सामयिक मुद्दा
वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट सन् 2023: एक समालोचनात्मक मूल्यांकन
डॉ.रामजीलाल,
सामाजिक वैज्ञानिक,पूर्व प्राचार्य,दयाल सिंह कॉलेज, करनाल(हरियाणा- भारत)
Email—drramjilal [email protected]
वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में असंख्य समस्याएँ विद्यमान हैं. इन समस्याओं में सबसे गंभीर भूख की समस्या है. भूख के परिणामस्वरूप जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और मानव जाति को असंख्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. पूंजीवाद और कारपोरेटरीकरण के कारण गरीब और अमीर में बढ़ती हुई अभूतपूर्व असमानता, कीमतों में वृद्धि,बेरोजगारीदर में वृद्धि तथा रोजगार के अवसरों का अभाव,कोरोना संकट का जीवन के विभिन्न पहलुओं पर प्रभाव,जलवायु संकट, यूक्रेन- रशिया युद्ध, भोजन तथा खाद्य पदार्थों , ऊर्जा और उर्वरकों की कीमतों में वृद्धि के कारण खाद्य सुरक्षा की स्थिति सुधार की अपेक्षा खराब हो रही है. इन सभी के कारण परिणामस्वरूप भूख के सूचकांक में वृद्धि हुई है.
एक अनुमान के अनुसार सन् 2023 में दुनिया में प्रत्येक दिन, 10,000 से अधिक बच्चों सहित 25,000 लोग भूख और संबंधित कारणों से मृत्यु होती है. दुनिया भर में लगभग 854 मिलियन लोग अल्पपोषित हैं, और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के कारण अन्य 100 मिलियन लोग गरीबी और भुखमरी का शिकार हो रहे है. अतः लोगों को फौरन भोजन और पोषक तत्वों की जरूरत है. विश्व खाद्य कार्यक्रम के अनुसार सन् 2023 में दुनिया में भूख से मरने वालों में 70% महिलाएं और लड़कियाँ हैं. खाद्य असुरक्षा के कारण भूख, लिंग आधारित भेदभाव, दुर्व्यवहार, हिंसा, बालिका विवाह,और जीवन-घातक बीमारियों से लड़कियाँ गंभीर रूप से प्रभावित होती है. (https://planinternational.org/publications/world-hunger-impact-girls/)
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2023 में विश्व की 10% जनसंख्या अल्पपोषित है तथा 700 मिलियन लोग अत्याधिक गरीब हैं. वैश्विक स्तर पर 39% बच्चे अल्पपोषित होने के कारण प्रतिवर्ष लगभग 3.1 मिलियन बच्चे काल का ग्रास हो जाते हैं .अन्य शब्दों में प्रत्येक 10 सेकंड में एक बच्चा भूख के कारण मर जाता है.5 वर्ष की आयु के लगभग100 मिलियन बच्चे कुपोषित हैं.एशिया की कुल आबादी का दसवां भाग जो विश्व की लगभग आधी आबादी के समान है, भोजन की कमी के कारण कुपोषण की चपेट में आता है.
https://www.un.org/en/chronicle/article/losing-25000-hunger-every-day#:~:text=Each%20day%2C%2025%2C000%20people%2C%20including,million%20into%20poverty%20and%20hunger.
/ https://www.dchunger.org/hunger-in-dc/consequences-of-hunger-and-poverty/
https://www.worldbank.org/en/topic/agriculture/brief/food-security-update
https://www.prnewswire.com/news-releases/on-world-hunger-day-in-2023-the-world-is-hungrier-than-ever-301835397.html
https://www.who.int/news/item/06-07-2022-un-report–global-hunger-numbers-rose-to-as-many-as-828-million-in-2021
ग्लोबल हंगर इंडेक्स का अध्ययन : गैर सरकारी संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगरहिल्फे
ग्लोबल हंगर इंडेक्स का अध्ययन 2006 से दो विश्व प्रसिद्ध मानवतावादी गैर -सरकारी संगठनों – (एनजीओ) कंसर्न वर्ल्डवाइड (आयरलैंड) और वेल्ट हंगर हिल्फे (जर्मनी) द्वारा लगातार किया जा रहा है। यह दोनों गैर- सरकारी संगठन राज्य सरकारों द्वारा प्रेषित किए गए आंकड़ों के आधार पर मूल्यांकन करते हैं. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट वैज्ञानिक तरीकों पर आधारित होती है. यह रिपोर्ट छोटी और संकीर्ण भावनाओं – क्षेत्र, देश, धर्म, भाषा और रंग भेदभाव से ऊपर उठकर पर तैयार की जाती है. गैर -सरकारी संगठन कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगरहिल्फे की रिपोर्ट का मकसद न सिर्फ गरीबी, भुखमरी और कुपोषण से प्रभावित देशों को आईना दिखाना है अपितु सुझाव देकर हालात में सुधार लाना भी है. यह अलग-अलग देशों की सरकारों पर निर्भर करता है कि वे उनके सुझावों को मानकर स्थिति में सुधार करती हैं या उनकी रिपोर्टों की आलोचना करके उन्हें रद्दी की टोकरी में फेंक देती हैं. रिपोर्ट के आधार पर दुनिया के कई देशों ने अपने लोगों को राहत पहुंचाकर स्थिति में सुधार किया है.
