पूर्वी दिल्ली को चाहिए सही विकल्प
-राजेश कुमार
(समाज वीकली)- दिल्ली में लोकसभा चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच सीटों का समझौता हो गया है। गठबंधन के मुताबिक आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की पार्टी 4 सीटों पर जबकि कांग्रेस पार्टी 3 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इस ख़बर पर मेरी दिलचस्पी का कारण, एक पत्रकार के अलावा, ये था कि आम आदमी पार्टी के हिस्से आई 4 सीटों में पूर्वी दिल्ली की सीट भी है, जहां मैं पिछले 10 वर्षों से भी ज्यादा समय से रह रहा हूं।
राजधानी दिल्ली की चकाचौंध से इतर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र की अपनी अलग समस्याएं, अपनी चुनौतियां और अपना खास सामाजिक समीकरण है। इस सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं के साथ मेहनतकशों की अच्छी खासी तादाद है। लिहाजा, मेरा ये मानना है कि यहां से जनसरोकारों से जुड़ा एक ईमानदार और प्रतिबद्ध जन उम्मीदवार चुनाव मैदान में होना चाहिए, जिसके प्रतिनिधित्व में दिल्ली के हाशिए पर पड़ा ये इलाक़ा राजधानी के बाकी क्षेत्रों के साथ कदम मिला कर आगे बढ़ सके। यहां की जन आकांक्षाओं के पूरा करने की उम्मीद मुझे कम से कम भारतीय जनता पार्टी या आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों से तो नहीं ही है।
पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से 2009 और 2014 में डॉ प्रेम सिंह चुनाव लड़ चुके हैं। वे दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक और भाई वैद्य, जस्टिस राजेंद्र सच्चर, पन्नलाल सुराणा, सरदार बलवंत सिंह खेड़ा जैसे वरिष्ठतम समाजवादियों के साथ सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के संस्थापक सदस्य रहे हैं। उन्हें कारपोरेट घरानों और सांप्रदायिक शक्तियों की जुगलबंदी के खिलाफ पिछले 30 सालों से वैकल्पिक राजनीतिक धारा में काम करने का राजनीतिक अनुभव है। कारपोरेट-कम्यूनल राजनीति के गठजोड़ के बरक्स वैकल्पिक राजनीति का विचार देने वाले चिंतक किशन पटनायक की धारा को आगे बढ़ाने वाले कुछ चुनिंदा लोगों में डॉ प्रेम सिंह हैं।
मैं कहना यह चाहता हूं कि संवैधानिक मूल्यों – समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र – के प्रति डॉ प्रेम सिंह की अडिग निष्ठा रही है। एक समाजवादी विचारक और नेता के रूप में उनकी पहचान अलग से परिचय की मोहताज नहीं है। हालांकि दोनों ही चुनावों में संजीदा नागरिकों ने उनका सहयोग और समर्थन किया, लेकिन वे जीत नहीं पाए। लेकिन उनकी उम्मीदवारी ने लोगों के सामने एक विकल्प जरूर रखा। डॉ प्रेम सिंह के चुनाव प्रचार को मैंने भी अपनी नज़रों से देखा था। उनकी चुनावी सभाओं में जिस प्रकार नवउदारवाद और सांप्रदायिक राजनीति का मुखर विरोध किया गया, उससे हमारे जैसे संविधान में आस्था रखने वाले लाखों-करोड़ों लोगों के लिए अंधेरी रात में जुगनू की चमक कहा जा सकता है। महंगे और साधारण आदमी की पहुंच से दूर हो चुके चुनाव प्रचार के बीच डॉ प्रेम सिंह के समर्थन में वोट मांगते छात्रों और प्रबुद्ध जनों की टोलियां निराश हो चुके लोगों में आशा का संचार करती थीं।
इस छोटी-सी भूमिका के जरिए मैं डॉ प्रेम सिंह से अपील करता हूं कि वे एक बार फिर पूर्वी दिल्ली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतर कर मतदाताओं को सही विकल्प प्रदान करें। मेरी क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों, मजदूर संगठनों, छात्र एवं शिक्षक संगठनों, पत्रकार एवं नारी संगठनों के साथ क्षेत्र में पड़ने वाली रेसिडेंट्स वेल्फेर एसोशिएसनों और ग्राम समितियों के नुमाइंदों से गुजारिश है कि वे मेरी अपील पर गंभीरता से विचार करें। अगर उन्हें यह अपील वाजिब लगती है तो अपनी तरफ से इसे आगे बढ़ाएं।
डॉ प्रेम सिंह मेरे गुरू भी रहे हैं, लेकिन इसे एक शिष्य की भावुक अपील ना समझकर एक जागरूक नागरिक का कर्तव्य-बोध समझा जाए। मुझे आशा है हमख्याल लोग इस चर्चा को अपने-अपने स्तर पर आगे बढ़ाएंगे।
(लेखक टीवी पत्रकार हैं)