येशुदास : सुनहरी आवाज के बेताज बादशाह  

#समाज वीकली 

विद्या भूषण रावत

-विद्या भूषण रावत

आज स्वर सम्राट येशुदास का 85 वा जन्मदिन है और इस अवसर पर दुनिया भर मे उनके चाहने वाले उन्हे शुभकामनाएं भेज रहे हैं। हालांकि येशुदास मूलतः केरल के हैं और मलयालम संगीत और सिनेमा की दुनिया मे ऐसा कोई बिरला ही होगा जिसे उनके नाम और गानों का पता न हो लेकिन केरल से भी आगे देश के दूसरे हिस्सों मे येशुदास के दिल की गहराइयों मे उतरने वाली आवाज के चाहने वालों की संख्या कम नहीं है। मैने बहुत बार लिखा है कि हिन्दुस्तानी सिनेमा जिसे अब बॉलीवुड या हिन्दी सिनेमा कहा जा रहा है, उसे मज़बूत बनाने मे और देश के कोने कोने मे पँहुचाने वालों मे गैर हिन्दी भाषी कलाकारों की भूमिका हिन्दी वालों से कही अधिक है। चाहे मंगेशकर बहिने हो या मोहम्मद रफी, किशोर कुमार, मन्ना डे या महेंद्र कपूर, सभी की मूल भाषा हिन्दी नहीं थी लेकिन इनके गीत आज भी हमारी मुख्य धारा को नियंत्रित किए हुए हैं। इसी सिनेमा को दो बेहद ही कर्णप्रिय आवाजों ने और सार्थकता प्रदान की और ये दोनों आवाजे थी दूर तमिलनाडु और केरल से। एक आवाज है येशुदास की और दूसरी एस पी बालसुब्रह्मण्यम की। एस पी अब हमारे बीच मे नहीं है लेकिन उनकी आवाज का जादू आज भी हमारे युवा दिलों की धड़कनों मे बसता है।

आज हम के जे येशुदास को याद कर रहे हैं जो 85 वर्ष मे प्रवेश कर रहे हैं और आज भी अपनी मधुर आवाज से संगीत की सेवा कर रहे हैं। हालांकि बहुत से लोग येशुदास के विषय मे ये आलेख पढ़ते पढ़ते ये सोच रहे होंगे कि आखिर वो हैं कौन और क्यों मै उनके विषय मे इतना लिख रहा हूँ। मै तो येशुदास की आवाज का दीवाना था। इतनी स्वर्णिम आवाज जो सीधे आपके दिल मे उतरती है, हृदय को छू जाती है। येशुदास का जन्म 10 जनवरी 1940 को केरल राज्य के कोची शहर मे हुआ। उनका पूरा नाम कट्टासारी जोसेफ येशुदास है जिन्हे साधारणतः के जे येशुदास या येशुदास के नाम से जाना जाता है। उनका परिवार रोमन कैथोलिक ( ईसाई) धर्म से संबंधित था लेकिन येशुदास की भक्ति और भावना के चलते उनकी स्वीकार्यता हिन्दू धर्मवलंबियों मे बहुत अधिक है। उनके पिता का नाम औगुसटीन जोसेफ और मा का नाम एलिजाबेथ था। अपने सात भाई बहिनों मे वह दूसरे नंबर पर थे। 1 फरवरी 1970 मे उनका विवाह प्रभा से हुआ और परिवार मे तीन पुत्र हैं और वे सभी संगीत को समर्पित हैं।

एक गैर हिन्दी भाषी होते हुए भी येशुदास ने जो गीत हमे दिए हैं वे मील का पत्थर हैं। हालांकि येशुदास ने मलयाली फिल्मों मे 1961 से ही गाना शुरू कर दिया था, हिन्दी फिल्मों मे आने मे उन्हे समय लगा और 1971 से उन्हे हिन्दी फिल्मों के कुछ गीत गाने का मौका मिला लेकिन न तो उन फिल्मों के बारे मे लोग ज्यादा जानते हैं और न ही उन गीतों को लोगों ने सुना होगा। येशुदास का हिन्दी संगीत के साथ असली संबंध संगीतकार रवींद्र जैन ने बनाया। संगीतकार रवींद्र जैन बेहद ही कर्णप्रिय संगीत देते थे और कहते हैं कि उन्हे येशुदास की आवाज से इतना प्यार था कि उनका कहना था कि यदि कभी उनकी आंखे वापस आई तो वह सबसे पहले येशु दास को देखना पसंद करेंगे।

