अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारो के लिये समर्पित रहे अम्बेड्करवादी

 

– विद्या भूषण रावत

बाबा साहेब अम्बेड्कर के 129वे जन्म दिन पर आपका हार्दिक स्वागत और सभी को ढेर सारी शुभकामनाये !!

इतने वर्षो मे ये पहली बार है के जब दिल्ली के संसद मार्ग पर अम्बेडरवादियो की भीड नही होगी और लोग संसद भवन के अंदर बाबा साहेब अम्बेड्कर की प्रतिमा मे माल्यार्यपण नही कर पायेगे. देश भर मे बाबा साहेब की जयंती बडी ही धूम धाम से मनाई जाती है. 14 अप्रेल भारत के अंदर सही मायनो मे एक जनोत्सव है जिसमे लोगो के भागीदारी स्वत: होती है और उनको ‘किराया’ देकर नही बुलाना पड्ता. आज दुनिया कोरोना जैसे महामारी से झूझ रही है और बैज्ञानिक, डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मी, सफाई कर्मी, सामाजिक कार्यकर्ता सभी इससे जनता को बचाने के लिये अपनी जान हथेली पर लेकर काम कर रहे है. सभी विशेषज्ञ ये कह रहे है के जितना प्रयास करे घर पर रहे ताके कोरोना की चेन को तोडा जा सके. इसलिये आवशयक है के ह्म घरो से बाहर न निकले.

आज क्योंकि तकनीक का समय है इसलिये ह्म इसका प्रयोग करते हुए भी नजदीक बने रहे सकते है. सभी ने शारिरिक दूरी बनाने के लिये कहा है लेकिन कोशिश करे हम मन से दूरी न बनाये. वैसे सामाजिक दूरी तो हमारे वर्णवादी समाज ने हमेशा बना के रखी थी अपनी जातीय सर्वोच्चता को दिखाने के लिये इसलिये वे अपनी बातो को आगे करने के लिये जान बूझकर ‘सामाजिक दूरी’ शब्द का इस्तेमाल कर रहे है. कोरोना को खत्म करने के लिये सामजिक दूरी नही शारिरिक दूरी की जरुरत है. एक दूसरे से कुछ फीट दूर खडे रहे. ह्म लोग सोशल मीडिया के जरिये भी एक दूसरे का हाल चाल पूछ सकते है और अच्छी बात यह है के लोग अब बातो को समझ गये है और तकनीक के नये नये प्रयोग कर रहे है.

कोरोना ने एक बात तो साफ कर दी के ये मानव निर्मित है और प्रकति के गुस्से के आगे इंसान असहाय है. बडी बडी ताकते और उनकी सारी सैन्य शक्ति भी प्रकति की मार के आगे बौनी हैं. दुनिया के सभी धर्मस्थलो पर ताले पडे हुए है और जिन्होने ये बताने की कोशिश की के उनके भगवान मे बहुत ताकत है, उनके लोगो की तो और भी हालत खराब हो गयी और लोगो न केवल कोरोना ग्रस्त हुए वे फैलाने मे भी आरोपित हो गये. लेकिन ये किसी एक धर्म विशेष की बात नही अपितु सभी की. मतलब ये के बौधिकता, विचारशीलता और वैज्ञानिक चिंतन ही दुनिया को बचा सकता है. आज दुनिया मे सबसे ज्यादा जय जयकार स्वास्थ्य कर्मचारियो की हो रही है और उसके साथ ही सफाई कर्मियो की भी जो दिन रात मेहनत कर हमारे लिये एक बेहतर माहौल तैयार कर रहे है और हमे सुरक्षा प्रदान कर रहे है. अब ये बात साफ हो चुकी है के विज्ञान की हमे बचा सकता है और उसमे यदि सभी वैज्ञानिक सोच वाले हो जाये तो ह्म प्रबुद्ध भारत की और अग्रसर होंगे.

बाबा साहेब अम्बेड्कर का जीवन अपने आप मे उनका संदेश है. आज उनकी बाते और जीवन यात्रा हमारे लिये और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गये है.

