खाप पंचायतों की भूमिका:एक समालोचनात्मक मूल्यांकन
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयालसिंह कॉलेज, करनाल –(हरियाणा-भारत)
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#समाज वीकली
भारत का प्राचीन इतिहास :खाप व्यवस्था
भारत प्राचीन इतिहास के झरोखे से ज्ञात होता है कि खाप की राजनीतिक इकाई को 84 गाँवों के समूह के रूप में परिभाषित किया गया है. खापों के समकक्ष ‘जन‘ के कामकाज के बारे में ऋग्वेद काल में लगभग 2500 ईसा पूर्व वर्णन मिलता हैं. 84 गाँवों के समूह के रूप में माप की यह इकाई लगभग 500 ईसा पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप में शक प्रवासन/आक्रमण के समय से है. पाल, गण, गणसंघ, जनपद, पंचा
वर्तमान समय में ‘खाप पंचायत’ की प्रणाली अधिकांश रूप में हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के ग्रामीण क्षेत्र,पंजाब,हिमाचल प्रदेश(देवता पंचायत), राजस्थान(न्याति पंचायत) ,उत्तराखंड (खाट पंचायत)में इत्यादि राज्यों में विद्यमान है. इस समय समस्त भारत में लगभग 3500 पंचायत हैं.
खाप शब्द का अर्थ:
खाप शब्द की व्युत्पत्ति के दृष्टिकोण से खाप दो शब्दों ख +आप का मेल है. ‘ख’ का अर्थ ‘आकाश’ तथा ‘आप’ का अर्थ पानी है.दोनों शब्दों को मिलाकर खाप आकाश के भांति सर्वोच्च और सर्वोपरि है तथा जल की भांति निर्मल है.व्यावहारिक रूप में यह एक सामाजिक, राजनीतिक तथा भौगोलिक समूह/ संगठन है.कुछ विद्वानों के अनुसार खाप शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के कॉर्पस शब्द से हुई है. कॉर्पस का अर्थ है व्यक्तियों का संगठन है. परंतु अंग्रेजी साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान डॉ. भीम सिंह दहिया ( पूर्व वाइस चांसलर,कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय ,कुरुक्षेत्र ) के
जाट जाति की खापें:
वर्तमान समय में खापों के स्वरूप में क्षेत्रीय व जातिय दृष्टिकोण से अंतर विद्यमान है.जाट बाहुल्य क्षेत्रों में अधिकांश जाट जाति की खापें विद्यमान हैं. जाट जाति की मुख्य खापों में बालियान खाप ,दहिया खाप,तोमर खाप, सतरोल खाप, गठवाला खाप , ध
20वीं तथा वर्तमान शताब्दी में जाटों की सबसे महत्वपूर्ण चर्चित बालियान खाप रही है. बालियान खाप का इतिहास पढ़ने से ज्ञात होता है कि आज से लगभग 1381 वर्ष पूर्व महाराजा हर्षवर्धन के द्वारा बालियान खाप के प्रधान को ‘टिकैत’ की उपाधि से नवाजा गया था. बालियान खाप में चौधर उत्तराधिकार के आधार पर होती है. उदाहरण के तौर पर सन् 1943 में महेंद्र सिंह टिकैत को उनके पिता जी की मृत्यु के बाद केवल आठ वर्ष की बाल्यावस्था में बालियान खाप का प्रधान बनाया गया. हम अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि बलियान खाप के प्रधान को अभूतपूर्व शक्तियां प्राप्त हैं. 12 मई 1941 को बालियान खाप के द्वारा एक अद्भुत पूर्व प्रस्ताव पास किया गया. इस प्रस्ताव के अनुसार शपथ ग्रहण की गई है कि ‘हम अपने शरीर,हृदय और आत्मा से खाप के हित के लिए अपने चौधरी के नेतृत्व में काम करेंगे.’ इस प्रस्ताव के अंत में स्पष्ट लिखा है कि ‘खाप का चौधरी हमारे जीवन को भी मांग सकता है’. बालियान खाप के नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के प्रसिद्ध नेता थे. उनका जीवन किसानों के लिए समर्पित था .यद्धपि वे बलियान खाप के नेता थे परंतु उनके मुख्य सहयोगी अन्य जातियों के नेता भी थे .परंतु सबसे विश्वास पात्र ,मुख्य सहयोगी व मित्र इस्लाम धर्म का अनुयायी था. महेंद्र सिंह टिकैत को जाट नेता कह कर उनके व्यक्तित्व को छोटा करने की कुचेष्टा की जाती है.वास्तव में वह अंतर- जातिय और अंतर- धार्मिक सद्भावना को लेकर सभी किसानों और मजदूरों के हितैषी थे.
महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र राकेश टिकैत अपने पिता की भांति तीन कृषि कानूनों (किसान उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 ,किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण समझौता अधिनियम) को निरस्त करना ,न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी– c2+50%) के लिए कानूनी की गारंटी तथा अन्य मांगों से संबंधित किसान आंदोलन सन् 2020 – सन् 2021 के राष्ट्रीय प्रवक्ता थे . किसान आंदोलन परिणाम स्वरूप एक बार फिर बालियान खाप चर्चा में आई और राकेश टिकैत केवल बालियान /जाटों के नेता ही नहीं अपितु किसान आंदोलनकारी नेता होने के कारण हिंदू ,सिख मुस्लिम तथा अन्य धर्म के अनुयायियों के लोकप्रिय नेता सिद्ध हुए. 378 दिन चलने वाले किसान आंदोलन के द्वारा खाप पंचायतों को औचित्यपूर्णता प्राप्त हुई और इनका महत्व पुन: स्थापित हुआ. पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की खापों के समर्थन और देश भर में विरोध प्रदर्शनों ने किसान ‘आंदोलन में नई ऊर्जा का संचार किया’ .
हरियाणा की खापों ने किसानों की सुरक्षा का जिम्मा उठाया और खाप नेता वाहनों के बड़े काफिले के साथ सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर पहुंचे थे.
अन्य जातियों में खाप पंचायतें:
केवल जाटों में ही नहीं अपितु अन्य जातियों में पाई जाती है.इन पंचायतों को खाप पंचायत की अपेक्षा जातिय पंचायत,महाजातिय पंचायत, सर्वजातिय पंचायत, क्षेत्रिय पंचायत इत्यादि के नाम से पुकारा जाता है. परंतु यह पंचायतें किसी भी रूप में खाप पंचायतों के समकक्ष नहीं हैं. क्योंकि खाप पंचायतें सुसंगठित हैं. जबकि अन्य जातियों की पंचायतें किसी एक विषय अथवा सामाजिक,आर्थिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक मुद्दे को लेकर की जाती हैं.इनका नेतृत्व अस्थाई होता है जबकि खाप पंचायतों का नेतृत्व स्थाई होता है.
खाप पंचायतों अथवा पंचायतों की कार्य प्रणाली —तस्वीर का सकारात्मक एवं प्रोग्रेसिव पक्ष:
खाप पंचायतों की कार्य प्रणाली अथवा सामाजिक दायित्व के संबंध में मुख्य बिंदु अग्रलिखित हैं:
1. स्थानीय विवादों व समस्याओं का समाधान: यद्धपि खाप पंचायतें व अन्य जातियों की पंचायतें संविधानेत्तर संस्थाएं हैं. परंतु इसके बावजूद भी इनके द्वारा अनेक स्थानीय विवादों व समस्याओं का समाधान किया जाता है. विवाह, विवाह -विच्छेद से लेकर जमीन, जायदाद, हत्या, मारपीट, म
2. समाज सुधार के कार्य : खाप पंचायतों के द्वारा समाज सुधार के कार्य भी किए जाते हैं. समाज में प्रचलित परंपरागत रूढ़ियों, अंधविश्वासों, पाखंडों
3. राजनीतिक नेताओं के गलत कार्यों के विरुद्ध आवाज उठाना: हरियाणा की खाप पंचायतों के द्वारा हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह व केंद्रीय मंत्री बृज भूषण शरण के विरुद्ध यौन उत्पीड़न के मामले में महिला खिलाड़ियों का समर्थन किया और यौन उत्पीड़न के कथित अपराधियों पर मुकदमा चलाने व अपदस्थ करने के लिए सरकारों पर दबाव ड़ाला. नैतिक आधार पर इन दोनों मंत्रियों को त्यागपत्र देना चाहिए था अथवा इनको अपदस्थ कर देना चाहिए था. परंतु ऐसी राजनीतिक शुचिता कहां से लाएं? यहएक यक्ष प्रश्न है.
4. संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण: परिवर्तन प्रकृति का एक अटूट नियम है. इसके बावजूद भी प्रत्येक समाज परंपरागतता तथा आधुनिकता का मिश्रण होता है.खाप पंचायतों के द्वारा आधुनिकरण के साथ-साथ स्वस्थ परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित करने में मदद की जाती है. परिणामस्वरूप यह सामाजिक ताने बाने और सदियों पुरानी स्वस्थ परंपराओं की निरंतरता बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं.
5. सामाजिक एकीकरणऔर सामुदायिक समर्थन: खाप पंचायतों के द्वारा सामूहिक और सामुदायिक जिम्मेदारियां को निभाने की भावना को बढ़ावा देती है.यह समाज को जरूरत के समय एक दूसरे का समर्थन उत्साहित करके सामाजिक संबंधों और बंधनों को मजबूत करती हैं.
6. सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देना: विकास परियोजनाओं, कल्याणकारी योजनाओं और समुदाय के जीवन को सुधार लाने के लिए सड़कों, स्वस्थ केंद्रों, स्कूलों व कालेजों जैसी अनेक पहलुओं की शुरुआत और देखरेख करती हैं. डॉ.आर. आर.मलिक,पूर्व प्राचार्य जीएमएन कॉलेज अंबाला कैंट के अनुसार इन पंचायतों के द्वारा गांवअथवा क्षेत्र के सामूहिक हित के लिए मंदिरों, पंचायत घरों, चबूतरों, बारात घरों, तालाबों, स्कूलों, महाविद्
खाप पंचायतों की चुनावी राजनीतिक में भूमिका:
हरियाणा के नौ जिलों-जींद, रोहतक, सोनीपत, रे
साधारण राजनेता से लेकर प्रधानमंत्री तक को खाप पंचायतों के आगे नत मस्तक होना पड़ता है. उदाहरण के तौर पर सन् 2014 के हरियाणा विधानसभा के चुनाव के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जींद में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए भाषण के शुरुआत में कहा था कि “खाप पंचायत की सरदारी वाली इस धरती को नमन करता हूं.“
यदि किसी एक लोकप्रिय व्यक्ति को चुनाव में राजनीतिक दलों के द्वारा टिकट नहीं दिया तो खाप पंचायतों व सर्वजातिय पंचायतों के द्वारा निर्दलीय उम्मीदवारों को भी खड़ा किया जाता है. अनेक खाप पंचायतों व सर्वजातिय पंचायतों के नेता राजनीतिक दलों की सदस्यता भी ग्रहण कर लेते हैं.इसका ताजा उदाहरण टेकराम का है. टेकराम ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की है (अगस्त 2024). खाप पंचायतों व सर्वजातिय पंचायतों का चुनावी महत्व निरंतर कम होता जा रहा है क्योंकि इनके द्वारा चुनाव में खड़े किए गए निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी राजनीति में हार का मुंह देखते हैं.हमारा यह अभिमत है कि खाप पंचायतों को चुनावी राजनीति अथवा दलीय राजनीति से परहेज रखना चाहिए क्योंकि मतदाता ‘खाप पंचायतों का बंधुआ मतदाता’ नहीं है. दलीय राजनीति में भाग लेने से खाप पंचायतों में फूट और संघर्ष उत्पन्न होता है. उदाहरण के तौर पर इस समय खंडेला खाप तीन भागों में विभाजित है. अतः खाप पंचायतों को सक्रिय राजनीति से दूर रहकर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार रखने चाहिए और उनके लिए ही संघर्ष करना चाहिए. इसका सर्वोत्तम उदाहरण किसान आन्दोलन (सन् 2020-सन् 2021) है.
‘हरियाणा बनाओ अभियान’ के संयोजक रणधीर सिंह बधरान एडवोकेट, पूर्व चेयरमैन बार काउंसिल ऑफ पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने टेलिफोनिक बातचीत के द्वारा मुझे सूचित किया कि लगभग सभी खाप पंचायतों ने हरियाणा की अलग नई राजधानी व अलग हरियाणा हाई कोर्ट का पुरजोर समर्थन किया है. एडवोकेट बधरान का दावा है कि तीन खाप पंचायतों – नडा (Nada) खाप पंचा
खाप पंचायत: प्रतिगामी भूमिका – ऑनर किलिंग’
युवा लड़कियों व महिलाओं को इसलिए मारा जाता है क्योंकि उन्होंने किसी युवा व पुरुष से प्यार किया है अथवा प्रेम विवाह किया है . इस प्रकार की हत्याओं को अंग्रेजी भाषा में ‘ऑनर किलिंग’ कहते हैं अथवा परिवार के लिए मान- सम्मान के लिए हत्याएं की जाती है. विश्व के लगभग प्रत्येक देश में परिवारों के मान-सम्मान के लिए महिलाओं और पुरूषों की हत्यांऐ की जाती है. इनमें मुख्य देश–अल्बानिया, ऑस्ट्रेलिया, बे
आज 156 वर्ष पूर्व सावित्रीबाई फुले ने ज्योतिबा फुले को एक पत्र (29अगस्त 1868) में सामाजिक वर्जना का वर्णन करते हुए लिखा है कि किस तरीके से अंतरजातीय विवाह-अर्थात गणेश (ब्राह्मण) तथा शारजा (महार- अछूत) लड़की का प्रेम प्रसंग चल रहा था और वह छह महीने की गर्भवती हो चुकी थी. दलित गर्भवती लड़की को गांव में घुमाया गया और उन दोनों को जान से मारने की धमकी दी गई. सावित्रीबाई ने हस्तक्षेप कर के दोनों की जान बचाने के लिए दोनों पक्षों (ब्राह्मण व महार) को समझाया और लड़के और लड़की को गांव छोड़ने के लिए तैयार करके उनकी जान बचाई. सन् 1868 में प्रेम प्रसंग के मामले को ’कलंक’ माना जाता था और अंतरजातीय विवाह का विरोध भी होता था. आज 156 वर्ष के पश्चात भी जब सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं अंतरजातीय प्रेम -विवाहों की पारिवारिक, जातिय अथवा धार्मिक आधार पर आलोचना की जाती है. परिणामस्वरूप ‘पारिवारिक सम्मान’ की दुहाई दे कर ‘ऑनर किलिंग’ (”योजनाबद्ध हत्या”- हॉरर किलिंग) की सुर्खियां समाचार पत्रों व सोशल मीडिया पर प्रकाशित होती रहती हैं. अन्य शब्दों में मोहब्बत के बदले मौत मिलती है.