येशु दास का पहला हिट गीत एक दो गाना था जिसे उन्होंने आशा भोसले के साथ बसु चटर्जी की फिल्म छोटी सी बात के लिए गाया। ये फिल्म 1975 मे बनी थी और बहुत पसंद की गई। योगेश का लिखा ये गीत ‘ जानेमन जानेमन, तेरे दो नयन, चोरी चोरी लेके गए, देखो मेरा मन,’ को येशुदास ने आशा भोसले के साथ गाया और ये गीत आज भी लोगों की जुबान पर चढ़ा रहता है। असल मे अमोल पालेकर और जरीना बहाव पर फिल्माए इस गीत के बाद तो बाद की की फिल्मों मे भी येशुदास अमोल पालेकर की आवाज बन गए।

रवींद्र जैन के संगीत मे 1976 मे बनी फिल्म चितचोर आज भी हम सभी को बेहद प्रभावित करती है। इसका मधुर और कर्णप्रिय संगीत सबका मन मोह लेता लेकिन इसमे येशु दास की आवाज हमारे अंतर्मन मे सीधे असर करती है।

गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा, मै तो गया मारा, आके यहा रे,
उस पर रूप तेरा सादा, चंद्रमा जु आधा,
आधा जवान रे।

हम सब लोग इस गीत को बहुत गाते हैं और वह न केवल संगीत का जादू अपितु एक रूहानी आवाज का हमारे अंदर तक चले जाना जैसे होता है।

रंग बिरंगे फूल खिले हैं,
लोग भी फूलों जैसे,
आ जाए, एक बार यहा जो,
वो जाएगा फिर कैसे,
झर झर झरते हुए झरने,
मन को लगे हरने,
ऐसा कहा रे।।

हकीकत यह है कि ऐसा लगता है येशुदास की आवाज की खुशबु प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता जोड़ती है। चितचोर फिल्म मे हेमलता के साथ येशुदास का दूसरा गीत भी बेहद खूबसूरत है। ‘ तू जो मेरे सुर मे, सुर मिला ले, संग गा ले, तो जिंदगी, हो जाए सफल।

चितचोर फिल्म मे ही येशुदास की मखमली आवाज का जादू चला है इस गीत मे जो आज भी बहुत सुना जाता है और बहुत स्पेशल है।

 ‘ जब दीप जले आना, जब साँझ ढले आना,
संकेत मिलन का भूल ना जाना,
मेरा प्यार न बिसराना’’’
जब आप इस गीत को सुनते हैं हैं तो येशुदास की आवाज हमारे रूह पर अपना असर करते है। इन पक्तियों को सुनिए,
‘मै पलकन डगर बुहारूँगा, तेरी राह निहारूँगा
मेरी प्रीत का काजल तुम अपने नैनो मे चले आना’।
जहा पहली बार मिले थे हम,
जिस जगह से संग चले थे हम,
नदिया के किनारे आज उसे,
अमुआ के तले आना,

( फिल्म : चितचोर, गीत संगीत : रवींद्र जैन )

इसी फिल्म का ‘आज से पहले, आज से ज्यादा, खुशी आज तक नहीं मिली, इतनी सुहानी ऐसी मीठी, घड़ी आज तक नहीं मिली’ नामक गीत ने तो सबका दिल जीत लिया। ये गीत आज भी खुशियों के पल वैसे ही एहसास जगाता है जैसे अपने शुरुआती दौर मे।

https://www.youtube.com/watch?v=pBY0pC1VilY

चितचोर फिल्म रवींद्र जैन और येशुदास के शागिर्दगी का एक ऐसा नमूना है जिसने भारतीय सिनेमा मे दोनों का नाम अमर कर दिया है। इन गीतों को कोई कभी नहीं भूल पाएगा और ये हमे हमेशा प्यार, मोहब्बत और रुहनीयत का अहेसास करवाते रहेंगे।

1977 मे अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार अभिनीत फिल्म ‘ आलाप’ मे हरिवंश राय बच्चन के इस गीत को जो अमिताभ पर फिल्माया गया, संगीतकार जयदेव की धुन पर इस गीत को येशुदास ने अपनी आवाज से अमर कर दिया।

‘ कोई गाता, मै सो जाता,
संसृति के विस्तृत सागर पर,
सपनों की नौका के अंदर,
सुख दुख की लहरों पर उठकर,
बहता जाता,
मै गाता।
 
