भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सन् 1857 से सन् 1947 तक करनाल जिले की भूमिका : एक पुनर्विलोकन

डॉ. रामजीलाल

हरियाणा के इतिहास के झरोखे से

डॉ. रामजीलाल, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल, हरियाणा, भारत
Drramjilal947@ gmail.com

(समाज वीकली)- ऐतिहासिक किंवदंतियों के अनुसार करनाल की स्थापना राजा दानवीर कर्ण ने की थी. महाभारत से लेकर आधुनिक युग तक करनाल में अभूतपूर्व सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन होते रहे हैं.सन् 1805 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का करनाल में अधिपत्य स्थापित होने के पश्चात जींद के राजा गणपत सिंह के द्वारा सन् 1764 में बनाए गए किले पर जेल ,घुड़सवार सेना ,मिलिट्री हेड हेडक्वार्टर और प्रशासनिक हेड क्वार्टर स्थापित किया गया .सैनिक और प्रशासनिक रणनीति के आधार पर इसके दो मुख्य कारण थे.प्रथम, यहां से ब्रिटिश सेना नॉर्थ -वेस्ट इंडिया –( हरियाणा क्षेत्र,पंजाब,जम्मू -कश्मीर ,वर्तमान हिमाचल प्रदेश व अफगानिस्तान की सीमा तक)निगरानी कर सकती थी. द्वितीय, करनाल से दिल्ली भी नजदीक है और जीटी रोड के होने के कारण मिलिट्री के द्वारा संपूर्ण क्षेत्र को नियंत्रित किया जा सकता था.

लेकिन सन् 1841- सन् 1842 में मलेरिया की महामारी के कारण ग्रामीण क्षेत्र में हजारों की संख्या में लोग बेमौत मरने लगे और चारों ओर त्राहि त्राहि मच गई.मलेरिया की महामारी ब्रिटिश सेना में भी भयंकर रूप प्रवेश कर गई .करीब 500 सैनिकों,सैनिक व प्रशासनिक अधिकारियों,परिवार के सदस्यों की मौत हो गई. आज भी शहर में एनडीआरआई के सामने ग्रेव्यार्ड (कब्रिस्तान) व चर्च साक्ष्य के रूप में मौजूद है. करनाल के इस ग्रेव्यार्ड में अमर उजाला की टीम के साथ 12 मई 2020 को देखने के लिए गया. मैं इस कब्रिस्तान का अध्ययन करने के लिए अमर उजाला की टीम तथा बाद में अन्य यूट्यूब चैनलों व मेन स्ट्रीम चैनलों पर इंटरव्यू देने के लिए वहां कई बार पहुंचा हूं. करनाल के इस ग्रेव्यार्ड (कब्रिस्तान) में सैनिकों, प्रशासनिक अधिकारियों, उनके परिवारों के सदस्यों, पत्नियों तथा बच्चों की कबरें बनी हुई है .एक कबर तो एक साल के बच्चे की भी है. (ब्रिटिश हुकूमत में महामारी की याद दिलाता है करनाल का ग्रेव्यार्ड, अमर उजाला, करनाल, 13 मई 2020 (https:// www. amarujala .com/ Haryana/ Karnal/ the –graveyard- of -Karnal -reminds -me -of –the- epidemic –in- British- rule-ka)

जिनके परिवार के पूर्वजों की कबरे यहां मौजूद है अगर उनमें से कोई भारत आता है तो वह इस स्थान पर भी पहुंचता है ताकि वह अपने पूर्वजों को सम्मान दे सके.

इस महामारी के कारण अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया .ब्रिटिश सैनिकों का इतना भयभीत कर दिया कि लार्ड एलन ब्रो ने एकदम निर्णय लेकर करनाल से मिलट्री हैड क्वाटर अंबाला शिफ्ट करने का आदेश दे दिया और अंबाला कैंट की स्थापना की गई .इसके चार साल बाद सन् 1847 में अंबाला को जिला बनाया गया. 22 फरवरी 1847 को, श्रीमती कॉलिन मैकेंज़ी ने अपनी डायरी में लिखा:

