(समाज वीकली)
* तजिंदर सिंह अलौदीपुर
काला धन और सट्टे बाजारी के कारण यह पहले से ही विवादों में रहा है। इसके लिए कभी समय बर्बाद नहीं किया पर कभी-कभी सौंदर्य बोध के लिए घटिया चीजों पर निगाह मारनी भी जरूरी है।घटिया पन का स्तर देखना और मापना भी कभी-कभी आनंद का स्रोत होता है ।कल परसों से कारपोरेट का तमाशा प्राइम टाइम पर काबिज हो गया है। मन में उत्सुकता जागी कि करोना काल में देश के बाहर इसका प्रबंध किया गया है …चलो देखते हैं इसके रंग ढंग। मैच चल रहा था। चौका छक्का लगने ,विकेट गिरने पर एकदम शोर सा बढ़ता है ,लेकिन मैदान पर नजर मारी तो कोई दर्शक मौजूद नहीं था जो शोर मचाता, भोंपू बजाता, सीटी बजाता फिर भी एक शोर से उठ रहा था।जैसे बीस पच्चीस हज़ार दर्शकों की स्वर लहरियां पूरे स्टेडियम मे गूंज रहीं हों।असल में यह नकली शोर था ।शोर की रिकॉर्डिंग बजाई जा रही थी। जैसे आजकल बेजान बोरिंग कॉमेडी शो में पर्दे के पीछे समूह के हास्य की रिकॉर्डिंग बजाई जाती है। दर्शक भ्रमित होता है और उस नकली हंसी को सुनकर हंसता है। उसे एहसास दिलाया जाता है कि इस फूहड़ पंच पर हंसना चाहिए और वह झांसे में आता है। उसे हंसने का याद दिलाया जाता है और उत्प्रेरित किया जाता है । चलते मैच में नकली आवाज की रिकॉर्डिंग बजाई जाती है। उस रिकॉर्डिंग के बगैर कल्पना करके देखिए इस तमाशे का रंग कितना फीका पड़ता है और आप उसे 10 सेकेंड के लिए भी बर्दाश्त ना कर पाएंगे। बाजार में हर साधारण वस्तु का महिमामंडन करने का साधन मौजूद है। अंदर से खोखला बाहर से पूरी चमक-दमक । इसी से तो शब्द निकला है -लिफाफे बाजी। साधारण काया रखने वालों को ब्यूटी पार्लर वाले लिफाफे बाजी से क्या का क्या बना देते हैं। सुहागरात के अगले दिन जब मुंह धोता है तो सामने वाला ठगा ठगा सा महसूस करता है। आईपीएल भी उसका अपवाद नहीं है।ग्राफिक्स ,साउंड तकनीक से सुसज्जित पूरी टीम है इसके खोखलेपन को छिपाने के लिए।।नकली आवाजों के साथ-साथ जूम एप के द्वारा घरों में बैठे कई लोग जश्न मनाते चेहरे भी दिखाई दे रहे थे जो विकेट गिरने और गेंद सीमा रेखा के बाहर जाने पर खुश हो रहे थे, नकली पन ऐसा कि छुपाएं ना छुपे ।
इस तमाशे का आयोजन इतना जरूरी था कि अगर देश में हालात साजगर ना मिले तो दूसरे देश में जाकर मैच करवाने पड़े.। कई दिनों तक यह मुद्दा टीवी पर छाया रहा कि आईपीएल होगा ? कि नहीं होगा… कहां होगा… कैसे होगा …कई दिनों तक टालने के बाद आखिर जीत कारपोरेट की ही हुई।सरकारों की क्या मजाल किसको रोके। दुनिया इधर की उधर हो जाए विद्यालय खुले ना खुले पेपर होना हो इसका आयोजन बहुत जरूरी है।
बचपन में एक भ्रांति मन में थी कईयों के मन में अभी भी है कि अच्छी भली फिल्म चल रही थी क्या सीन था और यह मुआ विज्ञापन बीच में आ गया ।यही सोचते थे यह कमबख्त असली झांकी के बीच में कहां से आ जाता है पर असलियत यह है कि यह विज्ञापन बीच में नहीं आता बीच में तो मैच, नाटक , फिल्म का सीन आता है। विज्ञापन दिखाने के लिए ही तो यह तमाशे को गढ़ा गया है ।विज्ञापन प्रमुख है नाटक, मैच गौण है। विज्ञापन है तो बाकियों का अस्तित्व है। जब टीवी का आगमन हुआ तो विज्ञापन जगत को नया आयाम मिला। दुनिया के सबसे बड़े साबुन विक्रेताओं जैसे प्रोक्टर एंड गैंबल ने विज्ञापन दिखाने के लिए नाटकों को प्रायोजित किया ताकि आप साबुन का विज्ञापन जरूर देखें… हां… बीच-बीच में आपको नाटक देखने को भी मिलेगा।इसी को सोप ओपेरा कहा गया। विज्ञापन बहुत बड़ी ताकत है। आजकल इसका झुकाव टीवी से इंटरनेट की ओर होता जा रहा है। कारपोरेट अपनी रचे तमाशों को फलने फूलने के लिए सारे प्राकृतिक संसाधनों को झोंक देता है ।मैदान को हरा भरा रखने के लिए इतनी गर्मी में भी पानी को पानी की तरह बहाया जाता है ।नोट कीजिएगा यह और इसके जैसे आयोजन हमेशा तीव्र गर्मियों में ही आते हैं ताकि कोल्ड्रिंक्स का विज्ञापन बिन बाधा प्रसारित होता रहे। खेतों में पानी पहुंचे न पहुंचे इसके मैदान ज़रूर हरे भरे लहराते नजर आएंगे।
इसी बीच पूरे भारत में संसद में आनन-फानन में पास किए गए कृषि बिलों के विरोध में किसान आंदोलन अंगड़ाई ले रहा है। यहां भी वही कारपोरेट घुसपैठ कर रहा है ।एक तरफ आम लोग हैं दूसरी तरफ केंद्र और राज्य सरकारें ।सुख की बात यह है कि आम लोग इन हकूमतों के परदे के पीछे छिपे भारत के सबसे बड़े बिक्री कारों अंबानी अडानी को पहचान रहे हैं ।
काश ऐसा भी समय आए जब हम चीजों के अंदर के खोखले पन को पकड़ पाएंगे। जब हर जगह लहरें उठ रही हो आंदोलन करवट ले रही हो उस समय इस आईपीएल के साथ चिपके रहना किसी बेशर्मी से कम नहीं है।देश की समस्याओं से नज़र हटाने के लिए ऐसे तमाशे सत्ता धारियों के बहुत काम आतें हैं। देखना इन नकली शोर-शराबे की आवाजों में अन्नदाताओं की चीत्कार और हुंकार कहीं अनसुनी ना रह जाए।