किसानों एवं श्रमिकों के मसीहा और असली जननायक चौधरी देवीलाल : पुनर्विलोकन
डॉ. रामजीलाल, सामाजिक वैज्ञानिक, पूर्व प्राचार्य, दयाल सिंह कॉलेज, करनाल (हरियाणा-भारत)
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सार
हरियाणा जैसे छोटे-से राज्य से निकलकर पूरे देश भर में अपनी धमक रखने वाले पूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल को गुज़रे दो दशक से अधिक हो चुके हैं. पर आज भी हरियाणा में उनका नाम चलता है. क्या कारण रहा कि प्यार से ‘ताऊ’ कहलाने वाले चौधरी देवीलाल आज भी राज्य के जनमानस में बने हुए हैं?
चौधरी देवीलाल हरियाणा के महान् सुपुत्र ,भूमिपुत्र, उपाश्रित वर्ग, किसानों और श्रमिकों के मसीहा थे. देवीलाल हरियाणा की जनता के हृदय सम्राट, बेताज बादशाह, जननायक, राजनीतिक योद्धा, हरियाणा के हीरे, किसानों के राजकुमार, भारत के रत्न, आधुनिक भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह, युग पुरुष, लौह पुरुष, सम्राट निर्माता, सुयोग्य प्रशासक, संघर्ष के प्रतीक एवं त्याग मूर्ति थे. करोड़ों लोगों के द्वारा पूजनीय होने के कारण चौधरी देवीलाल को जनता सम्मानपूर्वक “ताऊ” के नाम से सम्बोधित करती है. यद्यपि परिवार में दादा, पिता तथा चाचा का विशेष महत्त्व और सम्मान होता है. परन्तु “ताऊ’’ का सम्मान विशेष होता है. इसलिए चौधरी देवीलाल को जनता “ताऊ’’ के रूप में सम्मान देती है. वे हरियाणा के निर्माताओं में अग्रणीय थे. राजनीति में वे छोटे से प्रदेश हरियाणा के मुख्यमंत्री से भारत के उप-प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए. संक्षेप में चौ. देवीलाल एक समाज सुधारक,सरल आचरण, विराट व्यक्तित्व के धनी,राजनीतिज्ञ,स्वतंत्रता सेनानी व लोकप्रिय ‘जननायक’ थे.
विस्तार
मुश्क़िलों में बीते बाल्यकाल ने इरादों को फौलादी बना दिया
चौधरी देवीलाल (जन्म– देवी दयाल ; 25 सितंबर 1914 – 6 अप्रैल 2001)) का जन्म 25 सितम्बर 1914 को जिला सिरसा के एक गांव तेजाखेड़ा (हरियाणा) में हुआ. इनके पिता जी का नाम चौधरी लेख राम सिहाग तथा माता जी का नाम श्रीमती शुगना देवी था. इनके पिता जी बड़े जमींदार तथा सामन्तवादी प्रवृति के व्यक्ति थे, क्योंकि उनकी चौटाला गांव में 2750 बीधे जमीन थी.बाल्यकाल में इनकी माता जी (श्रीमती शुगना देवी) का असामयिक देहान्त होने के कारण इनको माता जी के प्यार, दुलार, ममता, स्नेह एवं सुरक्षा से वंचित होना पड़ा. इनके पिता जी का व्यवहार सामन्तवादी एवं सर्वसत्तावादी था तथा सौतेली मां चाहे जितना भी प्यार क्यों न दे, कभी भी मां का स्थान नहीं ले सकती. पारिवारिक वातावरण के कारण बालक देवी दयाल, जो बाद में “ताऊ देवीलाल” के नाम से भारतीय राजनीतिक इतिहास पर अमिट छाप छोड़ गए, बचपन से ही बागी हो गए और जीवन पर्यन्त उनके चिन्तन एवं राजनीतिक व्यवहार पर यह प्रभाव रहा.
