पावन भूमि को ‘महाबोधि महाविहार’ क्यों कहा जाता है?

समाज वीकली यू के

इस विशाल भूभाग में बौद्ध विहारों की इतनी अधिक संख्या थी कि पूरा भूभाग ही ‘विहार’ नाम से प्रसिद्ध हो गया है जो अब बिहार प्रदेश हैं. प्राचीन महाबोधि अब आधुनिक ‘बुद्धगया’ नाम से जाना जाता है. जो गया रेलवे स्टेशन से 12 किमी दक्षिण में फल्गु नदी (प्राचीन निरंजना नदी) के किनारे स्थित है.
बुद्धगया में जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने चित्त को एकाग्र कर ध्यान साधना द्वारा संबोधि को प्राप्त किया था वह पीपल वृक्ष ‘बोधिवृक्ष’ या बोधिद्रुम के नाम से और सिद्धार्थ गौतम ‘बुद्ध’ नाम से कहलाए. बुद्धत्व प्राप्ति का यह महान स्थान वज्रासन ‘बोधिमंडप’ कहलाया.
बाद में इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने विहार बनवाया था जो महाबोधि विहार कहलाया. यह पावन भूमि महान है इसलिए इसे ‘महाविहार’ विशेष श्रद्धा से कहा जाता है. आज वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शायद यही पूजित जीवन्त बौद्ध स्मारक है.
दीपघनिकाय के महापरिनिर्वाण सुत से यह मालूम होता है कि महापरिनिर्वाण प्राप्ति से पहले कुसीनारा में एकत्रित भिक्षु संघ के समक्ष भिक्षु आनंद को संबोधित करते हुए तथागत बुद्ध ने कहा था कि तुम लोगों के लिए चार स्थान अति पवित्र है जिसकी यात्रा तुम्हें जीवन पर्यंत करते रहना चाहिए.
1. वह स्थान जहाँ सिद्धार्थ गौतम का जन्म हुआ -लुम्बिनी
2. ⁠वह स्थान जहाँ सिद्धार्थ गौतम को सम्बोधि प्राप्त हुई – बुद्धगया
3. ⁠वह स्थान जहाँ भगवान बुद्ध ने धम्म चक का प्रवर्तन किया -सारनाथ
4. ⁠वह स्थान जहाँ भगवान बुद्ध को महापरिनिर्वाण की प्राप्ति होगी- कुसीनारा
छह वर्ष की कठिन तपस्या के मार्ग को छोड़ बाद में ध्यान साधना द्वारा समस्त चित मलों को नष्ट कर संबोधि प्राप्त की थी, बोधिवृक्ष के नीचे बैठकर बोधिसत्व सिद्धार्थ ने मार सेना को मैत्री बल से पराजित कर संबोधि को प्राप्त किया था.
संबोधि प्राप्त होने पर बुद्ध को इतना आनंद हुआ कि वे एक सप्ताह तक उसी आसान पर बोधिवृक्ष के नीचे बैठे रहे, संबोधि में बुद्ध ने प्रतीत्य समुत्पाद सिद्धांत (cause origination) का ज्ञान प्राप्त किया जिसका अर्थ है कि संसार में बिना कारण के कोई कार्य नहीं होता, सभी कार्य कारण के अधीन है. ज्ञान प्राप्ति के क्रम में उन्होंने पहले प्रतीत्य समुत्पाद का अनुलोम मनन किया जिससे यह मालूम हुआ कि हर अगली कड़ी अपनी पहली कड़ी का फल है.
इसके बाद उन्होंने प्रतीत्य समुत्पाद का प्रतिलोम मनन किया जिससे पता चला कि यदि किसी भी एक कड़ी को तोड़ या अलग कर दिया जाए तो पूरी शृंखला छिन्न भिन्न हो जाएगी अर्थात अविद्या के निरोध से संस्कार का निरोध होगा. संस्कार का निरोध होने से विज्ञान उत्पन्न नहीं होगा. इसी प्रकार अंतिम कार्य ज़रा मरण का निरोध हो सकता है.
इससे ज्ञान को प्राप्त करने के बाद ही पहले सप्ताह तक वे बोधि वृक्ष के नीचे बैठे हुई अपलक गति से बोधिवृक्ष को निहारते रहे. इसके बाद अनिमेष चैत्य,चंक्रमण भूमि और रत्नघर स्थानों पर एक एक सप्ताह आनंद विभोर होकर बिताया.
इन चार सप्ताहों के बाद पांचवें सप्ताह भगवान बुद्ध अजयपाल नामक वृक्ष के नीचे गये और वहाँ भी एक सप्ताह यानी पाँचवा सप्ताह भी आनंद विभोर होकर बैठे रहे.
छठे सप्ताह में वे मुचलिद वृक्ष के नीचे गये और वहां भी सप्ताह आनंद से बिताया. छठे सप्ताह में एक विशेष घटना घटी. अचानक और असमय तेज़ वर्षा हुई, ठंडी हवाएँ चलने लगी, आँधी तूफ़ान आया.
यह देखकर मुचलिद में रहने वाले नागराज ने भगवान बुद्ध के शरीर को सात बार अपनी देह से लपेट कर उनके सिर पर अपने विशाल फण को तानकर तेज वर्षा, सर्दी , कीट व अन्य जीव जंतुओं से उनकी रक्षा की.
सातवें सप्ताह वे राजायतन वृक्ष के नीचे पहुँचे और वहाँ भी एक सप्ताह भर एक ही आसन में आनंद विभोर बैठे रहे.
राजायतन वृक्ष के नीचे ही दो व्यापारी बंधु तपस्सू और भल्लिक उत्कल देश से व्यापार कार्य पूरा कर वापस लौट रहे थे. उन्होंने बुद्ध को मट्ठा और मीठे लड्डू प्रदान किए. वे दोनों भाई बुद्ध और धम्म की शरण ग्रहण करने वाले पहले दो उपासक शिष्य थे. उन्हें भगवान बुद्ध ने अपने केश धातु प्रदान किये थे. तपस्सू ने अपने प्रांत में जाकर विशाल केशधातु पर विहार बनवाया जो आज भी म्यांमार के रंगून शहर में विशाल शवेडागोन पैगोडा के नाम से विश्व प्रसिद्ध हैं.
महाविहार के लिए टेम्पल (मंदिर) शब्द ब्रिटिश व अन्य यूरोपीय श्रद्धालुओं द्वारा उपयोग में लिया गया. इसी कारण इससे संबंधित एक्ट का नाम बोधगया टेम्पल एक्ट BT Act कहा जाता है जबकि यह टेम्पल नहीं बल्कि महाविहार हैं और बोधगया नहीं बल्कि बुद्धगया है.

डॉ एम एल परिहार- पाली. जयपुर 9414242059

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