‘ऑनर किलिंग’ भारतीय संविधान में नागरिकों को प्रदत्त समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) के विरुद्ध है इन अनुच्छेदों के अनुसार धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता .संविधान के अनुच्छेद 19 में स्वतंत्रता का अधिकार है, जबकि अनुच्छेद 21 जीवन का अधिकार देता है. ‘ऑनर किलिंग’ जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. यह व्यक्ति के जीवन साथी चुनने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो.
भारत में ’ऑनर किलिंग’ के बहुत अधिक मामले पुलिस थानों में पंजीकृत नहीं होते. भारत सरकार के गृह मंत्रालय की शाखा राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार सन् 2020 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में “ऑनर किलिंग” के 25 मामले सामने पुलिस थानों में पंजीकृत हुए थे. एक गैर सरकारी संगठन एविडेंस रिपोर्ट (नवंबर 2019) के अनुसार पांच वर्षों में अकेले तमिलनाडु से ऑनर किलिंग के 195 मामले सामने आए थे.
हमारा अभिमत है कि अनेक संवैधानिक उपबंधों, अधिकारों और कानूनों के पश्चात ऑनर किलिंग आज भी जारी है क्योंकि समाज की मानसिकता स्त्री विरोधी है. जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी कोई भी कानून महिलाओं का उद्धार नहीं कर सकता और महिला सशक्तिकरण के सभी दावे खोखले नजर आते हैं.
इंडियन पॉपुलेशन स्टैटिक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2007 में 655 मामले पुलिस थानों में दर्ज हुए.अधिकांश संख्या पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश की है. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में सन् 2007 में 25 बारदातें हुई. यह एक रिकॉर्ड है.हरियाणा के तत्कालीन डीजीपी का मानना था कि हरियाणा में महिलाओं के कत्ल का 10% इज्जत के लिए होता है. महिलाओं के अधिकांश मामले प्रेम के कारण होते हैं. उदाहरण के रूप में सन् 2004 में समस्त भारत में 15672 महिलाओं का अपहरण हुआ. इनमें 61% का अपहरण के शादी लिए किया गया .
भारत के गृह विभाग की नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार ऑनर किलिंग के मामलों का ग्राफ ऊपर नीचे चलता रहता है. उदाहरण के तौर पर सन् 2015 मेंऑनर किलिंग में 251 लोग मारे गए.यह संख्या सन् 2014 की तुलना में 796 % अधिक थी
सन् 2014 से 1 अगस्त 2017 तक 3 साल के दौरान में 288 ऑनर किलिंग की घटनाएं हुई. सन् 2019 में 25, सन् 2020 में 25 व सन् 2021 में 31 ऑनर किलिंग की घटनाएं हुई. सन् 2014 से सन् 2022 तक 8 वर्षों के अंतराल में भारत में 488 केस ऑनर किलिंग के दर्ज किए गए.
यह आंकड़े अधूरे हो सकते हैं क्योंकि बहुत से मामले पुलिस स्टेशनों में दर्ज नहीं होते. इन 488 मामलों के विश्लेषण व वर्गीकरण करने से पाया गया कि केवल तीन प्रतिशत मामले गौत्र विवाहों से जुड़े होते हैंऔर 97% मामले जाति, धर्म व अन्य कारणों से होते हैं.
हरियाणा में पंचायतों के द्वारा ऐसे विवाहित प्रेमी जोड़ों को गांव छोड़ने का आदेश, परिवार एवं बहिष्कार, परिवार को छोड़ने एवं गांव से निष्कासन का आदेश, प्रेमी जोड़े को एक दूसरे को भाई-बहन एवं राखी बांधने का आदेश देना तथा शगुन के रूप में कुछ रुपए देने के आदेश भी जारी किए गए हैं. ऐसे मामलों में पूरा गांव संवेदनहीन हो जाता है और मुंह खोलने के लिए कोई भी व्यक्ति तैयार नहीं होता और अगर कोई बोलता है तो वह भी हत्यारों के पक्ष में बोलता है.
