(समाज वीकली)- सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की मांग है कि जन स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय के ऊपर मंडराते खतरे से निबटने के लिए, मोदी सरकार, बिना विलम्ब सभी स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवा का राष्ट्रीयकरण करे. हमारी यह भी मांग है कि 2018 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल और न्यायाधीश अजीत कुमार के आदेश का तुरंत अनुपालन किया जाए जिसमें स्पष्ट निर्देश था कि जो लोग सरकार से तनख्वाह पाते हैं वह और उनके परिवार जन, सरकारी स्वास्थ्य सेवा ही इलाज करवाएं. इस आदेश को लागू करने से ही सरकारी स्वास्थ्य सेवा सशक्त होगी और सबका लाभ होगा.
15 महीने बीत गए हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जब कोरोना महामारी को वैश्विक जन स्वास्थ्य आपदा घोषित किया था पर यह सरकार की नाकामी है कि उसने समय रहते नीतिगत तरीके से तैयारी नहीं की जिससे जनता अनावश्यक पीड़ा और असामयिक मृत्यु से बच सके. यह तो महामारी के शुरू से ही ज्ञात था कि ऑक्सीजन वेंटीलेटर आदि की कुछ कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों को आवश्यकता पड़ सकती है इसके बावजूद इंतज़ाम नहीं हुआ. आर्थिक मंदी के भी बावजूद दवाओं और अन्य आवश्यक सेवाओं की कीमतों पर कोई लगाम नहीं लगी और ऊपर से कालाबाजारी या भ्रष्टाचार आदि की मार जनता झेलने को विवश है. अब भारत ने दुनिया में 24 घंटे में होने वाले कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या में रिकॉर्ड बना दिया है (3.5 लाख से अधिक) और हर ज़रूरी बुनियादी स्वास्थ्य सेवा की अनेक जगह अत्यंत कमी है जैसे कि लोगों को आवश्यकता होने पर अस्पताल में बिस्तर ही नहीं मिल रहा, ऑक्सीजन नहीं मिल रही, वेंटीलेटर नहीं मिल रहा, दवाएं नहीं मिल रहीं है और मृत होने के बाद, कुछ जगह तो शमशान आदि में भी आपात जैसी स्थिति है (लकड़ी की कमी है तो विद्युत् शव दाह की कमी, या लम्बी इंतज़ार पंक्ति). इतनी विकट स्थिति है कि मध्य प्रदेश के दमोह में कुछ लोगों ने ऑक्सीजन लूट ली तो दिल्ली उच्च नयायालय ने यह तक कहा कि ऑक्सीजन टैंकर को विशेष रास्ता बना कर अर्धसैनिक सुरक्षा के साथ लाया जाये क्योंकि कुछ प्रदेशों में जैसे कि हरयाणा में उसको रोका जा सकता है.
सरकार ने वादे तो बड़े-बड़े किये कि कालाबाजारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त करवाई होगी पर यह आम बात है कि कैसे जनता को हर संभव स्वास्थ्य सेवा या शमशान सेवा के लिए अक्सर लुटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. यदि सरकार ने सभी स्वास्थ्य सेवा हर इंसान को अधिकार-स्वरुप मुहैया करवाई होती तो यह स्थिति न आती. एम्बुलेंस हो या अस्पताल में भर्ती होना, दवा हो या ऑक्सीजन, या शव वाहन आदि, लोगों को क्यों विवश हो कर अनेक गुणा अधिक कीमत देनी पड़ रही है और जानलेवा देरी झेलनी पड़ रही है?