मेरे जीवन का काराजल,
मेरे जीवन का हलाहल,
कोई अपने स्वर मे मधुमय कर
बरसाता मै सो जाता।

 इसी फिल्म मे डाक्टर राही मासूम रजा के ‘जिंदगी के फलसफे’ को येशुदास ने कैसे गाया ये आप सुन सकते हैं।

https://www.youtube.com/watch?v=VLBdb7NRvbw

जिंदगी को संवारना होगा,

दिल मे सूरज उतारना होगा,

ज़िन्दगी रात नहीं, रात की तसवीर नहीं
ज़िन्दगी सिर्फ़ किसी ज़ुल्फ़ की ज़ंजीर नहीं
ज़िन्दगी बस कोई बिगड़ी हुई तक़दीर नहीं
ज़िन्दगी को निखारना होगा
ज़िन्दगी को सँवारना होगा…

ज़िन्दगी धूप नहीं, साया-ए-दीवार भी है
ज़िन्दगी ज़ार नहीं, ज़िन्दगी दिलदार भी है
ज़िन्दगी प्यार भी है, प्यार का इक़रार भी है
ज़िन्दगी को उभारना होगा
ज़िन्दगी को सँवारना होगा…

1977 मे संगीतकार सलिल चौधरी की फिल्म ‘आनंद महल’ एक क्लैसिक फिल्म थी जो बिना किसी कारण के रिलीज नहीं पाई। इसमे येशुदास का शास्त्रीय संगीत सुनाई देता है। बहुत से गीत दिल को छूने वाले हैं। ये पता नहीं कि इस फिल्म के अरिजनल प्रिंटस और टेपस का क्या हुआ। आप इसके गीत जो अब रिलीज हुए हैं सुन सकते हैं। ये गीत जनता तक नहीं पहुंचे लेकिन यदि तकनीक के कारण उन्हे बचाया जा सका है तो उन्हे जरूर सुनना चाहिए।

https://www.youtube.com/watch?v=sWQa4QD6obA

 1977 आई फिल्म दो चेहरे मे संगीतकार सोनिक ओमी ने येशुदास से एक गीत गवाया था वो था ‘प्रीत की रीत निभाना, ओ साथी रे’

रात अंधेरी, दूर किनारा,
तेरे सिवा अब कौन सहारा,
चंचल लहरे, गहरा भंवर है,
कश्ती न डूबे, मन मे ये डर है,
नैया पार लगाना,
ओ साथी प्रीत की रीत निभाना।
चाहे पड़े मिट जाना,
वो साथी, प्रीत की रीत निभाना।

आप इस गीत को यहा सुन सकते हैं https://www.youtube.com/watch?v=AqxvdVcToeg

 1977 मे ही आई फिल्म ‘ दुल्हन वही जो पिया मन भाये’ मे येशुदास की आवाज ने रवींद्र जैन के संगीत के साथ ये सुपर हिट गीत दिया जो आज भी उतना ही लोकप्रिय है।

‘ खुशिया ही खुशिया हों, दामन मे जिसके॥।
क्यों न खुशी से वो दीवाना हो जाए’।

https://www.youtube.com/watch?v=I25-hNIPnOk

उस दौर मे हेमलता की आवाज भी बहुत लोकप्रिय हुई और इस गीत मे उन्होंने येशुदास के साथ इसे अमर कर दिया।

देवानंद ने अपनी फिल्म स्वामी मे उनसे गवाया था और ये गीत भी अपने समय मे बहुत लोकप्रिय हुआ। गीत था ‘ का करूँ सजनी आए ना बालम’।

1978 मे संगीतकार उषा खन्ना ने फिल्म ‘साजन बिन सुहागन’ मे एक बहुत ही कर्णप्रिय गीत येशुदास से गवाया जो आज भी हम सबकी जुबान पर बरबस ही आ जाता है। फिल्म किसी को याद हो ना हो लेकिन गीत और उसके बोल आज भी अमर हैं।

‘मधुबन खुशबू देता है,
सागर सावन देता है,
जीना उसका जीना है,
जो औरों को जीवन देता है।
सूरज न बन पाए तो
बनके दीपक जलता चल,
फूल मिले या अंगारे,
तू सच की राह पर चलता चल,
प्यार दिलों को देता है, अश्को को दामन देता है,
जीना उसका जीना है, जो औरों को जीवन देता है।

