शिरोमणि संत रविदास का चिंतन : 21वीं सदी में प्रासंगिकता – पुनर्मूल्यांकन

महान शिरोमणि संत गुरु रविदास की 646 वीं जयंती पर विशेष लेख

डॉ. रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा- भारत)
मोब.नं 816 88 10760 – e-mail id. [email protected]

(समाज वीकली)- संत रविदास (जन्म सन् 1377 ई.- मृत्यु सन् 1528 —कुल आयु 151 वर्ष) का जन्म वाराणसी के पास सीर गोवर्धनपुर गांव (उत्तर प्रदेश) पिताजी बाबा संतोख दास तथा माता श्रीमती कल्सा देवी के घर हुआ. रविवार के दिन जन्म होने के कारण उनका नाम रविदास रखा गया.
शिरोमणि संत गुरु रविदास : अनेक नाम
भारत के विभिन्न क्षेत्रों और पुरानी पांडुलिपियों में संत रविदास को अनेक नामों से पुकारा जाता है.उदाहरण के तौर पर ‘रविदास (पंजाब व हरियाणा)’, रैदास, (उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान), ‘रोहिदास (गुजरात व महाराष्ट्र)’ और ‘रुइदास’ (बंगाल). पुरानी पांडुलिपियों में संत रविदास के अनेक नाम हैं जैसे रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास. गुरू रविदास के शिष्य इनको गुरु रविदास के शिष्य आदर, सम्मान और सत्कार से इनको “सतगुरु”, “जगतगुरु” आदि नामों से भी पुकारते हैं. संत रविदास के भक्ति गीत पंजाब, हरियाणा, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और बंगाल में प्रचलित हैं. संत रविदास की लोकप्रियता का मूल कारण यह है कि उनकी कविताओं में साधारण व्यक्ति के द्वारा बोली जाने वाली मूल रूप से विभिन्न भाषाओं– अवधी, राजस्थानी, उर्दू, फारसी की खड़ी बोली एवं शब्दावली का प्रयोग किया गया है.
आध्यात्मिक ज्ञान :संत रामानंद के शिष्य
संत रविदास ने आध्यात्मिक ज्ञान संत रामानंद से शिष्य के रूप में ग्रहण किया. परन्तु उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु संत कबीर थे क्योंकि उनकी की इच्छानुसार ही वे संत रामानंद के शिष्य बने थे. संत रविदास ने साधु-सन्तों की संगति से व्यावहारिक ज्ञान की प्राप्ति की तथा उनका मन संतों की सेवा में बहुत अधिक लगता था
तत्कालीन प्रभाव:
संत रविदास की शिक्षाओं का प्रभाव आम हिंदू-मुस्लिम जनता के अतिरिक्त भारतीय मुस्लिम बादशाहों, नवाबों और नरेशों पर भी था. उदाहरण के तौर पर यदि एक ओर सिकंदर लोदी, बाबर व हुमायूं जैसे मुस्लिम शासक उनसे प्रभावित थे तो दूसरी ओर हिंदू सम्राट महाराणा सांगा की धर्मपत्नी ’झाला रानी’ तथा महान भगत मीराबाई इत्यादि भी इनकी शिक्षकों से प्रभावित थे. मीराबाई संत रविदास की सर्वोत्तम शिष्य थी. मीराबाई ने इस बात को स्वीकार करते हुए लिखा:
“गुरु मिलीया रविदास जी दीनी ज्ञान की गुटकी,
चोट लगी निजनाम हरी की महारे हिवरे खटकी”।
संत रविदास को बादशाह सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था. बादशाह सिकंदर लोदी ने संत रविदास से नामदान लेने के लिए तुग़लकाबाद में 12 बीघा जमीन दान की थी जिस पर संत रविदास की याद में सन् 1954 में बीएचयू के पीछे सफेद संगमरमर से रविदास मंदिर का निर्माण किया गया. श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के पश्चात रविदास के मंदिर को काशी का दूसरा ‘गोल्ड टेम्पल’ भी कहते हैं. प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा के दिन विश्व भर के लाखों लोग संत रविदास जयंती मनाने के लिए संत रविदास मंदिर (वाराणसी) आते हैं.