ऑनर किलिंग के मामलों में हरियाणा सन् 2006 से सन् 2012 तक प्रेम विवाहोंऔर ऑनर किलिंग’ के मामलों में खाप पंचायत की प्रतिगामी भूमिका के कारण काफी बदनाम हुआ. ऑनर किलिंग’ के मामलों में सर्वाधिक चर्चित कांड संदीप -मनजीत कौर प्रेम प्रसंग में संदीप हत्या कांड (गांव दुपेडी, जिला करनाल, 2006), जसवीर -सुनीता हत्या कांड (गांव बल्ला, जिला करनाल, 9मई 2008), मनोज– बबली हत्याकांड (गांव करोड़ा जिला कैथल 23 जून 2007), मोनिका -संदीप हत्या कांड (गांव सिवाना जिला झज्जर), पुलिस की मौजूदगी में वेदपाल हत्याकांड (गांव ढ़राना जिला झज्जर – जुलाई 2009), जींद की कृष्णा कॉलोनी में बेटी व प्रेमी की हत्या (2010),17 वर्षीय किशोरी की हत्या (गांव जाखौदा 7 जून 2011), ससुराल में जाने से इनकार करने पर मुकेश देवी हत्या कांड (गांव कसान, जिला कैथल), रिंकू -मोनिका हत्या कांड (गांव निमडी वाली जिला भिवानी, 20जून 2010). हिमांशु हत्याकांड (तरावडी, जिला करनाल, अप्रैल 2012), इत्यादि मुख्य हैं. ऑनर किलिंग का रेणु -दीवान हत्याकांड नवंबर 2011 बहुत अधिक चर्चा में रहा है. दीवान- रेणू के चाचा का लड़का था. रेणु की मां, दो भाइयों और चाचा ने रेणू की गला घोंटकर हत्या कर दी तथा दीवान को पीट-पीट कर मर गया.उस समय रेणु की आयु 21 वर्ष की थी तथा दीवान की आयु 24 वर्ष की थी. इन दोनों ने पारिवारिक सीमाओं को लांघा था.
यद्यपि हरियाणा मेंऑनर किलिंग के मामले में पंचायते बदनाम हुई परंतु यदि तुलनात्मक तौर पर देखा जाए तो हम आंध्र प्रदेश और हरियाणा की तुलना सन् 2018 की घटनाओं के आधार पर कर सकते हैं. हैदराबाद में दामाद और बेटी पर चाकूओं से वार किया. (19 सितंबर 2018) .हैदराबाद में ही 24 वर्षीय दामादऔर 23 वर्षीय अपनी गर्भवती बेटी की के हत्या कर दी (15 सितंबर 2018). आंध्र प्रदेश में पति ने एक करोड़ रुपए की सुपारी देकर मौत के घाट उतार दिया.
खाप पंचायतों के द्वारा अनेक मामलों में कुख्यात फैसलें दिए हैं. इनके द्वारा प्रेम- विवाह करने वाले जोड़ों के संबंध में निर्णय दिए हैं जैसे एक गौत्र , एक गांव, पड़ोसी गांव में, निम्न जाति के लड़के द्वारा उच्च जाति की लड़कियों से प्रेम- विवाह, रिश्तेदारी में विवाह इत्यादि के संबंध में अनेक विवादास्पद निर्णय दिए है. वर्तमान शताब्दी के पंचायत के निर्णय का विश्लेषण करने से ज्ञात होता है कि खाप पंचायत के निर्णयों एवं प्रेम -विवाहों में सजा देने में घनिष्ठ संबंध है. इन निर्णयों में प्रेमी जोड़े का विवाह– विच्छेद करवा कर भाई-बहन की तरह रहना, राखी बंधवाना, जाति की तथाकथित इज्जत, मान-सम्मान के लिए मौत का आदेश देना, परिवार व समाज के भय के कारण प्रेम- प्रसंग के संबंध में जहर खाकर आत्महत्या करने लिए मज़बूर करना इत्यादि वारदातें भी होती हैं. एक गौत्र में शादी करने के लिए हत्या का आदेश देना (कैथल 2007), बलात्कारों को कम करने के लिए लड़कियों की शादी की आयु घटाकर 16 वर्ष करने का सुझाव देना इत्यादि मुख्य हैं. लड़कियों की शादी की आयु घटाकर 16 वर्ष करने का सुझाव बिल्कुल अनुचित है क्योंकि उनके स्वास्थ्य व शैक्षणिक विकास पर कुप्रभाव पड़ेगा.
