#समाज वीकली
ममता कुमारी, शोधार्थी, ‘भगत सिंह के विचारों की प्रासंगिकता’, अस्थल बोहर रोहतकबाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, अस्थल बोहर, रोहतक
आलेख सार-
भगत सिंह जन्म – 28 सितंबर 1907, जिला- लायलपुर, गांव बंगा, पाकिस्तान, मृत्यु – 23 मार्च 1931 फांसी की सजा, लाहौर सेंट्रल जेल, पाकिस्तान, भगत सिंह के पिता का नाम सरदार किशन सिंह व माता का नाम विद्यावती था . सरदार अर्जुन सिंह भगत सिंह के दादा स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आए और उन्होंने आर्य समाज को अपना लिया । उन दिनों आर्य समाज धार्मिक आंदोलन न होकर एक समाज सुधार आंदोलन था । भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ . परिवार में आर्य समाज रीति-रिवाज का परंपराओं का पालन किया जाता था . भगत सिंह हिंदू व मुस्लिम क्रांतिकारियों के संपर्क में आए इस प्रकार भगत सिंह धर्म को लेकर एक उदारवादी विचारधारा के समर्थक बन गए .
मुख्य शब्द : धर्मनिरपेक्षता, सांप्रदायिक, धार्मिकता, कट्टरता, अंतर-धार्मिक, अंतर- जातीय, द्वि-राष्ट्र सिद्धांत, संकीर्ण मानसिकता, उदारवादी धर्मनिरपेक्षता से अभिप्राय धर्म के नाम पर सहनशीलता, सभी धर्म को समान भाव से देखना . 1924 में कोहाट में सांप्रदायिक दंगे हुए । 1928 में किरती में “सांप्रदायिक दंगे और इनका इलाज” लेख छपा । इसमें भगत सिंह ने लिखा कि यदि धर्म को अलग कर दिया जाए तो राजनीति पर हम सब एक हो सकते हैं । धर्म में हम चाहे अलग-अलग ही रहे । ;सांप्रदायिक दंगे भड़काने में हमारे नेताओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है . सड़क से लेकर संसद तक नेताओं के बोल इस हद तक बिगड़ चुके हैं की लगता ही नहीं यह किसी सम्मानजनक पद पर बैठे हुए व्यक्ति के बोल हैं . कट्टर धार्मिक विचारधारा कहीं न कहीं देश के लिए घातक बनती जा रही है और देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है । भारत जो कि महात्मा बुद्ध, महावीर जैन और महात्मा गांधी जैसे शांतिप्रिय महापुरुषों का देश है । परंतु समय-समय पर में भारत में ‘धर्म विशेष’ राज्य की जो विचारधारा चल रही है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को खराब करती है । इसका कारण बिकाऊ मीडिया जो अपने कार्यक्रम में ऐसे ऐसे मुद्दे लेकर बैठते हैं जिनका कोई उद्देश्य नहीं है । जनता महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, स्वास्थ्य, शिक्षा संबंधी सवाल सरकार से ना पूछ सकें और सिर्फ धर्म तक ही सीमित रह जाएं ।
अपने लेख में भगत सिंह धर्म से राजनीति को अलग रखते हैं । उनका मानना था कि धर्म के नाम पर राजनीति नहीं होनी चाहिए । भगत सिंह के अनुसार “यदि धर्म को राजनीति से अलग कर दिया जाए तो राजनीति पर सब की राय एक हो सकती है ।” संक्षेप में भगत सिंह के अनुसार धर्मनिरपेक्षता का भारतीय संदर्भ में हिंदू, मुस्लिम व सिक्ख होने की अपेक्षा पहले इंसान को इंसान समझो और फिर भारतीय “यह विचार सांप्रदायिकता की बाढ़ को रोककर धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना करेगा तथा भारत का भविष्य सुनहरा होगा . “सन् 1925 में दो संगठनों -प्रथम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई । सन् 1926 में लाहौर में भगत सिंह और उसके साथियों के द्वारा नौजवान सभा की स्थापना की गई । राष्ट्रीय सेवक संघ दक्षिणपंथी विचारधारा पर आधारित थी जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और नौजवान सभा वामपंथी विचारधारा पर थी . “नौजवान सभा का मुख्य उद्देश्य वर्ग रहित व धर्मनिरपेक्ष समाज की स्थापना था इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए नौजवान सभा के सदस्य शपथ लेते थे कि वह अपनी कम्युनिटी की अपेक्षा राष्ट्र को महत्व देंगे इस उद्देश्य की प्राप्ति के किसानों व मजदूर के प्रचार करने के लिए अंतर-धार्मिक व अंतर-जातीय विभिन्न धर्म के अनुयायियों के लिए सामूहिक दावतों का आयोजन हो सके ताकि पारस्परिक भाईचारा बढे़ और भेदभाव समाप्त हो .” पहले भारतीय साधु संतों का सक्रिय राजनीति में आना और धर्म के नाम पर लोगों को उकसाना कहीं ना कहीं देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बनता जा रहा है ।
