आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने के संबंध में यूजीसी ड्राफ्ट दिशा निर्देश: पुनर्मूल्यांकन
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य दयाल सिंह कॉलेज,
करनाल (हरियाणा- भारत)
e- mail :[email protected]
(समाज वीकली)- 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में पिछड़े वर्गों से संबंधित तथ्यों की जानकारी के लिए सरकार की सिफारिश पर भारत के संविधान के अनुच्छेद 340 के अंतर्गत तत्कालीन प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद (26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962) के द्वारा 29 जनवरी, 1953 को प्रथम पिछड़ा वर्ग आयोग की गठन किया.इस आयोग के अध्यक्ष काका कालेलकर थे.इसीलिए इस आयोग को काका कालेलकर आयोग के नाम से भी जाना जाता है. इस आयोग ने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी. रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2,399 पिछली जातियों की सूची तैयार की गई तथा इनमें से 837 जातियों को तारांकित ‘(सबसे पिछड़ी जातियां) वर्गीकृत किया गया. यद्धपि जवाहरलाल नेहरू प्रगतिशील व समाजवादी चिंतक थे तथा संसद में उनका अभूतपूर्व बहुमत था.इसके बावजूद भी प्रतिक्रियावादी एवं पिछड़े वर्गों के विरोधी स्वर्ण जातियों के सांसदों के विरोध के कारण हिंदू कोड बिल की भांति इस रिपोर्ट को लागू नहीं कर सके .
आपातकालीन स्थिति(1975-1977) के पश्चात जब भारत मेंजनता पार्टी नीत मोरारजी देसाई सरकार केंद्र में बनी तो सरकार के परामर्श के अनुसार भारत के तत्कालिन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी(25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982) ने सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान करने के लिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग आयोग (एसईबीसी) का 1 जनवरी 1979 का गठन किया. इस आयोग के अध्यक्ष सांसद बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल — बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, यादव जाति से संबंधित अमीर जमींदार) थे .इसलिए इस को मंडल आयोग (1979) नाम से जाना जाता है.
मंडल आयोग ने भारत के अनेक जिलों में जाकर और विभिन्न जातियों के प्रतिनिधियों से संपर्क किया. जब यह आयोग करनाल(विश्राम गृह) में आया कंबोज जाति के प्रतिनिधि चौ. देशराज कंबोज के साथ प्रस्तुत लेख के लेखक डॉ. रामजीलाल भी थे. हम दोनों ने कंबोज जाति संबंधित शैक्षणिक , आर्थिक व ऩौकरियों भागीदारी के तथ्यों के संबंध में आयोग को अवगत कराया.एसएस गिल (युवा अधिकारी), आयोग के सचिव थे.आय़ोग अध्यक्ष व सचिव ने बहुत अधिक शालीनतापूर्वक व शांतिपूर्ण ढ़ग से बातचीत की.दो वर्ष के पश्चात आयोग ने 31 दिसंबर 1980 को राष्ट्रपति को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की.मंडल आयोग की रिपोर्ट(1980) में अनेक संस्तुतियां की गई .
मंडल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछड़ी जातियों की संख्या 3743(कुल जनसंख्या का 52%) हैं.शिक्षा व सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियों में पिछड़ी जातियों के लिए 27% की सिफारिश की गई. मोरारजी देसाई व चौधरी चरण सिंह की सरकारों के गिरने के पश्चात श्रीमती इंदिरा गांधी (1980-1984)और राजीव गांधी 1984-1989)सत्ता में आए.जवाहरलाल नेहरू की भांति इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की सरकारों के साथ भी संसद में अभूतपूर्व बहुमत था.परंतु आरक्षण विरोधी उच्च जातियों के सांसदों के दबाव के कारण आरक्षण को लागू न कर सके और मंडल कमीशन की रिर्पोट को ठंड़े बस्ते में ड़ाल दिया.
कांग्रेस पार्टी के चुनाव(नवंबर1989 ) में हारने के पश्चात केंद्र में वीपी सिंह के नेतृत्व में गठबंधन सरकार (2 दिसंबर 1989 से 10 नवंबर 1990)स्थापित हुई. 7 अगस्त 1989 को मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू करने की अधिसूचना जारी की गई. इस अधिसूचना के अनुसार शिक्षा ,सरकारी नौकरियों और सार्वजनिक उपकरणों में पिछड़े वर्गों के लिए 27% आरक्षण की व्यवस्था की गई.इस अधिसूचना के बाद विशेष तौर से उत्तरी भारत में उच्च जातियों के विद्यार्थियों,युवाओं व जनता के द्वारा विरोध किया गया.आरक्षण लागू करने के विरोध में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस पार्टी व देवीलाल व चंद्रशेशेखर जैसे दिग्गज़ नेता भी थें.
