समाजवादी जन परिषद की “यूक्रेन पर रूस के हमले” पर प्रेस विज्ञप्ति

(समाज वीकली)

समाजवादी जन परिषद
814, रुद्र टॉवर, करमजीतपुर, सुंदरपुर
वाराणसी- 221005

पत्रांक 01/ 2022 दिनांक 15-04- 2020

प्रेस विज्ञप्ति

समाजवादी जन परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के द्वारा यूक्रेन पर हुए रूसी हमले को लेकर गहरी चिंता और समीक्षा करते हुए विश्व शांति एवं सद्भाव के लिए पारित किए गए प्रस्ताव को शनिवार 26 फरवरी 2022 को जारी किया गया है ।
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समाजवादी जन परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी मानती है कि रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे सामरिक तनाव के बीच इधर यूक्रेन पर रूस का एक तरफा सीधा फ़ौजी हमला नैतिक, विश्व शान्ति, पड़ोसी देशों से उचित व्यवहार, देशों की संप्रभुता के सिद्धांत, रूसी जनता के भी आर्थिक कल्याण इत्यादि प्रत्येक दृष्टि से गलत है । वैसे भी एकाध को छोड़ कर सभी बड़े देशों ने रूसी हमले को गलत और निंदनीय बताया है। लेकिन ऐसे मौके पर सामरिक दृष्टि से यूक्रेन का अकेला पड़ जाना अत्यंत चिंताजनक बात है। जिस तरह इराक पर अमेरिकी हमला हुआ था , ठीक उसी तर्ज पर रूस ने यूक्रेन पर हमला करके बड़े राष्ट्र की छोटे राष्ट्रों के ऊपर दादागिरी कायम रखने का गलत संदेश दिया है।

भारत सरकार ने विश्व शांति के लिए ख़तरा बने इस युद्ध को लेकर अब तक कोई स्पष्ट नीति या मंतव्य नहीं रखा है। “दोनों पक्ष बातचीत से सुलझाएं” जैसा मंत्र पाठ ही मोदी सरकार अब तक दबी जुबान से कर रही है । कुछ समय पहले अफगानिस्तान मामले पर भी मोदी सरकार की नीति इसी तरह लचर रही है। ऐसे मौके पर इस तरह की गोलमोल भाषा भारत जैसे संप्रभु राष्ट्र की इज्जत प्रतिष्ठा के लिए , अत्यंत गैर जिम्मेदाराना है।

यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की इस बात को लेकर आए दिन निंदा करती रहती है कि उन्होंने तिब्बत पर चीन के कब्जे का सशक्त विरोध नहीं किया। लेकिन यह बात नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन नेहरू सरकार ने चीन से दोस्ती के बावजूद तिब्बत पर चीनी हमले के दौरान वहां के शासक एवं आध्यात्मिक नेता दलाई लामा और हजारों तिब्बतियों को मार्च 1959 में भारत में शरण देने के धर्म का बखूबी पालन करने का साहसिक निर्णय लिया था । 20 अक्टूबर 1962 में देश पर चीनी आक्रमण की एक वजह यह भी थी ।

नेहरू सरकार ने चीन पर जरूरत से ज्यादा विश्वास किया था लेकिन चीन के विश्वासघाती हमले के दौरान नेहरू सरकार डरी नहीं। चीन के आक्रमण के खिलाफ 14 नवंबर 1962 को सर्व सम्मति से पारित संसदीय संकल्प के जरिए चीन द्वारा हड़पे गए भारतीय भूभाग को वापस लेने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। इधर मोदी सरकार तो अपने शासन के दौरान चीनी सेना द्वारा भारत की जमीन पर घुस पैठ करने की बात तक नहीं स्वीकारती है और मिमिया कर हमारी सीमा में कोई नहीं घुसा जैसा झूठ बोलती रहती है ।

मोदी सरकार देश की जनता के कमजोर और अल्पसंख्यक समूहों पर अत्याचार करने के कानून बनाती है। अपने समर्थकों द्वारा उन समूहों पर हिंसक हमलों को प्रोत्साहित करती है । उसकी पार्टी के लोग “अखंड भारत” और हिंदू राष्ट्र बनाने के नाम पर पड़ोसी देशों पर बलपूर्वक कब्जा करने का सपना देखते और दिखाते रहते हैं।