“करनाल पहले एक बहुत बड़ा स्टेशन था और बहुत स्वस्थ था, लेकिन भारत में हर जगह की तरह, कभी-कभी महामारी होती थी, लॉर्ड एलेन ब्रो बारिश के एक सप्ताह के दौरान यहां थे, जब बुखार फैला हुआ था, उन्होंने झट से निर्णय लिया कि यह अस्वस्थ स्टेशन है और अम्बाला चले गये, बेहिसाब खर्च करके बनाए गए बैरकों, गोदामों, भंडारगृहों और अन्य इमारतों (एक चर्च भी शामिल है) को बर्बाद होने के लिए छोड़ दिया गया। अब केवल तीन परिवार ही यहां तैनात हैं”
(Cited in C.H Buck, The Annals Of Karnal History, 1913)

करनाल से अंबाला मिल्ट्री हेड क्वार्टर को शिफ्ट करना लॉर्ड एलेन ब्रो की एक प्रशासनिक और सैनिक रणनीति के आधार पर एक ऐतिहासिक भूल थी .क्योंकि इसके परिणाम स्वरूप करनाल क्षेत्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रशासन कमजोर हो गया और धीरे-धीरे जन क्रांति की ज्वाला भड़कने लगी.

यहां यह बताना जरूरी है कि सन्1857 जन क्रांति से पूर्व हरियाणा के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक किसान जन आंदोलन हुए हैं. इनमें जींद (जून 1814– जनवरी 1815), छछरौली (सन्1818), रानियां (सन्1818 ),किसान आंदोलन (सन्1824), कैथल(मार्च-अप्रैल 1843) ,लाडवा (सन्1845 – सन्1846), करनाल में किसान विद्रोह (सन्18 46–सन्1847) मुख्य हैं.

वास्तव में सन्1857 से पूर्व ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के विरुद्ध जनता में रोष और असंतोष के कारण आंदोलन की ज्वाला भड़क रही थी. 10 मई 1857 को भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध की चिंगारी मेरठ छावनी में उस समय भड़क गई जब सैनिक मंगल पांडे ने विरोध कर दिया . हरियाणा के इतिहास के विश्व प्रसिद्ध विद्वान डॉ. के.सी यादव के अनुसार मेरठ से 9 घंटे पूर्व अंबाला स्थित सेनाओं के द्वारा क्रांति का बिगुल बजा दिया गया था. हरीश चंद्र मित्तल तथा रामजीलाल कंबोज(अब डॉ रामजीलाल), हरियाणा :तब और अब कुरुक्षेत्र ,1967 ) के अनुसार क्रांति की मुहिम को लामबंद करने के लिए नाना फडणवीस तथा उसके सहयोगी मित्र अजीम उल्लाह (पानीपत )पानीपत से करनाल के क्रांतिकारियों से सफल बातचीत के पश्चात 6 अप्रैल1857 को गुप्त रूप से थानेश्वर गए थे और क्रांति की मुहिम को लामबंद किया था .इसके पश्चात नाना फडणवीस कुंजपुरा से होते हुए गुप्त रूप से मेरठ चले गए.

करनाल जिले में क्रांति को कैसे दबाया गया?

जब 1857 की जनक्रांति भड़की, उस समय करनाल जिले का मजिस्ट्रेट मैकव्हाइटर (Macwhirter) दिल्ली में था और उसकी हत्या कर दी गयी। उनके स्थान पर रिचर्ड्स को डिप्टी कलेक्टर का कार्यभार सौंपा गया और बाद में उन्हें स्थायी रूप से डिप्टी कमिश्नर बना दिया गया. कैप्टन ह्यूज के नेतृत्व में दिल्ली से सेना भेजनी पड़ी .परंतु बल्ला गांव में ह्यूज़ को भागकर अपनी जान बचानी पड़ी. बल्ला की प्रारंभिक सफलता के बाद सालवान, कैथल, असंध इत्यादि क्षेत्रों में आंदोलन फैल गया .उस समय करनाल जिले में पानीपत, कुरुक्षेत्र और कैथल सम्मिलित थे .जनता के द्वारा क्रांति में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया गया