उधर दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी नेतृत्व में सोमनाथ के मंदिर से लेकर अयोध्या तक ‘राम रथ यात्रा’ का आयोजन किया गया.वीपी सिंह इसके विरुद्ध थे. उनको मालूम था कि उनकी सरकार कुछ दिन की मेहमान है कभी भी गिर सकती है. 23 अक्टूबर1990 कोआडवाणी के गिरफ्तारी के पश्चात भारतीय जनता पार्टी ने समर्थन वापस ले लिया और 7 नवंबर1990 को वीपी सिंह की सरकार के विरुद्ध लोक सभा में अविश्वास का प्रस्ताव पास हो गया. परिणाम स्वरूप वीपी सिंह की सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा.
इस समय भारत में अनुसूचित जातियों की संख्या 1108, अनुसूचित जनजातियों की संख्या 730 (जनगणना सन् 2011) तथा पिछड़े वर्गों की संख्या 5013 (दैनिक ट्रिब्यून् (चंडीगढ़). 27 फरवरी
इस संशोधन विधेयक के संविधान संशोधन अधिनियम बनने और अधिनियम लागू के पश्चात अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की संख्या में वृद्धि हो जाएगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत एनडीए सरकार का यह एक सराहनीय ऐतिहासिक कदम है इससे विसंतियां दूर होगी और इन अनुसूचित जनजातियों और आदिम कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) का सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास होगा और यह जातियां गौरव से कहेंगी, ‘हम भी भारतीय हैं.’
वीपी सिंह की सरकार के द्वारा मंडल कमीशन की सिफारिश को लागू करने का निर्णय राजनीति पर गहरी छाप छोड़ गया तथा ‘मंडल बनाम कमंडल’की राजनीतिक प्रारंभ हो गईऔर ‘सामाजिक न्याय’ शब्दावली बहुत अधिक लोकप्रिय हो गई. वह जातियां {जैसे हरियाणा में जाट व महाराष्ट्र में मराठा} जो नवंबर 1990 में आरक्षण का विरोध कर रही थी कालांतर में उन्हीं के द्वारा आरक्षण की मांग की गई. जातीय आरक्षण की मांग ‘वोट बैंक’ की राजनीति की ओर अग्रसर हो गई. परिणाम स्वरूप आरक्षित श्रेणी में जातियों की संख्या मे निरंतर वृद्धि हो रही है.
मंडल आयोग की सिफारिश के क्रियांवन को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया .सर्वोच्च न्यायालय के नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा इंदिरा साहनी विवाद में 16 नवंबर, 1992 के ऐतिहासिक निर्णय में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण को संवैधानिक घोषित गया परंतु साथ में ‘क्रीमीलेयर’ जोड़ दी गई. परिणाम स्वरूप मंडल कमीशन की संस्तुतियां ‘डाइल्यूट’ हो गई .
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के पश्चात आरक्षण सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती.ओबीसी केलिए 27%,एसएससी केलिए15%, एसटी केलिए 7.5%आरक्षण की व्यवस्था है. अथार्त कुल योग 49.5 % है. जबकि इन जातियों की आबादी -ओबीसी 52%, एससी 15%व एसटी 7.5%है.अथार्त इन तीनो श्रेणियों की आबादी भारत की कुल आबादी का 74.5% है. इसलिए बार-बार यह नारा बुलंद किया जाता है, ’जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी’.
