भारत के विश्व गुरु बनने के मार्ग में फेक पीएचडी डिग्री सबसे बड़ी बाधा :एक आलोचनात्मक मूल्यांकन
डॉ. रामजी लाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा, भारत)।
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#समाज वीकली
भारतवर्ष में महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में आपको असंख्य पीएचडी डिग्रीधारी, सेवाएं देते हुए मिलते हैं. डॉक्टरेट की उपाधि के कारण उनको समाज में सम्मान से देखा जाता है परंतु आंतरिक स्थिति यह है कि इन उच्च स्तरीय शिक्षा के केन्द्रों में फेक ‘पीएचडी डिग्रीधारी, फेक डिप्लोमाधारी, फेक सर्टिफिकेट धारी, व फेक एमफिल डिग्रीधारी असंख्या लोग मिल जाएंगे.
भारत में ही नहीं अपितु विश्व भर में ‘पीएचडी मिल’– पीएचडी की डिग्रियां उत्पादन कर रहे हैं. पीएचडी मिल’ (फैक्टरी) से हमारा तात्पर्य यह है कि वह स्थान जहां शुल्क देकर पीएचडी डिग्री उसी प्रकार खरीदी जाती है जिस प्रकार एक ग्राहक मॉल से रेडीमेड कपड़े खरीदना है. फेक पीएचडी डिग्री वैसे तो 20वीं शताब्दी में भी सुनने को मिलती थी परंतु वर्तमान शताब्दी में फेक डिग्री का प्रचलन अत्यधिक उस समय हुआ जब नेट अथवा पीएचडी को महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों में लेक्चर लगने की योग्यता निर्धारित की गई.
आज भारतवर्ष में फेक पीएचडी डिग्री का अरबों रुपए का व्यवसाय चल रहा है. कश्मीर से सुदूर केरल तक, मेघालय से महाराष्ट्र तक, दिल्ली से शिमला तक यह व्यवसाय फल फूल रहा है. निजी विश्व विद्यालयों के द्वारा डिग्रियों का शुल्क लेकर वितरण किया जाता है. वैसे तो हम एक राष्ट्र की बात करते हैं परंतु पीएचडी डिग्रियों का शुल्क एक लाख से लेकर 10 लाख तक का है. यह शुल्क विषय पर निर्भर करता है.
भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई समस्याएं हैं. इन समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या गुणवत्ता की कमी है. शिक्षक और छात्र दोनों ही गुणवत्ता के अभाव में जी रहे हैं. एक शिक्षक के लिए अध्ययन करना, छात्रों को पढ़ाना और उनके बौद्धिक स्तर को बढ़ाने के लिए एम.फिल या पीएचडी की डिग्री ग्रहण करना गर्व की बात है, लेकिन गुजरात के पूर्व राज्यपाल के अनुसार विश्वविद्यालय पीएचडी और एम.फिल डिग्री बनाने की ‘फैक्टरी” बन गए हैं. इसका मूल कारण यह है कि छात्र या शोधकर्ता खुद काम करने के बजाय दूसरे लेखकों को पैसे देकर अपना शोध कार्य और शोध पत्र लिखवाते और प्रकाशित करवाते हैं. कुछ निजी विश्वविद्यालय पीएचडी गाइड उपलब्ध कराने, शोध पत्र तैयार करने, सिनॉप्स तैयार करने, पीएचडी थीसिस लिखने आदि के लिए अलग-अलग राशि लेते हैं. सरकारी विश्वविद्यालय भी इस भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं.
इनके अलावा शोधकर्ताओं से बात करने पर कुछ अन्य कमियां भी पता चलीं हैं-
पीएचडी का ‘कोर्स वर्क’ 6 महीने का होता है, लेकिन ‘कैप्सूल कोर्स वर्क’ के नाम पर यह केवल 20 दिन का है जो यूजीसी के पीएचडी रेगुलेशन के नियमों का सरासर उल्लंघन है. इस कोर्स वर्क में शोधार्थियों की उपस्थिति अनिवार्य है, लेकिन उपस्थिति प्रत्येक दिन दर्ज की जाती है और ऐसा दिखाया जाता है जैसे शोधार्थी नियमित रूप से कक्षा में उपस्थित होता है. शोधार्थियों की उपस्थिति विश्वविद्यालय में लगती है लेकिन उन्हें कॉलेजों से कोई अवकाश नहीं मिलता. ऐसे विद्यार्थियों को ‘नॉन अटेंडिंग शोधार्थी’ अथवा ‘डमी शोधार्थी’ कहा जाता है और इसके लिए उन्हें अलग से फीस देनी होती है. विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार अनेक निजी विश्वविद्यालयों के द्वारा एक्सटेंशन पर लगे हुए लेक्चर को भी पीएचडी गाइड नियुक्त किया जाता है.