सन् 2010 में रविदासिया धर्म की की स्थापना: धार्मिक पुस्तक “अमृतवाणी गुरु रविदास जी”
वह एक रहस्यवादी व आध्यात्मिक कवि, समाज सुधारक व अध्यात्मिक गुरु थे. संत रविदास के दर्शन शास्त्र के आधार पर भारत के विभिन्न राज्यों अथवा क्षेत्रों और भारत के बाहर अन्य देशों में रविदासिया धार्मिक आंदोलन निरंतर बढ़ता जा रहा है. रविदासिया अथवा रविदासी पंथ में संत रविदास को गुरु माना गया है. परंतु रविदासिया पंथ के डेरों तथा मंदिरों में जीवित संतो को गुरु माना जाता है. सन् 2009 वियना (ऑस्ट्रिया की राजधानी) में उग्रवादियों के द्वारा गुरु संत निरंजन दास और संत रामानंद दास पर किए गए हमले में गुरु निरंजन दास की मृत्यु हो गई. परिणाम स्वरूप सन् 2010 में संत रविदास के अनुयायियों ने रविदासिया धर्म अथवा रविदासी पंथ प्रारंभ किया.
पंजाब में जालंधर से 7 किलोमीटर दूर डेरा सचखंड बलान गांव में है. यह 1980 के दशक से निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर है तथा रविदासियों का यह सबसे महत्वपूर्ण और पूजनीय धार्मिक मंदिर पंजाब में जालंधर से 7 किलोमीटर दूर डेरा सचखंड बलान गांव में है. डेरा सचखंड रविदासियों का “मक्का” माना जाता है. रविदासिया धर्म की नई पुस्तक ‘अमृतवाणी गुरु रविदास जी’ है . इस धार्मिक पुस्तक में रविदास की शिक्षाओं के 240 पृष्ठ हैं. डेरा सचखंड में पहले गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ निरंतर किया जाता था. परंतु सन् 2010 के बाद ‘अमृतवाणी गुरु रविदास जी’ के ग्रंथ का पाठ डेरा सचखंड में चलता है. डेरा सचखंड में निरंतर लंगर की व्यवस्था है और इसके द्वारा डेरा सचखंड के द्वारा स्कूल और हॉस्पिटल का संचालन के अतिरिक्त अनेक सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं. रविदासिया मंदिर भारत में ही नहीं अपितु ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, इंग्लैंड, जर्मनी, इटली, हालैंड, स्कॉटलैंड, न्यूजीलैंड, स्पेन, ग्रीस, फिजी इत्यादि देशों में भी है.
इस धर्म को रविदासिया धर्म अथवा रविदास पंथ माना जाता है. संत रविदास इसके ‘सतगुरु’ हैं और उसकी पूजा की जाती है. इनके अनुयायियों को भारत और विदेशों में रविदासिया अथवा रविदासी माना जाता है. रविदासिया अभिवादन में “जय गुरुदेव ‘ का प्रयोग किया जाता है इसका तात्पर्य यह है कि ‘भगवान की तरह शिक्षक की जय हो”.
संत रविदास: एक संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक
15 वीं शताब्दी के वह एक महान संत, दार्शनिक, कवि और समाज सुधारक थे. जिन्होंने अपने आध्यात्मिक प्रवचनों से संसार को आत्मज्ञान, मानवता, एकता और भाईचारे का संदेश व ज्ञान दिया. संत रविदास का चिंतन तत्कालीन समाज से में फैली हुई कुरीतियों के विरूद्ध था. आज की भांति उस समय भी जातिवाद समाज के विकास में एक अड़चन के रूप में था. संत रविदास ने जातिवाद का विरोध करते हुए पारस्परिक भाईचारा, सामाजिक समरसता व सामाजिक सद्भाव का प्रचार आध्यात्मिकवाद के आधार पर किया.
वह निर्गुण भक्ति धारा के सबसे प्रसिद्ध और प्रमुख संतो में से एक थे और उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन का नेतृत्व करते थे. उन्होंने अपने प्रेमियों, अनुयायियों व समाज को कविता, लेखन के माध्यम से आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिए. वास्तव में वह निर्गुण संत आध्यात्मिक आत्मज्ञान, एकता व भाईचारे के अग्रदूत व संदेशवाहक थे.
संत रविदास: जातिवाद तथा ऊंच-नीच के विरुद्ध:
वर्तमान समय की भांति तत्कालीन समाज भी वर्ण व्यवस्था के आधार पर विभिन्न जातियों में विभाजित था. उस समय भी समाज में विभिन्न जातियों का विभाजन उच्च जातियों एवं निम्न जातियों में था. निम्न जातियों के साथ उच्च जातियों का व्यवहार मानवीय और सौहार्दपूर्ण नहीं था. उनका मानना था कि ऊंच-नीच के आधार पर जातियों का विभाजन इंसान व इंसानियत को समाप्त करता है तथा समाज के लिए हानिकारक है. यह बात हमें संत रविदास के निम्न दोहे से दृष्टिगोचर होती है:
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात॥
इस दोहे का भाव यह है कि जिस प्रकार केले के छिलकों को छिलते चले जाओ अंत में कछ भी नहीं रहता .उसी प्रकार जाति के कारण समाज बंट जाता है व इंसान भी नहीं रहता. संत जब तक जातियां खत्म नहीं होगी तब तक इन्सान एक नहीं हो सकता. संत रविदास ने कहा कि जब तक जाति जाती नहीं अर्थात विद्यमान है तब तक एक इंसान दूसरे इंसान से नहीं जुड़ेगा और समाज विभाजित रहेगा व भाईचारा स्थापित नहीं होगा. जातिवाद तथा ऊंच-नीच के विरुद्ध होने के कारण एक समाज सुधारक के रूप में उन्होंने जात-पात के अन्त के लिए काम किया. संत रविदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया.
