(समाज वीकली)- इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है। इस विश्वविद्यालय ने देश के कई सारे नामी वैज्ञानिक, इतिहासकार, साहित्यकार, राजनेता और नौकरशाह तैयार किए। यही वो विश्वविद्यालय है जहां से शिक्षित हुए सामाजिक न्याय के अगुवा और राजनेता चंद्रशेखर तथा वी पी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो शंकर दयाल शर्मा भारत के राष्ट्रपति बने। पिछड़ी जातियों को केंद्रीय संस्थानों में आरक्षण दिलाने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी इसी विश्वविदालय की देन थे। इसी क्रम में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एक और युवा, राजीव यादव निकला, जिसने सामाजिक रूप से शोषित व पीड़ितों की लड़ाई को अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया।
आजमगढ़ के रहने वाले राजीव यादव ने इंटरमीडियट के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा दी। हम सब को पता है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए लाखों छात्र प्रवेश परीक्षा में बैठते हैं लेकिन महज कुछ हजार मेधावी छात्रों को ही प्रवेश मिल पाता है। वह प्रदेश के उन कुछ चुनिंदा छात्रों में के एक थे जिन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठित प्रवेश परीक्षा पास की और स्नातक डिग्री की क्लास में प्रवेश पा सके। इस विश्वविद्यालय से उन्होंने दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान का गहनता से अध्ययन किया जो उनके आगे के सामाजिक जीवन को आधार प्रदान किया। लेकिन राजीव सिर्फ पढ़ाई करने वाले छात्रों में ही नहीं थे, बल्कि उन्होंने छात्र जीवन से ही संघर्ष का रास्ता चुन लिया। उन्होंने दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान को किताबों से निकाल कर वास्तविक जीवन में प्रयोग करना शुरू किया। राजीव ने छात्रों-युवाओं के जीवन को प्रभावित करने वाली राजनीति को बदलने का जिम्मा उठाया। उन्होंने विश्वविद्याल में और प्रदेश के अन्य हिस्सों में छात्र-आंदोलनों को नेतृत्व दिया।
राजीव ने छात्र-आंदोलनों के दौरान उन आंदोलनों की आवाज को जनसंचार माध्यमों के जरिये लोगों तक पहुंचाने की जरूरत महसूस की। स्नातक में अध्ययन के दौरान ही वह इलाहाबाद और दिल्ली से प्रकाशित होने वाले प्रतिष्ठित अखबारों में लेख लिखने लगे। उनके लेखों का विषय भी आमजन के जीवन की मजबूरियां और बहरी सरकारों को सचेत करने का रहा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन करते हुए राजीव यादव ने ‘अभिव्यक्ति’ मासिक पत्रिका का संपादन भी करते रहे।
अपनी लेखन रुचि को और बेहतर करने के लिए राजीव यादव ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक पास करने के बाद पत्रकारिता की उच्च शिक्षा प्राप्त करने का निर्णय लिया। राजीव यादव को उनके एक मित्र ने नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान के बारे में बताया जो कि पत्रकारिता और जनसंचार के क्षेत्र में देशभर में सबसे प्रमुख संस्थान है। इस संस्थान को पत्रकारिता के लिए आईआईटी-आईआईएम जैसा ही माना जाता है। भारतीय जनसंचार संस्थान दुनिया भर के खासतौर से तीसरी दुनिया के पत्रकारों को प्रशिक्षित भी करता है। इस संस्थान में प्रवेश मिलना काफी मुश्किल भरा होता है। उस समय हिंदी पत्रकारिता के कोर्स में केवल 30 लोगों को ही प्रवेश दिया जाता था। इसके लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में अभ्यर्थी शामिल होते हैं। यह परीक्षा केवल राज्यों की राजधानियों में होता था तो राजीव ने लखनऊ जाकर इसकी प्रवेश परीक्षा दी। उन हजारों अभ्यर्थियों में से मात्र 100-150 अभ्यर्थी ही प्रवेश परीक्षा पास कर सके। राजीव यादव उनमें से एक थे। लेकिन अभी उनकी परीक्षा खत्म नहीं हुई थी, क्योंकि सीट तो केवल 30 ही थी। उन्हें साक्षात्कार के लिए नई दिल्ली बुलाया गया। साक्षात्कार मंडल ने उनसे जनसंचार माध्यमों में उनकी रुचि और जागरुकता को लेकर कई सवाल किए। पत्रकारिता में क्यों जाना चाहिते है? जनसंचार माध्यमों से आप कैसे सामाजिक बदलाव ला सकेंगे? आदि का जवाब राजीव ने अपने छात्र-आंदोलनों के अनुभवों से दिया। साक्षात्कार मंडल, राजीव यादव के सामाजिक बदलाव में मीडिया के इस्तेमाल के विचारों को सुनकर प्रभावित हुआ और वह अंतिम 30 लोगों में जगह बना पाने में सफल रहे। भारतीय जनसंचार संस्थान से उन्होंने प्रथम श्रेणी में हिंदी पत्रकारिता का कोर्स पास किया।