मोदी सरकार की लचर , अनैतिक और लोकतन्त्र विरोधी मानसिकता यूक्रेन पर हुए रूसी फौजी हमले का विरोध और निंदा करने से उसे रोकती है। इसके साथ ही यह कुतर्क फैलाया जा रहा है कि रूस का विरोध करने से वह भारत को जरूरी हथियारों और अन्य आयातों की आपूर्ति नहीं करेगा।

दरअसल रूस के अंदरूनी हालात सही नहीं चल रहे हैं जिसके चलते पुतिन सरकार यूक्रेन पर हमला करके जनसाधारण का ध्यान बटाना चाहती है। यह काफी चिंताजनक बात है कि मोदी सरकार को भी एक साधारण संभावना समझ मे नहीं आ रही है कि अभी लग रहे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण रूस की पहले से ही खराब अर्थ व्यवस्था और जरूरी आयात संकट बहुत जल्दी और गहरा हो जाएगा। इस समय भारत के द्वारा स्पष्ट और कड़े रुख अपनाने पर , रूस अपने हालातों से समझौता कर आगे बढ़कर सस्ते दामों मे भारत को हथियारों और अन्य आयातों की आपूर्ति करेगा।

समाजवादी जन परिषद इस बात पर गहरा आक्रोश प्रकट करती है कि यूक्रेन पर रूस के हमले से पहले संभावित युद्ध की संभावना को एकदम नजरअंदाज करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारों भारतीय छात्रों को वापस बुलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया । पता तो यह भी चला है कि जो छात्र यूक्रेन से किसी तरह स्वदेश वापस आए उनसे देश की निजी विमान कंपनियों ने काफी मोटी रकम वसूली है । आपदा में अवसर इसी को कहते हैं । अभी भी बड़ी संख्या में यूक्रेन में भारतीय छात्र फंसे हुए हैं । यूक्रेन में रूसी हमले के बाद वहां की बिगड़ी हालात देखते हुए फिलहाल छात्रों को सुरक्षित निकालना काफी मुश्किल भरा काम हो गया है।

भारत में यदि मेडिकल शिक्षा की सही व्यवस्थाएं होती , तो इतने बड़े पैमाने पर छात्रों को मेडिकल पढ़ाई के लिए यूक्रेन न जाना पड़ता। अधिकांश छात्र सामान्य आर्थिक वर्ग के हैं , अमीरजादे नहीं।यूक्रेन की तुलना में भारत में मेडिकल शिक्षा काफी महंगी है मोदी सरकार की गलत नीतियों के चलते बड़ी संख्या में छात्रों को यूक्रेन जाकर मेडिकल पढ़ाई करना पड़ रही है । ऐसे महा संकट के समय छात्रों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने के लिए मोदी सरकार को संकटमोचक के रूप में सामने आना चाहिए , न कि इतनी बड़ी समस्या को लेकर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाना चाहिए । मोदी सरकार यदि गंभीर होती तो अभी तक सभी भारतीय छात्रों की यूक्रेन से सुरक्षित वापसी संभव हो जाती।

यहां यह बताना जरूरी है कि 10 साल से अधिक समय हो गया उस समय उत्तराखंड में प्राकृतिक आपदा में फंसे लोगों तीर्थयात्रियों को सुरक्षित निकालने के लिए सेना लगी हुई थी , तब मनमोहन सरकार की देखरेख में राहत कार्य चल रहा था और विभिन्न राज्यों के लोगों को रेल सड़क मार्ग से उनके घरों तक पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही थी । ऐसे समय में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपदा को अवसर में बदलते हुए अपने राज्य के लोगों को लाने के लिए हवाई जहाज भेजे थे । उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने इस बात का खूब प्रचार प्रसार करके झूठी वाहवाही लूटी थी । ऐसा लगता है कि यूक्रेन में फंसे हुए हजारों भारतीय छात्रों को स्वदेश लाने के लिए भी मोदी सरकार को आपदा में अवसर की तलाश है ।

सजप मांग करती है कि भारत सरकार पूरी स्पष्टता और दृढ़ता से यूक्रेन पर रूसी हमले का विरोध करे ताकि यूक्रेन की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय संप्रभुता बरकरार रहे और विश्व शांति का प्रयास मजबूत बने।

 

 

 

 

 

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