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर याचिका (सीडब्ल्यूपी संख्या 26892 ऑफ 2023) के संदर्भ में हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग ने ऐसे प्राध्यापकों को शामिल करने का निर्णय लिया है, जिन्होंने अपनी सेवा के दौरान ओपीजेएस व अन्य निजी विश्वविद्यालयों से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है और उसका लाभ उठाया है. इसके अलावा यूजीसी के निर्देश के बाद इन पीएचडी धारकों के ‘कोर्स वर्क’ की जानकारी सरकारी कॉलेजों के प्रिंसिपलों को भेजने के भी निर्देश दिए गए हैं। (ज्ञापन संख्या 15/229 – 2023 सी – 1बी)। हरियाणा सरकार के उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा निजी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के पीएचडी धारकों की उपस्थिति के बारे में भी उचित जांच की जानी चाहिए. क्योंकि आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में भी बायोमेट्रिक मशीन बंद होने पर रजिस्टर में उपस्थिति दर्ज की जाती है. हरियाणा में लगभग 500 एक्सटेंशन लेक्चरर फर्जी डिग्री धारक हैं. अगस्त 2020 में समाचार पत्रों में आरटीआई की जानकारी प्रकाशित होती रही. बड़ी संख्या में नियमित लेक्चरर भी फर्जी डिग्री धारक हैं. यदि निजी सहायता प्राप्त महाविद्यालयों, स्व-वित्तपोषित महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को भी शामिल किया जाए तो यह संख्या 1000 भी अधिक हो सकती है.
डायरेक्टर हायर एजुकेशन, हरियाणा के कार्यालय से हरियाणा राज्य के सभी राजकीय महाविद्यालयों के प्राचार्यों को मेमो (मेमो नंबर 22/ 338—2024- C1 (एस/ 1,) 30 जनवरी 2025 को जारी किया है. इस मेमो के अनुसार सीपीडब्ल्यूपी नंबर 26892 ऑफ 2023 टाइटल्ड राजबाला एंड अन्य बनाम स्टेट एंड अन्य में इंक्वारी के कारण सभी राजकीय महाविद्यालयों के एक्सटेंशन प्राध्यापकों जिन्होंने निजी अथवा सरकारी विश्वविद्यालयों से सेवा के दौरान पीएचडी की है उनकी सूचना मांगी है क्योंकि यह सूचना एंटी करप्शन ब्यूरो,पंचकूला ने मांगी है, जिसके आधार पर विस्तार पूर्वक इंक्वारी की जा सके. एक सूचना के अनुसार लगभग 292 एक्सटेंशन लेक्चरर को नोटिस जारी किया गया है.
यह बताना भी जरूरी है कि हरियाणा सरकार राजकीय महाविद्यालयों के एक्सटेंशन लेक्चरर की 58 वर्ष कीआयु तक नौकरी की सुरक्षा की गारंटी दे चुकी है तथा अनेक ऐसे प्राध्यापक भी हैं जो सरकार की पक्की नौकरी में चले गए हैं. ऐसी स्थिति में क्या होगा ? यह एक यक्ष प्रश्न है.
हमारा अभिमत है कि इंक्वारी का दायरा बढ़ाया जाए तथा सभी निजी और सरकारी विश्व विश्वविद्यालयों, सहायता प्राप्त निजी महाविद्यालयों तथा स्व वित्त पोषित महाविद्यालयों को भी इसमें सम्मिलित किया जाए अन्यथा शिक्षा में सुधार नहीं हो सकता.
शिक्षा किसी भी राष्ट्र के विकास का सर्वोत्तम साधन है. शिक्षण संस्थानों —विश्व विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में इस प्रकार के शिक्षक क्या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे सकते हैं और राष्ट्र के निर्माण के लिए शिक्षित नागरिक बना सकते हैं? ऐसे प्रोफेसरों के आधार पर भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षण और शोध कार्य कैसे किया जाएगा? क्या इस प्रकार के शोध कार्यों के माध्यम से भारत विश्वगुरु बनने की ओर कैसे अग्रसर हो सकता है?