भुखमरी का नापने और ट्रैक करने का पैमाना:
वैश्विक स्तर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के द्वारा भूख को नापने का फॉर्मूला तैयार किया हुआ है. अन्य शब्दों में भुखमरी का नापने और ट्रैक करने के लिए अंको का पैमाना रखा गया है और उसके अनुसार ही राज्यों को वर्गीकृत किया जाता है .प्रथम,यदि स्कोर 9.9 से कम है तो यह कम भूख को इंगित करता है .यह इस बात को दर्शाता है जिन राज्यों का स्कोर 9. 9 से कम है वहां भुखमरी,कुपोषण और गरीबी को दूर करने के लिए राज्य सरकारें निरंतर प्रयास कर रही हैं और भुखमरी कम है. द्वितीय,10 से 19 . 9 तक सूचकांक ‘मध्यम श्रेणी’ को इंगित करता है. तृतीय, पैमाना 20 से 34 .9 पॉइंट तक है. यह एक ‘गंभीर श्रेणी’ है. चतुर्थ, 35 से 35.39 तक का पैमाना ‘भूख की खतरनाक श्रेणी’ में आता है.पंचम् ,50 से अधिक स्कोर का तात्पर्य यह है कि ऐसे राज्य भूख से ‘बेहद ग्रस्त’ हैं.
जीएचआई स्कोर की गणना के घटक संकेतक
जीएचआई स्कोर की गणना के चार संकेतक घटक –अल्पपोषण, बच्चों का बौनापन, चाइल्ड वेस्टिंग, और बाल मृत्यु दर निम्नलिखित हैं:
1.अल्पपोषण: ‘अपर्याप्त कैलोरी’ सेवन वाली जनसंख्या का भाग,
2.बच्चों का बौनापन: पांच साल से कम उम्र के उन बच्चों की भागेदारी जिनकी लंबाई उनकी आयु के हिसाब से कम है. यह ‘दीर्घकालिक कुपोषण’ का प्रतीक है.
3.चाइल्ड वेस्टिंग: पांच साल से कम उम्र के बच्चों का अनुपात, जिनका वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम है.यह ‘गंभीर कुपोषण’ की स्तिथि है.
4.बाल मृत्यु दर: पांचवें जन्मदिन से पहले मरने वाले बच्चों का भाग, आंशिक रूप से अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्य वातावरण के ‘घातक मिश्रण की स्तिथि’ प्रदर्शित करता है.
यह स्कोर शून्य से शुरू होता है और 100 तक जाता है.स्कोर जितना अधिक बढ़ेगा, भुखमरी उतनी ही गंभीर होगी. यदि स्कोर शून्य से 9.9 तक है या तो भुखमरी नहीं है या बहुत कम है और यदि स्कोर 50 से अधिक है तो स्थिति ‘बेहद खतरनाक’ है.
वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट सन् 2023: भारत 125 देशों की सूची में 111 में स्थान पर
सन् 1947 में भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद और भारतीय नवाबों और नरेशों के शोषणकारी सामंतवाद से स्वतंत्र हो गया था परंतु कृषि के पिछड़ेपन के कारण भारत में गरीबी और भुखमरी का साम्राज्य विद्यमान था. विदेशों से खाद्यान्न को आयात किया जाने लगा .भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने अपनी पुस्तक (भारत की अर्थ नीति :गांधीवादी रूप रेखा ,1978) में लिखा कि सन् 1965 – 1967 के अंतराल में अमेरिकी सरकार के द्वारा पीएल 480 के अंतर्गत भारत को 45,76,000 मीट्रिक टन गेहूं भारत को उपहार के रूप में दी गई . कनाडा सरकार के द्वारा भारत को 2,25,000 मीट्रिक टन गेहूं उपहार के रूप में दी गई .जिसकी कीमत 35.8 करोड रुपए थी.