चौधरी देवीलाल की प्रारम्भिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक स्कूल, चौटाला में हुई तथा पांचवीं से आठवीं श्रेणी तक डबवाली में शिक्षा ग्रहण की. इसके पश्चात् भगवान् मैमोरियल स्कूल, फिरोजपुर तथा बाद में देव समाज हाई स्कूल, मोगा में शिक्षा ग्रहण की. देवीलाल को फारसी, उर्दू, हिन्दी एवं अंग्रेज़ी का व्यावहारिक ज्ञान था. इनकी सर्वाधिक रुचि इतिहास में थी. पढ़ाई के अतिरिक्त उनकी रुचि खेल में भी थी. उनकी कुश्ती, घुड़सवारी एवं तैराकी में विशेष रुचि थी. पंजाब के बादल गांव के अखाड़े में देवीलाल ने पहलवान बनने का प्रशिक्षण ग्रहण किया. इसी गांव से देवीलाल और प्रकाश सिंह बादल की दोस्ती प्रारंभ हुई जो कालांतर में राजनीतिक मित्रताऔर पारिवारिक संबंधों में गहन होती चली गई .इन दोनों परिवारों केआज भी सामाजिक और राजनीतिक
संबंध विद्यमान हैं. खेल में रूचि होने के कारण इनमें सहनशीलता, साहस, संघर्ष एवं नेतृत्व की भावना विकसित हुई और कालान्तर में इन्होंने राजनीति को एक खेल माना. राजनीति को खेल मानने के कारण उनमें नेतृत्व की अनोखी प्रतिभा, निपुणता एवं संघर्ष करने की अभूतपूर्व एवं अतुलनीय गुणवत्ता विद्यमान थी. देवीलाल स्वयं इस बात को स्वीकार करते हुए कहा करते थे कि खेलों के कारण ही उनको ‘लोगों की अगुवाई करने की प्रेरणा मिली.’
गांधीवादी और साम्यवादी विचारधारा के बीच बहते हुए
जब देवीलाल शिक्षा ग्रहण कर रहे थे उस समय भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन अपनी युवावस्था में था. महात्मा गांधी शांतिपूर्ण एवं अहिंसात्मक तरीक़े द्वारा भारतीय जनता का नेतृत्व कर रहे थे और जेल जाना ऐसा बन चुका था कि जैसे कोई भारत माता के मन्दिर में जाकर पूजा करना अपना पवित्र कर्त्तव्य समझता हो. जेल का भय समाप्त हो चुका था तथा उधर दूसरी ओर समाजवाद एवं मार्क्सवाद से प्रभावित होकर युवा वर्ग क्रान्तिकारी तरीक़ों के प्रयोग के द्वारा भी भारत को स्वतन्त्र कराना चाहते थे. अतः गांधीवादी , साम्यवादी तथा क्रान्तिकारी आंदोलन एक ही सिक्के के दो पहलू थे और दोनों एक दूसरे के पूरक एवं सम्पूरक थे. ब्रिटिश साम्राज्यवादी सरकार ने अपने शिकंजे को सुदृढ़ रखने के लिए क्रान्तिकारी साहित्य तथा क्रान्तिकारी संगठनों पर प्रतिबन्ध लगाए हुए थे. राष्ट्रीय आन्दोलन की दोनों विचारधाराओं का प्रभाव भारत की जनता पर निरन्तर बढ़ रहा था.
देवीलाल बचपन से ही बागी होने के कारण राजनीतिक आन्दोलन एवं घटनाओं से अत्याधिक प्रभावित थे. विद्यार्थी जीवन में देवीलाल पर वन्दे मातरम्, मिलाप, प्रताप इत्यादि समाचार पत्रों का प्रभाव भी पड़ा. भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव इत्यादि क्रान्तिकारियों के विचारों को पढ़ कर राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित हुए.