पढ़ाई के दौरान ही वह जनसत्ता, युनाटेड भारत, जनमोर्चा, रायसीना हिल्स, प्रथम प्रवक्ता जैसे कई सारे पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखते रहे। कोर्स खत्म होने के बाद उनके सारे सहपाठियों ने मीडिया संस्थानों में नौकरी ज्वाइन कर ली। राजीव पर भी नौकरी ज्वाइन करने का दबाव था। लेकिन उसी समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार ने आतंकवाद के नाम पर मुस्लिम युवाओं का दमन शुरू कर दिया था। उत्तर प्रदेश की सरकार भी मुस्लिम-दलित-पिछड़े वर्ग के युवाओं के दमन में केंद्र सरकार की एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही थी। राजीव ने अपने जैसे निर्दोष युवाओं की पीड़ा को महसूस किया। उन्होंने देखा की कैसे मीडिया फर्जी आरोपों को अदालत में सिद्ध होने से पहले ही युवाओं को आतंकवादी करार दे रही है, उनके परिवार और पूरे समुदाय को कटघरे में खड़ा कर दे रही है। राजीव ने उन परिवारों की जगह अपने परिवार को रखकर सोचना शुरू किया, फिर उन्हें उनका दर्द, उन परिवारों की शर्मिंदगी महसूस हुआ। उनसे रहा नहीं गया। उन्होंने मीडिया संस्थानों में नौकरी करने के विकल्प को ठुकरा दिया। क्योंकि राजीव जिस दर्द को महसूस कर रहे थे वह मीडिया संस्थानों में नौकरी करते हुए नहीं बयां किया जा सकता था। उन्हें लगा कि किसी एक मीडिया संस्थान की नौकरी करने से वह अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा नहीं कर सकेंगे। इसलिए उन्होंने स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता करने और साथ ही साथ सामाजिक आंदोलन जारी रखने की ठानी। उन्होंने अपने साथियों और लखनऊ के प्रसिद्ध समाजवादी विचारधारा के वकील मुहम्मद शुऐब के साथ ‘रिहाई मंच’ की नींव डाली। इसका तात्कालिक उद्देश्य आतंकवाद के नाम पर और सत्ता के विचारों के खिलाफ लड़ने वाले निर्दोष युवाओं की गरिफ्तारियों का विरोध करना और उनकी रिहाई के लिए संघर्ष करना था। राजीव ने इस उद्देश्य के लिए कई सारे सामाजिक संगठनों से संपर्क साधना शुरू किया, उन्हें इन मुद्दों पर मिलकर लड़ने के लिए एक साथ लाने का प्रयास शुरू किया। मो. शोएब की वकालत और साथ-साथ राजीव की अगुवाई में राजनीतिक दबाव ने धीरे-धीरे अपना रंग दिखाना शुरू किया। उन लोगों के प्रयास का ही नतीजा था कि अखबारों और टीवी चैनलों ने जिन युवाओं को “आतंकवादी गिरफ्तार” बताया और दिखाया था, अब दिखाने लगे की “अदालत ने आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार युवा को बाइज्जत बरी किया”, “10 सालों बाद निर्दोष रिहा”। राजीव यादव के रिहाई मंच के आंदोलनों ने अखबारों की सुर्खियां, चैनलों की हेडलाइन बदल दी।
राजीव यादव ने पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है। वह न केवल प्रिंट मीडिया जैसे कि अखबार, पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे बल्कि फिल्में भी बना चुके हैं। उनके सह-निर्देशन में बनी कुछ चर्चित डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में ‘सैफ्रेन वॉर’ और ‘पार्टिशन रिविजीटेड’ प्रमुख हैं। इन फिल्मों को आलोचकों ने काफी सराहा है। दरअसल ये दोनों फिल्में उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के सामाजिक ताने-बाने को धार्मिक आधार पर तोड़ने-मरोड़ने वाले लोगों और उस विषैली विचारधारा पर ही आधारित है। इसमें से एक घटना का जिक्र करना यहां महत्वपूर्ण होगा क्योंकि राजीव ने योगी आदित्यनाथ को काफी पहले ही पहचान लिया था जब वह केवल एक मठाधीश थे। योगी आदित्यनाथ की एक जनसभा में “मुस्लिम औरतों को कब्र से निकालकर बलात्कार करने” जैसा घिनौना और विवादित बयान हुआ था। राजीव यादव और उनकी टीम ने इसका वीडियो रिकॉर्ड किया था