.इस क्रांति को दबाने के लिए नरेश सरूप सिंह18 मई 1857 को 400 सैनिकों के साथ करनाल पहुंच. पटियाला के महाराजा ने नाभा से 1500 सैनिकों को भेजा जो 21 मई 1857 को करनाल पहुंचे. इसके अलावा नाभा के महाराजा ने भी करनाल में क्रांति को दबाने के लिए सैनिक भेजे.इन सैनिकों का करनाल, समालखा, दिल्ली व मेरठ में जनक्रांति को कुचलने के लिए प्रयोग किया गया. .( Jind.govt.in?about-district – history) इस का समर्थन इसका समर्थन सी एच बक के द्वारा भी किया गया है .बक के बक के अनुसार,’ जींद के महाराजा सरूप सिंह ने शहर और इसके आसपास के क्षेत्र में व्यवस्था बहाल की और जीटी रोड पर मार्च किया और ब्रिटिश कॉलम (सेना) से पहले करनाल और दिल्ली के बीच सड़क को खुला रखा.’

सी.एच. बक के अनुसार, महाराजा जींद के महाराजा सरूप सिंह ने शहर और इसके आसपास के क्षेत्र में व्यवस्था बहाल की और ग्रैंड ट्रंक रोड पर मार्च किया और ब्रिटिश कॉलम (सेना) से पहले करनाल और दिल्ली के बीच सड़क को खुला रखा।‘ बक ने आगे लिखा कि करनाल के नरदक के चौहानों ने घुड़सवार सेना को तैयार करने में मदद की तथा तथा 250 चौकीदार भी तैयार किए.शहर और सिविल लाइन जहां पर ऑर्डिनेंस मैगजीन रखे हुए थे उनकी सुरक्षा की.

इतना ही नहीं, कुंजपुरा के नवाब ने 350 सैनिक देकर ब्रिटिश सरकार का समर्थन किया और करनाल के नवाब अहमद अली खान ने 150 सैनिक देकर क्रांति को दबाने में मदद की. नवाब अहमद अली खान अपने समस्त साधनों को अंग्रेजों के समर्पित करने के लिए प्रारंभ से ही तैयार थे .उसके द्वारा दिए गए घोडों का करनाल से मेरठ से करनाल वापिस संदेश के कार्यों में प्रयोग किया गया. बक ने आगे लिखा कि करनाल के नरदक के 250 चौहान चौकीदार भी तैयार किए. चौहान चौकीदारों ने शहर और सिविल लाइन जहां पर ऑर्डिनेंस मैगजीन रखे हुए थे उनकी सुरक्षा की.

जब जनक्रांति के समय नरसंहार का समाचार दिल्ली पहुंचा. दिल्ली से शिमला के कमांडर इन चीफ ने ऑर्डर किया कि यूरोपियन सिपाहियों को कसौली ,दघशाइ सुबाथु से हडसन के नेतृत्व में विद्रोहियों को दबाने के लिए 15 मई 1857 को अंग्रेजी सेना अंबाला पहुंच गई. हडसन को 1000 घोड़े भी तैयार करने का आदेश दिया गया, हडसन तथा ब्रिगेडियर हेली फॉक्स को यूरोपियन सेनाओं का नेतृत्व सौंपा गया ताकि आंदोलन को कुचला जा सके . परंतु हड़सन की मृत्यु मलेरिया के कारण 27 मई 1857 हो गयी और इसके पश्चात ब्रिगेडियर हेली फॉक्स भी

. महाराजा पटियाला की घुड़सवार सेना के सहयोग से बल्ला पर कब्जा करने में सफलता प्राप्त की . क्रांति की बल्ला की प्रारंभिक सफलता के पश्चात जलमाना व असंध के आसपास के छोटे-छोटे गांव में विद्रोह फैल गया. परंतु लेफ्टिनेंट पियर्सन को विद्रह को कुचलने सफलता प्राप्त हुई. क्रांति की चिंगारी इसी दौरान कैथल के थाना क्षेत्र में फैल गई जो की बल्ला और जलमाना से कहीं अधिक व्यापक थी.यहां यह कहना भी जरूरी है कि कुरुक्षेत्र , अमीन, पूंडरी, कौल और लाडवा व इंद्री क्षेत्र में भी आंदोलन की चिंगारी भड़क उठी

..इस जनक्रांति में घरौंडा, बल्ला, जलमाना, असंध तथा कलसौरा (कुंजपुरा) क्षेत्रों में जाटों, पूंडरी, कौल,पिपली तथा अमीन क्षेत्र में रोडों,, कुरुक्षेत्र में सैनियों, जाटों और दलितों, लाडवा में सिखों ,इंद्री क्षेत्र में कंबोजों तथा यमुना नदी के दोनों ओर सटे इलाकों में गुर्जरों तथा हिंदू व मुस्लिम श्रमिक जातियों ने आंदोलन में अभूतपूर्व कुर्बानियां दी.