दुनिया भर मे संक्ट के दौरान लोग अपने गिले शिकवे भुलाकर एकता का परिचय देते है. कई बार समाज मे हुई गलतफह्मिया हमारे सामूहिक संघर्षो के जरिये खत्म हो जाती है लेकिन हमारे देश मे मनुवादी मीडिया तंत्र ने इस महामारी मे भी जाति धर्म को देखकर बाते की है. आज इंग्लैड को देखिये जहा पिछ्ले कुछ वर्षो से समाज मे बिख्रराव सा आ गया क्योंकि सभी लोग माईग्रेंटस के खिलाफ हो गये जैसे सारी समस्याओ की जड मे वही है. इस वर्ष के आम चुनावो से पहले कंजर्वेटिव पार्टी ने वहा की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा ( नैशंनल हैल्थ सेर्विसज़ या साधारण रुप मे एन एच एस) का निजीकरण करने की योजना बनाई और बहुत सी अमेरिकी कम्पनिया इसमे दिलचस्पी ले रही थी. आज कोरोना के बाद के ब्रिटेन मे जो एकता बनी है उसमे एन एच एस का बहुत बडा योगदान है और सभी लोग उस पर गर्व कर रहे है. क्या आप जानते है के एन एच एस मे 40% से अधिक लोग भारत, पाकिस्तन, बांग्लादेश, मिश्र और अन्य अफ्रीकी देशो से हैं. कोरोना से लड्ते है बडे बडे सिनियर डाक्टर भी चल बसे जिनमे बहुत सारे मुस्लिम भी है जो अपने देशो से इंग्लैंड आकर बस गये. प्रधान मंत्री बोरिस जोह्न्सन की जिंदगी भी बच गई और उन्होने अपनी दो नर्सो जो न्युजीलैन्ड और पुर्त्गाल से थी, का बेहद शुक्रिया अदा किया. अमेरिका मे भी यही हालत है जहा अल्प संख्यको ने बहुत काम किया है. जैसे बाबा साहेब की जिंदगी के सफर से साबित होता है के योग्यता किसी एक समुदाय, जाति, धर्म या देश की बपौती नही है और लोगो को यदि ईमांदारी से अवसर मिले तो वो सिद्ध कर सकते है और आज लोग अपने जान की बाज़ी लगाकर साबित भी कर रहे है के मेरिट अवसर का नाम है.

ऐसे संकट मे भी हमारे मीडिया ने इस पूरे घट्नाक्रम को मुसलमानो से जोडकर बना दिया जैसे के कोरोना को उन्होने फैलाया. इसमे कोई दो राय नही के तबलीगी जमात की भयकर भूल या गलती के कारण बहुत से लोगो की जिंदगी खतरे मे पड गयी लेकिन उसके लिये पूरे देश मे मुसलमानो को गुनह्गार साबित करने के प्रयास करना बहुत ही निंदनीय है. तबलीगी जमात देश के मुसलमानो का प्रतिनिधित्व नही करता. ये दुखद है क्योंकि ब्रिटेन मे अभी इस्कोन के एक कार्यक्रम मे जिसमे 1000 से अधिक लोगो ने भाग लिया 100 से अधिक लोगो को कोरोना वायरस के संक्रमण की सम्भावना थी और 5 की आधिकारिक तौर पर मृत्यु हो चुकी है. क्या इस्कोन के इस कार्य के लिये हिंदुओ को दोषी ठहराया जा सकता है. ये एक वायरस है जो दुनिया भर मे फैल चुका है और इसे केवल शारिरिक दूरिया बनाकर और अपने घरो मे रहकर खत्म किया जा सकता है. हाँ, यदि यह किसी को हुआ है तो इसका अर्थ यह नही के वह व्यक्ति अपराधी हो गया है अपितु उसे पूरे प्रोटोकोल के तहत इलाज करवाना चाहिये ताके वह दूसरो को संक्रमित न करे. इसीलिये मैंने कहा हमारे समाज का अच्छा और बुरा सबसे मुश्किल हालातो मे दिखाई देता है.