भारत का संविधान एवं आरक्षण
भारत के संविधान के अनुच्छेद15 (4) तथा 16(4) कर के अंतर्गत केंद्रीय व राज्य सरकारों को आरक्षण के प्रावधान को लागू करने के लिए सक्षम बनाया गया है.संविधान के 77 वें संशोधन अधिनियम, 1995 के अनुसार अनुसूचित जातियों व अनुसूचित जनजातियों के पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था है. संविधान के103वें संशोधन अधिनियम 2019 के अनुसार शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक नौकरियों में आर्थिक दृष्टि से पिछडे़ लोगों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 %, आरक्षण किया गया. एससी, एसटी,, ओबीसी और ईडब्ल्यूएस जैसे विभिन्न वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों के संबंध में लगभग 60% सीटें आरक्षित हैं. सभी श्रेणियों में 3% सीटें दिव्यांग व्यक्तियों के लिए भी आरक्षित हैं. इसके अतिरिक्त आरक्षित श्रेणियों के लिए ऊपरी आयु व अंक सीमा इत्यादि कम की गई है. केंद्रीय शैक्षणिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार सीधी भर्ती के सभी पदों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है. केवल यही नहीं अपितु केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों (सीईआई) में एससी या एसटी या ओबीसी के लिए आरक्षित खाली सीटों के लिए केवल एससी या एसटी या ओबीसी उम्मीदवार के अतिरिक्त किसी अन्य उच्च जातियों के उम्मीदवार की नियुक्ति नहीं की जा सकती.
यूजीसी ड्राफ्ट : दिशा निर्देशों की पृष्ठभूमि
सन् 2016 में चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया.इस समिति का प्रमुख उद्देश्य शिक्षा संस्थानों में सरकार की आरक्षण नीति के 2006 के दिशा निर्देशों को प्रतिस्थापित करना था.इस समिति ने 2016 में ही आरक्षण का मसौदा तैयार किया . यह आरक्षण मसौदा सात वर्ष के अंतराल (सन् 2016 से दिसम्बर 2023 तक) में ठंडे बस्ते में बंद पड़ा रहा. उच्च शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में ओबीसी, एससी और एसटी के संबंध में निरंतर विरोध अंदरूनी और बाहरी तौर पर समाचार पत्रों और सोशल मीडिया पर जारी रहा .
वर्तमान राजनीति के संदर्भ में ऐसी कौन सी स्थिति उत्पन्न हो गई थी कि सन् 2016 के ब्रोशर से प्रेरणा ग्रहण करते हुए यूजीसी के द्वारा निर्देशों को बिना किसी शोध और चिंतन के 27 दिसंबर 2023 को आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने का बोतल बंद जिन्न को पब्लिक डोमेन पर डालकर एक महीने में जन प्रतिक्रिया लिए जानने का प्रयास किया. 28 जनवरी 2024 को समाचार पत्रों ने यूजीसी के ड्राफ्ट दिशा निर्देशों को लागू करने के लिए करने का प्रकाशन किया. आलोचकों व टीकाकारों ने इन निर्देशों ने भारतीय संविधान में वर्णित ‘सामाजिक न्याय की भावना’ व ‘आरक्षण की आत्मा के लिए खतरे की घंटी’ कह कर आलोचना की. यूजीसी ड्राफ्ट को ”हंगामा ड्राफ्ट” की संज्ञा देकर विवाद खड़ा कर दिया. उसी दिन (28 जनवरी2024) यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा कि कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में आरक्षित सीटों कोअनारक्षित नहीं किया जाएगा. 29जनवरी 2024 यूजीसी ड्राफ्ट दिशा निर्देश विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की आधिकारिक वेबसाइट से गायब हो गया. इस पृष्ठभूमि में यूजीसी के ड्राफ्ट में दिए गए दिशानिर्देशों के मुख्य केंद्र बिंदुओं का विश्लेषण करना अत्यंत अनिवार्य है.
यूजीसी ड्राफ्ट के अध्याय 10 : आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने के मुख्य केंद्र बिंदु:
वास्तव में यूजीसी ड्राफ्ट दिशा निर्देशों के अध्याय 10 में आरक्षण समाप्त करने अथवा आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने के निम्नलिखित केंद्र बिंदु है:
* “एससी या एसटी या ओबीसी के लिए आरक्षित रिक्ति को एससी या एसटी या ओबीसी उम्मीदवार के अलावा किसी अन्य उम्मीदवार द्वारा नहीं भरा जा सकता है, जैसा भी मामला हो.
