“होंगे आप एम.ए. (M.A), पीएचडी (Ph.D.)आपको सामाजिक व्यवस्था की जानकारी नहीं है, तो आप सड़े हुए आलू के बोरे से अधिक नहीं हो।”

(समाज वीकली)

साइमन कमीशन क्या था?

भारत में आज तक ये ही पढ़ाया गया था, कि गांधी ने साइमन कमीशन का विरोध किया ,, लेकिन ये नहीं पढ़ाया जाता कि तीन शख्स थे जिन्होंने साइमन कमीशन का स्वागत किया था।।

चौधरी सर छोटूराम
श्री शिव दयाल चौरसिया

इन तीन शख्स के नाम निम्न है –
1- 60% ओबीसी OBC की ओर से चौधरी सर छोटूराम जी, जो पंजाब से थे।
2- 15% अनुसूचित जाति (अछूत)एस. सी. शेड्यूल्ड कास्ट से बैरिस्टर डॉक्टर बी आर आम्बेडकर। जो महाराष्ट्र से थे।
3- ओबीसी पिछड़े वर्ग OBC चार हजार से अधिक जातियों का बहुसंख्यक मुलनिवासी समुदाय के श्री शिव दयाल चौरसिया जो उत्तर प्रदेश यू पी से थे।।

अब सवाल ये उठता है कि म. गांधी ने साइमन का विरोध क्यों किया?

क्योंकि 1917 में अंग्रेजों ने एक कमेटी का गठन किया था,, जिसका नाम था साउथ बरो कमिशन।,, जो कि भारत के शूद्र ओबीसी पिछड़े वर्ग Other Backward Community अति शूद्र (अछूत) Scheduled Caste and Scheduled Tribes अर्थात आज की भाषा में एस सी S.C./एस टी S.T. और ओ.बी.सी. OBC के लोगों की पहचान कर उन्हें हर क्षेत्र में सामाजिक, शैक्षणिक, आर्थिक, सांस्कृतिक अलग अलग प्रतिनिधित्व दिया जाए,, और हजारों सालों से वंचित इन 85% लोगों को हक अधिकार देने के लिए बनाया गया था।,

उस समय ओबीसी OBC की तरफ से छत्रपति शाहू महाराज ने भास्कर राव जाधव को,, और एस सी एस टी की तरफ से बाबासाहेब डॉक्टर आम्बेडकर को इस कमीशन के समक्ष अपनी मांग रखने के लिए भेजा था।।

लेकिन ये बात ब्राम्हणो के नेता बाल गंगाधर तिलक को अच्छी नहीं लगी और उन्होंने कोल्हापुर के पास (वर्तमान में कर्नाटक में आने वाले) अथनी नाम के गांव में जाकर एक सभा लेकर कहां कि “तेली, तंबोली, कुर्मी कुनभ्ट्टों (कुणबी)को संसद में जाकर क्या हल चलाना है?”

इस तरह विरोध होने के बाद भी अंग्रेजो ने तिलक की बात को नहीं माना और 1919 में अंग्रजों ने एक बात कहीं थी “भारत के ब्राह्मणों में भारत की बहु संख्यक लोगों के प्रति सामाजिक समानता का न्यायिक चरित्र नहीं है”।

इसे ध्यान में रखते हुए 1927 में साइमन कमीशन 10 साल बाद फिर से भारत में एक और सर्वे करने आया, कि इन मूलनिवासी लोगों को भारत छोड़ने से पहले अलग अलग क्षेत्र में उचित प्रतिनिधित्व दिया जाए.

इस साइमन कमिशन में 7 लोगों की एक आयोग की तरह कमेटी थी, जिसमे सब संसदीय लोग थे।।

इसलिए इसमें उन लोगों को शामिल नहीं किया जा सकता था, जो लोग भारत के मूलनिवासी लोगों के हक़ अधिकार का हमेशा विरोध करते थे.