बाबा साहेब ने समानता और भ्रातृत्व की बात कही लेकिन समाज मे अन्याय के चलते वो नही आ सकती. यदि लोगो को उनकी बीमारियो के आधार पर भी भेदभाव होने लगा तो फिर तो हमारे समाज भेद्भाव की नयी प्रवृत्तिया पैदा होगी जो हमारे समाज को तोड देगी क्योंकि बीमारी तो किसी को भी लग सकती है. ये कोई जात, देश और धर्म देख कर नही आती. ये पैसे वाले से भी नही डरती. इसलिये कोरोना से लडते समय ह्म अपनी मानवीयता न खोये तो समाज और विश्व के लिये अच्छा होगा. ये आवश्यक है के संक्र्मण वाली बीमारियो से बचने के लिये सफाई, शारिरिक दूरी और नाक मुह से ढकना जरुरी है और जिनको इनका लक्षण दिखाई दे उन्हे भी आईसोलेशन या अलग करके रखना जरुरी है ताके यह ना फैले लेकिन अभी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से ये खबर है के दिल्ली से जो लोग आ कर आईसोलेशन मे रह रहे थे उनके लिये बनाये जा रहे खाने को कई स्थानो पर लोगो ने खाने से इन्कार कर दिया क्योंकि खाना बनाने वाली महिला दलित समुदाय से आती है. इस प्रकार की खबरे दिखाती है के हमारे समाज मे जाति का भेद्भाव कोरोना से भी बडा है और अगर समाज को आगे बढना है या भारत को आगे बढना है तो सामाजिक एक्ता बनानी पडेगी और वो जाति की सडी गली गंदली दीवारो को सम्पूर्ण रूप से तोड्ने के बिना सम्भव नही है. नफरत की संस्कृति को जड से उखाडने की आवश्यकता है.

आज की युवा पीढी को बाबा साहेब की जीवन से सीखना होगा के अन्याय का विरोध करे और सम्वैधानिक मूल्यो की बात कहे, एक दूसरे से बात करे और एक दूसरे को सुने. कोई आवश्यक नही के हमारे हर बिंदु पर विचार एक हो लेकिन जब तक हम लोकतांत्रिक है और संविधान की मर्यादाओ के अनुसार है, ह्म एक दूसरे के दुश्मन नही बन जाते. बाबा साहेब ने कहा हमारे समाज मे वोल्टायर जैसे लोग होने चाहिये. वोल्टायर फ्रान्स की क्रांति के अग्रदूत थे और उन्होने कहा ये आवश्यक नही के मै आपकी हर बात से सहमत हू लेकिन मै आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान करता हू और उसकी बचाने के लिये पूर्ण प्रयास करूंगा.

आज भारत मे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा है. अभिव्यक्ति मतलब एक दूसरे को सोशल मीडिया मे गाली गलौज नहि लेकिन एक वैचारिक बहस. स्वस्थ राष्ट्र के लिये ऐसी बहसो की आवशय्कता होगी. समाज मे ऐसे लोगो की बहुत जरुरत होती है जो खरी खरी बोलने की शक्ति रखते हो ताके समाज गलत दिशा मे न जाये. ऐसे ही सत्ता को उसके शक्ति मे मदहोश से रोकने और गलत दिशा से जाने वाले लोग भी चाहिये ताके देश बच सके और ह्म सब सही दिशा मे जाये. इसलिये ही हमारे संविधान मे हमे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. जो लोग भी बाबा साहेब को मानते है या जानते है उन्हे ये पता होना चाहिये के बाबा साहेब ने बहुत कुछ लिखा और जिस समय गांधी जी के बोले को कोई टोक नही सकता था उस समय उन्होने उन्हे चुनौती दी. उन्होने मनुस्मृति की सर्वोच्च्ता को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. भगवानो की पूरी कहानियो का उन्होने पर्दाफास कर दिया. आप उनकी बात से असहमत हो सकते है लेकिन उसके लिये आपके पास वैचारिक ताकत की जरुरत होगी और बाबा साहेब ने कोई भी बात बिना तर्क के नही की. इसलिये मुख्य धारा की आलोचना करने से ह्म राष्ट्र द्रोही या समाज विरोधी नही होते. दर असल ऐसी आलोचनाओ से समाज को सुधरने और आगे बढ्ने का मौका मिलता है. आज से 70 वर्ष पूर्व हमारे समाज मे ऐसी हिम्मत नही थी इसलिये बाबा साहेब के साथ अन्याय हुआ, उनके साहित्य को छिपाया गया लेकिन आज दुनिया बाबा साहेब की बौधिक्ता का लोहा मान रही है, उनको पढ रही है. उनके पढने और उनके रास्ते मे चलने से किसी का भी नुकसान नही है अपितु ह्म सबको अपने आप पर भरोषा होता है. इसलिये जो व्यक्ति बाबा साहेब को ईमानदारी से मानता है वो एक मानववादी ही होगा और उसके लिये वैचारिक दर्शन व्यक्ति के हित के लिये काम करेगा ना के किसी तीसरी अदृश्य शक्ति के लिये क्योंकि उन्होने ये साफ कर दिया के धर्म का दर्शन बहुजन हिताय वाला होना चाहिये और किसी के लिये नही.