”सन्-1920-21 में कांग्रेस में खिलाफत कमेटी साथ साथ काम कर रही थी । खिलाफत आंदोलन का उद्देश्य पूरा होते ही इसके नेता सांप्रदायिक आधार पर अलगहो गए । पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “गांधी जी ने धर्म और धर्म की आड़ में जिस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन खड़ा किया उससे मुसलमानों में धार्मिकता और कट्टरता बढ़ी है . गांधी जी कहते हैं कोई भी आदमी धर्म के बिना जीवित नहीं रह सकता और मैं पूरी विनम्रता के साथ कह सकता हूं कि वे लोग जो कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कोई भी नाता नहीं वो समझते ही नहीं है धर्म का क्या अर्थ है ? गांधी जी के समकालीन नेताओं का मानना था कि गांधी जी ने असहयोग आंदोलन के साथ खिलाफत आंदोलन के नेताओं का समर्थन करना धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देना था . गांधी जी के धर्म और राजनीति के आपसी संबंध का नकारात्मक अर्थ निकाल लिया गया और वर्तमान में धर्म और राजनीति अपने पूर्ण नकारात्मक स्वरूप में है . भगत सिंह ने सही लिखा है कि सांप्रदायिक दंगे भड़काने में हमारे नेताओं का बहुत बड़ा हाथ रहा है । परिणाम स्वरुप “द्विराष्ट्र के सिद्धांत हिंदू या मुस्लिम धर्मों के अनुयायियों ने सांप्रदायिक ज्वाला को भड़काकर भारत के विभाजन में अहम भूमिका निभाई अदा की । भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता प्राप्त करने की संभावना के प्रति निराशा व्यक्त की । इसके बजाय, उन्होंने;भारत के स्पष्ट विभाजन का प्रस्ताव रखा, सुझाव दिया , पंजाब को दो प्रांतों में विभाजित किया जाना चाहिए, बड़े मुस्लिम बहुमत वाले पश्चिमी पंजाब को मुस्लिम शासित प्रांत बनाया जाना चाहिए और योजना के तहत, यही सिद्धांत बंगाल पर भी लागू किया जा सकता है । मुसलमानों के चार प्रांत होंगे, -एनडब्ल्यूएफपी, पश्चिमी पंजाब, सिंध और पूर्वी बंगाल । उन्होंने आगे स्पष्ट किया। ‘लेकिन यह स्पष्ट रूप से समझा जाना चाहिए कि यह अखंड भारत नहीं है, इसका मतलब भारत का मुस्लिम भारत और गैर-मुस्लिम भारत है, बल्कि “मुस्लिम भारत में एक स्पष्ट विभाजन” है ।” संप्रदायिक हिंदू बनाम मुस्लिम – धर्म व संप्रदायवाद के आधार पर भारत का विभाजन हुआ . भारत का विभाजन धर्म के नाम पर हुआ । एक हिंदू राज्य व एक मुस्लिम राज्य स्वतंत्रता से पहले भारत में “20वीं सदी की शुरुआत में, भारत में कुछ मुस्लिम नेता – मौलाना मोहम्मद अली, मौलाना सिंधी, मौलाना असफ़र अली थानवी और सर आगा खान – ने हिंदू प्रभुत्व के डर के कारण मुसलमानों के लिए एक अलग मातृभूमि की वकालत करना शुरू कर दिया । हालाँकि, यह विचार केवल मुस्लिम समुदाय तक ही सीमित नहीं था, क्योंकि गुलशन राय, मेहर चंद खन्ना और वीडी सावरकर सहित कुछ कट्टर हिंदू नेताओं ने भी एक अलग मुस्लिम मातृभूमि के विचार का समर्थन किया था, जिसे ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत’ के रूप में जाना जाता है । 1937 में हिंदू महासभा सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में, सावरकर ने साहसपूर्वक कहा कि “हिंदू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं निष्कर्ष धर्म के नाम पर काफी दंगे हुए ब्रिटिश सरकार ने इसका भरपूर लाभ उठाया स्वतंत्र भारत में इस प्रकार की घटनाएं न हो इसलिए भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया परंतु स्वतंत्र भारत में भी सांप्रदायिक घटनाओं के घटित होने के असंख्य उदाहरण हैं । भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़कर हम धर्म के नाम पर होने वाले विवादों से नहीं बच सकते भगत सिंह के अनुसार यदि हमें एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना करनी है तो संकीर्ण मानसिकता को त्याग ना होगा धर्म के नकारात्मक स्वरूप को त्यागना होगा धर्म के नाम पर होने वाले विवादों से बचना होगा धर्म के नाम पर सहिष्णु होगा तभी हम एक धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना कर सकेंगे
(मैं अपने गुरूजी, डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत) के प्रति आभार प्राप्त करती हूं
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