साइमन कमीशन गो बैक:
जब ब्रिटिश सरकार के द्वारा चेम्सफोर्ड रिफॉर्म्स 1919 लागू किए गए तो उस समय यह कहा गया था कि भारत में 10 वर्ष के बाद इन सुधारों का अध्ययन करने के लिए एक कमीशन की नियुक्ति की जाएगी. इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री बाल्डविन ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में एक कमीशन की नियुक्ति की गई. इसको साइमन कमीशन के नाम से पुकारते हैं. इसके सभी 7 सदस्य ब्रिटेन के सांसद थे. इनमें एक भी भारतीय नहीं था. इसलिए इसको ‘श्वेत कमीशन’ के नाम से भी पुकारा जाता है .साइमन कमीशन की घोषणा 8 नवंबर 1927 को की गई और 3 फरवरी 1928 को यह आयोग मुंबई (भारत) पहुंचा. साइमन कमीशन का विरोध समस्त भारत में यत्र तत्र सर्वत्र मुंबई से लेकर कोलकाता तक और मद्रास (चेन्नई) से लेकर लाहौर तक किया गया. यह नारा लगाया गया ‘साइमन कमीशन गो बैक’. 30 अक्टूबर 1928 को साइमन आयोग जब लाहौर रेलवे स्टेशन पर पर पहुंचा तो अहिंसक व शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के अथाह जन सैलाब के द्वारा ‘साइमन कमीशन गो बैक’ के लगाए गए नारे आकाश में गूंज रहे थे. इसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे. पुलिस की लाठियों के प्रहार के कारण लाला लाजपत राय की मृत्यु (17 नवंबर 1928) की घटना ने अन्य युवाओं, क्रांतिकारियों – शिवरा
स्वतन्त्रता आन्दोलन में युवा देवीलाल की भूमिका
युवा देवीलाल के चिन्तन पर करोड़ों भारतीयों की भांति सर्वाधिक प्रभाव महात्मा गांधी की अहिंसा, सत्याग्रह एवं शांति की विचारधारा एवं चिन्तन का पड़ा. यही कारण था कि 15 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी के आह्वान पर देवीलाल व उनके बड़े भाई साहिब राम पढ़ाई छोड़कर राष्ट्रीय आन्दोलन में कूद पड़े. दिसम्बर 1929 में देवीलाल ने कांग्रेस पार्टी के लाहौर अधिवेशन में स्वयंसेवक के रूप में भाग लिया.
जब महात्मा गांधी के नेतृत्व में 12 मार्च 1930 को ऐतिहासिक दाण्डी यात्रा प्रारम्भ हुई और नमक बनाकर ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी गई तो देवीलाल को बगावत के कारण 8 अक्तूबर 1930 को सेन्ट्रल जेल, हिसार में बन्द किया गया तथा 4 जनवरी 1931 को बोरस्टल जेल, लाहौर (अब पाकिस्तान में है) में भेजा गया तथा वह लगभग 10 महीने जेल में रहे.
युवा देवीलाल की यह प्रथम जेल यात्रा एवं उनके राजनीतिक जीवन का मील का पत्थर एवं प्रथम महान् कदम था. जेल का भय सदैव के लिए उनके मन से समाप्त हो गया तथा अन्य लाखों आन्दोलनकारियों, क्रान्तिकारियों
जब 23 मार्च 1931 को भारत माता के क्रान्तिकारी सपूतों-भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दी गई उस समय समस्त भारत में राष्ट्रवाद की ज्वाला अपनी चरम सीमा को पार कर गई. इन महान क्रान्तिकारियों की महान् कुर्बानी का प्रभाव समस्त भारत में उस समय
तक की राजनीतिक घटनाओं तथा आन्दोलनों से सर्वाधिक था. देवीलाल के मन विचारों एवं चिन्तन पर भारत माता के इन महान् सुपूतों की कुर्बानी का अमिट प्रभाव पड़ा और वे पक्के राष्ट्रवादी एवं विद्रोही बन गए. यद्यपि देवीलाल क्रान्तिकारी चिन्तन से प्रभावित थे परन्तु उन्होंने राजनीतिक संघर्ष में गांधीवादी परिप्रेक्ष्य का परित्याग नहीं किया.
गांधी-इरविन समझौते के परिणाम स्वरूप असंख्य राष्ट्र भक्तों की भांति 5 मार्च 1931 को देवीलाल जेल से रिहा हो गए. परन्तु जनवरी 1932 में जब सविनय अवज्ञा आन्दोलन पुनः प्रारम्भ हुआ देवीलाल को भी गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया. परन्तु सन् 1934 में सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित होने के परिणाम स्वरूप देवीलाल सहित हज़ारों आन्दोलनकारियों को जेल से रिहा कर दिया गया. इसके उपरान्त व्यक्तिगत सत्याग्रह (1940 1941) तथा भारत छोड़ो आन्दोलन (1942) में भी सक्रिय भाग लेने के कारण उनको जेल में जाना पड़ा. भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण चौधरी देवीलाल ने 7 बार जेल की यात्रा की.