ऊंच-नीच के विरुद्ध संत रविदास के विचार निम्न दोहे से स्पष्ट होते हैं:
रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।1
संत रविदास के अनुसार कोई भी इन्सान जन्म लेने से ऊँच- नीच नहीं होता. इन्सान के “ओछे करम” (कर्म) उसे नीच बना देते हैं.
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत में 6743 जातियां, 5013 पिछड़ी जातियां तथा लगभग 11OO से अधिक अनुसूचित जातियां हैं. भारत का संविधान लागू होने के पश्चात यह उम्मीद की जाती थी कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जातिवाद कम हो जाएगा परंतु वास्तव में इसके विपरीत हुआ. जातिवाद उस सीढी के समान हो गया जिस पर चढ़कर व्यक्ति राजनीतिे के शिखर तक जा सकता है. पंचायत से लेकर पार्लिमेंट के चुनाव तक जातिवाद इतना हावी है कि लगभग 55% मतदाता जाति के आधार पर वोट देते हैं. जातिवाद के कारण विभिन्न जातियों में टकराव की स्थिति रहती है. इंग्लैंड के प्रसिद्ध विद्वान थाम्स हाब्ज ने अपनी पुस्तक ‘सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ में प्राकृतिक अवस्था का वर्णन करते हुए कहा था कि इस अवस्था में प्रत्येक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से युद्ध था. यही स्थिति जातिवाद व धर्म के कारण भारत में निरंतर सदियों से जारी है. भविष्य में इसका उन्मूलन दिखाई नहीं देता. अन्य शब्दों में यह जाति है, जो जाती नहीं है.
विभिन्न जातियों में टकराव की स्थिति का सर्वाधिक प्रभाव अनुसूचित जातियों पर पड़ता है. कानून, संविधान तथा न्यायिक निर्णयों के बावजूद भी अनुसूचित जातियों से संबंधित स्त्री- पुरुष और बच्चों का अपमान, हिंसा, प्रताड़ना और शोषण का सामना करना पड़ता है. जातिवाद के कारण अनुसूचित जातियों के विरुद्ध हिंसा तथा अपराध की घटनाएं समाचार पत्रों की सुर्खियां होती हैं. गुरु रविदास का चिंतन इस संदर्भ में आज भी अत्याधिक सार्थक है क्योंकि उन्होंने अपने दोहो द्वारा जातिवाद और ऊंच-नीच का विरोध किया है. अनुसूचित जातियों का अधिकांश भाग भय, भूख, गरीबी और कुपोषण शिकार है.
संत रविदास : भुखमरी के संबंध में विचार
संत रविदास इस बात पर बल देते थे की राज व्यवस्था ऐसी हो जहां कोई भी व्यक्ति गरीब ना हो और बिना भोजन के भूखा ना रहे. यह बात उनके दोहे से प्रकट होती है:
ऐसा चाहूं राज मैं मिले सबन को अन्न ।
छोट-बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न ॥
संत रविदास के भुखमरी के संबंध में विचार आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि भारत में भुखमरी कम होने की वजह निरंतर बड़ी है उदाहरण के तौर पर सन् 2018 में 19 करोड लोग भूखमरी से ग्रस्त थे. चार वर्ष के अंतराल में सन् 1922 में यह संख्या बढ़कर 35 करोड हो गई .परिणाम स्वरूप भारत सरकार के द्वारा 81 करोड लोगों को मुफ्त अनाज दिया जा रहा है. इससे व्यक्ति को कुछ राहत तो मिलती है परंतु वह एक अच्छे स्वस्थ व्यक्ति नहीं होते. भारत सरकार के राष्ट्रीय अपराध पंजीकरण शाखा के अनुसार भारत में भुखमरी से जुड़ी समस्याओं के कारण 121 श्रमिक प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं. केवल यही नहीं 70% भारतीयों को स्वस्थ रहने के लिए अच्छा भोजन नहीं मिलता. परिणाम स्वरूप अनेक रोग पैदा होते हैं. यही कारण है कि भुखमरी से जुड़ी समस्याओं के कारण एक वर्ष में 17 लाख मौतें होती हैं. सन् 2022 में सर्वोच्च न्यायालय में केंद्रीय सरकार द्वारा दायर प्रस्तुति के अनुसार 5 वर्ष की आयु से कम 65 प्रतिशत बच्चों की मौत कुपोषण के कारण होती हैं.
