(समाज वीकली)- जिंदगी और मौत के बीच दूरी इतनी घट जायेगी, कभी यह बुरे ख़्वाब में भी सोचा न था। कल तक जिनके साथ चाय पिया करता था, और राजनीतिक मामलों पर खूब बहस और लड़ाई झगड़ा हुआ करता था, उनमें से एक अचानक बीमार पड़ गए।
कुछ दिन पहले एक मनहूस फोन कॉल आया। “भैया मैं कोरोना पॉजिटिव हो गया हूं। बदन में काफी दर्द है। पीठ पर ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने सौ लाठी मारी हो। स्वाद बिलकुल गायब है। सूंघने की ताकत भी खत्म हो गई है। तेज बुखार अभी भी है।”
बीमार व्यक्ति मुझे “भैया” इसलिए कहते हैं कि मैं उम्र में उनसे थोड़ा ज्यादा बड़ा हूं। दोनों की आबाई रियासत बिहार है।
भैया कहने का मतलब यह नहीं है कि श्रीमान मेरे साथ बहस करने, बात काटने और सामाजिक न्याय की पार्टियों और वामपंथ की विचारधारा को जीभर के बुरा भला कहने से पीछे हटे हों।
बार बार उन्होंने मुझ पर यादव की “गुंडागर्दी”, सामाजिक न्याय की पार्टी के द्वारा किए गए “भ्रष्टाचार” पर खामोशी इख्तेयार करना का आरोप लगाया।
वह मेरी बातों को काटते हुए अक्सर कहते “भैया, आप लोग सामाजिक न्याय की पार्टियों के खिलाफ नहीं बोलेंगे, क्यूंकि इससे आप का धंधा बिगड़ता है। आप लोग सिर्फ पंडित और ऊंची जाति के लोगों के खिलाफ जहर उगलते हैं, क्योंकि इससे आप की प्रगतिशीलता और चमक उठती है। सच्चाई बोलने की हिम्मत कीजिए।”
मेरा तर्क यही होता कि सामाजिक न्याय की पार्टियों और नेताओं में बहुत कमियां हैं, मगर इसका विकल्प कभी भी धर्म और नफरत की राजनीति नहीं हो सकती।
मगर श्रीमान जी मेरी बात न सुनते और मुस्लिम के खिलाफ खूब बोलते। उन्होंने धारा 370 खत्म होने पर जश्न मनाया। मंदिर का भी समर्थन किया। और पिछली बार साहेब को भी वोट दिया। बिहार चुनाव के दौरान लालटेन को बुझाने में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और कई बार दलित बहुजन समर्थक लोगों से मार करते करते बचे। धर्म और नफरत की राजनीति करने वाली पार्टी के छात्र संगठन के नेताओं से भी दोस्ती बनाई और खुद के स्वर्ण होने का फायदा जहां मौका मिला उठाया।
मगर इन दिनों श्रीमान जी कोरोना से बीमार रहें। वैचारिक मतभेद होने के बावजूद भी हमने और दीगर दोस्तों ने उनकी हाल पुरसी की। सब ने उनकी मदद की। एक दोस्त ने खाना भी उनके पास पहुंचाया। खुशी की बात है कि अब वह कोरोना नेगेटिव हो गए हैं और तकरीबन सेहतमंद हो गए हैं।
कल रात ही उन्होंने फोन करके शुक्रिया अदा करना चाहा। मैंने कहा शुक्रिया किस बात की। मैंने तो कुछ किया भी नहीं आपके लिए। “नहीं भैया आपलोगों ने बहुत कुछ किया। मेरा हौसला बढ़ाया। पिछले अठारह दिन में कभी भी ऐसा नहीं लगा कि मैं अकेला हूं…।”
मैंने कहा, “ठीक है भाई। अपना ख्याल रखिए। अभी रूम में ही रहिए। आराम कीजिए। और अच्छा खाना खाइए।”
उनका जवाब था कि “मैं आराम ही कर रहा हूं। मगर कोरोना बड़ा खतरनाक है। लोगों को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। यह कोई मामूली बुखार नहीं है। यह शरीर को तोड़ देता है।”
इतना कहने के बाद वह और भी कुछ बोल दिए, जिसकी मैं उम्मीद नहीं कर रहा था। शायद इसकी वजह उनकी “सफरिंग” है। शायद आज उनके दिल और दिमाग से कोरोना वायरस के साथ साथ धर्म और नफरत की राजनीति का वायरस भी निकल पड़ा है।
वह बोलते रहें ” भैया, कसम खा कर कह रहा हूं जो गलती मैंने पिछली बार की थी अब नहीं करूंगा। जिनको वोट दिया था, वह मुझे मरने के लिए छोड़ दिए थे। न कोई बेड है, न कोई अस्पताल। सत्ता में बैठे लोगों को गरीब की जान से कोई हमदर्दी नहीं। मंदिर बन रहा है। क्या मंदिर की कमी है इस देश मे? मुसलमानों के खिलाफ बुरा भला कहा जाता है। मेरा एक मुस्लिम दोस्त ने इस संकट में मेरे लिए फल भेजा। मुस्लिम और सिख भाइयों ने बहुत मदद की है। मैने बहुत बड़ी गलती की है जो हिंदू धर्म के ठेकेदारों को वोट दे दिया। अब कभी नहीं दूंगा। मुझे आज एहसास हो गया हिंदू धर्म और देश को किस से खतरा है…।”
इस तरफ मोबाइल फोन को पकड़े, मैं इन सारी बातें सुन रहा था…..।
– अभय कुमार
जेएनयू
अप्रैल 29, 2021