देश के विभाजन के समय, सामाजिक समरता बनाए रखने में भूमिका
यह सर्वविदित तथ्य है कि 15 अगस्त 1947 को एक विभाजित राष्ट्र के रूप में भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई. पाकिस्तान की स्थापना के पश्चात् करोड़ो लोग भारत से पाकिस्तान से गए तथा पाकिस्तान से भारत आए. मानव जाति के लिखित इतिहास में इतने व्यापक स्तर पर जनसंख्या का आदान-प्रदान आज तक नहीं हुआ .सन् 1946-1947 में भारत में साम्प्रदायिकता की भावना एवं साम्प्रदायिक हिसां अपनी चरम सीमा पर थी. बेगुनाह लोगों को कत्ल किया गया तथा असंख्य महिलाओं को अपमानित तथा कंलकित किया गया और मौत के घाट उतार दिया गया. हिन्दू-मुस्लिम दंगों के दौरान लगभग 6 से 8 मिलियन लोग-हिन्दू, सिख, मुसलमान मारे गए, 18 मिलियन लोग शरणार्थी बने तथा 12 मिलियन लोग बेघर और बेदर हुए. ऐसी स्थिति में जहां साम्प्रदायिकता के कारण लोग इंसानियत खो बैठे, जब धर्म के आधार पर एक अपुष्ट अनुमान के अनुसार लगभग 50,000 महिलाओं एवं बच्चियों को शैतानों के द्वारा उनके रिश्तेदार के सामने ही हब्स एवं हैवानियत का शिकार किया जा रहा हो, जहां सरे आम साम्प्रदायिकता के ताण्डव नृत्य में हिन्दू, मुसलमान व सिख मर रहे हो, जहां महिलाओं एवं बच्चियों का सार्वजानिक बलात्कार एवं कत्ल हो रहा हो, जहां मानवता, धर्मनिरपेक्षता, हिन्दू
आज़ादी के बाद बने, संयुक्त पंजाब में हिंदी की आवाज़
स्वतन्त्रोत्तर काल में भी देवीलाल राजनीति में सक्रिय रहे. साम्यवादी व समाजवादी विचा
को हरा कर देवीलाल पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने. सन् 1958 में ही डबवाली से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर पंजाब विधानसभा के सदस्य बने. देवीलाल ने यह अनुभव किया हिन्दी भाषी क्षेत्र (हरियाणा) आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, बि
भेद-भाव पूर्ण एवं पक्षपात पूर्ण नीतियों, योजनाओं एवं कार्यक्रमों के कारण पिछड़ेपन का शिकार है, अतः देवीलाल ने पंजाब विधानसभा के अन्दर एवं बाहर इन अन्यायपूर्ण एवं पक्षपातपूर्ण नीतियों का विरोध ही नहीं किया अपितु सन् 1962 के उप चुनाव में कांग्रेस पार्टी के टिकट वितरण में भेद-भावपूर्ण एवं अन्यायपूर्ण नीति के कारण कांग्रेस पार्टी को छोड़कर हरियाणा लोक समिति का निर्माण किया और सन् 1962 के निर्वाचन में फतेहबाद निर्वाचन क्षेत्र से विजय प्राप्त की और विधायक बने. इस समय अकाली दल के पंजाबी सूबा बनाने की मांग की प्रतिक्रिया के रूप में हरियाणा संघर्ष समिति के बैनर के तले देवीलाल ने हरियाणा राज्य की स्थापना के लिए आन्दोलन में देवीलाल की अग्रणीय भूमिका रही है. हरियाणा की स्थापना (1 नवम्बर 1966) देवीलाल के अथक प्रयासों एवं जन सम्पर्क के कारण हुई.