खाप पंचायतों के द्वारा केवल विवाहों को विच्छेद करना ही नहीं अपितु बड़े ही अन्याय पूर्ण और मानवीय निर्णय लिए गए हैं. खाप पंचायत आशीष -दर्शना (गांव जौधणी, जिला झज्जर) विवाह विच्छेद करने तथा भाई-बहन की तरह रहने के लिए तालिबानी आदेश जारी किया. इसी प्रकार रामपाल -सोनिया(गांव आसंडा, जिला रोहतक, अक्टूबर 2008) को खाप पंचायत ने सोनिया के गर्भवती होने बावजूद भी रामपाल को सोनिया से राखी बंधवाने तथा शगुन के 10रू.देने का तुगलकी फरमान ही जारी नहीं किया अपितु भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का भी घोर अपमान किया.ऐसा फरमान सोनिया के गर्भ पलने वाले बच्चे प्रति घोर अन्याय, अमानवीय व क्रूरतापूर्ण है. भिवानी जिले के गांव लालू घनाना की लड़की को उसके दो भाइयों ने मान-सम्मान के नाम पर 3 नवम्बर 2009 की रात को रोहतक जिले के गांव करौंथा में मामा के गांव में पिछले दो महीने से रह रही लड़की को कत्ल करके रात को ही दाह संस्कार कर दिया. परंतु जुलाई -अगस्त 2009 में रविंद्र – शिल्पा विवाह (गांव ढ़राणा ) अत्याधिक चर्चित विषय बना दिया गया. इन दोनों के अलग-अलग गौत्र(गहलोत एवं कादियान ) अलग-अलग गांव ( ढ़राणा व सिवाह), अलग-अलग जिले (झज्जर व पानीपत) के बावजूद भी इस विवाह को विवादित विषय बना दिया गया. जाटों के विभिन्न गोत्रों की खाप पंचायतों के कारण लगभग एक महीने तक गांव ढ़राणा के रविंद्र के परिवार को आतंकवादी भय में रहना पड़ा और पुलिस काफी लंबे समय तक मूक दर्शक बनी रही. हरियाणा के सत्ताधारी एवं विपक्षी नेताओं के नेता— मुख्यमंत्री से लेकर विरोधी दल के नेताओं ने बिल्कुल चुप्पी धारण करके रखी.
यदि दलित परिवार से संबंधित लड़की के साथ उच्च जाति व्यक्ति बलात्कार कर देता है तो भी इन पंचायतों अथवा महापंचायतों को सांप सूंघ जाता है. खाप पंचायतों ने कन्या भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति बढ़ते अत्याचारों, अपनी –अपनी जातियों के भ्रष्ट अधिकारियों एवं राजनेताओं, महिलाओं को खरीद कर शादी करने वालों, हत्यारों, समाज विरोधी तत्वों इत्यादि के सम्बंध कोई फरमान जारी नहीं किया. पुलिस, प्रशासन और राजनेताओं का चुप रहना अथवा खापों का समर्थन करना चिंता का विषय है. संक्षेप में, यह दृष्टिकोण स्वतंत्रता, गरिमा तथा व्यक्ति के अधिकारों, महिलाओं और कमजोर जातियों के विरुद्ध ही नहीं है अपितु सभ्य समाज, प्रजातांत्रिक व्यवस्था, बहुलवादी सामाजिक व्यवस्था, संविधान, पंचायती राज जैसी संवैधानिक संस्थाओं के विरुद्ध भी है.
ऑनर किलिंग के कारण:
यद्यपि विश्व की लगभगआधी जनसंख्या महिलाओं की है. परंतु पुरुष प्रधान समाज के कारण महिला वर्ग का मां के गर्भ से लेकर मृत्यु की गोद तक शोषण, दमन अत्याचार और उत्पीड़न किया जाता है. इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था के कारण महिलाओं पर सदियों से चली आ रही परंपराओं और माप दडों को लादा जाता है.आज भी महिलाओं के शरीर और उनके जीवन को परिवार एवं सामुदायिक संपत्ति समझा जाता है.महिलाओं और युवतियों के चरित्र की शुचिता की सुरक्षा करना परिवार के अतिरिक्त जाति तथा कथित धर्म के ऐसे ठेकेदारों की है जिनकी अपनी शुचिता संदेहात्मक होती है. प्रेमी विवाहित जोड़ों को मारना, परिवार और समाज के लिए गौरवानित माना है व जातिय अथवा गौत्र का समर्थन प्राप्त होता है.परिणाम स्वरूप ऑनर किलिंग जारी है.