(डॉ.रामजीलाल, ‘भूख के सूचकांक में भारत की श्रेणी गंभीर’, जग मार्ग, (चंडीगढ़ व कुरुक्षेत्र संस्करण) ,21 अक्टूबर 2020 पृ. 6)
भारत सरकार ने इसे विदेशों में अपमान और शर्मिंदगी समझा.परिणाम स्वरूप पर कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए भारत सरकार के द्वारा मेक्सिको से अधिक उत्पादक बीज मंगवाया गया . किसानों को बीज के साथ फ़र्टिलाइज़र भी बांटा गया और भारत में हरित क्रांति की शुरुआत हुई . सरकार की योजनाओं और हरित क्रांति के परिणाम स्वरूप भारत में खाद्य सुरक्षा होने के कारण भूखमरी और कुपोषण की समस्या में कमी हुई. इसके बावजूद भी, सन् 1992 में भारत का सूचकांक 40. 2 था.अन्य शब्दों में भारत में बहुत अधिक भूख की ‘अति गम्भीर स्तिथि’ थी
शीर्ष रैंक वाले देश : भुखमरी के निम्न स्तर के साथ
वैश्विक हंगर रिपोर्ट 2023 के अनुसार शीर्ष देश जिनमें हंगर इंडेक्स 5 पॉइंट तक है. उनमें भुखमरी का स्तर निम्नतर अथवा भुखमरी नहीं के बराबर है. रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में प्रथम स्थान बेलारूस का है. इसके पश्चात बोस्निया व हर्जेगोविना, चिल्ली ,चीन, क्रोशिया, एस्तोनिया, जॉर्जिया, हंगरी, कुवैत, लातनिया, लिथुआनिया इत्यादि 20 देश हैं. इन देशों में भूख से जनता को निजात दिलाने के लिए अनेक नीतियों और कार्यक्रमों को योजनाबद्ध तरीके से लागू किया है जो अन्य राज्यों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य कर सकती हैं. भुखमरी और गरीबी का घनिष्ठ संबंध है जैसे-जैसे भूखमरी कम होती है वैसे ही गरीबी भी कम होती है और जनता का जीवन सुखमय होता है .परिणाम स्वरूप बच्चों की वेस्टिंग व स्टंटिंग से राहत मिलती है.
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जी एच आई) सन् 2023 : भारत के पड़ोसी
वैश्विक हंगर रिपोर्ट सन् 2020 के अनुसार 117 देश की सूची में भारत 94 वें स्थान पर था सन् 2022 में 121 देशों की सूची में भारत का स्थान 107 वां था. ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जी एच आई) सन् 2023 में भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान (102वें), बांग्लादेश (81वें), नेपाल (69वें) और श्रीलंका (60वें) स्थान पर है. सन् 2022 में भारत अपने 107वें स्थान से 2023 में चार पायदान नीचे फिसल गया.
भारत से नीचे रैंकिंग वाले देश
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जी एच आई) सन् 2023 की रिपोर्ट के अनुसार तिमोर-लेस्ते, मोज़ाम्बिक, अफ़ग़ानिस्तान, हैती, लाइबेरिया, सिएरा लियोन, चाड, नाइजर, कांगो, यमन, मेडागास्कर, दक्षिण सूडान, बुरुंडी और सोमालिया भारत से नीचे रैंकिंग वाले देश हैं. अर्थात भारत की रैंकिंग इन देशों से बेहतरीन है
वैश्विक भुखमरी सूचकांक2023 की रिपोर्ट :मुख्य हाइलाइट्स
रिपोर्ट के मुख्य हाइलाइट्स अधोलिखित है:
प्रथम, 12 अक्टूबर 2023 को जारी की गई वैश्विक भुखमरी सूचकांक रिपोर्ट के मुताबिक 125 देशों की सूची में भारत का स्थान111वां है तथा भारत के 28. 7 अंक भूख की ‘गंभीर श्रेणी’ की ओर इशारा करते हैं.
द्वितीय, भारत में चाइल्ड वेस्टिंग की दर 18 . 7% विश्व में सर्वाधिक है जबकि यमन में 14.4,सूडान में 13.7, मॉरिटानिया में 13.6 ,श्रीलंका में 13.1, मॉरीशस में 12.1 तथा बांग्ला देश में 11 .0 ,नाइजर 10.9 व माली 10.8 है.
तृतीय, रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 16.6% जनसंख्या कुपोषित है.
