विद्या भूषण रावत
(समाज वीकली)- अभी कुछ दिनों पूर्व मुझे एक राष्ट्रीय चैनल पर एक परिचर्चा मे बुलाया गया। मुझे बताया गया कि यह अंधविश्वास के विरुद्ध उनका अभियान है। मैंने उन्हे बताया कि वर्षों पूर्व मै इन चैनलों मे जाता रहा हूँ लेकिन अब ये किसी के एजेंडे मे नहीं है और अंततः एंकर किस प्रकार से इसका अंत करता है वो महत्वपूर्ण होता है। फोन करने वाले मित्र ने कहा कि आपको पूरी ताकत से अपनी बात रखनी चाहिए क्योंकि ये आवश्यक है। मैंने कुछ हिचक के बाद अपनी हामी दे दी और फिर अगले दिन चैनल के मुख्यालय पर नोएडा पहुँच गया।
दोपहर के 12 बजे से पहले मै चैनल के गेस्ट रूम मे था और अन्य मेहमान भी पहुचने लगे थे। मैंने तीन युवाओ को वहा देखा तो अंदाज लगा लिया। पूछा तो उन्होंने बताया कि अभी दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान मे स्नातक और दूसरे का स्नातकोत्तर के विद्यार्थी थे । दोनों ने बताया कि वे माइंड रीडिंग के काम को करते है लेकिन कला के तौर पर। उन्होंने कहा हम किसी भी प्रकार की शक्ति होने का दावा नहीं करते। इसे एक कला के तौर पर देखा जाना चाहिए। थोड़ी देर बाद एक अन्य मनोविज्ञान वाले पहुँच गए जिन्हे ‘डाक्टर’ कहा जा रहा था। बातों बातों से उनकी विचारधारा का पता चल गया। उन्होंने बताया कि वह देश दुनिया देख चुके हैं और बात यह है कि ‘सनातन’ सभी का सॉफ्ट टारगेट है। आखिर चमत्कार तो ईसाइयों मे भी होते हैं तो उन्होंने कोई कुछ क्यों नहीं कहता। मैंने कहा कि अरबिंदो, दयानंद और विवेकानंद का वैदिक धर्म क्या अब बाबाओ के चमत्कारों के भरोसे चलेगा ? किसी बाबा के कार्यों पर सवाल उठाना और धर्म पर सवाल खड़े करना दो अलग अलग बाते हैं। यहा कोई हिन्दू धर्म पर बातचीत नहीं कर रहा है बल्कि अंधविश्वास पर सवाल खड़े कर रहे हैं लेकिन ‘मनोवैज्ञानिक’ महोदय यह कहते रहे कि बाबा धीरेन्द्र शास्त्री ने किसी चमत्कार का दावा नहीं किया है और ये तो जो लोग उनके आशीर्वाद से ठीक हो जा रहे हैं वे कह रहे है कि बाबा चमत्कार कर रहे हैं। मुझे पहले से इतना यकीन नहीं था कि इस चैनल ऐसे ‘विशेषज्ञों’ को बुला रहा है। वैसे तो मुझे पता है कि आजकल पैनलों मे आर एस एस और बी जे पी के लोग तो होते ही हैं लेकिन अब ‘विशेषज्ञ’ के नाम पर पर भी उनके ही लोग बुलाए जा रहे है जैसे ‘राजनैतिक विशेषज्ञ’, रक्षा विशेषज्ञ, समाजशास्त्री या इतिहासकार। संघी विशेषज्ञों की ये टोली अब विज्ञान के क्षेत्र मे काम कर रही है। खैर, मुझे इस पैनल मे एक ‘पंडित’ जी भी दिखाई दिए और उनके साथ ही एक ‘फिंगर प्रिन्ट’ विशेषज्ञ भी दिखाई दिए। मुझे लगा कि जब इतने विशेषज्ञ होंगे तो शायद बहस अच्छी होगी। मैंने एंकर को बताया कि इस मसला केवल धर्म और अंधविश्वास ही नहीं जुड़ा है लेकिन महिलाओ की सुरक्षा और उन पर होने वाले अत्याचारों से भी जुड़ा है क्योंकि भूत प्रेत आदि के सवाल