मेरे खाप पंचायतों के संबंध में समाज विकली में हिंदी में प्रकाशित हिंदी के लेख पर प्रतिक्रिया करते हुए प्रोफेसर प्रताप सिंह पंवार, एडवोकेट करनाल, (प्रिंसिपल, सेवा निर्वित, सीसी एस एचए यू, कृषि महाविद्यालय, कौल) ने खाप पंचायतों की प्रतिगामी भूमिका के संबंध में जो लिखा उसका विस्तृत रूप अधोलिखित है:
1. व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन: व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन करने के कारण करने के लिए खाप पंचायत की आलोचना की गई है.खासकर जबरन-विवाह,विवाह-विच्छेद,जाति-
2. कानूनी प्राधिकरण और जवाबदेही का अभाव:खाप पंचायतें संविधानेंतर संस्थाएं हैंअर्थात अनौपचारिक संस्थाएं होने के कारण औपचारिक कानूनी प्रणाली से बाहर है. परिणामस्वरूप कानूनी मान्यता का अभाव होने के कारण उनकी जवाबदेही भी नहीं होती. अन्य शब्दों में न तो ये कानून के प्रति उत्तरदाई है और न ही जनता के प्रति उत्तरदाई है.
3. न्यायिक समीक्षा का अभाव: इनके निर्णय न्यायिक समीक्षा अथवा अपील के अधीन नहीं होते जिसके कारण अन्याय और शक्ति का दुरुपयोग होने की संभावना निरंतर बनी रहती है. इसके अतिरिक्त अनेक मामलों में इन पंचायतों के द्वारा दबगं व अति प्रभावशाली व्यक्तियों के विरूद्ध फरमान जारी करने का संकोच किया जाता है.
4. लैंगिक असमानता व भेदभाव
भारतीय समाज में लिंग असमानता व भेदभाव समाज की पितृसत्तात्मक व्यवस्था में विद्यमान है .समाजशास्त्री सिल्विया वाल्बे के अनुसार, “पितृसत्तात्मकता सामाजिक संरचना की ऐसी प्रक्रिया और व्यवस्था हैं, जिसमें आदमी औरत पर अपना प्रभुत्व जमाता हैं, उसका दमन करता हैं और उसका शोषण करता हैं”. लैंगिक असमानता के कारण महिलाएं शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं. परिणामस्वरूप वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक- 2023 के अनुसार भारत 146 देशों में 127वें स्थान है.
खाप पंचायतें अक्सर पितृसत्तात्मक व्यवस्था के मापदंडों और लैंगिक भेदभाव को कायम रखने में सहायता करती हैं. महिलाओं को आमतौर पर निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से इन पंचायतों की बैठकों से बाहर रखा जाता है. उनके अधिकारों तथा उनकी आवाज को अक्सर दबा दिया जाता है. परिणाम स्वरुप महिलाओं को खाप पंचायतों के द्वारा न्याय मिलना तो दूर की बात है अपितु अनेक मामले में उनका उत्पीड़न किया जाता है. जो महिलाओं के विकास में बाधा बनते हैं व उनकी व्यैक्तिक गरिमा, मान -सम्मान के बिल्कुल विरूद्ध हैं. इस संबंध में अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं.
1. लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 15 वर्ष :
हरियाणा की एक सर्व खाप पंचायत के द्वारा जुलाई 2010 में लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 15 वर्ष निश्चित करने का फैसला लिया गया. यह निर्णय लड़कियों के स्वास्थ्य और शिक्षा के मार्ग में एक बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न कर सकता है.
2. लड़कियों पर प्रतिबंध :
उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के सौरम गांव में सन् 2014 में पंचायत के द्वारा लड़कियों पर जीन्स पहनने, मोबाइल रखने और इंटरनेट के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया.इस प्रकार का प्रतिबंध लड़कों पर नहीं लगाया. पंचायत को इस बात से कोई लेना-देना नहीं कि आज के वैज्ञानिक युग में शिक्षा के लिए मोबाइल और इंटरनेट बहुत ही महत्वपूर्ण और लाभदायक हैं.
3. दो बहनों का रेप करने और नंगा घूमने का फरमान:
सन् 2015 में बागपत (उत्तर प्रदेश) में भाई के उच्च जाति की लड़की के साथ भाग जाने के कारण खाप पंचायत के द्वारा उसकी दो बहनों का रेप करने और गांव में नंगा घूमने का फरमान जारी किया गया. यक्ष प्रश्न यह है कि भाई की गलती का अमानवीय दंड बहनों को क्यों दिया गया?