*”हालांकि, एक आरक्षित रिक्ति को अनारक्षित की प्रक्रिया का पालन करके अनारक्षित घोषित किया जा सकता है, जिसके बाद इसे अनारक्षित रिक्ति के रूप में भरा जा सकता है.“
*“सीधी भर्ती के मामले में आरक्षित रिक्तियों को अनारक्षित करने पर सामान्य प्रतिबंध है. हालाँकि, दुर्लभ और असाधारण मामलों में, जब ग्रुप ए सेवा में किसी रिक्ति को सार्वजनिक हित में रिक्त रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, तो संबंधित विश्वविद्यालय निम्नलिखित जानकारी देते हुए रिक्ति के आरक्षण के लिए एक प्रस्ताव तैयार कर सकता है: प्रस्ताव होगा पद को भरने के लिए किए गए प्रयासों को सूचीबद्ध करना आवश्यक है, और कारण यह है कि इसे खाली रहने की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है और आरक्षण रद्द करने का औचित्य क्या है.’
*“ग्रुप सी या डी के मामले में डी-आरक्षण का प्रस्ताव विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद के पास जाना चाहिए, और ग्रुप ए या बी के मामले में आवश्यक अनुमोदन के लिए पूर्ण विवरण देते हुए शिक्षा मंत्रालय को प्रस्तुत किया जाना चाहिए, अनुमोदन प्राप्त होने के बाद, पद भरा जा सकता है और आरक्षण को आगे बढ़ाया जा सकता है, ”.
*पदोन्नति के मामले में, यदि आरक्षित रिक्तियों के खिलाफ पदोन्नति के लिए पर्याप्त संख्या में एससी और एसटी उम्मीदवार उपलब्ध नहीं हैं, तो ऐसी रिक्तियों को अनारक्षित किया जा सकता है और अन्य समुदायों के उम्मीदवारों द्वारा भरा जा सकता है”
*यदि कुछ शर्तें पूरी होती हैं तो ऐसे मामलों में आरक्षित रिक्तियों के आरक्षण को मंजूरी देने की शक्ति यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय को सौंपी जाएगी’’.
*“प्रस्ताव पर विचार किया जा सकता है यदि उस श्रेणी से संबंधित कोई भी उम्मीदवार जिसके लिए रिक्ति आरक्षित है, विचार के क्षेत्र या विस्तारित क्षेत्र के भीतर उपलब्ध नहीं है या भर्ती नियमों में निर्दिष्ट फीडर कैडर में पदोन्नति के लिए पात्र नहीं है.”
*“विश्वविद्यालय के एससी एसटी के लिए संपर्क अधिकारी द्वारा डी-आरक्षण के अनुमोदन को देखा और सहमति दी गई है। डी-आरक्षण के प्रस्ताव पर यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय में उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा सहमति व्यक्त की गई है’.
* “विश्वविद्यालय के एससी, एसटी के लिए नियुक्ति प्राधिकारी और संपर्क अधिकारी के बीच असहमति के मामले में, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की सलाह प्राप्त की जाती है और उसे लागू किया जाता है।”
यूजीसी मसौदा दिशा निर्देश : हंगामा प्रतिक्रिया
प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन के गति नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया की विपरीत एवं समान प्रतिक्रिया होती है. यह सिद्धांत न केवल गति पर बल्कि राजनीति पर भी लागू होता है. इस मसौदा दिशानिर्देश पर राजनीतिक दलों, राजनीतिक नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध किया गया. छात्रों और शिक्षक संगठनों द्वारा तीखी आलोचना की गई. इतना ही नहीं सोशल मीडिया हैशटैग पर भी आलोचना का सिलसिला जारी रहा.
कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इन गाइडलाइंस को आरक्षण खत्म करने के लिए भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराया है. कांग्रेस पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने इस मसौदे की आलोचना करते हुए इसे ‘आरक्षण ख़त्म करने की साजिश’ बताया.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (दिल्ली) के छात्र संघ (जेएनएसयू) ने यूजीसी अध्यक्ष जगदीश कुमार का ‘प्रदर्शन करने और पुतला जलाने‘ की भी धमकी दी.29 जनवरी 2024 को दिल्ली के छात्र संगठनों -ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस) के कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) मुख्यालय के बाहर विरोध प्रदर्शन कियाऔर भारत सरकार की आरक्षण नीति ‘जातिवादी ड्राफ्ट‘ गाइडलाइंस का आरोप लगाया.
