भोपाल, आज दिनांक 26 फरवरी 2019 को गांधी भवन सभागार में जल, जंगल, ज़मीन, जीवन बचाओ साझा मंच, मध्यप्रेदष के तत्वाधान में सभा आयोजित की गई। जिसमें मध्यप्रदेष के विभिन्न आदिवासी संगठनों द्वारा षिरकत कर एक लम्बे संघर्ष के बाद आदिवासी और अन्य परम्परागत वन निवासियों को वन भूमि पर अधिकार देने हेतु वर्ष 2006 में लागू ’’वन अधिकार कानून’’ का सरकार द्वारा उचित क्रियान्वयन न किये जाने एवं इस कानून का आवष्यक प्रचार-प्रसार न करते हुये वर्तमान में वन्य जीव संरक्षण समूहों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केन्द्र सरकार द्वारा अपना पक्ष उचित तरीके से नहीं रखा गया यहां तक कि केन्द्र सरकार द्वारा अपना पक्ष रखने के लिए कोई वकील नही भेजा गया। परिणाम स्वरुप सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपना फैसला दिया गया, जिसमें यह कहा गया कि – 27 जुलाई 2019 तक 16 राज्यों के 10 लाख से अधिक वन भूमि पर काबि़ज आदिवासी एवं अन्य परम्परागत वन निवासियों के दावे निरस्त किये गये, जिसमें मध्यप्रदेष के लगभग 3 लाख 54 हजार 787 दावे है उन्हें बेदखल कर दिए जाने की बात कही गई है। इसके फैसले के विरोध में आदिवासी समुदाय के लोग एकजुट हुए।
गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के गुलजार सिंह मरकाम ने कहा कि कई कानूनी जटिलताओं, प्रषासन की उदासीनता, वन विभाग के अङंगे तथा नौकरशाहों की उदासीनता ने वन अधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर सैंकड़ों सवाल खड़े होते है।
नर्मदा बचाओं आंदोलन के राजकुमार सिन्हा ने कहा समुदाय के लोगों द्वारा भारी मशक्कत से दावे लगाए तथा नियम के अनुसार साक्ष्य भी प्रस्तुत किये गए। प्रदेश में लगभग 6 लाख 15 हजार व्यक्तिगत दावे वन अधिकार समिति के समक्ष प्रस्तुत कियें गये, जिसे वन अधिकार समिति, ग्राम सभा तथा उपखंड स्तर समितियों ने जांच के बाद जिला स्तरीय समितियों को अंतिम निर्णय के लिए भेजा भी गया। परन्तु जिला स्तरीय समितियों ने बिना स्थल निरीक्षण (मौका जांच) के बाद लगभग 3 लाख 54 हजार दावे को अमान्य कर दिया। जिसकी लिखित सूचना देने के प्रावधानों के बावजूद भी नही दी गई, जिसकी वजह से दावेदार अपील करने के अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित रह गए।
हरी सिंह मरावी ने कहा कि पिछले 9 फरवरी से हम और हमारे साथी शांति मार्च में चल रहें है और जिसमें हम हमारे जनजाति समाज के ग्राम प्रमुख अपनी 18 अनुसूचित क्षेत्रों की विषेष समस्याओं और अपने हक अधिकारों को लेकर पर न्यायपूर्ण कार्यवाही की मांग करने के लिए यहां आये है। श्रीमति चंद्रा सरवटे ने कहा कि अमान्य दावे अन्य राज्यों की अपेक्षा मध्यप्रदेश में सबसे अधिक है। जिसमें तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा इस अमान्य दावे के आंकड़े को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत कर दिये गए। जबकि लोगों द्वारा इन दावों की जांच की मांग राज्य सरकार से लगातार की जा रही थी।
डाॅ0 सुनीलम, समाजवादी जनपरिषद ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट के समक्ष न रखें जाने कि वजह से वन अधिकार कानून के सम्बंध में उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णय लिया गया है और यह एक ऐतिहासिक अन्याय है। इसको लेकर केन्द्र द्वारा संसद का विषेष सत्र बुलाकर इस आदेष को रद्द किया जाना चाहिये साथ ही राज्य में यदि मुख्यमंत्री आदिवासियों के हित की बात कर रहें तो उन्हें यह कहना चाहिये कि वे किसी भी आदिवासी को उनकी जमीन से बेदलखल नही होने देगें।
कुवंर अजय शाह, मकड़ाई ने कहा कि जो राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेष की समीक्षा के लिए समिति बनाई है उसे केवल भोपाल में बैठकर नही बल्कि राज्य के अलग-अलग जिलों मे जाकर स्थितियों की जांच करनी चाहिये। अब आदिवासियों के सोने का समय नही है बल्कि उन्हें जागकर अपनी आवाज को बुलंद करना होगा। केन्द्र सरकार के द्वारा वैसे भी कई षढ़यंत्र आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने के लिए किया जा रहा है।
द्रोप किषोर मण्डावी जी ने कहा कि जहां आदिवासी हैं वही असली खजाना है और इसका मूल मालिक केवल आदिवासी ही है और वह पूरे विष्व मे जो मूल निवासी है और ऐसे कई संघर्षो जिसमे निजामगिरी पर्वत पर आदिवासीयों के विस्थापन की घटना में 200 आदिवासी ग्रामसभा द्वारा प्रस्ताव पारित करके इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई जिसमें फैसला लोगों के हित मे आया। इसिलिए हमे ग्राम सभा की ताकत को पहचानना होगा।
कांग्रेस पार्टी से संदीप दीक्षित जी ने कहा कि मैं आपके बीच में सरकार के प्रतिनिधि के रुप में बिल्कुल नहीं आया बल्कि मैं आपके प्रतिनिधि के रुप में सरकार के समक्ष खड़ा हूं और मैं यह मानता हुं कि हमारे मुख्यमंत्री कमलनाथ किसी पार्टी या सरकार के मुख्यमंत्री नहीं बल्कि जनता के मुख्यमंत्री हंै और वह जनता के हित में निर्णय लेकर कार्यवाही करेंगे ऐसा मेरा पूरा विष्वास है।
अन्य उपस्थित वक्ताओं में श्री फग्गन सिंह कुलस्ते पूर्व राज्य मंत्री, पूर्व विधायक मनमोहन शाह भट्टी, कमल मर्सकोले, शंकर तड़वाल, भुपेन्द्र वरकड़े, फागराम जी, जसविंदर जी, आराधना भार्गव, पंचम सिंह तेकाम, एन.आर. भू आर्य आदि लोग उपस्थित थे।
सभा में उपस्थित जन संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेष का पुरजोर विरोध किया गया और कहा गया कि जंगल, जल, जमीन से हमारा जीवन है। ये सब हमारे प्राकृतिक और परम्परागत अधिकार है और इससे बेदखली हमारे अधिकारों का हनन है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट का यह आदेष लाखों लोगों को उनके परम्परागत अधिकारों से वंचित करता है और यह एक ऐतिहासिक अन्याय है। जन समूह द्वारा मांग की गई कि इस आदेष की समीक्षा कर इसे निरस्त किया जाय तथा वन अधिकार कानून का क्रियान्वयन उचित स्वरूप में करते हुए लम्बित दावों का निराकरण कर लोगों को उनके अधिकार सौंपें जाये। जन सभा की विभिन्न मांगो को लेकर एक प्रतिनिधि मंडल राज्यपाल से मुलाकात करने गया और राजभवन में राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौपा।
जल, जंगल, ज़मीन, जीवन बचाओं साझा मंच, मध्यप्रदेष एवं सहयोगी संगठन