वास्तव मे मनोरोगों के प्रश्न भी हैं और इस बात के भी कि जनता इन्हे किन नज़रियों से देखती है। मै ये बात इस डिस्कशन मे लाना चाहता था और एंकर साहिबा ने कहा भी ये महत्वपूर्ण है। खैर, हम सब स्टूडियो मे बैठा दिए गए। बैठने की लोकैशन के हिसाब से मेरी समझ मे आ गया था कि दो माइन्ड रीडर्स, एक ‘मैजीसीयन’ और एक तर्कवादी एक तरफ हैं और बाकी बाबा मंडली दूसरी तरफ। मुझे ये भी अंदाज हो गया था कि टी वी चैनलों को टी आर पी चाहिए। वे तमाशा दिखाना चाहते हैं लेकिन सवालों की बहस को बेहद चतुराई और धूर्तता से दूसरी तरफ कर देते हैं। यहा आपको हाँ या न मे जवाब मांगे जाते हैं ताकि आप गलत नजर आए। प्रोग्राम का फोकस तो माइन्ड रीडर्स और मजिशन का शो था और 20-25 लोग दर्शकों मे बैठे हुए थे। उन्होंने लाइव दिखाया कि कैसे वे आपके दिल की बात को समझ लेते हैं। एक दो प्रयोग हमारे पैनालिस्ट पर किये गए। अब बाबा पैनालिस्ट भी भौचक्के थे कि ये नवयुवा तो उनके मन की बात जान रहे हैं और ऐसे दावे तो धीरेन्द्र शास्त्री भी नहीं कर सकते। अब उन्होंने अपना नेरटिव बदल दिया। वे कहने लगे ये युवा तो हमारी सशक्त धार्मिक विरासत को ही मजबूत कर रहे हैं। यही तो सनातन के चमत्कार हैं। एंकर मुझसे पूछी के क्या सनातन मे चमत्कार होते हैं। मैंने कहा मै तो नहीं जानता लेकिन मैंने केवल ये बात कही माइन्ड रीडिंग करने वाले ये युवा बताया रहे हैं कि वे कोई चमत्कार नहीं कर रहे हैं,ये केवल एक आर्ट है, कला है जिसे बेहद मेहनत के बात उन्होंने सीखा है। मैंने कहा, ये लोग कोई विशेष शक्तिया होने का दावा नहीं कर रहे। फिर मैंने कहा कि केदारनाथ धाम से पहले गौरी कुंड मे एक गरम पानी का कुंड हैं और इसके बारे मे बहुत सी कथाये हैं लेकिन अगर वैज्ञानिकों से पूछेंगे तो इसके रहस्यों के बारे मे बता सकते हैं कि ऐसे गरम पानी के कुंड हिमालय मे बहुत से स्थानों पर हैं।
बाबाभक्त विशेषज्ञों ने कहा कि सनातन मे जब कोई अच्छा काम करता है तो उसकी बुराई क्यों।
ये एक अन्तराष्ट्रिय साजिश है। ये नवयुवा जो कर रहे हैं ये हमारी सनातन की विद्या है जिसका प्रचार और प्रसार किया जाना चाहिए। विदेशियों ने हमारा सारा ज्ञान लेकर अपना पेटेंट करवा दिया। टीका लगाए ‘पंडित’ कह रहे थे कि भारत मे सरगसी का केस तो महाभारत के समय हो गया था। उन्होंने वैसे ही विज्ञान के चमत्कार बताए जैसे प्रधानमंत्री जी ने एक बार कहा था कि हमारे यहा तो प्लास्टिक सर्जरी तो प्राचीन काल मे होती रही है और गणेश जी इसका मुख्य उदाहरण हैं। खैर कुल मिलाकर आखिर मे सनातन और विज्ञान को बराबरी पर छोड़ दिया गया और कार्यक्रम खत्म हो गया।