(डॉ़. रामजीलाल, करण वीरों की भूमि :आजादी के हर संग्राम का अहम किरदार रहा है करनाल, दैनिक ट्रिब्यून, 17 अगस्त 2022, पृ. 6)

करनाल जिले के क्रांतिकारियों को पीयर्सन तथा कप्तान मैक्लीन के नेतृत्व में कुचल दिया गया और क्रांति फेल हो गई .क्रांति के फेल होने के मूल कारण– क्रांति का नेतृत्वहीन होना, क्रांतिकारियों के पास यूरोपियन और महाराजा जींद, पटियाला, नाभा, नवाब कुंजपुरा व करनाल की सेनाओं की अपेक्षा आधुनिक हथियारों की कमी, प्रशिक्षित सैनिकों की कमी इत्यादि थे .आंदोलन को क्रूरता से दबा दिया गया. यूरोपियन और भारतीय नवाबों और नरेशों की सेनाओं के द्वारा जनता पर अमानवीय अत्याचार किए गए और असीमित नरसंहार किया गया .पुरुषों, युवकों, महिलाओं, युवतियों और बच्चों को हजारों की संख्या में मौत के घाट उतार दिया गया. क्रांतिकारी क्षेत्र में गांव के गांव जला दिए गए और संपतिया नष्ट कर दी गई .अनेक गांवों में आग लगाकर घरों को फूंका गया तथा असंख्य गांवों में राजस्व बढ़ा दिया गया .इस प्रकार के अत्याचारों से जनता को इतना कमजोर किया गया ताकि भविष्य के आंदोलन में वह भाग न लें सकें. जनक्रांति समाप्त हो गई ज़ख्म हरे रहे ,जनता के दिलों में टीस और ज्वाला निरंतर धड़कती रही .

विश्व प्रथम विश्व युद्ध (सन् 1914 – सन् 1918) के समय अंग्रेजी सरकार का यह कहना था कि युद्ध स्वतंत्रता के लिए लड़ा जा रहा है. प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों के द्वारा अंग्रेजी सरकार की अभूतपूर्व सहायता की गई थी. सन् 1914- सन् 1916 तक 1,92,000 भारतीय सैनिकों में पंजाब के सैनिकों की संख्या 1,10,000 थी . जनता ने केवल सैनिक ही नहीं दिए अपितु 2 करोड रुपए युद्ध का चंदा तथा 10 करोड रुपए ब्याज के रूप में भी दिए. प्रथम विश्वयुद्ध (जनवरी 1915 -नवंबर 1918) में हरियाणा क्षेत्र से 84001 सैनिकों की भर्ती हुई.इनमें करनाल जिले के 6553 सैनिक थे. हरियाणा क्षेत्र के द्वारा युद्ध में 84 लाख 33 हजार 666₹ वार फंड के रूप में दिए गए. इनमें करनाल जिले का योगदान 24,45,226 रुपए था.

प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार ने भारतीय जनता से चंदा स्वैच्छिक तथा बलपूर्वक भी लिया. विश्वयुद्ध में 43,000 सैनिकों की मृत्यु के कारण सैनिक परिवारों के आर्थिक स्थिति बहुत अधिक खराब हो गई .युद्ध के दौरान जनता से बलपूर्वक युद्ध का चंदा इकट्ठा करना, अभूतपूर्व महंगाई ,बेरोजगारी,भूखमरी,जनता पर कर्ज , महामारी, असंतुलित मानसून, आर्थिक मंदी का दौर ,गदर पार्टी के क्रांतिकारी आंदोलन का पंजाबी युवाओं पर निरंतर बढ़ता हुआ प्रभाव एवं तुर्की में पैन इस्लामिक मूवमेंट के कारण भारतीय जनता में असंतोष की भावना चरम सीमा पर थी.

