समाज वीकली
लेखक – श्री गौहर रज़ा Gauhar Raza
प्रकाशक – पेंगुइन स्वदेश
मूल्य – 298 ₹
Book Review number- 138
BP ratings – 4.9/5*
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सबसे पहले ‘सवाल तो पूछना होगा’ लिखकर ,वैज्ञानिक और लेखक श्री गौहर रज़ा ने पुस्तक की दशा और दिशा के बारे में पाठकों को एक संकेत दे दिया है ।
अपने ग्रह की ब्रह्मांड में वास्तविक स्थिति को बताते हुए लेखक ने वर्तमान पीढ़ी को खोखले दंभ से मुक्त होकर , सोचने को प्रेरित किया है कि आज हम अपनी नन्हीं सी ज़िंदगी में न नफ़रत बोएँ और न काटें ।
पुस्तक की शुरुआत विज्ञान को परिभाषित करने के सार्थक प्रयास से शुरू होती है और अंत वैज्ञानिक व ग़ैर वैज्ञानिक प्रश्नों के वैषम्य और तुलनात्मक सूचीकरण से ।
‘विज्ञान क्या है’ पर एक विशद विश्लेषण श्री रज़ा करते हैं । साधारण और क्रांतिकारी विज्ञान ,वैज्ञानिक और अवैज्ञानिक दावों की पड़ताल, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अंतरसंबंध , वैज्ञानिक पद्धति में समझने में बाधाएँ आदि पर साधारण और बोधगम्य भाषा में छोटे -छोटे लेख पहले अध्याय में हैं ।
दार्शनिक कार्ल पॉपर की बात – ‘विज्ञान का कोई दावा जो ग़लत साबित किए जाने की क्षमता न रखता हो , उसे विज्ञान का दावा नहीं माना जा सकता है ।’ के निदर्शन से लेखक ने विज्ञान और अविज्ञान के दावों के तरीक़े को स्पष्ट किया है ।
चैप्टर ‘आम नागरिकों की नज़र में विज्ञान’ शिक्षा और वैज्ञानिक दृष्टि ; विज्ञान , प्रौद्योगिकी और आस्था के रिश्ते , विज्ञान से नफ़रत क्यों आदि विषयों पर लिखा है और धर्म आधारित राजनीतिक सत्ता की मंशा को स्पष्ट किया – ‘ .. सवाल पूछने की क्षमता कम से कम रहे , तर्क -वितर्क तथा बहस की गुंजाइश ख़त्म हो जाए और सत्ता के आगे बिना सवाल पूछे सिर झुकाने की आदत आम हो जाए ।’
धर्म और विभिन्न सभ्यताओं तथा आधुनिक विज्ञान के नज़र से ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विस्तार से लेख है जो विचारोत्तेजक है ।
समाज के ढाँचे को गठित करने और चलाने के लिए मिथकों में लोगों का विश्वास ज़रूरी था । लगभग यही बात प्रो. युवाल नोआ हरारी अपनी पुस्तक सेपियंस में लिखते हैं जो लेखक श्री रज़ा ने यहाँ स्थापित किया है ।
लेख ‘बुद्धिमान मानव के सफ़र में ‘ सभी वैज्ञानिकों और दार्शनिकों के विचारों का मंडन- खंडन समग्रता के साथ लेखक ने बहुत ही सरल भाषा में संग्रहित किया है ।साथ ही श्री रज़ा ने यह भी बताया है कि विज्ञान में बड़े दिमाग़ भी गलती करते हैं ।
इस पुस्तक की जान है लेख : ‘विज्ञान और धर्म के सवालों में अंतर’ जो इस किताब का अंतिम लेख है । दो तरह के सवाल हैं – पहले जो ‘क्यों’ से शुरू होते हैं और हमें भगवान , दैवीय शक्ति , सृजन के सिद्धांत या बुद्धिमान डिज़ाइन की कल्पना और उस पर यक़ीन करना सिखाते हैं ।दूसरे सवाल जो ‘ कैसे ‘ से शुरू होते हैं और हमें असीमित विज्ञान तक ले जाते हैं ।
लेखक ने यह साबित किया है जो पुस्तक का स्पृहणीय तथ्य-कथ्य कहा जा सकता है –
‘विज्ञान का रास्ता कठिन रास्ता है , मगर यही एक रास्ता है जिसे हम अथक खोज -बीन का रास्ता कह सकते हैं । इस महत्वहीन , फिर भी ख़ास , ग्रह को जब -जब प्राकृतिक आपदा , टेक्नोलॉजी या ख़ुद मानव से ख़तरा पैदा होगा , विज्ञान ही हमें इससे बचने के तरीक़े सुझाएगा । ‘
और अंत में ,
विज्ञान , दर्शन , समाज शास्त्र ,नृविज्ञान , धर्म और मिथक के अबूझ सवालों पर बहुत ही सरल भाषा में , बिना पारिभाषिक और तकनीकी शब्दों की अधिकता से श्री गौहर रज़ा ने पुस्तक : मिथकों से विज्ञान तक कहानी लिखी है ।इसे ब्रह्मांड के विकास की बदलती कहानी भी कहा है । वैज्ञानिक और ग़ैर- वैज्ञानिक दोनों पृष्ठभूमि के विद्यार्थियों को यह पुस्तक अवश्य ही पढ़नी चाहिए ।
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भवतोष पाण्डेय
( bhav.itbhu@gmail.com)