योगेश का लिखा एक गीत जो अधिक नहीं सुना गया है लेकिन येशुदास की आवाज ने गीत के बोलो को और अधिक खूबसूरत बना दिया।

नीले अम्बर के तले, कोई यहा साथी मिले,
छलके छलके अरमा दिल के,
लेकर बसाने घर चले
( फिल्म सफेद झूठ)

https://www.youtube.com/watch?v=Qknss4gbgfA

ऐसे ही उन्होंने कैफ़ी आजमी द्वारा लिखित भापपी लहरी के संगीत निर्देशन मे एक बेहतरीन गीत गया। 

माना हो तुम, बेहद हंसी,
ऐसे बुरे, हम भी नहीं,
कैफ़ी आजमी- भपपी लहरी

1979 मे आई राजश्री प्रोडक्शन की  फिल्म ‘सावन को आने दो’ मे भी येशुदास की आवाज ने कमाल किया और फिल्म चाहे लोग भूल गए हों लेकिन ‘चाँद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा, नहीं भूलेगा मेरी जान ये सितारा वो सितारा’, को शायद ही भूल पाए।

https://www.youtube.com/watch?v=u4wmmGrI4pE

1979 मे ही आई फिल्म दादा मे उषा खन्ना के संगीत मे येशुदास का गीत ‘ दिल के टुकड़े टुकड़े करके, मुस्कुराके चल दिए, जाते जाते ये तो बता जा हम जियेंगे किसके लिए’ बहुत लोकप्रिय हुआ। सन 1979, हिन्दी मे येशुदास को एक बहुत बड़े मुकाम पर ले जा रहा था।

 1979 मे आई नसीरुद्दीन शाह और रामेश्वरी की फिल्म सुनयना भी लोग भूल चुके होंगे लेकिन इस फिल्म मे रवींद्र जैन के संगीत मे येशुदास का टाइटल सॉन्ग इतना मीठा और खूबसूरत है कि आज भी वो हमारे दिलों मे बिल्कुल वैसे ही बसता है जैसे उस दौर मे था। उनका ‘सुनयना’ कहना सीधे मन को छूता है। ‘आज इन नज़ारों को तुम देखो, और मै तुम्हें देखते हुए देखू, मै बस तुम्हें देखते हुए देखूँ।

https://www.youtube.com/watch?v=op6blgiYNa0

इसी फिल्म मे एक अन्य गीत जो शायद भुला दिया गया है लेकिन बेहद प्रेरक गीत है।

तुम्हें कैसी मिली है जिंदगी, इसे जीके तो देखो
लोग निकाले, चाँद मे भी कसर,
जैसा जो देखे,   वही पाए नजर,
अवगुण अवगुण न देखो
गुण ही देखा करो
हल्की भी है, भारी भी है,
मीठी है, खारी भी है।।
तुम्हें मिली है जिंदगी इसे जीके तो देखो।

https://www.youtube.com/watch?v=4Exkop18WoQ

1980 मे रवींद्र जैन द्वारा लिखित और स्वरबद्ध फिल्म मान अभिमान के गीत ‘ऐ मेरे उदास मन’ मे येशुदास हमे फिर से रूहानी दुनिया मे लिए चलते हैं।

ऐ मेरे उदास मन
चल दोनों कहीं दूर चले
मेरे हमदम तेरी मंज़िल
ये नहीं, ये नहीं, कोई और है
ऐ मेरे उदास मन…

इस बगिया का हर फूल, देता है चुभन काँटों की
सपने हो जाते हैं धूल, क्या बात करें सपनों की
मेरे साथी तेरी दुनिया
ये नहीं, ये नहीं, कोई और है
ऐ मेरे उदास मन.

ऐसे लगता है कि रवींद्र जैन के साथ येशुदास का रिश्ता भी कोई रूहानी था जिसके चलते इतने मीठे और खूबसूरत गीतों का निर्माण हुआ जो हिन्दी सिनेमा के सबसे बेहतरीन गीतों मे गिने जाएंगे जो हममे मिठास और उम्मीद जताते हैं।

1980  मे भी येशुदास किसी ना किसी हिन्दी फिल्म से जुड़े रहे लेकिन अधिक नहीं। 1978 मे बनी त्रिशूल फिल्म मे संगीतकार खय्याम के निर्देशन मे  उन्होंने लता मंगेशकर के साथ संजीव कुमार और वहीदा रहमान पर फिल्माया हुआ खूबसूरत गीत, ‘ आपकी महकी हुई, जुल्फों को कहते हैं घटा, आपकी मद भरी आँखों को कवल कहते हैं’।

https://www.youtube.com/watch?v=Uwuq9DbgXrA

इसी फिल्म मे किशोर कुमार और लता मंगेशकर के साथ, साहिर का लिखा गीत, ‘ मुहब्बत बड़े काम की चीज है’ बहुत लोकप्रिय हुआ।

