फिर मिलेंगे…….

– विभूति मनी त्रिपाठी 

जैसे जैसे देश में चुनाव की सरगर्मी कम हो रही है, आम जनता राहत की सांस लेने लगी है, क्यूंकि वैसे भी 5 साल तक आम जनता की सुधि कोई लेता नही और जैसे ही चुनाव का बिगुल बजता है, राजनेताओं को आम जनता की याद आने लगती है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि आज कल के चुनावी रण में वोट लेने के लिये हमारे राजनेताओं द्वारा हर दिन नये नये प्रयोग किये जाते हैं, एक से एक तीखे, शब्द बाणों का प्रयोग किया जाता है, उनमें से जो प्रयोग सफल हो जाते हैं, वही उस चुनाव का मुख्य हथियार बन जाता है और उसी हथियार के सहारे चुनावी नैया को फिर से पार लगाने की कोशिश में हमारे राजनेता लग जाते हैं ।
चुनाव के समय अकसर हमारे राजनेता, आम आदमी से नजदीकी बनाते हुये दिख जाते हैं, आम आदमी बेचारा करे भी तो क्या , एक तो गरीबी उसके उपर आये दिन राजनेताओं का आना और उनकी आवाभगत करना, ऐसी स्थिति को कंगाली में आटा गीला वाली कहावत से बखूबी बयां किया जा सकता है, इसके साथ चुनावी रण के दौरान अक्सर हमारे राजनेता आम लोगों की मदत करते हुये दिख जायेगें और उनकी इस चुनावी मदत को बहुत ही अच्छे तरीके से प्रचारित और प्रसारित किया जाता है, ताकि आम लोगों को यह समझ आ जाये कि अमुक राजनेता ही आम आदमी के दुखों का असली खेवनहार है लेकिन सत्य कुछ और ही होता है, हमारे राजनेता यह सब खुद को आम आदमी का मसीहा साबित करने के लिये करते हैं लेकिन उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ चुनावी नफा नुकसान पर ही रहता है ।
हमारे समाज में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जिनको इस चुनावी समर का बहुत ही शिद्दत के साथ इंतजार होता है, क्यूंकि इसी चुनावी माहौल में इन लोगों की दुकानें चल जाती हैं और इसी बहाने वो 5 साल की कमाई एक साथ कर लेते हैं ।

एक सवाल जो हर चुनाव के वक्त बार बार आता है, वह है कि चुनाव का मुख्य मुद्दा क्या होना चाहिये ??? मेरा अपना मानना है कि आज के समय में चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा है देश का विकास, क्यूंकि देश के विकास से ही हम सब का विकास संभव है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज के समय में लोगों की मानसिकता सिर्फ अपने स्वार्थ से जुड़े मुद्दों पर आकर सिमट गयी है ।
ऐसी स्थिति में अपने स्वार्थ से जुड़े व्यवहार को क्या किसी भी सूरत में सही माना जा सकता है ??? ब्लिकुल नही , आज तक के चुनाव में सिर्फ अपने स्वार्थ से जुड़े मुद्दों पर ही केंदिªत होकर आम लोगों ने अपने मत का प्रयोग किया, आज भी ऐसे लोग जो अपने स्वार्थ को कंेदª बनाकर वोटिंग करते चले आ रहे थे, वो आज भी वहीं के वहीं होकर रह गये हैं और आज भी उनके जीवन स्तर में कोई सुधार नही हुुआ है ।
लेकिन ऐसे राजनेता जिनके बहकावे में आकर आज तक आम जनता वोट करती आई है, उनके जीवन स्तर में बदलाव हुआ है, वह आज के समय में करोड़ों अरबों के मालिक बन बैठे हैं और सुख और ऐश्वर्य का जीवन गुजार रहे हैं, लेकिन हमारी आम जनता बेचारी आज भी अपनी उसी पुरानी समस्याओं से घिरी हुई है, इस तरह से यह कहना बिल्कुल भी गलत नही होगा कि आम जनता आज भी वहीं की वहीं पर है, जबकि हमारे राजनेता आज के समय में फर्श से अर्श पर पहुंच गये हैं ।
चुनाव संपन्न होने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह रहता है कि सरकार किसकी बनेगी ??? हर एक राजनीतिक दल अपनी अपनी तरह से सीटों के जोड़ घटाने में लग जाते हैं , सभी का एक ही मकसद होता है, वह है किसी ना किसी तरह से सत्ता के करीब पहुंचना, ताकि 5 साल तक दीमक की तरह देश को चाटा जाये और सत्ता सुख का भोग किया जाये ।