नए राज्य में बने राजनीति का केंद्र
हरियाणा की स्थापना (1 नवम्बर 1966) की स्थापना के पश्चात फ़रवरी 1967 में कांग्रेस पार्टी को हरियाणा विधान सभा की 81 सीटों में से 48 सीटें मिली देवीलाल एक त्याग मूर्ति के रूप में जाति व्यवस्था की सीमाओं को लांघ कर सोचते थे. उन्होंने कांग्रेस विधायक दल के नेता के रूप में चौ. दलबीर सिंह (दलित वर्ग) के नाम का प्रस्ताव रखा. परन्तु कांग्रेस पार्टी की हाई कमान के द्वारा भगवत दयाल शर्मा को 10 मार्च 1967 को मुख्यमन्त्री बनाया गया. अप्रजातान्त्रिक रूप मे थोपे गए मुख्यमन्त्री के रूप में भगवत दयाल शर्मा राजनीति के सक्रिय खिलाड़ी होने के बावजूद भी विधानसभा को व्यवस्थित रखने में पूर्णतया असफल रहे. परिणामस्वरूप सही 13 दिन के पश्चात उनकी सरकार ताश के पत्तों की भांति बिखर गई. भारत के लोकतन्त्र के इतिहास में 13 दिन के पश्चात सरकार के पतन का राज्य स्तर पर यह प्रथम उदाहरण है. कालान्तर में केन्द्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतान्त्रिक की सरकार भी 13 दिन में ही धाराशायी हुई थी.
हरियाणा में 24 मार्च 1967 को विशाल हरियाणा पार्टी के नेता राव बीरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चे की सरकार बनी. राव बीरेन्द्र सिंह की सरकार भ्रष्टाचार, हॉर्स ट्रेडिंग (दल-बदल), एवं अस्थिरता का शिकार हो गई. देवीलाल के द्वारा प्रस्तुत ग्रामीण विकास कार्यक्रम के सुझावों की राय राव बीरेन्द्र सिंह ने उपेक्षा की. परिणामस्वरूप देवीलाल ने ग्रामीण विरोधी सरकार के विरुद्ध आवाज़ बुलन्द की. भ्रष्टाचार एवं ‘आया राम, गया राम’ की राजनीति के चलते 2 नवम्बर 1967 को मंत्रिमण्डल को भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू किया गया.
मई 1968 के मध्यावधि निर्वाचन के पश्चात 22 मई 1968 को देवीलाल के प्रयासों के कारण बंसीलाल हरियाणा के मुख्यमन्त्री बने, परन्तु बंसीलाल के अप्रजातान्त्रिक रवैये के कारण देवीलाल ने जनवरी 1971 में कांग्रेस पार्टी को छोड़ दिया. मध्यावधि चुनाव में देवीलाल तुशाम तथा आदमपुर से चुनाव हार गए, परन्तु पंजाब के अकाली दल के नेता प्रकाशसिंह बादल के सुझाव पर देवीलाल पुनः किसान आन्दोलन में सक्रिय हो गए. स्वामी इन्द्रदेश के स्थान पर देवीलाल को संघर्ष समिति का प्रधान चुना गया. 29 मई 1973 को देवीलाल तथा अन्य किसान नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया. पंजाब तथा हरियाणा उच्च न्यायालय ने 4 अक्टूबर 1973 को जेल से रिहा करने के आदेश दिए. सन् 1974 में रोड़ी हलके से उप चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर विधायक बने.
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्पूर्ण फ्रान्ति के आन्दोलन को कुचलने के लिए संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत राष्ट्रीय आपातकालीन की स्थिति की घोषणा 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के द्वारा की गई. राष्ट्रीय नेताओं सहित देवीलाल को भी पूर्व निर्धारित योजना के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया. आपातकालीन स्थिति में लोकतन्त्र का गला घोट दिया गया तथा संताधारी दल-चौकरशाही पुलिस के गठबन्धन के द्वारा जनता पर अत्याचार किए गए. आपात्तकालीन स्थिति में अन्य नेताओं की भांति देवीलाल भी 19 महीने जेल में रहे. 25 जनवरी 1977 को जेल से रिहा होने के पश्चात् जनता के बीच में जाकर कांग्रेस विरोधी सुनामी लहर को तीव्रता प्रदान करने के लिए देवीलाल ने कोई कसर नहीं छोड़ी. चौधरी देवीलाल पूंजीपति वर्ग से चुनाव में चंदा लेने के पक्षधर नहीं थे क्योंकि उनकी लड़ाई ‘कमेरे और लुटेरे वर्ग’ के बीच संघर्ष की थी.इसलिए उन्होंने आपातकालीन स्थिति के पश्चात होने वाले चुनाव में ‘एक वोट, एक नोट’ का नारा बुलंद दिया.