बीमारी से मुनाफाखोरी बंद करवाने में भी मोदी सरकार विफल रही है क्योंकि संभवत: उसको ‘आपदा में अवसर’ दिख रहा है. एक ओर निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर निजी उद्योग बेहद मुनाफाखोरी कर रहा है तो दूसरी ओर किसान पिछले 5 महीने से अपने उगाये अनाज की न्यूनतम कीमत के लिए संघर्षरत है. महामारी के आरंभ में ही तालाबंदी के दौरान सरकार ने ही तो निजी अस्पताल-लैब में कोविड टेस्ट की अधिकतम कीमत तय की रूपये 4,500, जो पिछले साल गिर कर संभवत: रु 600 के आसपास आ गयी है. क्या जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि क्यों सरकार ने निजी वर्ग को कोविड टेस्ट के लिए इतना गुणा अधिक कीमत कमाने दी? कोविड से बचाव के लिए जो कोविशील्ड टीका अडार पूनावाला की कम्पनी सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया बना रही है उसका शोध कार्य तो एस्ट्रा-ज़ेनेका ऑक्सफ़ोर्ड ने किया है जिसने कहा कि वह टीके को बिना मुनाफ़ा कमाए बेचेगा. पर सीरम इंस्टिट्यूट ने सरकार को ही जनवरी 2021 में रु 210 प्रति टीका के रेट पर बेचा, फिर उसी ने सरकार को हाल ही में रु 150 प्रति टीका के रेट पर बेचा है. सीरम ने सरकार से क्यों रु 60 हर टीके पर अधिक कमाए? अब अचानक उसे 1 मई 2021 से यही टीका प्रदेश सरकार को रु. 400 और निजी अस्पतालों को रु. 600 में बेचने की छूट दे दी गई है – जो दुनिया में अधिकतम कीमत है जो सीरम को टीके के लिए प्राप्त होगी. बताइए सीरम भारत में ही सबसे महंगा टीका बेचेगा, आखिर क्यों? क्या सही नरेन्द्र मोदी का ‘आपदा में अवसर‘ का नमूना है। कोवाक्सिन, एक अन्य कोविड वैक्सीन जो भारत बायोटेक द्वारा बेचीं जा रही है परन्तु जिसका ज़रूरी आरंभिक शोधकार्य सरकारी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ वाइरोलोजी (भारतीय चिकितिसा अनुसन्धान परिषद्) द्वारा किया गया है, ने भी घोषणा की है कि वह वैक्सीन रु 150 में केंद्रीय सरकार को, रु 600 में राज्य सरकार को और रु 1200 में निजी वर्ग को बेचेगी. सवाल यह है कि वैक्सीन एवं हर कोविड और गैर-कोविड स्वास्थ्य सेवा की अधिकतम कीमत को सरकार नियंत्रित क्यों नहीं कर रही कि कंपनी असीमित मुनाफाखोरी न कर पाए? एक तरफ किसान को सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गांरटी नहीं दे सकती और दूसरी तरफ दवा उद्योग को संकट के समय मुनाफा कमाने की खुली छूट दी जा रही है।
अनेक देशों ने सरकारी स्वास्थ्य सेवा सफलतापूर्वक सक्रीय कर रखी है जिनमें कनाडा, क्यूबा, न्यू जीलैंड, स्पेन, इंग्लैंड, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका, श्री लंका आदि प्रमुख हैं. हर इंसान को स्वास्थ्य सुरक्षा तभी मिल सकेगी जब सामाजिक सुरक्षा और न्याय भी सबके लिए मज़बूत होगा. इसीलिए यह ज़रूरी है कि सरकारी जल सेवा, शिक्षा, भोजन सुरक्षा, जन परिवहन और यातायात सेवा, आदि भी सशक्त हों और इनका निजीकरण बंद हो.
हमारी मांग है कि:
सरकार बिना विलम्ब के, सभी स्वास्थ्य सेवा और सम्बंधित आवश्यक व्यवस्था का राष्ट्रीयकरण करे जिसमें दवा, टीका, जांच आदि की शोध और बनाने वाली व्यवस्था भी शामिल हो. बड़े कॉर्पोरेट अस्पताल, वैक्सीन उद्योग, जांच व्यवस्था, आदि सभी सरकार द्वारा ही चलायी जाए – परन्तु ऐसी व्यवस्था हो कि समुदाय और जन-समूह द्वारा संचालित स्त्थानीय स्वास्थ्य सेवाएँ आदि पूर्ण स्वायत्तता के साथ सक्रीय हो सके (जैसे आईआईएम् आईआईटी हैं)
सरकार स्वास्थ्य बजट को अनेक गुणा बढ़ाए. सरकार तुरंत अधिक स्वास्थ्यकर्मियों को हर स्तर पर भर्ती करे जैसे कि आशा कार्यकर्ता और अन्य समुदाय स्तर पर कार्यरत लोग, सफाईकर्मी, नर्स, चिकित्सक आदि. आशा कार्यकर्ताओं सहित सभी स्वास्थ्य कर्मियों को नियमित कामगार का दर्जा देते हुए उन्हें उचित प्रशिक्षण तथा नियमित पगार और श्रम अधिकार मिलें,
समुदाय आधारित देखरेख तथा तक्रार निवारण गाव,शहर या तालुका स्तर पर करने की व्यवस्था की जाये
जिन लोगों ने कोविड टेस्ट के लिए न्यूनतम से अधिक कीमत दी है सरकार यह सुनिश्चित करे कि उनको निजी वर्ग अतरिक्त धनराशी वापस लौटाये
कोविड के टीके को बनाने की कीमत पारदर्शी तरीके से आंकी जाए और वही कसौटी का उपयोग हो जिससे किसान के उगाये अनाज की कीमत लागत आंकी जाती है.
