माई का अपनी जमीन बचाने का शानदार संघर्ष

(समाज वीकली)

– विद्या भूषण रावत 

मलवाबर गांव मे हमारे समाज बद्लाव के आन्दोलन मे सबसे प्रमुख भूमिका निभाई है श्रीमती रामरति देवी ने जो शुरु से ही गांव मे बच्चो को शिक्शा के लिये प्रेरित करती रही. मुशहर समाज की इस महिला का जीवन संघर्श्पूण रहा है और समाज के लिये प्रेरणादायी भी. रामरती देवी हमारे अंदोलन मे काम करते हुए सभी के लिये माई बन ग़यी और पूरे गांव मे उनका बहुत सम्मान है. जीवन संघर्षो से झूझते हुए माई अंततः ७ दिसंबर २०२० को हमारे बीच से चली गयी. लगभग एक सप्ताह तक जिंदगी और मौत से झूझते हुए अंततः उन्होंने प्राण त्याग दिए लेकिन माई के जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष उनकी जमीन को बचाने का है और वह हम सभी के लिए प्रेरणादायी है.

रामरती देवी का जन्म जिला गोपालगंज जो बिहार मे स्थित है,  के सरपाई नामक गाव में हुआ था.  इनके पिताजी का नाम मंगर और माता जी का नाम नागिया देवी था. ये दो बहिन और दो भाई है जिसमे भाई झिंगा बडा और उसके बाद  रामरती है.  जब यह सात वर्ष की अवस्था में ही थी तभी इनके पिता जी का देहांत हो गया था और फिर झिंगा इन सबको बहुत परेशान करने लगा.  मजबूरन, रामरति के मामा मामी ने उनकी मा और भाई बहिनो को उदयपुरा लाने का निर्णय किया. क्योंकि इनके मामा मामी के अपने कोई संतान नही थी इसलिये उन्होने इनको पालने फैसला किया. रामरती के मामा मामी के पास केवल रहने के लिये छोटा सा घर था लेकिन खेती की जमीन बिल्कुल नही थी और वे गाव मे ही बडे किसान के यहा खेत मज़दूरी करते थे. मामा मामी ने इन्हे अपने बच्चो की तरह पाला और बाद मे राम रती का विवाह मलवाबर गाँव में वंशराज मुसहर के साथ हो गया. उनकी बहन चंदमती का विवाह जिला गोपालगंज बिहार के मठिया गाँव में हो गया और इनके भाई नथुनी का विवाह भी कुशीनगर जिले के बनकटा गाँव में हो गया और सब अपने अपने गृहस्थ में व्यस्त हो गए. कुछ समय बाद इनके मामा मामी भी दुनिया से चल बसे और उनकी मौत के बाद रामरती के भाई नथुनी भी उदयपुरा ही बस गये .

रामरती का वैवाहिक जीवन खुशहाल था क्योंकि इनके पति के पास थोड़ा खेती की जमीन थी जिससे बच्चो का पालन पोषण अच्छे से हो रहा था. उनके चार बच्चे हुए | तीन लड़की 1-वेला  2-चंपा 3-गेनिया और एक लड़का रामचंद्र . ये समय इंदिरा जी की सरकार का है इसलिये मान सकते है के 1970-1982 के बीच का दौर होगा.  कुछ समय बाद वंशराज बीमार पड़ गए उनको पैर में फोड़ा हो गया.  पैसा का अभाव था,  चिकित्सा व्यस्था भी सही नहीं थी. दूर दूर तक कोई  हॉस्पिटल भी नहीं था .  इलाज़ सही से ना होने के कारण उनकी हालत गंभीर हो गई.  अशिक्षा और अन्धविश्वाश के कारण लोग दवा पर कम और झाड़ फूक ओझा सोखा पर ज्यादा ध्यान दिए.  इस दौरान इनकी हालत बिगड़ती गई और इनको कैंसर हो गया. अंत:  बहुत तकलीफ झेलने के बाद  उनकी मौत हो गयी. रामरती के ऊपर दुखो का पहाड़ टूट पड़ा. चार बच्चो की जिमेदारी पति के मौत के बाद गम में डूबी रामरती अपने चार बच्चो के साथ दुःख भरी जिन्दगी जी रही थी. वह परेशान थी लेकिन मेहनत कर रही थी.  इसी मौके का फायदा उठाते हुए रामरती के भांजे जग्गू ने बंसराज का नाम जमीन के कागजो से कटवा कर अपने नाम करवा दिया दिया और इस प्रकार वह फर्जी तरीके से रामरती के ससुर का बेटा बन गया और कुछ दिन बाद रामरती को घर से बेदखल करने लगा, और कहने लगे तुम यहाँ से भाग जाओ तुम्हारा यहाँ कुछ भी नहीं है क्योंकि  मेरे मामा फौदी ने सारी ज़मीन मेरे नाम कर दिए है,  बंशराज के नाम कुछ भी नहीं है.   रामरती बोली फौदी का तो एक ही बेटा है जो मेरा पति वंशराज था |फिर राम तुम कहा से आये.