कार्यक्रम के खत्म होने पर हम सब लोग गेस्ट रूम मे बैठे ताकि थोड़ा बहुत बातचीत कर सके। बाबा मनोवैज्ञानिक मुझसे बात नहीं करना चाहते थे। मैंने देखा कि वे लोग मुझे छोड़ हर एक से बात कर रहे थे। किसी ने भी थोड़ा भी कोशिश नहीं की कि मुझे पूछ ले या मुझसे कोई बातचीत कर ले। वे ‘जादूगरी’ और ‘माइंड रीडिंग’ की कला जानना चाहते थे ताकि कोई नहीं दुकान सजा सके। उनका ये कहना था कि ये हमारी पारंपरिक ‘विद्या’ है जिसे हर हाल मे बचाया जाना चाहिए। मैंने तो दोनो युवाओ और मेजईसीयन से कहा कि आप कभी चमत्कार का दावा नहीं करना। चमत्कार का भंडाफोड़ होना चाहिए क्योंकि ऐसे दावे करके लोगों का खासकर महिलाओ और गरीबों का बहुत शोषण हुआ है।
भारत मे अंधविश्वास के सवाल बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इन्ही की आड़ मे शोषण का एक बहुत बड़ा बाजार है। देश मे ग्रामीण इलाकों मे स्वास्थ्य सेवाओ की कमी के कारण लोग सस्ते, सुलभ और टिकाऊ उत्तर चाहते है। स्वास्थ्य सेवाओ की कमी और प्राइवेट चिकित्सकों की लूट के कारण लोग ‘पारंपरिक’ टोन, टॉनही, भूत प्रेत आदि के चक्करों मे फँसते हैं। हालांकि ये भी हकीकत है कि पिछले कुछ वर्षों मे ऐसे ‘चमत्कारी’ बाबाओ की संख्या बहुत बढ़ गई है और इसलिए लोगों को इनके मकड़जाल मे फँसाय जा रहा है। आज से 10 वर्ष पहले कम से कम हम इस गलती को स्वीकार करते थे कि देश मे स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओ के अभाव मे लोगों ने अंधविश्वास होता है और वे फंस जाते है लेकिन अब अंतर ये आ गया है कि ऐसे लोग जो साफ तौर पर अपराधी की श्रेणी मे आते अब खुले तौर पर छाती ठोकर अपने फर्जीवाड़े को ‘चमत्कार’ और पारंपरिक स्वास्थ्य शिक्षा बता कर और वैज्ञानिक चिंतन को पश्चिम का बता कर उसे खारिज कर देना चाहते हैं।
जब अंधविश्वास, पाखंड, टोनहा टॉनही, भूत प्रेत की कहानियों के चलते शोषण का बाजार मजबूत हुआ तभी बहुत से राज्यों ने इनके विरुद्ध कानून बनाया। महाराष्ट्र, छत्तीसहगढ़, झारखंड, बिहार, असम आदि राज्यों मे कानून तो बन गए लेकिन केवल नाम के वास्ते क्योंकि जब इनको अज्ञानता को बढ़ाने और जनता को उसके चंगुल मे फँसाने वाले ही संविधान की शक्तियों का इस्तेमाल करके उसको आगे बढ़ा रहे हैं,
आज से लगभग 7-8 वर्ष पूर्व अमेरिका के बहुत बड़े न्यूज नेटवर्क ने मध्य प्रदेश के इटारसी के पास एक गाँव मलाजपुर के भूतमेला पर एक स्टोरी करने की सोची और मुझे संपर्क किया। उनकी टीम भारत आई। दिल्ली से मै उनके साथ चला। रास्ते भर वो मुझसे पूछती रहे कि हम क्या देखेंगे। मैंने बताया कि यहा 90% से अधिक महिलाये होंगी और उन्मे बड़ी आबादी हमारे हासिए के समाज की है। पत्रकार मुझसे पूछती है कि लोग यहा क्यों आते हैं। मैंने उन्हे कहा कि मुख्यतः ये मनोरोग हैं लेकिन हमारे समाज मे ये बहुत बड़ा अपराध है, मनोरोगियों के प्रति हमारा नजरिया बेहद घृणा और एक प्रकार की छुआछूत का है। उनकी भावनाओ और समस्याओ को कोई देखना नहीं चाहता। मुख्यतः महिलाये इसका शिकार होती हैं और उनकी तीन मुख्य ‘समस्याए’ हैं। एक यदि किसी का विवाह नहीं हो रहा तो क्यों ? यदि