भारत सरकार को सीरम इंस्टिट्यूट रु 60 प्रति टीका वापस लौटाए (रु 210 – रु 150)
हर स्वास्थ्य सेवा पर (कोविड और अन्य सभी रोग के लिए) अधिकतम कीमत पारदर्शी तरीके से तय हो और लागू हो (और वही कौसौती का उपयोग हो जो किसान की लागत और न्यूनतम कीमत तय करने में इस्तेमाल होती है – लागत का 1.5 गुणा). जब सभी स्वास्थ्य सेवा का राष्ट्रीयकरण हो जाए तो सरकार यह सुनिश्चित करे कि हर इंसान को सामान्य गुणवक्ता वाली स्वास्थ्य सेवा अधिकार-स्वरुप मिल रही हो.
ऑक्सीजन के औद्योगिक उपयोग पर पूरी रोक लगे जिससे कि जीवनरक्षक ऑक्सीजन चिकित्सकीय उपयोग में ही इस्तेमाल हो
वेदांता को स्टरलाइट को पुन: चालू करने की अनुमति कदापि नहीं मिले
समाचार के अनुसार, 30% अस्पताल के बिस्तर अति-विशिष्ट व्यक्तियों या उनके परिचितों को मिले हुए हैं जो मध्यम तीव्रता के हैं. अस्पताल में भर्ती चिकित्सकीय ज़रूरत के अनुसार हो, कुशल समन्वयन के साथ हो और न कि अति-विशिष्ट व्यक्ति होने के कारणवश. जनता को यह पता रहे कि भर्ती कितनी देर में होगी जिससे कि अनिश्चितता जैसा मौहौल न बने. आदर्श तो यह होगा कि स्वास्थ्य सेवा के लिए रोगी और उसके परिवार को बाज़ार से कुछ भी न खरीदना पड़े.
सरकार यह सुनिश्चित करे कि स्वास्थ्य और जीवन बीमा के जो हकदार हैं उनको बिना विलम्ब लाभ मिले. जो लोग कोविड से कार्य करते हुए संक्रमित हुए और अंतत: मृत हुए हैं उनके परिवारजनों को सरकारी और निजी वर्ग में उपयुक्त नौकरी मिले.
सरकार को चुनाव मतदान केंद्र के अनुसार कोविड संक्रमित क्षेत्र चिन्हित करना चाहिए जिससे कि रोग नियंत्रण प्रबंधन और तालाबंदी, कर्फ्यू आदि सब कुशलतापूर्वक हो सके.
सरकार यह सुनिश्चित करे कि वैज्ञानिक प्रमाण और स्थापित तथ्य ही प्रचारित हो रहे हों और भ्रामक तथ्य न फैलें.
सरकार को मृत्यु उपरान्त लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि शव को दफनाया जाए जो पर्यावरण के लिए अधिक हितकारी है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने एक ज़रूरी आदेश को लागू नहीं किया है – 2018 के इलाहबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल और न्यायाधीश अजीत कुमार के आर्डर को कि सरकार से तनख्वाह प्राप्त करने वाले सभी लोग और उनके परिवारजन सिर्फ सरकारी स्वास्थ्य सेवा ही प्राप्त करें – को सरकार तुरंत लागू करवाए. इसको लागू करने से सरकारी स्वास्थ्य सेवा की गुणात्मकता सभी के लिए सुधरेगी और जनता लाभान्वित होगी.
डॉ जीजी पारिख, मेडिकल विशेषज्ञ, और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के आमंत्रित सदस्य जिन्होंने 1942 के भारत छोड़ो अन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी और जेल तक गए थे
पन्नालाल सुराणा, राष्ट्रीय अध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया):
डॉ संदीप पाण्डेय, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया): [email protected]
डॉ लुबना सर्वथ, तेलंगाना महासचिव, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया):
ब्रिज खंडेलवाल, समाजवादी विचारक
शीवा दुबे, सहायक प्रोफेसर, डीवाई पाटिल अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय
प्रवीण श्रीवास्तव, भौतिक विज्ञान के आचार्य, क्वीन्स कॉलेज, लखनऊ:
हर्षवर्धन पुरंदरे, [email protected]
बॉबी रमाकांत, सीएनएस, आशा परिवार और सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया): [email protected]