रामरती ने भी लड्ने का निर्णय लिया और गाव के ही बडे बुजुर्गो से मिली और अपनी बात बताई. काम के सर्व्जीत चौधरी ने उन्हे बताया के उनके भानजे ने सारी जमीन अपने नाम कर ली है और अब कानूनी लडाई के अतिरिक्त कोई चारा नही है. अपनी जमीन को बचाने के लिये माई ने जिले के कई चक्कर लगाये और फिर एक वकील किया जिसने रामरति के नाम से मुकदमा किया. सुरेंद्र मिश्र नामक इस वकील ने माई की कानूनी लडाई लडी. रामरती के पास ज्यदा कागजाद नही थे लेकिन वो गांव के लोगो की मदद से और लगातार कोशिश की. वह मज़डूरी करती और उस्से पैसे बचा कर वकील को पैसे देती.

अंत मे न्ययालय ने पूरे प्रकरण की जांच के आदेश दिये तो अधिकारीयो को मौके पर  जाँच के दौरान पता चला रामरती की ज़मीन फर्जी तरीके से मामा वंशराज का नाम कटवा कर अपने नाम करवाया था जाँच के बाद पता चला की हकीकत में फौदी का लड़का बंसराज, जो माई के पति थे और उन वंशराज का बेटा रामचंद्र है  जिसके नाम पर ज़मीन  कर दिया गया |

गाँव वाले सोचने लगे एक अकेली विधवा कैसे लड़ कर अपना ज़मीन बचा ली लेकिन माई ने बहुत संघर्श् किया और हर एक उस व्यक्ति से सम्पर्क जो उनके अनुसार उन्हे मदद कर सकता था.  उस समय गाँव के प्रधान विश्वनाथ चौधरी थे वो रामरती के खेत को अपना चक बना लिए और रामरती को बोले की जितना ज़मीन मिला है और तुम उतने में ही रहो | माई की कुल तीन बीघा जमीन के भी एक चौथाई पर चौधरी का कब्ज़ा था . जब गाव के कुछ बडे लोगो ने रामरती का साथ देने की कोशिश की तो चौधरी ने उन्हे भी जमीन का कुछ हिस्सा दे दिया. सारा खेल चकबंदी के दौरान हुआ. मुशहर समाज के लोगो को जिस प्रकार से सभी जातियो ने केवल अपनी प्रज़ा समझा वो खतरनाक था . माई को धमकी मिलने लगी के वो उस जमीन की बात न करे और जो उसके पास है उसी मे अपना गुजारा कर.

माई की दो बीघा जमीन को भी बेटा बेचना चाह्ता था लैकिन माई ने साफ कह दिया के बाप दादो की निशानी को वह अपने जीते जी नही बेचने देगी. आज माई अपने खेत मे खेती करती है और अपना जीवन स्वाभिमान के साथ जी रही है.

इतनी जिंदगी के बाद जब माई के अब पांचवी पीढी को देख रही है. विवाह के बाद तक उनका घर छप्पर का था लेकिन 2019 मे ये मलवाबर गांव की सबसे बडी सफलता है के माई के पास अब उनका अपना पक्का घर है और अब उनके पोतो के लिये सर के उपर छत है. शायद इतनी जिंदगी संघर्श और अनिशितता मे व्यतीत करने के बाद माई के लिये ये एक बहुत शुकुन का पल है. माई के संघर्ष को सलाम.

        

Previous articleIndian Workers’ Association Great Britain demands unconditional repeal of Modi government’s anti-farmer laws!
Next articleCPL wins ‘Best Use of Social Media’ at Int’l Sports Convention