सरकार ने असंतोष को दबाने के लिए अराजक एवं क्रांतिकारी अपराधिक अधिनियम 1919 (रौल्ट एक्ट )लागू किया . इन अधिनियम के अंतर्गत प्रेस पर नियंत्रण, स्वतंत्र आंदोलन को रोकना, नेताओं पर बिना मुकदमा चलाए जेल में डालना, बिना वारंट गिरफ्तार करना एवं विशेष न्यायाधिकरणों तथा बंद कमरों में अभियोग चलाना इत्यादि अधिकार सरकार को दिए गए. इन काले कानूनों के विरुद्ध ‘नो अपील, नो दलील, नो वकील ‘ का नारा हिंदुस्तान में फैल गया.

. 6 अप्रैल 1919 से 10 अप्रैल 1919 तक भारत वर्ष में विद्रोह की लहर फैल गई करनाल क्षेत्र में पानीपत ,थानेसर कैथल, लाडवा इत्यादि में भी हड़ताल हुई .13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में वैशाखी बनाने और रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए 20,000 लोग शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे. इस शांतिपूर्ण समारोह पर हो सुनियोजित योजना के आधार पर भारतीयों को सबक सिखाने तथा दबाने के लिए ब्रिगेडियर जनरल रेजीनाल्ड डायर ने 5:15 (श्याम) पर बिना चेतावनी दिए गोली चलाने के आदेश दे दिए .सैनिक टुकड़ी ने लगभग 1650 गोलियां फायर की तथा फायरिंग गोलियां समाप्त होने तक चलती रही. लगभग 15 मिनट में अमृतसर के सिविल सर्जन डॉ. स्मिथ के अनुसार 1800 लोग मारे गए. मरने वालों में 41 लड़के व एक 6 सप्ताह की बच्ची भी थी. इस हत्याकांड में 1200लोग घायल हुए थे. ब्रिटिश सरकार के द्वारा 581 व्यक्तियों पर मुकदमें चलाए गए और उन में से 108 व्यक्तियों को मृत्यु दंड,265 व्यक्तियों को आजीवन कारावास ,85 व्यक्तियों को सात-सात वर्ष की कैद और शेष को अपमानित किया गया .जलियांवाला बाग हत्याकांड सन् 1857 की जनक्रांति के पश्चात रक्तरंजित बर्बरता, निर्दयता एवं अमानवीय नरसंहार 20वीं शताब्दी की प्रथम मिसाल थी. समस्त भारत में जलियांवाला बाग सुनियोजित नरसंहार के परिणाम स्वरूप जनता का गुस्सा सातवें आसमान पर था और इसके बाद जन आंदोलन, किसानों और मजदूरों के संघर्षों एवं राष्ट्रीय आंदोलन में एक नया मोड़ आया .दूसरे शब्दों में ब्रिटिश साम्राज्यवाद पतन की ओर अग्रसर हुआ.

महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (सन् 1920 सन् 1921) चलाया गया इस आंदोलन में करनाल से लाला गणपत राय, लाला हुकमचंद ,लाला देशबंधु गुप्त, मौलाना उल्लाह, इकबाल मोहम्मद ,मौलवी मोहम्मद दीन इत्यादि नेताओं ने गिरफ्तारियां दी .करनाल में महिलाओं के द्वारा चरखा चले गए. महिलाओं का लोकप्रिय गीत था ‘चरखा मेरा चलता रहे, मेरे चर्चे के न टूटे तार.’ यह महिलाएं बिना किसी धर्म व जाति के आधार पर बंटी हुई नहीं थी. देश के अन्य भागों की भांति करनाल में भी विदेशी माल की होलियां चलाई गई और यह उद्घोष ‘ किंग इज डेड —राजा मर गया’ गूंज रहा था. संक्षेप में यह आंदोलन हिंदू- मुस्लिम एकता का अतुलनीय उदाहरण था.

महात्मा गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा के रूप में प्रारंभ किया गया .सन् 1930 से सन् 1934 तक इस आंदोलन में समस्त हिंदुस्तान में 20,000 लोगों को जेलों में डाला गया .करनाल जिले के लगभग 1,000 लोगों ने जेल की यात्रा की .इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप लोगों के दिमाग से जेल का डर हमेशा के लिए समाप्त हो चुका था और जेल जाना स्वतंत्रता सेनानियों के लिए बिल्कुल ऐसा ही था जैसा कि वे किसी मंदिर में पूजा करने के लिए जा रहे हैं.