आपातकालीन स्थिति के पश्चात केन्द्र तथा हरियाणा में नवनिर्मित जनता पार्टी की सरकार बनी .हरियाणा में 21 जून 1977 को देवीलाल मुख्यमन्त्री बने मुख्यमन्त्री के रूप में इनका शासन काल 21 जून 1977 से 28 जून 1979
भारत के तत्कालीन उप प्रधानमन्त्री चौ. चरण सिंह के 77वें जन्म दिवस के उपलक्ष्य में शक्ति प्रदर्शन हेतु 23 दिसम्बर 1978 को दिल्ली में किसान रैली का आयोजन किया गया. तत्कालीन प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई इस रैली के आयोजन के विरुद्ध थे. मोरारजी देसाई ने देवीलाल को रैली के आयोजन में भाग लेने के लिए मना किया .परन्तु देवीलाल ने मुख्यमन्त्री के पद की परवाह न करते हुए किसान रैली के आयोजन एवं भाग लेने को प्राथमिकता देते हुए कहा था,’’’ पहले मैं किसान हूं, मुख्यमन्त्री बाद में’. किसान रैली के आयोजन तथा इसमें भाग लेने के कारण नाराज़ मोरारजी देसाई ने योजनाबद्ध तरीके से षडयन्त्र रचा और देवीलाल को राजनीतिक चक्रव्यूह में फंसाया. भजनलाल को मोहरा बनाकर जनता पार्टी के अधिकांश विधायकों को बागी कर दिया. परिणामस्वरूप मोरारजी देसाई को भजनलाल को 28 जून 1979 को मुख्यमन्त्री बनाने तथा देवीलाल को अपदस्थ करने में सफलता प्राप्त हुई. परन्तु देवीलाल ने हार नहीं मानी इस घटनाक्रम से यह सिद्ध होता है कि देवीलाल हृदय एवं आत्मा से किसानों के मसीहा थे.
राष्ट्रीय राजनीति में ताऊ की धमक
देवीलाल के नेतृत्व में हरियाणा की राजनीति में एक बार अभूतपूर्व मोड़ आया. राजीव-लौंगोवाल रामझौते (24 जुलाई 1985) के विरुद्ध देवीलाल के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से 27 जुलाई 1987 को दिल्ली में कांग्रेस पार्टी को छोड़कर अन्य राजनीतिक दलों ने हरियाणा संघर्ष समिति का निर्माण किया. देवीलाल तथा मंगलसिंह (बीजेपी) इसके क्रमशः अध्यक्ष एवं महासचिव चुने गए. हरियाणा संघर्ष समिति के द्वारा न्याय युद्ध के रूप में आन्दोलन चलाया गया. इस न्याय युद्ध के परिणामस्वरूप सन् 1987 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में हरियाणा के लोकदल तथा भारतीय जनता पार्टी के गठबन्धन को 90 में 85 सीटें प्राप्त हुईं. 20 जुलाई 1987 को देवीलाल पुन: मुख्यमन्त्री बने. वह इस पद पर 2 दिसम्बर 1989 तक रहे. इस अल्पकाल (17 जुलाई 1987– 2 दिसम्बर 1989) में उन्होंने अनेक कल्याणकारी योजनाओं को क्रियान्वित किया. इनमें वृद्धावस्था सम्मान पेंशन, बेरोजगारी भत्ता, विकलांगों के लिए सरकारी नौकरियों में तीन फ़ीसदी आरक्षण, किसानों के लिए बिजली की निरन्तर आपूर्ति, फसलों का समर्थन मूल्य इत्यादि उल्लेखनीय है. उनका मुख्य उद्घोष था,’’ बिजली पानी का प्रबंध, भ्रष्टाचार बंद’’.