धर्म निरपेक्षता के सर्वोत्तम प्रचारक
भारतवर्ष एक असंख्य विविधताओं का देश है. यह विभिन्न संप्रदायों, विभिन्न धर्मों, विभिन्न संस्कृतियों, विभिन्न उप- संस्कृतियों, विभिन्न जातियों, विभिन्न उप-जातियों. विभिन्न क्षेत्रों विभिन्न उप-क्षेत्रों विभिन्न मतांतरों, विभिन्न उप-मतांतरों, ऐथेनिक समूहों तथा विभिन्न भाषा -भाषी लोगों का एक महान राष्ट्र है. भारतवर्ष में धर्मों -हिंदू, मुस्लिम, इस्लाम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन, यहूदी तथा पारसी के अनुयायी रहते हैं.
समकालीन भारत में जहां हिंदू बनाम मुसलमान, हिंदू बनाम ईसाई, मंदिर- मस्जिद इत्यादि के नाम पर दंगे होते हैं और प्रतिवर्ष सैकड़ों लोगों की जाने जाती हैं, बच्चे अनाथ हो जाते हैं, महिलाएं विधवा हो जाती हैं तथा करोड़ों रुपए की संपत्ति नष्ट हो जाती है. ऐसी स्थिति में जहां राजनीतिक दलों का मुख्य उद्देश्य केवल बाहुल्य समाज की धार्मिक भावनाओं को भड़का कर समाज को जोड़ने के बजाए तोड़ने का काम किया जाता है तथा सामाजिक एकता, समाजीकरण एवं सामाजिक विकास में धर्म के आधार पर बाधाएं पैदा की जाती हैं और भावनाओं को भड़का कर वोट प्राप्त किए जाते हैं. ऐसे संदर्भ में गुरु रविदास एक महानतम धर्मनिरपेक्ष तथा सभी धर्मों को जोड़ने वाले विचारक आज विशेष रूप से प्रासंगिक हैं. सामाजिक समरसता और सद्भावना का संदेश देते हुए संत रविदास ने लिखा:
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
संत रविदास के दर्शन के अनुसार एक ही परमेश्वर के विविध नाम – राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि नाम हैं तथा विभिन्न धार्मिक ग्रंथों जैसे वेद, कुरान, पुराण आदि के अनुसार परमात्मा एक है और इसी का गुणगान इन ग्रंथों में किया गया है.
श्री गुरु ग्रंथ साहिब में संत रविदास की वाणी
गुरु रविदास के चिंतन का प्रभाव हमें सिख धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब पर भी है. सिख के धर्म प्रेमियों, अनुयायियों, समुदाय के लोग श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सर्वश्रेष्ठ कृति मानते हैं. इसका संपादन 16 वीं सदी में गुरु अर्जुन देव साहिब ने किया. रविदास के चिंतन से प्रभावित होकर गुरु अर्जुन देव जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 41 दोहों को विशेष स्थान दिया है : “राग – सिरी (1), गौरी (5), आसा (6), गुजरी (1), सोरठ (7), धनसारी (3), जैतसरी (1), सुही (3), बिलावल (2), गौंड (2), रामकली (1), मारू (2), केदारा (1), भैरौ (1), बसंत (1), और मल्हार(3) का उल्लेख किया गया है: इससे सिद्ध होता है कि वह वास्तव में सर्वोत्तम शिरोमणि सन्त हैं.
ईश्वर की भक्ति
संत रविदास के अनुसार ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अभिमान का त्याग करके ही व्यक्ति दूसरों के साथ सम्मानजनक व्यवहार, विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है. इस भावना का स्पष्टीकरण संत रविदास ने निम्नलिखित दोहे में किया है:
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥
ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है. अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है. यद्यपि एक विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है, परंतु लघु शरीर की चींटी (पिपीलिका) सरलतापूर्वक चुन लेती है. अन्य शब्दों में, अभिमान का परित्याग करके ही व्यक्ति ईश्वर का परम भक्त बन सकता है.

भारतवर्ष में असमानता, गरीबी, कुपोषण, अंधविश्वास, ऊंच-नीच की भावना इत्यादि को समाप्त करने के लिए शिरोमणि संत रविदास का चिंतन विशेष स्थान रखता है. उनका चिंतन समाज में समरसता, सद्भावना, सामाजिक एकता, जाति प्रथा का उन्मूलन इत्यादि के कारण वर्तमान 21वीं सदी में भी प्रासंगिक है .
(*आंबेडकर समाज कल्याण सभा, करनाल के तत्वाधान में 646 जयंती के अवसर पर आयोजित सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में दिए गए भाषण का सार)

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