दूसरा विश्व युद्ध सन 1939 में प्रारंभ हो गया है भारतवर्ष में स्वतंत्रता प्रेमियों के दो दृष्टिकोण थे. प्रथम, युद्ध भारत की आजादी के लिए एक सुनहरा अवसर है तथा दूसरा, दृष्टिकोण यह था कि युद्ध के समय अंग्रेजी सरकार का विरोध न किया जाए.परंतु भारत के गवर्नर -जनरल लार्ड लिनलिथगो ने भारतीयों को विश्वास में लिए बिना युद्ध में धकेल दिया .जिसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस पार्टी की राज्य सरकारों ने त्यागपत्र दे दिया.

कांग्रेस पार्टी ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में तीसरा आंदोलन 17 अक्तूबर 1940 को चलाया .इस आंदोलन को ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ के नाम से पुकारा जाता है. इस आंदोलन में सत्याग्रही का चयन लंबी प्रक्रिया के आधार पर किया गया तथा सत्याग्रही को एक निश्चित स्थान पर जाकर यह नारा लगाना था , ‘न देकर एक भाई , न देकर एक पाई, युद्ध में इमदाद करना’. व्यक्तिगत सत्याग्रह में रोहतक से 251, अंबाला से 120, हिसार से 77 और करनाल से 36 लोगों ने सत्याग्रही के रूप में गिरफ्तारियां दी. करनाल जिले के मुख्य सत्याग्राहियों में मोहम्मद हुसैन ,डॉ. राधाकृष्णन, मानसिंह, माधवराम, मोहम्मद हुसैन( जिला कांग्रेस पार्टी के महासचिव),चंदगीराम, विष्णु दत्त, बनारसी दास, साधुराम, शुगन चंद आजाद, भानु राम गुप्ता इत्यादि उल्लेखनीय है.

भारत के अन्य क्रांतिकारियों की भांति करनाल जिले में भी क्रांतिकारी ग्रुप व्यक्तिगत सत्याग्रह से संतुष्ट नहीं था .11 जनवरी 1941 को साधु राम कंबोज( खेड़ा) आत्माराम कंबोज (नन्हेड़ा), रामप्रसाद (अलाहर) ,विष्णु दत्त शर्मा (लाडवा) पंडित मूलचंद (मुरादगढ़), मामराज (धनौरा), रामदिया (पटेढ़ा), कृष्ण लाल इत्यादि ने पंजाब के गवर्नर को बम से उड़ाने की योजना तैयार की, परंतु इस योजना के लागू होने से पूर्व इन क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया था.

8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में मुंबई में कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में अंग्रेज’ भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया गया. पूर्व निश्चित एवं निर्धारित योजना के आधार पर 9 अगस्त की रात को कांग्रेस के 5,000 से अधिक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. परिणाम स्वरूप भारत छोड़ो आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया .भारत छोड़ो आंदोलन में अक्टूबर 1942 से फरवरी 1943 तक करनाल जिले में 31 व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया और 20 व्यक्तियों को सजा दी गई .जबकि पंजाब में 31 दिसंबर 1943 तथा तक 2501व्यक्ति व भारत में 91,836 व्यक्ति गिरफ्तार किए गए .इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की जड़े हिला दी.

इसके पश्चात सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित आजाद हिंद फौज के द्वारा भारत के पूर्वी क्षेत्र पर हमला कर दिया. आजाद हिंद फौज में हरियाणा के 398 अधिकारी तथा 2,317 सैनिक थे. एक अन्य स्रोत के अनुसार हरियाणा से 2,847 सैनिक थे, जिनमें से 346 सैनिक वीरों ने अपनी कुर्बानी देकर देश की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व योगदान दिया (.https.//en.wikipedia.org/wiki/History_of_Haryana) इनमें करनाल जिले के 119 सैनिक और 14 अधिकारी थे . करनाल जिले के 5 सैनिक तथा अधिकारी शहीद हुए थे. (माय सिटी रिपोर्टर साक्षात्कार, स्वतंत्रता के आंदोलन में आगे रहे थे करनाल के लाल( माय सिटी, अमर उजाला ,करनाल)

आजाद हिंद फौज के सिपाहियों पर ब्रिटिश सरकार के द्वारा 17,000 मुकदमे चलाए गए. इनमें सबसे प्रसिद्ध अभियोग लाल किले में चलाया गया . इसमें कर्नल प्रेम सहगल(हिन्दू ),कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लों(सिक्ख) व मेजर जनरल शाहनवाज खान(मुस्लिम)आरोपी थे.