1981 मे साई परांजपे की फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ फिल्म के लिए येशुदास द्वारा गया ‘कहा से आए बदरा’ आज भी बहुत लोकप्रिय गीत है। 1983 मे कमल् हासन और श्रीदेवी अभिनीत फिल्म सदमा मे येशुदास का गीत ‘ सुरमई अँखियों मे, नन्हा मुन्ना सा एक सपना दे जा रे,  निंदिया के उड़ते पाखी रे, अँखियों मे आ जा साथी रे’ आज भी दिल को सुकून देता है। इस गीत के संगीतकार इलायराजा थे।

1990 के दशक के से येशुदास हिन्दुस्तानी सिनेमा से लगभग बाहर हो गए हालांकि इसी दशक मे आखिर मे तमिलनाडु के प्रख्यात गायक एस पी बाल सुब्रह्मण्यम फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के गीतों से हिन्दी सिनेमा पटल पर छा गए थे। येशुदास केरल मे अपनी संगीत साधना करते रहे और उनकी लोकप्रियता असीमित्त थे। रजनीकान्त, एसपी बलसुब्रह्मण्यम आदि की तरह उन्हे भी प्रसिद्धि और महानता के लिए हिन्दी और हिन्दी भाषी लोगों की स्वीकार्यता पर निर्भर नहीं रहना पड़ा हालांकि उनकी आवाज ने हिन्दुस्तानी गायकी को ही मज़बूत किया।

येशुदास का मुख्य फोकस अपनी भाषा के जरिए ही लोगों तक पहुंचना था। केरल और दक्षिण मे तो उनकी वाणी देववाणी कही जाती है। केरल मे उन्हे लोगों का असीमित प्यार मिला और यह कह सकते है के वह वहा के सांस्कृतिक प्रतिनिधि है, आयकोन हैं। अपने छ दशक से अधिक के लंबे सफर मे येशुदास ने 25000 से अधिक गीत गाए हैं। कुछ लोग ये आँकलन पचास हजार से अधिक होने का करते हैं जो मलयालम के अलावा, तमिल, कन्नड, हिन्दी, तेलुगु, बंगाली और ऑडिया भाषाओ मे भी गाए। इसके अलावा उन्होंने विदेशी भाषाओ मे भी गीत गाए इनमे अरबी, अंग्रेजी, रूसी और लैटिन भी शामिल है। 1975 मे उन्हे पद्मश्री, 2002 मे पद्म भूषण और 2017 पद्म विभूषण पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया। उसके अलावा उन्हे 8 राष्ट्रीय पुरुस्कार और अनेकों क्षेत्रीय पुरुस्कार मिले हैं। 43 बार उन्हे विभिन्न भाषाओ मे सर्व श्रेष्ठ गायक का पुरुस्कार मिल चुका है जो एक रिकार्ड है। 1987 मे उन्हे ये कहना पड़ा कि उन्हे इतने पुरुस्कार मिल चुके हैं कि अब उसकी आवश्यकता नहीं है। हकीकत यह है आज येशुदास किसी भी पुरुस्कार से बड़े हैं. सन 1970 और 1980 के दशक मे मलयालम मे शायद ही कोई ऐसी फिल्म रही हो जिसमे येशुदास का गीत न हो और वो हिट न हुआ हो। ऐसा कहा जाता है कि येशुदास ने एक दिन मे 11 अलग अलग भाषाओ मे गीत रिकार्ड किए। इतन

