जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय ‘हसदेव बचाओ पदयात्रा’, छत्तीसगढ़ के साथ NAPM की एकजुटता: हसदेव के जंगलों में कोयला खनन को रोकने की मांग का समर्थन

मदनपुर गांव से रायपुर तक 300 किमी लंबा मार्च

आदिवासी समाज का अपनी ज़मीन और संसाधनों पर अधिकार का महत्वपूर्ण दावा है

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को आज यात्रियों से मिलकर,

उनकी न्यायपूर्ण मांगों को स्वीकार करना चाहिए

(समाज वीकली): ‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (NAPM), छत्तीसगढ़ के हसदेव क्षेत्र के सैकड़ों आदिवासियों द्वारा अपने जंगलों, ज़मीन और घरेलू भूमि को विनाशकारी कोयला खनन से बचाने के लिए की गयी महत्वपूर्ण 10-दिवसीय लम्बी पदयात्रा को अपनी पूरी एकजुटता और समर्थन देता है। 4 अक्टूबर 2021 से सरगुजा के हसदेव अरण्य क्षेत्र के 30 गांवों के 250 से अधिक आदिवासी ‘हसदेव बचाओ पदयात्रा’ के बैनर तले पदयात्रा कर रहे हैं। ग्रामीणों ने अपनी यात्रा मदनपुर ग्राम से शुरू की और 10 दिनों में 300 किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए आज वे राजधानी रायपुर पहुंचेंगे, जहां वे अपनी मांगों को छत्तीसगढ़ के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सौंपेंगे।

बता दें कि केंद्र और राज्य सरकार द्वारा उत्तरी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य वन क्षेत्र को तबाह करने की क्षमता वाली कोयला खनन परियोजनाओं की मंजूरी के खिलाफ स्थानीय आदिवासी समुदाय और पूरी ग्राम सभा 2014 से ही लगातार विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। यह क्षेत्र भारत के प्राचीन और वन भूमि के सबसे बड़े सन्निहित क्षेत्रों को समाये हुए है। यह पूरे साल जल स्रोतों, समृद्ध जैव विविधता से परिपूर्ण है, और आसपास के गांवों में गोंड आदिवासी समुदायों की आजीविका इसी पर आधारित रहती है। 2010 में, सरकार ने खुद घोषणा की थी कि हसदेव अरण्य को कोयला खनन के लिए ‘नो-गो’ (न छुआ जाने वाला) ज़ोन माना जाना चाहिए, लेकिन अब इस निर्णय को उलट दिया गया है।

हसदेव अरण्य कोलफील्ड में बड़े पैमाने पर कोयला भंडार होने के कारण खनन उधोग और उससे जुड़े पूंजीपति इस तरफ आकर्षित होते हैं। उनका अनुमान है कि 1,878 वर्ग किमी में फैले क्षेत्र (जिसमें से 1,502 वर्ग किमी वन भूमि है) में एक अरब मीट्रिक टन से अधिक कोयला उपलब्ध है। हसदेव अरण्य के गांवों और जंगलों को 18 कोयला-खनन ब्लॉकों में विभाजित किया गया है जिसे बड़े व्यावसायिक कंपनियों को वितरित किया जाएगा। अब तक, राज्य के स्वामित्व वाली कंपनियों को 4 कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं, जिन्होंने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) को माइन डेवलपर और ऑपरेटर (MDO) के रूप में अनुबंधित किया है।

हालांकि हसदेव अरण्य का अधिकांश क्षेत्र एक अनुसूची- V क्षेत्र है, आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कानून – पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996, और वन अधिकार अधिनियम, 2006 सहित महत्वपूर्ण क़ानून यहां अब तक लागू नहीं किये गए हैं। ग्रामीणों द्वारा दायर सामुदायिक वन अधिकार के दावे अभी भी लंबित हैं। ग्राम सभाओं के कड़े विरोध के बावजूद पर्यावरण और वन मंजूरियां दी गयी हैं। यहाँ तक कि कुछ मामलों में, जैसे परसा कोयला ब्लॉक में, फर्जी ग्राम सभा की कार्यवाही के आधार पर वन मंजूरी प्रदान की गई। सरकार ने ग्राम सभाओं से सार्वजनिक परामर्श और सहमति के लिए स्थापित प्रक्रियाओं को दरकिनार करने के लिए अप्रासंगिक और कठोर, कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम, 1957 के तहत खनन के लिए भूमि अधिग्रहण करने का भी प्रयास किया है।

एन.ए.पी.एम हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति और स्थानीय आदिवासी समुदायों के साथ एकजुटता के साथ खड़ा है, जो अपने जंगलों, भूमि और संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा करने के लिए रायपुर तक पदयात्रा कर रहे हैं। हम छतीसगढ़ राज्य के राज्यपाल और मुख्यमंत्री से पदयात्रियों से मिलने और उनकी सभी जायज़ मांगों को मानने की पुरजोर मांग रखते हैं। हम अन्य लोकतांत्रिक समूहों भी से इस महत्वपूर्ण संघर्ष को समर्थन देने का आग्रह करते हैं। हम इन मांगों का पूरा समर्थन करते हैं:

1. बिना ग्राम सभा की सहमति के क्षेत्र में कोयला धारक क्षेत्र (अर्जन और विकास) अधिनियम के तहत किए गए सभी भूमि अधिग्रहण को तत्काल रद्द करें।

2. इस क्षेत्र में सभी कोयला खनन परियोजनाओं को रद्द करें।

3. पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में किसी भी कानून के तहत भूमि अधिग्रहण के लिए आगे बढ़ने से पहले ‘पेसा’ (PESA) अधिनियम, 1996 के अनुसार निश्चित ग्राम सभा सहमति के प्रावधान को लागू करें।

4. परसा कोयला ब्लॉक के लिए फर्जी प्रस्ताव पत्र बनाकर प्राप्त की गयी वन मंजूरी को तत्काल रद्द करें, और फर्जी ग्राम सभा प्रस्ताव बनाने वाले अधिकारी व कंपनी के खिलाफ कार्यवाही करें।

5. सभी गांवों में समुदाय और व्यक्तिगत स्तर के वन अधिकारों को मान्यता दें, और घाटबर्रा गांव के निरस्त किये सामुदायिक वन अधिकारों को बहाल करें।

6. पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 के प्रावधानों का पालन करें।

एकजुटता में

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM)

 

 

 

 

 

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