आजाद हिंद फौज के सैनिकों को जेल से छुड़वाने के लिए समस्त भारत में जन सभाएं आयोजित की गई . ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध जनमत की सुनामी की लहर समस्त समस्त भारत में फैल गई. जनता का मुख्य उद्घोष था, ‘आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को छोड़ दो या लाल किला तोड़ दो’. इन मुकदमों के कारण समस्त भारत में सांप्रदायिक सद्भावना अपनी चरम सीमा पर थी. दिल्ली के चीफ कमिश्नर ने भारत सचिव को 14 नवंबर 1945 को लिखा,’ मैं लोगों पर सेवा में वफादारी तक वफादार तत्व विशेष रूप से पुलिस और सेना पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में चिंतित हूं’. भारत सरकार के गृह सचिव के इंटेलिजेंस ब्यूरो ने दिसंबर 1945 में लिखा,‘हिंदुस्तान की समस्त जनता की भावनाएं इंडियन नेशनल आर्मी के व्यक्तियों के साथ शहरों से गांव तक हैं तथा सरकारी प्रचार का कोई प्रभाव नहीं है. आजाद हिंद फौज के प्रभाव के कारण भारतीय सेना में भारतीय सिपाही और अफसर जो अभी तक अंग्रेजों के साथ थे अपने आप को “राष्ट्र का गद्दार” और “नमक हराम” समझने लगे हैं’. (डॉ. रामजीलाल ,’प्रेरित करता रहेगा सुभाष का चिंतन’, दैनिक भास्कर( पानीपत) ,23 जनवरी 2008, पृ. 9)

इसके पश्चात नेवी , आर्मी की ईस्टर्न कमांड कोलकाता, एयरफोर्स तथा भारतीय पुलिस में बगावत हो गई. ऐसी परिस्थिति में ब्रिटिश सरकार के सामने दो ही रास्ते थे. प्रथम, भारत को छोड़ना , द्वितीय, क्रांतिकारियों के द्वारा अधिकारियों का कत्ल होना.

इस प्रकार की रिपोर्ट जब गवर्नर ऑफ इंडिया के द्वारा इंग्लैंड की कैबिनेट को भेजी गई तो उनके सामने एक ही वैकल्पिक था और उन्होंने भारत को विभाजित राष्ट्र के रूप में छोड़कर जाना पड़ा. भारत को एक विभाजित राष्ट्र के रूप में 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश साम्राज्यवाद, भारतीय नरेशों व नवाबों के नियंत्रण एवं शोषण से मुक्ति प्राप्त हुई.

संक्षेप में सन् 1857 से सन् 1947 तक करनाल जिले की राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं. परंतु अफसोस की बात यह है कि युवा पीढ़ी को हरियाणा के इतिहास के बारे में ज्ञान नहीं है .हमारा अभिमत है कि विभिन्न विश्वविद्यालयों, कालेजों और विद्यालयों के पाठ्यक्रम में हरियाणा के इतिहास को अनिवार्य भाग बनाया जाए तथा हरियाणा के राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न जिलों की भूमिका पर विश्वविद्यालयों के द्वारा शोध पत्र तैयार करवाए जांए. प्रत्येक गांव में सार्वजनिक स्थानों, पंचायत घरों अथवा स्कूलों में जिन- जिन गांव के व्यक्तियों का राष्ट्रीय आंदोलन में सन् 1857 से सन् 1947 तक योगदान रहा है उनके नाम ऑनर बोर्ड पर लिखवाएं जाएं ताकि आने वाली पीढ़ियां उनकी कुर्बानी और देश प्रेम की भावना से प्रेरित हो सके. (लेखक, हरियाणा : तब और अब, कुरुक्षेत्र, 1967, पुस्तक के सह लेखक हैं)

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