विवाह है और बच्चे नहीं हो रहे तो क्यों ? यदि बच्चे हैं और केवल लड़किया है तो लड़का क्यों नहीं ? विधवा और अकेली महिलाओ को संपति से वंचित करने के चक्कर मे भी उनके नजदीकी लोग उनपर डायन, भूत प्रेत का साया होने का आरोप लगाते हैं। मैंने उस पत्रकार को कहा कि वह लोगों से बहस न करे केवल उनसे बात करे और तब वे आपको अपनी बात कहेंगे। जब हम वहा पहुंचे तो लोग उधर आते और कुछ लोगों से बात करने मे मैंने जो बात उसे बातआई वही। एक व्यक्ति बेटे की तलाश मे आया उसने बताया कि उसके परिवार मे बाबा के आशीर्वाद से 6 लड़कियों के बाद बेटा हुआ है। अधिकांश सवाल ऐसे ही थे। वहा पर अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का एक ग्रुप भी आया हुआ था जिसने थोड़ा हंगामा करना शुरू किया। मैंने कहा यदि आपको पर्दाफास करना है तो हंगामा करके कुछ नहीं होगा आप लोगों से बात करें और जाने वे को आते हैं। उन्होंने वैसा ही किया और एक अच्छी रिपोर्ट गाँव के ऊपर आई। ये बात मै इसलिए कह रहा हूँ कि विदेशी चैनल इसे मात्र चमत्कार के रूप मे या उसके विरोध मे नहीं दिखा रहे थे। उन्होंने यहा आने के लिए एक पत्रकार और केमरा पर्सन को भेजा। मुझे दिल्ली से लिया गया था और एक और व्यक्ति साथ मे थे। क्या भारत के चैनल इतना खर्च और समय देंगे। नहीं। यहा आपको इन्स्टेन्ट कॉफी चाहिए और वो स्टूडियो से अधिक कही नहीं हो सकता। क्योंकि सार्थक चर्चाओ मे किसी का भरोसा नहीं होता इसलिए हम एक वैज्ञानिक प्रयोग को भी तमाशे मे बदल कर अपनी सुविधाओ के अनुसार उसकी व्याख्या कर देते हैं। धीरेन्द्र शास्त्री के ‘चमत्कारों’ के सवाल को मीडिया ने इसी तरीके से साबित करने की कोशिश की। कुछ ने तो आरोप लगा दिया कि हम मुसलमानों और ईसाइयों मे अंधविश्वास को लेकर कुछ नहीं कहते और जिन्होंने माइन्ड रीडिंग के जरिए ये दिखाया उनके मुंह से भी ये कहलवाया दिया गया कि हम दूसरे के चमत्कार पर कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि हम ‘राजनीति’ नहीं कर रहे अपितु कला दिखा रहे हैं। हकीकत ये है वैज्ञानिक होने का मतलब ये नहीं कि आप वैज्ञानिक चिंतन को मानते ही हों। यदि ऐसा हुआ होता तो भारत के मध्यवर्ग के जो लोग डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक बन रहे हैं वे अंधविश्वास, जातिवाद और पुरोहितवाद को संस्कृति के नाम पर नहीं जप रहे होते ? संकट बड़ा है और आवश्यक है कि हम सभी ये देखे के अंधविश्वास की कूपमंडूकता का सबसे बड़ा नुकसान हमारे समाज और विशेषकर महिलाओ और गरीब लोगों को हो रहा है। एक राष्ट्र तभी मजबूत होगा जब हम अपनी कमियों पर बहस करेंगे और समाज मे सवाल करने की प्रवर्ती को राष्ट्रविरोधी और एक धर्म विशेष के विरोध के रूप मे नहीं देखे तभी हम अन्याई तंत्र और चमत्कार के नाम पर लोगों का शोषण करने वालों के विरुद्ध संघर्षरत लोगों को न्याय दिला पाएंगे।