4. सामाजिक बहिष्कार तथा 40 लाख रूपऐ जुर्माना: यद्यपि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के अनुसार बेटे और बेटियों दोनों को अपने पिता की स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त है. अधिनियम में 2005 में किए गए संशोधन से यह सुनिश्चित होता है कि बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार प्राप्त हैं. अन्य शब्दों में कानून के द्वारा बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के समान अधिकार प्रदान किया गया है. इस कानून के आधार पर राजस्थान में एक बुजुर्ग महिला ने अपनी बेटियों के नाम जमीन लगवाने की इच्छा व्यक्त की.परिणाम स्वरूप उस महिला के सुसराल वालों ने विरोध किया और खाप पंचायत की मीटिंग आहूत की गई. खाप पंचायत की मीटिंग में संविधान और कानून को ताक पर रखकर केवल बुजुर्ग महिला को अपनी संपत्ति को बेटियों को लगाने के नाम करवाने से केवल वंचित ही नहीं किया अपितु उस पर 40 लाख रूपऐ जुर्माना तथा उसके सामाजिक बहिष्कार का फैसला भी किया गया.इसे स्पष्ट जाहिर होता है कि खाप पंचायत के लिए कानून व संविघान का कोई महत्व नहीं है. (राजस्थान -भीलवाड़ा अगस्त 2018).
5. अन्यायपूर्ण, अमानवीय व क्रूरतापूर्ण तालिबानी आदेश.
खाप पंचायतों के द्वारा केवल विवाहों को विच्छेद करना ही नहीं अपितु बड़े ही अन्यायपूर्ण और अमानवीय निर्णय लिए गए हैं. खाप पंचायत ने आशीष -दर्शना (गांव जौधणी, जिला झज्जर) विवाह– विच्छेद करने तथा भाई-बहन की तरह रहने के लिए तालिबानी आदेश जारी किया. इसी प्रकार रामपाल -सोनिया(गांव आसंडा, जिला रोहतक, अक्टूबर 2008) को खाप पंचायत ने सोनिया के गर्भवती होने बावजूद भी रामपाल को सोनिया से राखी बंधवाने तथा शगुन के 10रू. देने का तुगलकी फरमान ही जारी नहीं किया अपितु भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का भी घोर अपमान किया.ऐसा फरमान सोनिया के गर्भ पलने वाले बच्चे प्रति घोर अन्यायपूर्ण, अमानवीय व क्रूरतापूर्ण है.
6. अंतर-धार्मिक, अंतर-जातीय विवाहों का विरोध
राष्ट्रीय एकीकरणऔर सामाजिक एकीकरण के लिए विद्वानों के द्वारा समय-समय पर अंतर-जातीय और अंतर–धार्मिक विवाहों का समर्थन किया गया है. भारत में लगभग10% अंतर-जातीय विवाह होते हैं. अंतर -धार्मिक विवाहों की प्रायःलव –जेहाद कह कर आलोचना की जाती है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अंतर-जातीय विवाह के पक्ष में फैसले का समर्थन किया था. परंतु बालियान खाप के प्रधान नरेश टिकैत ने सर्वोच्च न्यायालय का परंपराओं में हस्तक्षेप करने का विरोध किया और उसने लड़कियां न पैदा करने की चेतावनी भी दे डाली. यह वास्तव में सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना के समान है.
7. आधुनिकीकरण का विरोध:
खाप पंचायतों केअनेक निर्णय़ों के द्वारा पारंपरिक रीति-रिवाजोंऔर रूढ़ियों का पालन करने पर बल दिया जाता है.परिणाम स्वरूप खाप पंचायतें सामाजिक व घार्मिक सुधारोंऔर आधुनिकीकरण की प्रक्रियायों का विरोध करती हुई नजर आती हैं .जिस के कारण सामाजिक व अन्य क्षेत्रों में प्रगति में बाधा उत्पन्न हो सकती है.
8.सामाजिक विभाजन और संघर्ष:
खाप पंचायतों के कार्य और निर्णय सामाजिक विभाजन और संघर्ष को बढ़ावा दे सकते हैं. ऐसी परिस्थितियां तब पैदा होती हैं जब विशेष जातिगत आधार पर निर्णय लिए जाते हैं. केवल यही नहीं इन निर्णयों के कारण विभिन्न समुदायों के भीतर सामाजिक तनाव और हिंसा बढ़ने का खतरा रहता है. इस प्रकार के उदाहरण वर्तमान शताब्दी में हरियाणा के अनेक गांवों में हुए हैं.
संक्षेप में, खाप पचांयतों ने यू.पी., हरिय़ाणा, राजस्थान व अन्य राज्यों में महिला विरोधी तुगलकी फरमान जारी किए हैं. समाज की मानसिकता स्त्री विरोधी है. जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी कोई भी कानून महिलाओं का उद्धार नहीं कर सकता और महिला सशक्तिकरण के सभी दावे खोखले नजर आते हैं. परन्तु किसान आंदोलनों, हिंदू-मुस्लिम एकता, पीडि़त महिला पहलवानों, महिला कोच का समर्थन तथा विनेश फोगाट को भारत रत्न दिए जाने की मांग और सबसे बढ़कर समाज सुधार के लिए किए गए कार्यों में इनका योगदान अतुलनीय हैं.