जो कि फिल्म का हिस्सा है। बाद में राजीव यादव ने योगी आदित्यनाथ को इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी घसीटा। राजीव ने आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तार युवाओं की लड़ाई लड़ते हुए उनके संघर्षों को एक किताब “ऑपरेशन अक्षरधाम” के रूप में संग्रहित किया। हिंदी और उर्दू दो भाषाओं में इस किताब को फरोश मीडिया ने 2015 में प्रकाशित किया जिसकी सैकड़ों प्रतियां बिक चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश में 2017 में भाजपा गठबंधन की सरकार आने के बादे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक खास जाति के वर्चस्व को स्थापित किया। भाजपा की अल्पसंख्यकों से नफरत जगजाहिर है, लेकिन हिंदुओं की पिछड़ी, अति पिछड़ी व दलित जातियों के लोग भी इस नफरत से अपने को नहीं बचा सके। योगी सरकार की अपराधियों को ठोक दो नीति का कहर एक खास जाति को छोड़कर सब लोगों पर बरपा। फिर वो चाहें, मुस्लिम हो, सिख हो, ईसाई हों या फिर वो ब्राह्मण हों, यादव, राजभर, कुम्हार, कोइरी, पासी या कोई अन्य अनुसूचित जाति के हों। भाजपा के लोगों ने अपने राजनीतिक बदले की भावना से अपने विरोधियों को अपराधी बताकर पुलिस से ठोक देने को कहने लगे। ऐसे में लोगों ने एक बार फिर से रिहाई मंच और राजीव यादव को खोजना शुरू कर दिया। रिहाई मंच ने उत्पीड़ित लोगों का साथ दिया। राजीव ने पहले तो मीडिया में अपने पत्रकार साथियों को इन घटनाओं को विस्तृत रूप से रिपोर्ट करने के लिए राजी किया। उन्हें ढेर सारे तथ्य और सबूत मुहैया कराएं ताकि पुलिस की बजाय पीड़ितों का बयान भी मीडिया में दिख सके। वह खुद समय-समय पर पीड़ितों को लेकर लखनऊ में प्रेस-कांफ्रेस करते रहे। लखनऊ के जीपीओ स्थित गांधी प्रतिमा पर धरने पर बैठे जहां उन्होंने बर्बर पुलिस लाठीचार्ज और दमन झेला।
राजीव यादव देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय और संस्थान से पढ़कर निकले हैं। उनके पास बाकी युवाओं की तरह ही ये विकल्प भी था कि वह एक अच्छी नौकरी ज्वाइन कर लेते या फिर किसी देसी-विदेशी मीडिया संस्थान में बड़े पत्रकार हो जाते। लेकिन राजीव ने सामाजिक आंदोलन की अगुवाई का रास्ता चुना। सामाजिक आंदोलनों में भी उनके सामने ये विकल्प आते रहे कि वह किसी पार्टी में शामिल होकर सीधे विधानसभा या संसद पहुंच जाएं। लेकिन राजीव यादव झटपट की बजाए लंबा रास्ता चुना।
17 सालों से सामाजिक आंदोलन में सक्रियता के बाद उन्होंने अपनी मातृभूमि को अपनी राजनीतिक जीवन के लिए चुना है। वह उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की निजमाबाद विधनासभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट से चुनाव लड़ रहे अन्य उम्मीदवारों में राजीव यादव ऐसे शख्स हैं जिन्होंने देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्लय और संस्थान से शिक्षा प्राप्त की है। एक आंदोलनकर्मी, पत्रकार, फिल्मकार, लेखक को अपने बीच में वोट मांगते हुए देखकर निजामाबाद विधानसभा क्षेत्र के छात्र-छात्राओं और युवाओं को काफी आश्चर्य हो रहा है। आमतौर पर लोग चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को अपने बीच में आता-जाता देखते हैं, और उन्हें पता होता है कि ये नेता सब चुनाव तक आ रहे हैं फिर गायब हो जाएंगे। लेकिन क्षेत्र के लोग और खासकर युवावर्ग, राजीव को लेकर काफी चर्चा कर रहा है, क्योंकि राजीव यादव जैसा उच्चशिक्षित, प्रतिष्टित पत्रकार, फिल्मकार व लेखक को उन्होंने अपने बीच कम ही देखा है। राजीव उनके लिए रोल मॉडल बनकर उभर रहे हैं। निजामाबाद का युवावर्ग, राजीव से मिलकर यह भी जानने की कोशिश करता है कि विश्वविद्यालों और राष्ट्रीय संस्थानों में कैसे प्रवेश प्राप्त करें और उच्च शिक्षा कहां से प्राप्त करें। एक शिक्षित युवा नेता का यही फायदा है कि वह उच्च शिक्षा के लिए अपने क्षेत्र के अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित और प्रेरित करता है।
विजय प्रताप
शोधार्थी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) नई दिल्ली
090132 70379