(समाज वीकली)
करोना से बचने के लिए
आप ने कहा- थाली बजाओ
हमने पीटते पीटते थाली तोड़ डाली।
आप ने कहा- ताली बजाओ
हमने सोचा- सेहत के लिए अच्छी है
बजाते बजाते हाथों में सूजन आ गई।
आप ने कहा- दीपक जलाओ
हमें याद आई – पुराने चुनाव चिन्ह कीं
हमने दीपमाला कर डाली
घी के दीप जलाए
जैसे आज ही ” प्रभु ” आने वाले हो
दीप तो क्या
हमने आतिशबाज़ी की, अनार भी फोड़े
किसी ने तो गन-फायर ही कर डाला।
आप ने जो-जो कहा-
हमने किया, हम करेंगे, हम करते रहेंगे
हम तो गुलाम हैं-
आपके शब्दों के!
आप ने लाकडाऊन किया
एक, दो, तीन—-
हमने मान लिया।
सोचा- जो करते होंगे
अच्छा ही करते होंगे?
आपने मुंह पर पट्टी बांधने को कहा
हमने अपना मुंह बंद कर लिया।
कुछ नहीं बोले, चुप रहे, सोचने लगे- आगे क्या कहोगे?
आपने सख्ती से कहा-
दो गज़ की दूरी- बहुत जरूरी।
हमें बुरा लगा।
यह कैसे सम्भव है?
छे फ़ुट की खोली
माँ-बाप, मियां-बीवी और दो बच्चे
यह कैसे होगा?
हम यह भी करते
अगर आप ” करके ” बताते!
आप ने समझा
हम बाग़ी हो गए है!
आप चुप हो गए।
हमने कहा-
काम नहीं है
खाने को नहीं है
मकान नहीं रहा
घर जाना चाहते हैं
किराया नहीं है
आप कुछ नहीं बोले!
हमने सोचा-
आप दो गज़ की दूरी पर नाराज है ।
यही से पैमाना बदल गया-
आप थाली से दो गज़ दूर चले गए!
हम रोटी से दो गज़ दूर खड़े हैं!
हमने गठरी उठाई और चल दिए
दो-दो गज़ नापते चले गए
हजारों मील लम्बी यात्रा—-
जैसे भी-कैसे भी
पैदल और साइकिल भी
छाले पड़ गये पाँव में
सड़कें लाल हो गईं
हमारे खून से
हम रेलवे लाइन पर कट गए
हम रेलवे स्टेशन पर
सदा की नींद सोए पड़ें हुए
बच्चे चादर खीचते रहे, यह बताने को
उठो माँ, घर के लिए गाड़ी आ गई है।
हमें सड़कों पर वाहनों ने रौंद डाला
पर हम चलते गए—
घर के लिए।
सोचा, मरना तो है
घर पर मरेगे
अपनों के बीच।
रास्ते में, बहुत बार पीछे मुड़ कर देखा।
किसी ने भी,
पीछे से आवाज़ नहीं लगाई।
हम तो बरबाद हुए ही
आप भी नहीं बच पाए।
सब कुछ बन्द हो गया
हमारे जाने के बाद।
अब क्यु बुला रहे हो, दोबारा
मरने और मर जाने के लिए।
हम मजदूर है- मजबूर है
एक आँकड़ा नहीं ।
हम श्रम बेचते है
अहसास नहीं।
लालच और प्रलोभन
नहीं, बस और नहीं
हम, खुद होगे- कामयाब
एक दिन, एक दिन।
हरमेश जस्सल