आज 14 अप्रेल को जब ह्म बाबा साहेब को याद कर रहे है, उन्ही के परिवार के एक सदस्य और इस देश के एक मूर्धन्य विद्वान डा. आनंद तेलतुम्ब्डे को जेल भेजने की तैय्यारी चल रही है. आनंद देश विदेश मे एक बहुत बडा वैचारिक नाम है और महाराष्ट्रा मे देवेंद्र फड्नविश की सरकार ने उन्हे भीमा कोरेगांव मामले मे फंसा कर एक माओवादी बताने की कोशिश की है जो अति निंदनीय है. ह्म उम्मीद करते है के आनंद तेलतुम्ब्डे को न्याय मिलेगा और सरकार अपनी गलती स्वीकार करेगी.

आज देश का अधिकाश मीडिया बिकाऊ हो चुका है और वह न केवल झूठ परोस रहा है अपितु समाज को विभाजित भी कर रहा है. वह हर मह्त्व्पूर्ण प्रश्न पर सरकार से सवाल करने के बजाय बहस को हिंदू मुस्लिम मे बदलने का आदी हो चुका है. इसलिये ह्म कोई भी ऐसी खबरे आगे ना बढाये जो आपको नही पता कहा से आयी. घृणा और हिंसा फैलाने वाली किसी भी पोस्ट को बिल्कुल बढावा न दे. हमेशा दूसरो के सवालो पर ही न उलझे रहे, अपने समाज का भी सोचे. कुछ सकारत्मक सोचे. छुआछूत, जातिवाद, साम्प्रदायिकता, महिला हिंसा, महिलाओ पर अत्याचार, किसानो के प्रश्न, छोटे व्यवसायो पर खतरा, जलवायु परिवर्तन, आदि के प्रश्न बहुत महत्व्पूर्ण है और हमे उनपर अपना चिंतन जारी रखना है और उनकी सवालो को उठाते रहना है. एक दूसरे के साथ बहस को दुश्मनी मे मत बदले और जब भी संशय की स्थिति हो तो भारत के सविधान की प्रस्तावना को जरुर पढ लिजिये और यदि समय निकाल पाओ तो बाबा साहेब की जातियो का खात्मा कैसे हो और स्टेट और माइनारिटीज़ नामक पुस्तके जरुर पढे. आज के दिन उनकी बाइस प्रतिज्ञाये को भी याद करने का है. अम्बेड्करवादियो को अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवधिकारो के लिये सबसे आगे खडे रहना होगा क्योंकि जीवन पर्यंत बाबा साहेब का संघर्ष इन्ही मूल्यो के लिये था और यही उनके जीवन का सबसे बडा संदेश है.

Previous articleFrance extends COVID-19 lockdown until May 11
Next articleReflections on Dr Ambedkar’s Birthday