चतुर्थ, 15 से 24 वर्ष की आयु की महिलाओं का 58 .1% एनेमिया से ग्रस्त है, तथा
पंचम, 5 साल की कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 3 . 1% है.
https://www.downtoearth.org.in/news/world/global-hunger-index-2023-india-reports-highest-child-wasting-rate-slips-4-notches-on-ranking-92282 https://www.unicef.org/child-alert/severe-wasting?gclid=
वैश्विक भुखमरी सूचकांक2023 की रिपोर्ट :भारत सरकार की प्रतिक्रिया
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 12 अक्टूबर 2023 को इस रिपोर्ट को ‘गंभीर पद्धतिगत मुद्दे’ एवं ‘दुर्भावनापूर्ण इरादे’ के आधार पर एक सिरे से खारिज कर दिया. भारत सरकार के मंत्रालय का तर्क है कि सूचना की गणना के लिए चार संकेतकों में से तीन संकेतक बच्चों के स्वास्थ्य से संबंध रखते हैं. परिणाम स्वरूप यह भारत की पूरी आबादी का प्रतिधित्व नहीं करते.
मंत्रालय के अनुसार इस रिपोर्ट में चौथा संकेतक सबसे महत्वपूर्ण है. यह संकेतक ‘कुपोषित आबादी का अनुपात 3000 के बहुत छोटे नमूना आकार पर आयोजित एक जन सर्वेक्षण पर आधारित है’ .सरकार ने कुपोषित जनसंख्या का अनुपात संकेतक को ‘संदेहात्मक’ कहा है क्योंकि स्टंटिंग व वेस्टिंग संकेतक स्वच्छता ,आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन के उपयोग जैसे कारकों के ऊपर निर्भर करता है.
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का दावा है कि मोबाइल-आधारित एप्लिकेशन, पोषण ट्रैकर, लगातार हर महीने डाटा रिपोर्टिंग करता है.इस डाटा के आधार पर पता चलता है कि 5 साल से कम उम्र के कुल 7.24 करोड़ बच्चों में चाइल्ड वेस्टिंग का प्रचलन 7. 24% है जबकि एचजीआई ने चाइल्ड वेस्टिंग 18.7% बताया है.अतःजीएचआई में दर्ज 18.7 प्रतिशत चाइल्ड वेस्टिंग अनुचित है.
केंद्र सरकार के मंत्रालय ने अपने दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए यह तर्क भी दिया कि सरकार ने मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2 .0 के अंतर्गत कुपोषण की चुनौती से निपटने के लिए अनेक कार्यक्रमों को प्राथमिकता प्रदान की है तथा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के अंतर्गत लगभग 80 करोड लोगों को 28 महीना में 1118 टन खाद्यान्न प्रदान किया है.
(https://www.hindustantimes.com/india-news/global-hunger-index-2023-centre-finds-fault-in-methodology-as-india-ranked-below-pakistan-101697165071570.html)
https://www.livemint.com/news/india-slips-in-global-hunger-index-new-delhi-slams-report-11697131298856.html
भुखमरी को दूर करने का रास्ता: किसानों के खेत से गुजरता है
भुखमरी को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत हैं:
प्रथम,भुखमरी को दूर करने का रास्ता किसानों के खेत से होते हुए गुजरता है.यही कारण है कि बार-बार स्वामीनाथन रिपोर्ट(2006)की सिफारिश को लागू करने के लिए किसान संगठनों के द्वारा जोर दिया जाता है. इस रिपोर्ट को लागू करवाने के लिए किसानों का दिल्ली बॉर्डर पर सन् 2020-21 में ऐतिहासिक आंदोलन 378 दिन चला. इस आंदोलन में लगभग 750 किसान शहीद हुए. यद्यपि सरकार ने तीन कृषि कानूनों को तो वापस ले लिया परंतु स्वामीनाथन रिपोर्ट के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य—(सीटू+ 50%) लागू नहीं किया. किसानों को सीटू+50% फार्मूले के आधार पर फसलों का न्यूनतम मूल्य दिया जाएऔर कृषि निवेशों की कीमतों में वृद्धि होने से रोका जाए.न्यूनतम समर्थन मूल्य के संबंध में कानून का निर्माण होना अति अनिवार्य है.इस मांग को लेकर किसान लंबे समय से संघर्ष करते रहे हैं और कर रहे हैं. फसलों की बर्बादी को रोकने की जरूरत है तथा ग्रामीण क्षेत्र में इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाए.सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बाढ़ अथवा अकाल के समय भ्रष्टाचार की बाढ़ आ जाती है. इस संदर्भ में पी.साईनाथ प्रसिद्ध पत्रकार, ग्रामीण पत्रकारिता के जनक एवं भारतीय किसानों के प्रहरी ने 27 वर्ष पूर्व सन्1996 में प्रकाशित अपनी पुस्तक,{ Sainath.P,Everybody Loves a Good Drought:Stories from India’sPoorest Districts ,Penguin,1996} में लिखा है कि बाढ़ एवं सूखे (अकाल) को अधिकारी ‘अच्छा’ मानते हैं क्योंकि वह अपनी ‘तीसरी फसल’ काटते हैं अर्थात बाढ़ और अकाल राहत कार्यों में लगे सरकारी फंड में से लगभग 25 परसेंट ‘तीसरी फसल’ (भ्रष्टाचार) काटते हैं. इस तीसरी फसल(भ्रष्टाचार) को रोकना बहुत जरूरी है.