येशुदास की धार्मिक मान्यताओ को लेकर बहुत बार आलोचनाए भी हुए हैं। वह एक रोमन कैथोलिक परिवार से आते हैं। हालांकि उनके भजन और अध्यात्म को लेकर हिन्दुओ मे कभी कोई सवाल नहीं हुए क्योंकि वह सबरीमाला के भक्त हैं और बहुत से मंदिरों मे उन्होंने अपने भजन गाए हैं हालांकि बहुत से मंदिरों मे गैर हिन्दू होने के कारण उन्हे प्रवेश भी नहीं मिला तब भी उनकी निष्ठा मे कोई कमी नहीं आई। सितंबर 2017 मे त्रिवेंद्रम के प्रसिद्ध पदमनाभा मंदिर मे प्रवेश करने हेतु उनके आवेदन को मंदिर समिति ने स्वीकार कर लिया और दशहरे के दिन उन्हे मंदिर मे भगवान के दर्शन करने की अनुमति दे दी। गैर हिन्दुओ को इस मंदिर मे केवल प्रवेश तब मिलता है जब वे ये लिखित मे देते हैं कि उनकी भगवान पद्मनाभा मे विश्वास है। येशुदास के इस विश्वास को लेकर केरल मे कोई शक नहीं है। उनके बहुत से विचारों से बहुत से उनके प्रशंसक भी असहमत हैं जैसे सबरीमाला मंदिर मे महिलाओ के प्रवेश को लेकर उन्होंने कहा था कि महिलाओ को मंदिर मे आने से बचना चाहिए क्योंकि इससे पुरुषों का ध्यान भटकता है। मूलतह वह सबरीमाला के सवाल पर धार्मिक मान्यताओ का समर्थन कर रहे थे और उनके साथ खड़े थे जो महिलाओ के प्रवेश का विरोध कर रहे थे। असल मे येशुदास के गीतों मे भक्ति और अध्यात्म है इसलिए वह परम्पराओ के विरुद्ध नहीं खड़े होंगे। सबरीमाला को लेकर उनके भजन या गीत अत्यधिक लोकप्रिय हैं। हिन्दी मे मेरी दृष्टि मे इतने भक्तिभाव से गाने वाले एक ही व्यक्ति दिखाई देते हैं जो केवल भजन ही गाते थे और उन्हे हम हरीओम शरण के नाम से जानते हैं। उनकी हनुमान चालीसा और राम चरित मानस की चौपाइया बहुत लोकप्रिया हुई हैं। येशुदास की आवाज मे लोगों को ईमानदार भक्तिभावना दिखाई देती है इसलिए उनके ईसाई होने के बावजूद कभी उनकी हिन्दू देवी देवताओ पर निष्ठा पर कोई सवाल खड़े नहीं होते। हम उन्हे केरल का संस्कृतिक राजदूत कह सकते हैं। उन्हे कर्नाटक संगीत को घर घर पहुंचाया है और इसे सबसे अधिक लोकप्रिय बनाने मे उनका बहुत बड़ा योगदान है। मै तो केवल इतना कह सकता हूँ कि यदि हम भी मलयालम जानते तो शायद यशुदास की आवाज के जादू और उसकी अलौकिकता को समझ पाते क्योंकि हिन्दुस्तानी मे उनके गीत बहुत कम हैं और उसके आधार पर हम उनका पूरा आँकलन नहीं कर सकते हालांकि जीतने भी गीत उन्होंने गाए वे अमर हो गए और बहुत लोकप्रिय भी हुए।

आज येशुदास जब अपना जन्मदिन मना रहे हैं तो ये हर संगीत प्रेमी के लिए गर्व की बात है कि हमने उन्हे सुना और गाते हुए देखा। उनके प्रशंसक उन्हे गणगंधर्वण कहते हैं और उनकी आवाज को अलौकिक या दैववाणी कहते हैं। शायद इसमे कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि उनकी आवाज मे वो सब कुछ है जिसमे रुहानीयत या जिसे कई बार लोग आध्यात्मिक कहते हैं। येशुदास स्वस्थ रहे और अपने कर्णप्रिय संगीत से सबको रुहनीयत का एहसास करते रहे। वो एक लिविंग लेजन्ड हैं जिन्होंने संगीत की इतनी बड़ी सेवा की है आज भी वो कर्णप्रिय और दिल की गहराइयों को छू जाता है। हम येशुदास जी से ये ही अनुरोध करेंगे के कभी कभी कुछ फिल्मी, गैर फिल्मी गीत हिन्दी मे गाते रहिए क्योंकि आपकी आवाज को सुनना ऐसे ही ही जैसे कोई प्रकृति की गोद मे बैठे, झरनों और पहाड़ों से, किसी अदृश्य शक्ति से बात कर रहा हो। आपके कंठ की मधुरता ऐसी बनी रहे ताकि लाखों प्रशंसकों के जीवन मे आप मिठास घोलते रहे। ऐसे कर्णप्रिय और सुनहरी आवाज के मालिक येशुदास को हमारी हार्दिक शुभकामनाए।

 

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