देश के विकास की बात की जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि जब तक देश में गठबंधन की सरकार रहेगी, देश के विकास की बात करना बेईमानी ही होगा और ऐसा हुआ भी है क्यूंकि गठबंधन की सरकार में हर एक दल सिर्फ अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिये ही लगा रहता है, क्यूंकि हमारे राजनेता इस बात को बखूबी समझ गये हैं कि अब आम आदमी को ज्यादा समय तक बुद्धू नही बनाया जा सकता ।
इतिहास गवाह है कि देश में जब जब गठबंधन की सरकार आई है तब तब देश का बेड़ा गर्क ही हुआ है, इस तरह से हम सब की यह कोशिश होनी चाहिये कि देश में पूर्ण बहुमत की एक दल की सरकार आये जिससे कि वह बिना किसी दबाव के मजबूत फैसले ले सके और उन्ही मजबूत फैसलों से ही देश का विकास संभव हो सकेगा ।
आज कल के चुनावी दौर में आम आदमी को भटकाने के लिये चुनावी घोषणा पत्र का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जाता है , क्यूंकि चुनावी घोषणा पत्र में आम आदमी से जुड़े मुद्दों को वरीयता दी जाती है, इसी के सहारे अपने चुनावी स्वार्थ की पूर्ति राजनीतिक दलों के द्वारा की जाती है, सत्ता प्राप्त हो जाने के बाद वही आम आदमी खुद को ठगा सा महसूस करने लगता है, इसलिये समय के साथ कठोर फैसले लिये जाने जरुरी हो जाते हैं, और यह स्पष्ट है कि अब देश में एक ऐसे कानून की सख्त जरुरत है जिसमें यह प्रावधान हो कि हर एक राजनीतिक दल जो भी वादे अपने चुनावी घोषणा पत्र में करती हैं, अगर वह राजनीतिक दल सत्ता में आती है तो उस राजनीतिक दल को हर एक उस वादे को पूरा करना होगा जो उसने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किया था ।

देश के आजाद होने के बाद से लेकर आज तक की स्थिति पर अगर गंभीरता से चर्चा की जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि समय के साथ अगर कुछ बदला है तो वह है हमारे राजनेताओं का जीवन स्तर, बेचारा आम आदमी जिसके वोट के दम पर राजनेताओं को सत्ता और ताकत मिलती है वह आम आदमी वहीं का वहीं रह जाता है, खुद को सिर्फ ठगा सा महसूस करता है, इस आस में कि शायद कभी ना कभी उसकी भी स्थिति में सुधार आयेगा , 5 साल गुजर जाता है और फिर एक बार से वही सब कुछ शुरु हो जाता है । अगर महसूस किया जाये तो यह बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज केे तेज रफतार जिंदगी में आखिर कोई भी गरीबों और मजलूमों के बारे में क्यूं सोचेगा ???
अंत मेें बस इतना ही कहना चाहूंगा कि किसी भी व्यक्ति को, कभी भी अपने जड़ के साथ कोई खिलवाड़ नही करना चाहिये, क्यूंकि अगर जड़ ही नही रहेगा तो पूरा का पूरा वृक्ष अपने आप नष्ट हो जायेगा, ठीक यही बात हमारे राजनेताओं पर भी लागू होती है, कि अगर आम जनता की समस्याओं को समय रहते दूर नही किया गया, आम जनता से किये गये वादे अगर पूरे नही किये गये तो वह दिन दूर नही जब जनता सड़क पर आ जायेगी और राजनेताओं से अपने मत का हिसाब मांगना शुरु करेगी और वह पल हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिये बहुत ही कष्टकारी पल होगा क्यूंकि आम जनता ही हमारे लोकतंत्र का मुख्य आधार है।

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