नौवीं लोकसभा के चुनाव अक्टूबर-नवम्बर 1989 में सन् 1977 की भांति कांग्रेस विरोधी सुनामी लहर के कारण राष्ट्रीय मोर्चे ने अभूतपूर्व विजय प्राप्त की. देवीलाल ने नौवीं लोकसभा के चुनाव में हरियाणा की राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय राजनीति में अभूतपूर्व भूमिका निभाई तथा अपनी अतुलनीय एवं अनूठी छाप छोड़ी. सन् 1989 के चुनाव में देवीलाल दूसरी बार लोकसभा के सदस्य बने. इससे पूर्व सन 1980 में प्रथम बार लोकसभा सांसद बने थे. सन् 1989 तक देवीलाल हरियाणा में किंग मेकर (सम्राट निर्माता) की भूमिका निभाते रहे तथा स्वयं भी मुख्यमन्त्री बने, परन्तु सन् 1989 के लोकसभा के चुनाव के पश्चात् वे एक त्याग मूर्ति के रूप में राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर एक महान तथा बिलकुल नए राजनीतिक अवतार के रूप में प्रसिद्ध हो गए.
दिसम्बर 1989 को भारतीय संसद के केन्द्रीय कक्ष में नव निर्वाचित लोकसभा के सदस्यों ने सर्व सम्मति देवीलाल को अपना नेता (प्रधानमन्त्री) चुना, परन्तु देवीलाल ने वीपी सिंह को अपने सिर का ताज पहनाने के लिए उनका नाम प्रस्तावित करके केन्द्रीय सभाकक्ष में उपस्थित सांसदों एवं समस्त भारत की जनता को आश्चर्यचकित कर दिया. वस्तुतः देवीलाल एक त्याग मूर्ति थे. रामायण काल को छोड़कर विश्व को लिखित इतिहास में त्याग एवं बलिदान का सम्भवतः कोई अन्य उदाहरण नहीं है. यद्यपि देवीलाल ने अभूतपूर्व त्याग किया.परंतु कुछ टीकाकरों के द्वारा इसको ‘ऐतिहासिक भूल’ करार दिया है. यदि चौधरी देवीलाल प्रधानमंत्री बनते तो जो कल्याणकारी नीतियां जो उनके द्वारा हरियाणा में लागू की गई थी वही नीतियां समस्त भारत में लागू हो सकती थी. परिणाम स्वरूप किसान , मजदूरऔर गरीब व्यक्ति के के लिए कल्याणकारी योजनाएं अत्यधिक लाभकारी लाभ साबित होती.
वीपी सिंह ने देवीलाल को 2 दिसम्बर 1989 को उप-प्रधानमन्त्री बनाया. देवीलाल भारत के छठे उप-प्रधानमन्त्री थे. यद्यपि उप-प्रधानमन्त्री के पद का संविधान में वर्णन नहीं है इसके बावजूद इस पद की अपनी गरिमा है, क्योंकि सरदार पटेल जवाहरलाल नेहरू के शासन काल में प्रथम उप-प्रधानमन्त्री के पद पर आसीन हुए. देवीलाल वीपी सिंह तथा चन्द्रशेखर के प्रधानमन्त्री के कार्यकालों में क्रमश: 2 दिसम्बर 1989 से 31 जु
6 अप्रैल 2001 को 86 वर्ष की आयु में उनका देहान्त हो गया. उनकी समाधि दिल्ली में यमुना नदी के तट पर बनी हुई है. यह संघर्ष स्थल के रूप में सुप्रसिद्ध है. उनके ज्येष्ठ पुत्र चौधरी ओमप्रकाश चौटाला चार बार, (2 दिसम्बर 1989 से 2 मई 1990, 12 जुलाई 1990 से 17 जुलाई 1990 22 मार्च 1991 से 6 अप्रैल 1991
सोशल इंजिंयरिंग :छाता राजनीति
एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 55% मतदाता जातिय आधार पर मतदान का प्रयोग करते हैं. यही कारण है कि हरियाणा जैसे राज्य में पिछली शताब्दी में यह कहावत अधिक लोकप्रिय थी –‘जात की बेटी जात को , जात का वोट जात को’.कई बार मतदान को प्रभावित करने के लिए राजनेताओं के द्वारा अनेक मुहावरों का प्रयोग किया जाता है .जातिय आधार पर ‘जातियों का छाता’ तैयार किया जाता है . 20वीं शताब्दी में चौधरी चरण सिंह के द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान जातियों की सोशल इंजिंयरिंग करते हुए ‘अजगर’ –अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत-