जब यह कमिशन एससी S.C. एसटी S. T. और ओबीसी O. B. C. के लोगों का सर्वे करने भारत आया तो, गांधी, लाला लाजपराय, जवाहरलाल नेहरू और ब्राह्मणों की संस्था आर एस एस ने इसका इतना भयंकर विरोध किया और जगह-जगह पर साइमन को काले झंडे दिखाए गए और सायमन गो बैक, सायमन मुर्दाबाद के नारे लगाए थे।,

लाला लाजपत राय ने गांधी नेहरू और कांग्रेस के लिए अपने प्राण दे दिए, “चाहे मै मर भी क्यों न जाऊं लेकिन इन पिछड़े वर्ग के शूद्र /अति शूद्र लोगों को एक कौड़ी भी हक अधिकार नहीं मिलने चाहिए। ”

म. गांधी ने लोगों को ये कहकर विरोध करवाया कि “इसमें एक भी सदस्य भारतीय नहीं है”, दूसरे अर्थों में गांधीजी ये कहना चाहते थे, कि “इस कमिशन में ब्राह्मण- बनियों को क्यों नहीं लिया? ”

क्योंकि गांधी ने मरते दम तक एक भी ओबीसी OBC के आदमी को संविधान सभा में पहुंचने नहीं दिया।,

इसलिए बाबा साहब डॉ आंबेडकर ने ओबीसी 52% OBC के लिए आर्टिकल 340 बनाया और संख्या के अनुपात में हक अधिकार देने का प्रावधान किया।

दूसरी तरफ साइमन कमीशन का स्वागत करने के लिए चौधरी सर छोटूराम जी ने एक दिन पहले ही लाहौर के रेलवे स्टेशन पर जाकर उनका स्वागत किया।

उत्तर प्रदेश (यूपी )से ऐसा ही स्वागत शिवदयाल चौरसिया ने किया और डॉक्टर आम्बेडकर ने अलग अलग जगह पर अंग्रेजों की सहायता करके सही जानकारी साइमन को दी थी।

सही जानकारी देने के समय के अनेक किस्से मौजूद है। अछूतों को नये कपड़े पहनाकर बामन बनिया लोगों ने हरीजन के नाम से दिखावा किया था। बाबासाहेब डॉ आंबेडकर की वजह से गोलमेज सम्मेलन में हम भारत के हजारों सालों से शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक, संपति, और बोलने सुनने और पढ़ने लिखने से वंचित किए गए लोगों और उस समय के राजा महाराजाओं की औकात एक बराबर कर दी।

और सभी को एक वोट का अधिकार देकर हमें देश का नागरिक बना दिया।
लेकिन क्या हम बहुसंख्यक ओबीसी, एस.सी. /एस. टी. अपने वोट की कीमत आज तक जान पाए है?
कभी नहीं जान पाए, इसलिए हम आज भी 3% ब्राम्हणों के बंधुआ गुलाम बैल है।।

दूसरी बात साइमन का विरोध करके हमारे हक अधिकार का कौन लोग विरोध कर रहे थे?

1- मोहनदास कर्मचंद गांधी, गुजरात का मोड़(कोढ़) बनिया।
2- जवाहर लाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण पंडित।
3- लाला लाजपतराय पंजाब के खत्री ब्राह्मण।।
4- आरएसएस के संस्थापक चित्तपावन ब्राम्हण डॉक्टर केशव बलीराम हेडगेवार और 3.5% विदेशी यहुदी ज्यू ब्राह्मणों की पूरी आर एस एस।

ये लोग इसलिए विरोध कर रहे थे, क्योंकि इनकी संख्या भारत में मुश्किल से 10% है और इनको ग्राम पंचायत का पंच नहीं चुना जा सकता। इसलिए 90% एस.सी,/ एस. टी. और ओ.बी.सी. के वोट के अधिकार का, शिक्षा, संपति और अलग अलग क्षेत्र में प्रतिनिधित्व का विरोध कर रहे थे।

हमारा मुलनिवासी बहुजन आदिवासियों का इतिहास वो नहीं है जो पढ़ाया जाता है। बल्कि वो है जो छुपाया जाता है। छुपाई हुई बातों को उजागर किए बिना बहुसंख्यक भुमीपुत्र किसान को होश आना मुश्किल है। सबसे अधिक किसान आत्महत्याएं करते है, क्यों कि उनको अपने मुक्ति का इतिहास मालूम ही नहीं है।

– एडवोकेट रामजीवन बौद्ध

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