साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि की स्मृति में संगोष्ठी व सम्मान समारोह

(समाज वीकली)- ओमप्रकाश वाल्मीकि के परिनिर्वाण दिवस के अवसर पर साहित्य चेतना मंच, सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) उनके नाम पर दलित साहित्य में उत्कृष्ट योगदान करने वाले रचनाकारों को ओमप्रकाश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। साचेम ने इसकी शुरुआत वर्ष 2020 से की है। इस सम्मान में प्रतिवर्ष दस रचनाकारों को सम्मानित किया जाता है। इस बार यानी 2021 के चयनित रचनाकार हैं- दिल्ली से प्रो. नामदेव, डॉ. सुमित्रा मेहरोल, बिहार से संतोष पटेल, उत्तर प्रदेश से डॉ. अमित धर्मसिंह, आर एस आघात, पश्चिम बंगाल से डॉ. कार्तिक चौधरी, हरियाणा से डॉ. सुरेखा, राजस्थान से डॉ. चैनसिंह मीना, सुनील पंवार और उत्तराखंड से डॉ. राम भरोसे।

कार्यक्रम में मुख्य वक्ता जाने-माने आलोचक और लेखक डॉ. एन सिंह ने कहा कि यदि ओमप्रकाश वाल्मीकि को सिर्फ दलित लेखक कहा जाए तो यह उनके साथ अन्याय होगा, उनको कमतर आंकना होगा, वे राष्ट्रीय स्तर के हिंदी साहित्यकार थे। उनका समग्र साहित्य प्रकाशित होकर सामने आना चाहिए। उनकी आत्मकथा जूठन दलित साहित्य की ही नहीं बल्कि हिंदी साहित्य की कालजयी रचना है। डॉ. एन. सिंह जी साहित्य चेतना मंच द्वारा आयोजित ओमप्रकश वाल्मीकि स्मृति साहित्य सम्मान समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जूठन दलित समाज के कटु यथार्थ को हमारे सामने रखती है और उनके साथ होने वाले भेदभाव और छूआछूत से समस्त विश्व को रूबरू कराती है।

विशिष्ट वक्ता के रूप में बोलते हुए कवयित्री और लेखिका डॉ. पूनम तुषामड ने कहा कि हम सहानुभूति में लिखे गए साहित्य को दलित साहित्य नहीं कह सकते बल्कि स्वानुभूति के साहित्य को ही दलित साहित्य कहा जा सकता है। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि की पुस्तक “दलित साहित्य का सौन्दर्य शास्त्र” की चर्चा करते हुए कहा कि हिंदी के गैर दलित साहित्यकार दलित साहित्य को यह कहकर खारिज कर देते हैं कि यह तो रोने-पीटने का साहित्य है उनको ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपनी इस पुस्तक में करारा और तर्कपूर्ण जवाब दिया है। यह गैर दलित साहित्यकारों के सारे प्रतिमानों को बदल देता है। उनके लिए चाँद सुन्दरता का प्रतीक होता है तो हम दलितों के लिए वह रोटी का प्रतीक होता है। उन्होंने कहा कि दलितों को अपना भोग हुआ यथार्थ या जीवन की हकीकत लिखना बहुत मुश्किल होता है। बहुत साहस का काम होता है। ओमप्रकाश वाल्मीकि ने जैसा जीवन जिया हूबहू वैसा ही लिखा। दलित साहित्य प्रतिरोध का साहित्य है। बहुत प्रेरित करने वाला साहित्य है। आज ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य को विभिन्न विद्यालयों और विश्विद्यालयों में पढ़ाया जाता है। बहुत से युवा शोधार्थी उन पर शोध कार्य कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि वे ओमप्रकाश वाल्मीकि के समग्र साहित्य को एक जगह ग्रंथावली के रूप में संग्रहित किया जाना चाहिए।

संस्था महासचिव श्याम निर्मोही ने बताया कि ओमप्रकाश वाल्मीकि ने दलित उत्पीड़न और जाति भेद पर बड़ा काम किया है। उन्हें पढने वाले निश्चित ही उनसे प्रेरणा लेंगे। वेबिनार में डॉ. प्रवीन कुमार, मदन पाल तेश्वर, प्रो. जय कौशल, डॉ. कार्तिक चौधरी, संतोष पटेल, डॉ. अनिल कुमार और श्रीलाल आदि ने अपनी बात संक्षेप में रखी। इस कार्यक्रम की रूपरेखा युवा साहित्यकार और साहित्य चेतना मंच के अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र वाल्मीकि ने प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन युवा रचनाकार रमन टाकिया ने किया। उन्होंने ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य को मील का पत्थर बताया। कार्यक्रम की अध्यक्षता चर्चित कवि धर्मपाल सिंह चंचल ने की। साहित्य चेतना मंच के महासचिव ने इस कार्यक्रम में शामिल हुए सभी व्यक्तियों का हृदयतल की गहराइयों से धन्यवाद किया

 

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