नीतियां, योजनाएं, जिनके चलते चौधरी देवीलाल को जननायक कहलाए
एक सफल एवं सुयोग्य मुख्यमंत्री एवं उप-प्रधानमंत्री के रूप में देवीलाल ने जनता विशेष रूप में किसानों, श्रमिकों, दलितों तथा उपक्षितों के लिए असंख्य जनहित योजनाओं का क्रियान्चन किया. इन योजनाओं एवं कार्यक्रमों में किसानों एवं श्रमिकों को बैंको से मिलने वाले ऋण पर ब्याज की कमी, मैचिंग ग्रांट, काम के बदले अनाज, बेरोज़गारी भत्ता, वृद्धावस्था सम्मान पेंशन, स्वतन्त्रता सेनानियों की पेंशन में वृद्धि तथा सम्मान पत्र देकर सम्मानित करना, विकलांगो एवं विधवाओं की पेंशन में वृद्धि, विकलांगों के लिए नौकरियों में 3 प्रतिशत आरक्षण, बाढ़ से बचाव के लिए रिंग बांधों का निर्माण, लघु-कुटीर उद्योगों के निर्माण पर बल तथा सस्ती दरों पर चीज़, दवाइयां, फसलों के उचित दालों का निर्धारण, किसानों को सस्ते दरों एवं प्राथमिकता के आधार पर बिजली की आपूर्ति, विद्यार्थियों के लिए नाममात्र किराए पर बस पास सुविधा, अनुसूचित जाति तथा पिछड़े वर्गों का कर्ज़ा माफ करना, गांव में चौपालों का नव-निर्माण, हरिजन महिलाओं की सहायता, मुक्त द्वार प्रशासन, खानाबदोशों के बच्चों को शिक्षित करने के लिए उन्हें स्कूलों में उपस्थित होने पर प्रतिदिन प्रतिबच्चा एक-एक रुपया प्रोत्साहन देने की योजना इत्यादि मुख्य है.
संक्षेप में ताऊ देवीलाल वस्तुतः ‘कमेरे वर्ग’ के मसीहा थे. कार्ल मार्क्स तथा लेनिन की भांति देवीलाल शोषक वर्ण के घोर विरोधी तथा शोषित वर्ग के हितैषी थे, परन्तु उन्होंने क्रान्तिकारी परिवर्तन की अपेक्षा गांधीवादी एवं प्रजातान्त्रिक तरीक़ों से परिवर्तन का समर्थन किया.
भारतीय राजनीति में चौधरी देवीलाल का स्थान
चौधरी देवीलाल के आलोचकों एवं विरोधियों के द्वारा उन पर भ्रष्टाचार, जातिवाद, अनुशासनही
देवीलाल प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के समर्थक थे और समानता, स्वतन्त्रता, बन्धुता,
अल्लामा इक़बाल के अनुसार:
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा.
चौधरी देवीलाल वास्तव में एक जननायक, राजनीतिक योद्धा, बलिदान, त्याग और संघर्ष के प्रतीक थे. वह जनता के हृदय सम्राट थे. जनसाधारण की यह भावना है कि चौधरी देवीलाल को भारत रत्न से सम्मानित किया जाना चाहिए. हरियाणा की जनता को इसके लिए आंदोलन करना चाहिए ताकि ताऊ देवीलाल को भारत रत्न प्राप्त राजनेताओं की श्रेणी में स्थान प्राप्त हो सके.
अग्रिम पठन के लिए
> रामजीलाल, पंजाब केसरी लाला लाजपत राय- महान दूरदर्शी और करिश्मावादी नेता: एक पुनर्मूल्यांकन https://
24/01/2024
>रामजीलाल,’चौधरी देवीलाल राजनीतिक दर्शन’ ,अनिल दलाल(सम्पादित),अतुल्य जाट कौम ,( दिल्ली:जाट मित्र मंड़ल, ,2014
> रामजीलाल, ‘प्राक्कथन’, राम सरूप चहल , चौ
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