( डॉ.रामजीलाल, ‘ भारत में गरीबी, भुखमरी एवं कुपोषण :आर्थिक विकास की तस्वीर का कृष्ण पक्ष,’ सजग समाज, करनाल, दिसंबर 2017, पृ.5-9 व 15)
द्वितीय, भारत सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को बदलने की जरूरत है.आर्थिक व्यवस्था का कॉरपोरेट्रीकरण होने के कारण गरीब और अमीर के बीच निरंतर खाई बढ़ती जा रही है तथा ‘ट्रिकल डाउनथ्योरी’ के आधार पर गरीबी और भूख का उन्मूलन होना असंभव है.इस नीति का परित्याग करके समाजवादी चिंतन के आधार पर नीतियों का निर्माण किया जाए.
तृतीय,स्वास्थ्य के क्षेत्र में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ किया जाए. चिरायु- आयुष्मान भारत योजना यद्यपि एक बेहतरीन योजना है परंतु इसके साथ निजी अस्पतालों को जोड़ने के कारण आम जनता को कम लाभ पहुंच रहा है और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों और डॉक्टरों के गठबंधन के कारण भ्रष्टाचार से परिपूर्ण है.इसलिए इस योजना को सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों से जोड़ा जाए ताकि सभी नागरिकों को स्वस्थ सेवाएं उपलब्ध हो सके.
चतुर्थ, बेरोजगारी और भुखमरी का भी पारस्परिक संबंध है. बेरोजगारी के कारण रोटी, कपड़ा , मकान, शिक्षा, स्वच्छ पेयजल व स्वस्थ्य की समस्याएं निरंतर बनी रहती है. इसलिए सार्वजनिक क्षेत्रों में खाली पड़े पदों की स्थाई तौर पर भर्ती की जाए ताकि मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके .
पंचम,सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दोष रहित किया जाना नितांत आवश्यक है.मिड डे मील बच्चों की शिक्षा व स्वस्थ्य के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ है इसको और अधिक पोषण वर्धक बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए .मनरेगा की राशि को बढा कर ग्राम्य जीवन मे सुधार होने कारण गरीबी भुखमरी व कुपोषण से निजात मिल सकती है.
छठा, सरकार की नीतियों को लागू करने के लिए सरकारी कर्मचारियों का अभिमुखीकरण जन हितैषी होना चाहिए. वह कर्मचारी जो नीतियों को लागू करने में कोताही बढ़ते हैं अथवा भ्रष्टाचार करते हैं उन कर्मचारियों के विरुद्ध सख्त से सख्त कार्रवाई का होना जरूरी है.
सप्तम,सबसे महत्वपूर्ण बात यह है क पूंजीपतियों को सरकारों के द्वारा जो सुविधाएं दी गई है उनको बंद करके सार्वजनिक क्षेत्र में लगाया जाए तथा पूंजीपतियों को राहत देने के लिए बैंकों के द्वारा अपनाई जाने वाली ‘एनपीए की नीति’ को बंद करके बैंकों को “मुंडन संस्कार” से बचाया जाए. अन्य शब्दों में सन् 1991 के पश्चात जो नव -उदारवादी नीतियों का प्रारंभ डॉ. मनमोहन सिंह (वित्त मंत्री )तथा नरसिम्हा राव( प्रधानमंत्री) के द्वारा किया गया था उन नीतियों को यूपीए और एनडीए की सरकारों के द्वारा आगे बढ़ाया गया उसको रोकने की जरूरत है क्योंकि इससे आम जनता की बजाए पूंजीपति वर्ग को लाभ पहुंचा है.
संक्षेप में, भुखमरी को दूर करने का रास्ता किसानों के खेत से गुजरता है .इसलिए कृषि क्षेत्र में भी सुधारों की आवश्यकता है.