में रोज कुछ न कुछ ऐसा घट रहा है जिसकी वजह से कभी कभी मन ये सोचने को विवश हो जाता है कि, क्या वाकई हम विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के वासी हैं ।
आज की तारीख में जब निर्भया के माता पिता के आंखों से आंसू की अविरल धारा को निकलते हुये देखता हूं, तो कलेजा मुंह को आ जाता है और दिल में बस एक ही बात आने लगती है कि, विधाता ने क्या किस्मत इस मां बाप की बनाई है जो पल पल, तिल तिल, कर जी रहे हंै और खुद को दर्द के ऐसे समुंद्र में पाते हैं, जिसको बयां करने के लिये कोई शब्द ही नही है।
आज के परिपेक्ष्य में ये कहने में बिल्कुल भी गुरेज नही हो रहा है कि, हमारे देश की न्याय व्यवस्था को इतने स्तरों में बांट दिया गया है कि, इसी का फायदा उठा कर गुनहगार समय से सजा पाने से बच जाते हैं और कानून के सिकंजे से बच कर फिर पहले जैसी विभत्स घटनाओं को अंजाम देना शुरु कर देते हैं।
आज की तारीख में जिस तरह से अपराधी हमारे कानून में मौजूद विभिन्न कायदों का फायदा उठा रहे हैं, वो अपने आप में बेहद चिंतनीय है, क्यूंकि एक बार अपराधी जैसे ही कानून के सिकंजे से खुद को मुक्त पाता है, ठीक उसके बाद ऐसे अपराधियों का मनोबल अपने सातवें आसमान पर पहुंच जाता है और वो फिर से उसी गुनाह को करने की इबारत लिखने लगते है ।
16 दिसंबर 2012 की उस काली रात को कोई भी कैसे भूल सकता है, जिस दिन इंसानी, सामाजिक और मानवी ताने बाने को, इंसान के रुप में पल बढ रहे दानवों के द्धारा छिन्न भिन्न कर दिया गया था, 7 साल से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद भी, आज की तारीख में वो दर्द उसी तरह से बना हुआ है, क्यूंकि आज भी निर्भया के गुनहगारों को दंड नही मिल सका है, जिसके वो हकदार थे ।
न्याय हमेशा उचित होना चाहिये और समय पर मिलना चाहिये, उचित न्याय अगर समय पर न मिले तो वो न्याय किसी भी सूरत में अन्याय से कम नही माना जा सकता लेकिन हमारे देश की कानून व्यवस्था अपने आप में इस तरह से बनायी गई है कि, किसी भी सूरत में किसी के भी साथ अन्याय न हो सके, इसलिये विभिन्न स्तरों पर विभिन्न कानूनी विकल्पों को रखा गया है और इन्हीं विकल्पों की वजह से जो गुनहगार होते हैं, वो कहीं न कहीं खुद को कानून के सिकंजे से दूर करने में काफी हद तक सफल भी हो जाते हैं । हालांकि यहां पर ये भी बता देना जरुरी है कि निर्भया कांड के पहले भी देश में बच्चियों पर विभिन्न तरह के अत्याचार होते रहे हैं, लेकिन निर्भया के साथ हुये अमानवीय कांड ने आम जन मानस को पूरी तरह से जड़ से झकझोर कर रख दिया और उसी का परिणाम था कि, पूरे देश में जनता सड़कों पर निकल आयी थी और सभी एक ही सुर में दरिंदों को उनके अंजाम तक पहुंचाने की मांग कर रहे थे, लेकिन क्या वो मांग आज की तारीख तक पूरी हुई??? ये अपने आप में एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब हर हाल में मिलना चाहिये, क्यूंकि जब तक न्याय समय पर नही मिलेगा, तब तक पूरी तरह से इंसाफ की बात करना अपने आप में बेईमानी ही कही जायेगी और ये ही सत्य है कि, ऐसे मामलों में अगर दोषियों को तुरंत कठोर दंड मिलना शुरु हो जाये तो ये अपने आप में एक मिसाल तो कायम होगा ही और साथ ही साथ समाज में पल बढ रहे दरिंदों को ये संदेश भी मिल जायेगा कि अब खैर नही, लेकिन काश ऐसा हो पाता, क्यूंकि न्याय मिलते मिलते इतना वक्त गुजर जाता है कि, पीड़ित व्यक्ति न जाने कितनी बार घुट घुट कर जीता है और न जाने कितनी बार वो तड़प तड़प कर इंसाफ की राह देखने को मजबूर हो जाता है ।
आज की तारीख में ये कहना बिल्कुल भी अतिश्योक्ति नही होगा कि, जिस तरह से आये दिन हमारे देश में, हमारे सभ्य समाज में, हमारी बच्चियों और महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं, उसके लिये काफी हद तक, समाज में रहने वाला हर एक शख्स भी जिम्मेदार है, क्यूंकि आज की तारीख में हम सब सिर्फ अपने बारे में सोचने लगे हैं, ये वाकई बेहद गंभीर विषय है क्यूंकि कार्यपालिका और न्यायपालिका पर हर एक चीज के लिये निर्भर हो जाना किसी भी सूरत में सही नही कहा जा सकता, आज की तारीख में हम सभी अपनी सामाजिक दायित्व को पूरी तरह से भूल चूके हैं जो कि अपने आप में बेहद चिंताजनक है।
अगर सिर्फ गुजरे हुये सात सालों की बात की जाये, तो ये स्पष्ट हो जायेगा कि, शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरा हो जिस दिन हमारी बच्चियां समाज में पल रहे दरिंदों का शिकार न हुई हों। गुजरे साल में उन्नाव में हुआ दर्दनाक मामला , हैदराबाद में हुआ दिल को झकझोर देने वाला कांड, कठुआ कांड हो या मुंबई के बंद पड़ी पुरानी मिल में हुआ घिनौना कांड।
अंत में सिर्फ इतना कहना चाहूंगा कि, हम सब एक सामाजिक प्राणी हैं, हम सभी की कुछ सामाजिक जिम्मेदारियां भी हैं, ये बात हम सभी को अच्छी तरीके से समझ लेनी चाहिये कि, जब तक समाज का हर एक शख्स, सामाजिक बुराईयों के खिलाफ कदम से कदम मिलाकर आगे नही बढेगा, तब तक हमारी बच्चियां कुत्सित मानसिकता के लोगों का शिकार बनती रहेगीं और हमारी देश की कार्यपालिका और न्यायपालिका को भी अपना ध्यान इस बात की तरफ लाना चाहिये कि गुनहगारों को न्याय समय पर, उचित स्तर पर मिलना चाहिये ताकि किसी भी तरह के विकल्पों का फायदा कुत्सित विचारधारा के लोग न उठा सकें, तभी हमारी बच्चियों के साथ सही मायने में न्याय हो सकेगा।