छात्र संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने यूजीसी के अधिकारियों को मांग पत्र सौंपा व मुलाकात भी की. प्रतिनिधिमंडल के अनुसार यूजीसी के अधिकारियों ने ‘भेद भावपूर्ण खंड को लाकर अपनी गलती को स्वीकार कर लिया है”. प्रतिनिधिमंडल को यूजीसी के अधिकारियों ने यह आश्वस्त किया कि गया कि संशोधित मसौदे से यह धारा हटा दी जायेगी
यूजीसी के मसौदा दिशानिर्देशों के खिलाफ प्रतिक्रियाएं दक्षिण भारतीय राज्यों तमिलनाडु और कर्नाटक में और भी तीव्र थीं. तमिलनाडु सरकार के दूध और डेयरी विकास मंत्री मनो थंगराज ने इसे ‘आरक्षण की हत्या‘ कहकर अस्वीकार कर दिया . पीएमके के संस्थापक डॉ. रामदास ने यूजीसी दिशानिर्देशों की आलोचना करते हुए उन्हें ‘सामाजिक न्याय के लिए मृत्यु‘ कहा. कर्नाटक सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. एमसी सुधाकर ने बैकलॉग पदों के लिए योग्य और उपयुक्त उम्मीदवारों की कमी की आलोचना करते हुए कहा, “बैकलॉग पदों के लिए बहुत सारे योग्य उम्मीदवार हैं.” सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हंस राज मीना ने यूजीसी के मसौदा दिशानिर्देशों की, ‘एक आरक्षण विरोधी कदम‘ कहकर आलोचना की और सरकार से ‘इस फैसले को तुरंत पलटने‘ के लिए कहा. हैशटैग पर कई हजार यूजर्स ने यूजीसी को ‘जातिवादी संगठन‘ कहकर भी निंदा की गई.
ड्राफ्ट के विरुद्ध नकारात्मक प्रतिक्रिया व हंगामा होने के पश्चात केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी को इसे वापस लेना पड़ा .भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेट फॉर्म- एक्स (x) पर स्पष्टीकरण करते हुए लिखा कि आरक्षित शिक्षक पद को अनारक्षित नहीं किया जाएगा. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय लिखा, “केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों में सीधी भर्ती के सभी पदों के लिए आरक्षण प्रदान किया जाता है।” केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 के प्रावधान के अनुसार ‘’किसी भी आरक्षित पद को अनारक्षित नहीं किया जाएगा’’. केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सभी केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों को (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार रिक्ति पदों को नियुक्तियां करने के सख्त आदेश दिए.
यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने भी इस बात का स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि, “केंद्रीय शैक्षणिक संस्थानों [सीईआई] में आरक्षित श्रेणी के पदों का अतीत में कोई आरक्षण रद्द नहीं किया गया है और ऐसा कोई आरक्षण रद्द होने वाला नहीं है. सभी [उच्च शिक्षा संस्थानों] के लिए यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि आरक्षित श्रेणी के सभी बैकलॉग पद ठोस प्रयासों के माध्यम से भरे जाएं.”
भारत सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार के अनुसार यदि आरक्षण खत्म करने अथार्त अनारक्षित करने का कोई प्रावधान नहीं है तो यह एक यक्ष प्रश्न है कि किस आधार पर आरक्षित पदों को अनारक्षित किया गया. यह हमारी समझ से बाहर है कि यूजीसी ने किस के आदेशानुसार आरक्षित सीटों को अनारक्षित करने की साजिस की.? इस समय जब भारत की राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रौपती मुर्मू अनुसूचित जनजाति से हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी से हैं.केवल यही नहीं अपितु भारतीय जनता पार्टी के 303 लोकसभा सदस्यों में 85 (29%)ओबीसी, केंद्रीय मंत्रिमंड़ल में 29 मंत्री ओबीसी, भारत भर की राज्य विधानसभाओं में बीजेपी के 1358 विधायकों में 27% ओबीसी विधायक व 163 राज्य विधान परिषदों के सदस्यों में 40% ओबीसी सदस्य हैं. क्या इन सदस्यों को आरक्षित सीटों को अनारक्षित के लिए विश्वास में लिया गया? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है.
राजनीतिक टीकाकारों के अनुसार यह मुद्दा फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. परंतु उनका संदेह है कि लोकसभा इलेक्शन 2024 के पश्चात इसको पुन लागू करने का प्रयास किया जाएगा और आरक्षण में परिवर्तन होने की संभावना है.